03 February, 2010

कार चलाने का पहला दिन

वैसे कायदे से कहें तो ये पहला दिन नहीं होगा, पहला दिन तो वो था जब अपनी कार में निकली थी और कमबख्त नामुराद बिल्ली ने रास्ता काटा था और वापस आ गयी थी. मारुती ड्राईविंग क्लास्सेस ज्वाइन किये हुए बहुत दिन हो गए. इन दिनों में थ्योरी पढ़ी खूब सारी...आधे ऑटोमोबाइल इंजीनियर तो बन ही गए हैं...या कमसेकम मोटर मेकैनिक तो बन ही जायेंगे.

अभी तक क्लच का काम बस गेयर भर बदलना होता है हमको पता था, पर उसके पीछे क्या सिस्टम है ये मालूम नहीं था हमको. अब पता चला की क्लच असल में दो प्लेट का होता है और गाडी के मोटर और गाडी के गियर और पहियों के सञ्चालन के बीच एक स्विच की तरह काम करता है. इससे मुझे ये पता चला कि बहुत तेज रफ़्तार गाडी को रोकने के लिए क्लच का इस्तेमाल करना घातक हो सकता है. और भी बहुत से फंडे, हालाँकि मैं जानती हूँ कि जब गाडी के सामने बिल्ली आ जाये तो आराम से सारा ज्ञान भूल कर उसको चीपने पर ध्यान लगाना है J

इंजन कैसे काम करता है ये भी पता चला, ४ स्ट्रोक इंजन क्यों कहते हैं पूरे डिटेल में पता चला. गाडी के बाकी बहुत से शब्द जैसे सीसी, बीएचपी वगैरह भी जान सकी. अभी तक बस ये पता था कि ये इंजन कि पॉवर नापने की इकाई हैं. बस एक के बारे में शेखी बघारने का मन कर रहा है J बीएचपी हमको मालूम नहीं था, सीधे साधे भले स्टूडेंट हुआ करते थे, क्लास में अपने कोर्से के अलावा कुछ पढ़ना घोर अपराध समझते थे...आज पता चला...इसका मने होता है ब्रोकेन होर्से पॉवर (Broken Horse Power). इंजन कि पॉवर कि इकाई है होर्से पॉवर पर इंजन जितनी उर्जा/एनर्जी बनाता है सब गाडी में नहीं जाता है..अगर ऐसा होता तो शायद हम अपनी कार में ही उड़ भी सकते. ये उर्जा बहुत सी बर्बाद हो जाती है और कुछ ही हिस्सा गाडी को चलने में खर्च होता है. तो उर्जा का जितना हिस्सा गाडी को चलने में लगाया जाता है उसकी इकाई बनी बीएचपी J

आज हम सुबह साढ़े आठ बजे क्लास करने गए(सुबह कैसे उठे ये मत पूछिए, वैसे ही बंगलोर में सुबह उठने पर लगता है सजा मिल रही हो). एक अच्छी सी स्विफ्ट में इंस्ट्रक्टर आये, श्री पाटिल...बहुत अच्छे और भले व्यक्ति हैं. उन्होंने पहले गाड़ी को चेक करने के सरे नियम बताये और फिर मैं ड्राईवर सीट पर बैठी. ड्राइविंग स्कूल से सीखने का फायदा ये है कि टेंशन नहीं होती कि ब्रेक की जगह अक्सीलेरेटर दब गया तो किसका क्या होगा J

मुश्किल से १०० मीटर चलाये होंगे कि सड़क के बीच लंगड़ा कुत्ता...और एकदम से नयी गाड़ी पर बैठने पर होर्न भी नहीं दीखता है एकदम से, पर होर्न बजते ही कुत्ता एकदम साइड हो गया. मुझे हंसी आ गयी कि होर्न सुनकर कुत्ता भी साइड देता है. अब फुर्सत में सोचती हूँ तो लगता है, हो न हो उस कुत्ते की टांग किसी ऐसे ही नौसिखिए ड्राईवर से तोड़ी होगी...इसलिए होर्न सुनते ही फटाफट साइड हट जाता है.

उम्मीद है जल्दी ही सीख जाउंगी, अभी ९ और दिन बाकी हैं प्रैक्टिकल के, फिर फटाफट लाइसेंस के लिए एक्साम और काम तमाम J

*ये सारा मसाला गूगल के ऑफलाइन टाइपिंग औज़ार से हुआ है. दोपहर को रोज लोड शेडिंग होती है, उस समय का सही इस्तेमाल ब्लॉग्गिंग के लिए J

7 comments:

  1. विशुद्ध ब्लॉगर

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  2. का बाबू, केतना बार समझाये हैं कि कोई कुत्ता-बिल्ली गाड़ी के सामने दिखे तो पीच कर गड़िया को निकाल लेना चाहिये.. के जाने बाद में उहे कुतवा खियारे? नई त उहे बिलाई रस्तवा काट दे? से त नय बुझाता है..

    और उ मास्टरवा कईसन है रे, जे गड़िया सिखाने के बदले अलाय-बलाय सिखा रहा है.. इत्ता बढ़िया कवियित्री-लेखिका(हो सकता है बुतरू लोग हमारे प्रिय लेखक में एकरे नाम लिखने लगे) मिस्तिरी बना रहा है? बाद में पता चलेगा कि कविता कुछ ऐसे लिखने लगेगी..

    बी.एच.पी. के उर्जा कि तरह,
    जिंदगी भी उड़ चली है,
    थोड़ी सी उर्जा बाकी है अब..

    एक्सलेरेटर पर पूरा जोर
    कुछ यूं लगाई, जैसे
    इश्क़ में दिल जोर मारता है..

    और भी जाने क्या-क्या.. :)

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  3. कार चलाना तो बहुत पहले ही सीख लिया था पर आज बहुत सी जानकारी आपने दी ...कामयाब रहा आपका ब्लॉग पढना ... खुद भी सीखो औरों को ( ओरो को नहीं ) भी सीखाओ...
    का कमेन्ट पसंद आया ... अच्छी भली कवयित्री कहीं इन्जेनेयारिंग की कवितायेँ न लिखने लग जाए ... सावधान

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  4. हम तो ब्रिटिश हॉर्स पावर समझ रहे थे !

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  5. पीडी यार कसम से गज़ब कमेन्ट लिखे हो. इसकी तारीफ़ में एक पोस्ट लिख मारने का मन कर रहा है. वड्डा वाला थंक यू जी...आगे से ऐसा ही करेंगे. पर कुत्ता बिल्ली ही न?

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  6. सही है इसी बहाने हम भी सीखे ले रहे हैं.

    हो न हो उस कुत्ते की टांग किसी ऐसे ही नौसिखिए ड्राईवर से तोड़ी होगी...इसलिए होर्न सुनते ही फटाफट साइड हट जाता है.

    -बिना टांग तोड़े आजकल कौन सुनता है फिर वो तो कुत्ता है बेचारा. :)

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  7. आप तो कुछ भी करो..बस लिखते रहा करो..पढने को मिलाता रहे..बस..यूँ ही रोचक-रोचक..!

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