18 October, 2017

मुहब्बत एक सवाल नहीं है कि मैं तुम्हें कोई जवाब दे सकूँ


तुम ये कान्फ़्लिक्ट फ़ितरतन लिए आयी हो। तुम्हारी आत्मा इस कश्मकश से ही बनी है। उसके सारे रेशे। तुम्हारा सारा दुःख।

कि महसूस लें वो सारा कुछ जो नैचुरल है। स्वाभाविक है। जी लें इतना इंटेन्स कि जैसा जीना आता है। खोल दें ख़ुद को पुर्ज़ा पुर्ज़ा। इजाज़त दे दें मुहब्बत को कि हमें नेस्तनाबूद कर दे। तोड़ दे इतने टुकड़ों में और बाँट दें इतने हज़ार पन्नों, किरदारों में कि सब मिला कर भी कभी हो नहीं पाएँ पूरे के पूरे। 

कि मिलो बहुत हज़ार साल बाद कभी। कई जन्मपार कभी। किसी और ऑल्टर्नट रीऐलिटी में। पूछ सकूँ तुमसे, माँग सकूँ उस रोज़ भी। कह सकूँ, भले हिचकते हुए ही सही। 'Can I get a hug?' तुम हँसो कि हम जानें कि वाक़ई कोई मिसिंग टुकड़ा है मेरा। तुम्हारे पास। जिगसा पज़ल का कोई हिस्सा। कि हर मुहब्बत हमें वो एक टुकड़ा लौटाती है जिसकी तलाश में हम किसी चकरघिन्नी की तरह पूरी दुनिया भटक रहे होते हैं। कि मेरे पैरों में इतनी आवारगी इसलिए बसी है कि मेरी रूह के टुकड़े पूरी दुनिया में बिखरे पड़े हैं।

या कि बंद कर दें किवाड़ और बचा ले जाएँ ख़ुद को इस तूफ़ान से। जीना सीख लें ये जानते हुए कि मेरी कहानी का कोई किरदार, abandoned, जी रहा है दुनिया के किसी और छोर पर के किसी शहर पर। कि वो जब रात को पुकारे मुझे और जिरह करे किसी ईश्वर से कि उसने मुझे थोड़ी और हिम्मत क्यूँ नहीं दी तो मेरे पास उसे देने को पन्ने भर की जगह न हो अपनी ज़िंदगी में। कि ख़त्म हो चुकी कहानी में फ़ुट्नोट की तरह कहाँ शामिल होती है मुहब्बत। ऐसे तो सिर्फ़ मौत शामिल होती है।

कि फिर लड़ लें किसी ईश्वर से, कि कुछ लोगों को इतना टूटा-फूटा क्यूँ बनाते हो। कि इतने सारे लोग जो मुझे पढ़ते हैं, और जो कुछ लोग मेरे दोस्त हैं... उनमें से कौन है जिसे बता सकें...कि कितना डर डर के जी है ज़िंदगी। कौन समझेगा इस तरह के लिखने के पीछे किस तरह का टूटना छुपाया गया है। कि कितने मौत मरता है कोई किसी एक किरदार का टूटा हुआ दिल रचने के लिए। कैसा तो बचकाना है ये सब। कितना ऊब से भरा हुआ। कितना रिपीट पर चलता हुआ। वही बिम्ब। वही किरदार। फिर से वही इन्फ़िनिट लूप।

तो फिर हम क्यूँ जीते हैं फिर भी हर बार वही एक कहानी? 

इसलिए कि अभी भी मुहब्बत बहुत रेयर है...बहुत दुर्लभ है। पूछो अपने इर्दगिर्द के लोगों से कि उन्होंने आख़िर बार कब बहुत मुहब्बत महसूस की थी। ख़ुद से ही पूछो कितने साल पहले महसूस किया था दिल का यूँ धड़कना। मिले थे किसी से कि जिसकी ख़ातिर दुनिया का मानचित्र बदल कर एक शहर खींच लेने की ख़्वाहिश हुयी थी अपने दिल के एकदम पास कभी। कि अब भी उसकी आँखों का रंग नया होता है। उसकी हँसी की नर्माहट भी। या कि उसके साथ चलते हुए जो भरोसा होता है वो एकदम ही नया है। कि ज़िंदगी के कितने लाखों शेड्स हैं और मुहब्बत के कितने कितने कितने इंद्रधनुष। कि कोई मुहब्बत कभी रिपीट नहीं होती। बस प्लॉट होता है सेम। कि कोई नहीं मिलता है उस तरह से पहली बार, ना कोई बिछड़ता ही है वैसे दुनिया की भीड़ में। कि हर अलविदा अलग इंटेन्सिटी से दुखता है सीने में।

कि फिर। मुहब्बत फिर। तुम्हारा नाम एक चीख़ है। मेरे कलेजे को चाक करती हुयी। एक चुप चीख़।

सुनी है तुमने? नहीं? तुम्हारी नींदों में नहीं चुभती कोई चीख़?

तो फिर, मेरी जान। तुमने मुझसे प्यार नहीं किया है कभी। और सुनो। ईश्वर अभी भी मेहरबान है तुम पर। अपने सपनों पर बिठा के रखो सच्चे, ईमानदार वाले दरबान कि जो ख़यालों के किसी दुःख को छूने ना दें तुम्हारी आँखें। तुम किसी की दुआ में जी रहे हो कि मेरा इश्क़ तुम्हारी आँखें चूम कर चला आया बस।

कि मेरा इश्क़ क़ातिल है। फ़ितरतन क़ातिल।
और मैं तुमसे प्यार करती हूँ। बहुत प्यार।

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