वो कविता थी, सीता नहींकि अग्नि परीक्षा दे सकतीबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।
इसलिएकल रातमेरे अन्दर की कविता नेखुदखुशी कर ली इस कविता को जिंदा रहने दो ...जब तक ये रहेगी साँस में खुशबु रहेगी ...ओर कागज पर जिंदगी.......
ऐसा न करें। कविता को जिंदा रहने दें।
न अभिव्यक्ति का अंत होता है और न ही पन्नो के जलने पर भाव धुआं होते हैं.न जाने किस से, किस बात पर नाराज़ हो.देखो! इतने गुस्से में भी कविता ही कह डाली है.
kavita to jazbaton ko mila alfazon ka roop hain...agar kavita ne khudkushi kar li matlab jazbat bhi dafn ho gaye...ye to na-insafi aur kisi ke saath nahi...khud hi ke saath hain...
वो कविता थी, सीता नहीं
ReplyDeleteकि अग्नि परीक्षा दे सकती
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।
इसलिए
ReplyDeleteकल रात
मेरे अन्दर की कविता ने
खुदखुशी कर ली
इस कविता को जिंदा रहने दो ...जब तक ये रहेगी साँस में खुशबु रहेगी ...ओर कागज पर जिंदगी.......
ऐसा न करें। कविता को जिंदा रहने दें।
ReplyDeleteन अभिव्यक्ति का अंत होता है और न ही पन्नो के जलने पर भाव धुआं होते हैं.
ReplyDeleteन जाने किस से, किस बात पर नाराज़ हो.
देखो! इतने गुस्से में भी कविता ही कह डाली है.
kavita to jazbaton ko mila alfazon ka roop hain...agar kavita ne khudkushi kar li matlab jazbat bhi dafn ho gaye...ye to na-insafi aur kisi ke saath nahi...khud hi ke saath hain...
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