तो हम कितने अलग हैं बाक़ियों से?
असल सवाल सिर्फ़ एक यही होता है। तुम्हारे जीवन में कोई था, ऐसा कि जिसके साथ कोई एक लम्हा तुमने उतनी शिद्दत से जी लिया जैसे कि मेरे साथ। कि क्या तुम ऐसे सबके ही साथ होते हो या मैं कुछ ख़ास थी। कुछ ख़ास। मैथमैटिकल टर्म में, 'डेल्टा' स्पेशल, डिफ़्रेंट। कि सब कुछ बाक़ियों जैसा ही था, लेकिन ज़रा सा अलग। कि इसी ज़रा से अलग में हमारी ज़िंदगी की सबसे ख़ूबसूरत कहानियाँ हैं।
कि जैसे मेरी ज़िंदगी में तुम्हारे जैसा कोई नहीं था। कोई हो भी नहीं सकता है ना। कोई दो लोग एक जैसे नहीं होते। लेकिन फिर भी कोई एक कैटेगरी होती है जिसमें बाक़ी सारे लोग एक तरफ़ और तुम एक तरफ़ होते हो। तो वो कौन सी बात है जो तुम्हें ख़ास बनाती है?
कि जब आँख बंद करते हैं तो वो कौन सा लम्हा है जो रिपीट पर चल रहा होता है और जिसकी ख़ुशबू वजूद को गमका रही होती है। कि बहुत सालों बाद भी वो कौन सी चीज़ होगी जो तुम्हारा नाम लेते ही मुस्कान में बदल जाएगी?
कि जिसे बारिशें धुल नहीं सकती बदन से...ना आँसू आँख से...वो कौन सा स्पर्श है वो कौन सा लम्हा है जो वक़्त के इरेजर से मिट नहीं सकता।
कि वाक़ई वो कौन सी चीज़ है जो मेरे शब्दों में नहीं बंध सकती...कि जो मुझसे भी नहीं लिखी जा सकती। मेरे गुमान को तोड़ने वाला वो कौन सा लम्हा है...कौन सा अनुभव...कौन सा शख़्स...
शब्दों से परे वो क्या था जो जी लिया मैंने...हमने...
कभी फिर मिलोगे अगर तो शिनाख्त करूँगी चूम कर तुम्हारी आँखें कि याद के खारे पानी का स्वाद वही है या बदल गया है।
कि बात जब रिश्तों की आती है तो हमारे पास कितने कम शब्द होते हैं। कोई ऐसा कि जिसके लिए दोस्ती बहुत फीका और बेरंग सा शब्द लगे और प्रेम बहुत फ़्लैम्बॉयंट। कि जिसके लिए हम रचना चाहें कोई एक नया शब्द। कि जो अपूर्व और अद्भुत हो। समयातीत।
कि कभी ज़िंदगी में इस अहसास की पुनःआवृत्ति हो...तो हम उस शख़्स को...या तुम्हें ही...दुबारा भर सकें बाँहों में...गले लगाएँ कि जैसे ये पहली और आख़िरी बार हो...और शब्दों में रख दें एक नया शब्द...एक नया शहर...एक नया अहसास...हमेशा के लिए...
'तुम मेरा न्यू यॉर्क हो'।
[Photograph from the book I wrote this for you]
असल सवाल सिर्फ़ एक यही होता है। तुम्हारे जीवन में कोई था, ऐसा कि जिसके साथ कोई एक लम्हा तुमने उतनी शिद्दत से जी लिया जैसे कि मेरे साथ। कि क्या तुम ऐसे सबके ही साथ होते हो या मैं कुछ ख़ास थी। कुछ ख़ास। मैथमैटिकल टर्म में, 'डेल्टा' स्पेशल, डिफ़्रेंट। कि सब कुछ बाक़ियों जैसा ही था, लेकिन ज़रा सा अलग। कि इसी ज़रा से अलग में हमारी ज़िंदगी की सबसे ख़ूबसूरत कहानियाँ हैं।
कि जैसे मेरी ज़िंदगी में तुम्हारे जैसा कोई नहीं था। कोई हो भी नहीं सकता है ना। कोई दो लोग एक जैसे नहीं होते। लेकिन फिर भी कोई एक कैटेगरी होती है जिसमें बाक़ी सारे लोग एक तरफ़ और तुम एक तरफ़ होते हो। तो वो कौन सी बात है जो तुम्हें ख़ास बनाती है?
कि जब आँख बंद करते हैं तो वो कौन सा लम्हा है जो रिपीट पर चल रहा होता है और जिसकी ख़ुशबू वजूद को गमका रही होती है। कि बहुत सालों बाद भी वो कौन सी चीज़ होगी जो तुम्हारा नाम लेते ही मुस्कान में बदल जाएगी?
कि जिसे बारिशें धुल नहीं सकती बदन से...ना आँसू आँख से...वो कौन सा स्पर्श है वो कौन सा लम्हा है जो वक़्त के इरेजर से मिट नहीं सकता।
कि वाक़ई वो कौन सी चीज़ है जो मेरे शब्दों में नहीं बंध सकती...कि जो मुझसे भी नहीं लिखी जा सकती। मेरे गुमान को तोड़ने वाला वो कौन सा लम्हा है...कौन सा अनुभव...कौन सा शख़्स...
शब्दों से परे वो क्या था जो जी लिया मैंने...हमने...
कभी फिर मिलोगे अगर तो शिनाख्त करूँगी चूम कर तुम्हारी आँखें कि याद के खारे पानी का स्वाद वही है या बदल गया है।
कि बात जब रिश्तों की आती है तो हमारे पास कितने कम शब्द होते हैं। कोई ऐसा कि जिसके लिए दोस्ती बहुत फीका और बेरंग सा शब्द लगे और प्रेम बहुत फ़्लैम्बॉयंट। कि जिसके लिए हम रचना चाहें कोई एक नया शब्द। कि जो अपूर्व और अद्भुत हो। समयातीत।
कि कभी ज़िंदगी में इस अहसास की पुनःआवृत्ति हो...तो हम उस शख़्स को...या तुम्हें ही...दुबारा भर सकें बाँहों में...गले लगाएँ कि जैसे ये पहली और आख़िरी बार हो...और शब्दों में रख दें एक नया शब्द...एक नया शहर...एक नया अहसास...हमेशा के लिए...
'तुम मेरा न्यू यॉर्क हो'।
[Photograph from the book I wrote this for you]
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, याद दिलाने का मेरा फ़र्ज़ बनता है ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteNice post Visit us for self publishing India
ReplyDeletelovely...artical..
ReplyDeletethanks