लड़की जिन दिनों प्रेम में होती, मर जाना चाहती।
कि वो या तो प्रेम में होती या इंतज़ार में।
फ़ोन करते हुए उसकी आवाज़ में एक थरथराहट है जिसके कारण वो उसे फ़ोन नहीं कर पा रही है। उसके आइफ़ोन में इंटेलिजेंट असिस्टेंट है उसका। बहुत ही सेक्सी आवाज़ में बातें करने वाला - सीरी। वो प्यार से कहती है लेकिन सीरी अभी इतना बुद्धिमान नहीं हुआ है लड़की की थरथराती आवाज़ से उसका नाम छान ले और ठीक फ़ोन कर ले उसको। बार बार पूछता है भौंचक्का सा…मैं कुछ नहीं समझ पा रहा हूँ। क्या चाहिए तुम्हें। लड़की पगला गयी है थोड़ी थोड़ी। हँसती है और कहती है। आइ लव यू सीरी। इंटेलिजेंट असिस्टेंट को मालूम है इसका फ़ेवरिट जवाब क्या है। जैसे कोई लड़की लजाते हुए कहती है कि उसकी आवाज़ में अदा घुल आए, सीरी कहता है, ‘Ooh stop!’। अब बस भी करो। क्या ही करगा सीरी इस प्यार का। प्यार कोई सवाल तो है नहीं कि जिसका जवाब गूगल से खोज दिया जाए। स्टेटमेण्ट के लिए सीरी के पास कुछ नहीं है। बस कुछ प्रीकोडेड रेस्पॉन्सेज़ हैं। लड़की को शिकायत नहीं है। मुश्किल है।
लड़की की आवाज़ अगर थरथरा रही है तो उसकी उँगलियों का तो हाल पूछो ही मत। नील से पड़ रहे हैं उँगलियों के पोर। ऐसी थरथाराहट का कोई क्या भी करेगा। ऐसे में तो नम्बर भी नहीं डायल हो सकता।
लड़की टेलीपैथी से जुड़ी हुयी है उन सारे लोगों से जिनसे वो प्यार करती है। हालाँकि इस नेट्वर्क का इस्तेमाल बहुत कम करती है कि इसका रीचार्ज कराना बहुत मुश्किल है और प्रीपेड कार्ड का बैलेंस देखना भी बहुत मुश्किल। आज शाम उसने लेकिन टेलीपैथी से उस लड़के को याद किया गहरे। मुझे फ़ोन करो।
ठीक आधे सेकंड बाद उसका फ़ोन आया। सीरी पक्का जलभुन के ख़ाक हो जाता अगर सीरी को लड़की से ज़रा भी इश्क़ होता तो।
ज़िंदगी इतनी ठंढी हुआ करती थी कि लड़की पूरा पूरा जमा हुआ आइस ब्लॉक हो जाया करती थी। ग्लेशियर जैसा कुछ। स्टारबक्स में पीती आइस्ड अमेरिकानो। एक पूरा भर के ग्लास में आइस। और फिर दो शॉट इस्प्रेसो। कॉफ़ी ऑन द रॉक्स। कितनी ठंढ होती उसके इर्द गिर्द।
उसके फ़ोन से उसकी आवाज़ ने निकल कर लड़की को एक टाइट बीयर हग में कस लिया। लड़की एकदम से खिलखिलाती हुयी पहाड़ी नदी बन गयी। वो कहती थी उससे। तुमसे बात करके मैं नदी हुयी जाती हूँ। खिलखिलाती हुयी कह रही थी उससे, ‘क्या तुम मेरा नाम भूल गए हो?’।
उसके गालों में छुपा हुआ डिम्पल था जो सिर्फ़ तभी ज़ाहिर होता था जब वो इश्क़ में होती थी। उसकी मुस्कान में दुनिया के सारे जादू आ के रहा करते थे। लेकिन लड़की जब इश्क़ में होती थी और ब्लश करती थी तो उसकी आँखों की रौशनी के चौंध में उसके बाएँ गाल पर का छुपा हुआ डिम्पल दिखने लगता था। वो ऐसे में अपनी दोनों हथेलियों से अपना पूरा चेहरा ढक लिया करती थी। डिम्पल को जल्दी ही नज़र लग जाती थी लोगों की और फिर लड़की की आँखों के सूरज को कई कई सालों के लिए ग्रहण लग जाता था।
'अच्छा बताओ, अगर मैं कहूँ तुमसे ‘मैं जल्दी मरने वाली हूँ तो कितनी देर बात करोगे मुझसे?’
‘डिपेंड करता है’
‘मैं यहाँ मरने की बात कर रही हूँ और तुम कंडिशंज़ अप्लाई कर रहे हो। छी। किस बात पर डिपेंड करता है ये?’
‘इसपर कि तुम कितने दिन में मरने वाली हो’
‘अरे, कह तो रही हूँ, जल्दी’
‘जल्दी तो एक सब्जेक्टिव वर्ड होता है, तुम जब कहती हो कि मैं जल्दी आ रही हूँ दिल्ली तो तुम एक साल बाद आती हो'
लड़की उस शहर से बहुत प्रेम करती थी। साल में एक बार आना काफ़ी होता था। साल का आधा हिस्सा फिर याद के ख़ुमार में बीतता था और बचा हुआ आधा हिस्सा उम्मीद में।
मैग्लेव जानते हो तुम? मैग्नेटिक लेविटेशन। इन ट्रेनों के नाम दुनिया की सबसे तेज़ ट्रेन होने का रेकर्ड है। आकर्षण और विकर्शन का इस्तेमाल करती हुयी ट्रेनें ज़मीन को छुए बिना ही तेज़ी से भागती रहती हैं। प्रेम ऐसा ही कुछ रचता लड़की के पैरों और ज़मीन के बीच। लड़की के क़दम हवा में ही होते। वो बहुत तेज़ भागती जाती। धरती के दूसरे छोर तक कि जैसे नाप ही लेगी उसके दिल से अपने दिल तक की दूरी।
उसके पास कोई कहानियाँ नहीं होतीं कभी कभी। कभी कभी।
‘डिपेंड करता है’
‘मैं यहाँ मरने की बात कर रही हूँ और तुम कंडिशंज़ अप्लाई कर रहे हो। छी। किस बात पर डिपेंड करता है ये?’
‘इसपर कि तुम कितने दिन में मरने वाली हो’
‘अरे, कह तो रही हूँ, जल्दी’
‘जल्दी तो एक सब्जेक्टिव वर्ड होता है, तुम जब कहती हो कि मैं जल्दी आ रही हूँ दिल्ली तो तुम एक साल बाद आती हो'
लड़की उस शहर से बहुत प्रेम करती थी। साल में एक बार आना काफ़ी होता था। साल का आधा हिस्सा फिर याद के ख़ुमार में बीतता था और बचा हुआ आधा हिस्सा उम्मीद में।
मैग्लेव जानते हो तुम? मैग्नेटिक लेविटेशन। इन ट्रेनों के नाम दुनिया की सबसे तेज़ ट्रेन होने का रेकर्ड है। आकर्षण और विकर्शन का इस्तेमाल करती हुयी ट्रेनें ज़मीन को छुए बिना ही तेज़ी से भागती रहती हैं। प्रेम ऐसा ही कुछ रचता लड़की के पैरों और ज़मीन के बीच। लड़की के क़दम हवा में ही होते। वो बहुत तेज़ भागती जाती। धरती के दूसरे छोर तक कि जैसे नाप ही लेगी उसके दिल से अपने दिल तक की दूरी।
उसके पास कोई कहानियाँ नहीं होतीं कभी कभी। कभी कभी।
उन दिनों वो कहानी के टुकड़े रचती जाती और आधे अधूरे महबूब। असमय। कुसमय मर जाने वाले किरदार। उसकी याद में अटक जाती छोटी छोटी चीज़ें। पुराने प्रेम। छूटे हुए कमरे। रजनीगंधा और गुलाब की गंध। और एक लड़का कि जिसके छूने से एक पूर्ण औरत बन जाने की चाहना ने जन्म लिया था। मगर लड़की को औरतें पसंद नहीं थीं तो वो अक्सर उनके मर जाने का इंतज़ाम करते चलती थी। उनके दुःख का। उनके बर्बाद जीवन का।
बहुत सी चीज़ों की प्रैक्टिस करती रहती लड़की। सबसे ज़रूरी होता, एक पर्फ़ेक्ट सूयसायड नोट लिखने की भी। दुनिया से जाते हुए आख़िरी चीज़ तो पर्फ़ेक्ट हो। बस ये ही डर लगता उसको कि मालूम नहीं होता कौन सा ड्राफ़्ट आख़िरी होगा। अच्छे मूड में सूयसायड नोट लिखने का मन नहीं करता और सूयसाइडल मोड में उसे फ़र्क़ नहीं पड़ता कि क्या लिख रही है।
मौत से इकतरफ़ा प्यार करती हुयी लड़की सोचती, मौत का जो दिल आए जाए उस पर…मर ही जाए वो फिर तो।
bahot khoobsurat
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