20 November, 2018

November Mornings

मेरा मैक चूँकि नया है और इतना साफ़ है कि मन करता है लिखने के पहले साबुन से हाथ धो कर आएँ :) हाथ में ज़रा सी भी चिकनाई हो तो कीबोर्ड पर फ़ील होने लगता है। क़लम से लिखने के साथ तो ये बात हमेशा से रही है कि हाथ एकदम साफ़ हों, लेकिन नॉर्मली कीबोर्ड के बारे में ऐसा नहीं सोचते थे। उसपर मेरे हाथों में पसीना बहुत आता है, ज़रा भी गरमी हुयी नहीं कि मुश्किल। स्कूल कॉलेज के टाइम अगर किसी इग्ज़ैम में रूमाल ले जाना भूल गए तो आफ़त ही आ जाती थी। लिखते हुए इतना हाथ फिसलता था कि बस! वरना तो बस स्कर्ट में हाथ पोछने के सिवा कोई चारा नहीं होता था। स्कूल के टाइम में मेरे पास एक ही स्कर्ट हुआ करती थी। तो अगर स्कर्ट गंदा कर दिए घर जाते साथ पहले स्कर्ट धो कर सुखाने के लिए डाल देते थे। बैंगलोर का मौसम लगभग पूरे साल ठंडा ही रहता है तो दिक्कत नहीं होती है। मैं भूल भी जाती हूँ कि लिखने में हाथ फिसलता था। फिर जब से Lamy डिस्कवर किए हैं, लिखने का सुख कमाल का है। क़लम की ग्रिप मेरे हाथ के लिए एकदम ही पर्फ़ेक्ट है, हाथ कभी नहीं फिसलता। लम्बे समय पर लिखने पर भी उँगलियाँ नहीं दुखतीं। अच्छा डिज़ाइन इसी को तो कहते हैं। जहाँ भी अच्छा डिज़ाइन होता है, वो साफ़ पता चलता है। जैसे कि मैकबुक के नए वाले ऑपरेटिंग सिस्टम में एक डार्क मोड है जो मुझे बेहद पसंद है। इसमें काग़ज़ एकदम साफ़ दिखता है बीच में। आसपास सब कुछ काला। ऐसे लेआउट में लिखने का ख़ूब मन करता है।

ऑफ़िस में अपने इस्तेमाल के लिए एक डेस्क ख़रीदनी है। कल पेपरफ़्राई पर देख कर आए लेकिन अपने पसंद की डेस्क नहीं मिली। इधर पापा आए हुए थे तो बता रहे थे कि वो जब कश्मीर गए थे तो लिखने के लिए इतना ख़ूबसूरत डेस्क देखे कि उनका मन किया कि आगे की ट्रिप कैन्सल करके वही एक डेस्क ख़रीद के लौट आएँ। अखरोट की लकड़ी का डेस्क। अब वैसी ही किसी डेस्क पर दिल अटका हुआ है मेरा। कैसी कैसी चीज़ों के लिए सफ़र करने का मन करता है। अब लगता है ऐसे किसी शहर जाएँ जहाँ लकड़ी पर inlay वर्क होता हो। एक अच्छी लकड़ी की डेस्क और किनारे पर सफ़ेद बारीक काम किया हुआ हो। इस बार घर जाएँगे तो सोच रहे हैं कि डेस्क तो बनवा ही लें लकड़ी की… हाँ उसपर काम होता रहेगा। घर पर अक्सर बढ़ई काम करने आते हैं। ससुराल में कुछ ख़ूब बड़े बड़े पलंग वग़ैरह बने हैं। फिर बड़ा घर है तो कुछ ना कुछ काम चलता ही रहता है हमेशा। उन्होंने कह भी रखा है, कुछ भी डिज़ाइन आप दिखा दीजिए, हम बना देंगे।

टेबल या डेस्क कुछ चौड़ी हो जिसपर लिखने के अलावा की चीज़ें रखी जा सकें। कुछ पेपरवेट, कुछ इधर उधर से लाए गए छोटे छोटे स्नो ग्लोब, एक नटराज की छोटी सी मूर्ति। फिर मुझे अपने लिखने के डेस्क पर नॉर्मली दो चार किताबें और कई सारी नोट्बुक रखनी होती है। कलमें होती हैं कई सारी। एक छोटा सा फूलदान होता है। अक्सर ताज़े फूल रहते हैं। चाय या कॉफ़ी का मग रहता ही है।

कल पेपरफ़्राई में एक बहुत सुंदर छोटी सी लकड़ी की टेबल देखी। उसपर मोर बना हुआ था। एक मन तो किया कि ख़रीद ही लें। मेरी वाली टेबल अब बहुत पुरानी हो गयी है। लेकिन दिक्कत ये थी कि उस टेबल में इंक्लाइन नहीं था। मुझे हाथ से लिखने के समय थोड़ा सा ऐंगल अच्छा लगता है। जैसे स्कूल के समय डेस्क में हुआ करता था। कोई पंद्रह डिग्री टाइप झुकाव। उसपर हाथ ठीक से बैठता है। चूँकि मैं अभी भी बहुत सारा कुछ हाथ से लिखती हूँ वैसा ज़रूरी होता है।

कितने शहर जाने का मन करता है। यायावर। बंजारा मन। 

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