कभी कभी कमाल का मूड होता है। आज व्यंग्य लिखने का मन कर रहा है।
ऐसा कुछ लिखने की दो वजह हो सकती है। पहली तो सिम्पल कि हम आजकल शायरी पढ़ रहे हैं। दूसरा ये कि एक दोस्त के यहाँ जाने पर उसकी चप्पल माँग के पहने। क़सम से चप्पल देखते ही पटना के हनुमान मंदिर के आगे वाला चप्पल का ढेर याद आ गया। वो चप्पल हंडरेड परसेंट वहीं से उड़ाया गया था।
तो इन दिनों के कौंबिनेशन से दिमाग़ में अजीब अजीब ख़याल और इमेजेस उभर रहे हैं। कि जैसे एक शायरी का मंच हो। मंच के ऊपर बड़ा सा पोस्टर लिखा हो। 'मंच पर फेंके गए जूते चप्पल ज़ब्त कर लिए जाएँगे और धारक(फेंकक) को वापस नहीं मिलेंगे। समझदार लोग इसका भी जोड़ तोड़ निकाल लेंगे। वे सिर्फ़ एक पैर का जूता फेंकेंगे। इसके बाद सिंडरेला की तरह हर जूते का जोड़ा खोजा जाएगा। लोग कवि सम्मेलनों/मुशायरे के पहले whatsapp ग्रूप पर मेसेज भेज कर साथ में डिसाइड करेंगे कि इस बार लेफ़्ट पैर का जूता फेंकना है या राइट पैर का। कहीं ऐसा ना हो कि आपका दायाँ जूता और किसी और का बायाँ जूता मैच हो जाए और मुफ़्त में ही संचालकों का या कि शायर का ही फ़ायदा हो जाए। ग़लती से किसी का फ़ायदा हो जाए, इससे बड़ा धोखा क्या होगा इस जाहिल वक़्त में। इतने ख़राब दिन आ जाएँ आपके तो आप अगले मुशायरे में श्रोता बनने की जगह शायर ना हो जाएँ भला। बतलाइए!
शहर में बड़ा मुशायरा होने के पहले मंदिर के आगे से चप्पल चोरी होने की घटनाओं में ताबड़तोड़ वृद्धि होने लगे। लोग मुशायरे में नंगे पैर जाएँ...जाने की असली वजह ये हो कि आख़िर में अपना खोया हुआ चप्पल तलाश के वापस ला सकें। मुशायरे के बाद। बेजोड़ी जूतों की सेल लगे और जैसे समझदार गृहिणी मार्केट के बचे हुयी सब्ज़ी में से छाँट के सबसे अच्छी और सस्ती सब्ज़ियाँ घर ले जाती है उसी तरह समझदार श्रोता उस चप्पलों/जूतों के महासमुद्र में जोड़ा छाँट लें। पूरी पूरी जोड़ी तो मियाँ बीबी की भी नहीं मिलती। कहीं ना कहीं कॉम्प्रॉमायज़ करना ही पड़ता है। फिर जूतों में कौन से छत्तीस गुण मिलने हैं।
इस तरह के मुशायरों का असर हर ओर पड़ने की सम्भावना है। इससे शहर का फ़ैसन बदलेगा। अलग अलग जूते पहनना सम्मान की निशानी मानी जाएगी। सही समय पर दाद देना एक कला है। चप्पल सद्गति को प्राप्त होगी। सही समय पर, सही निशाने से, सही गति और दिशा में मारी गयी चप्पल अपने अंजाम तक पहुँचेगी। लोगों में भाईचारा बढ़ेगा। वसुधैव कुटुंबकम वाली फ़ीलिंग आएगी। जो आज मेरा है वो कल किसी और का होगा और किसी का जो है वो मेरा हो सकता है। लोग अड़ोसी पड़ोसी को अच्छी चप्पलें ख़रीदवाएँगे।
मार्केट में नयी स्टडीज़ आएँगी। शायर लोगों का कॉन्फ़िडेन्स इस बात से डिसाइड होगा कि किसके शेर पढ़ने पर कितने लोगों ने कितना फेंका। चप्पल। जूता वग़ैरह। फेंकने शब्द को नया आयाम मिलेगा।
वग़ैरह वग़ैरह।
***
PS: हमको मालूम नहीं है कि हम बौराए काहे हैं। लेकिन जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं। इस दीवाल पर जूता चप्पल फेंकने का कोई फ़ायदा नहीं है। लिखाई पढ़ाई होती रहती है। पसंद ना आए तो दूसरे पन्ने पर चले जाइए। श्रद्धा आपकी। कपूर भी आपका। ख़ैर।
हमको लगता है हम पगला गए हैं।
PPS: मन तो कर रहा है साथ में अपने ही चप्पल का फ़ोटो साट दें, लेकिन घर में ऐसा फटेहाल कोई चप्पल है नहीं। बाद में एडिट करके चिपकाएँगे।
ऐसा कुछ लिखने की दो वजह हो सकती है। पहली तो सिम्पल कि हम आजकल शायरी पढ़ रहे हैं। दूसरा ये कि एक दोस्त के यहाँ जाने पर उसकी चप्पल माँग के पहने। क़सम से चप्पल देखते ही पटना के हनुमान मंदिर के आगे वाला चप्पल का ढेर याद आ गया। वो चप्पल हंडरेड परसेंट वहीं से उड़ाया गया था।
तो इन दिनों के कौंबिनेशन से दिमाग़ में अजीब अजीब ख़याल और इमेजेस उभर रहे हैं। कि जैसे एक शायरी का मंच हो। मंच के ऊपर बड़ा सा पोस्टर लिखा हो। 'मंच पर फेंके गए जूते चप्पल ज़ब्त कर लिए जाएँगे और धारक(फेंकक) को वापस नहीं मिलेंगे। समझदार लोग इसका भी जोड़ तोड़ निकाल लेंगे। वे सिर्फ़ एक पैर का जूता फेंकेंगे। इसके बाद सिंडरेला की तरह हर जूते का जोड़ा खोजा जाएगा। लोग कवि सम्मेलनों/मुशायरे के पहले whatsapp ग्रूप पर मेसेज भेज कर साथ में डिसाइड करेंगे कि इस बार लेफ़्ट पैर का जूता फेंकना है या राइट पैर का। कहीं ऐसा ना हो कि आपका दायाँ जूता और किसी और का बायाँ जूता मैच हो जाए और मुफ़्त में ही संचालकों का या कि शायर का ही फ़ायदा हो जाए। ग़लती से किसी का फ़ायदा हो जाए, इससे बड़ा धोखा क्या होगा इस जाहिल वक़्त में। इतने ख़राब दिन आ जाएँ आपके तो आप अगले मुशायरे में श्रोता बनने की जगह शायर ना हो जाएँ भला। बतलाइए!
शहर में बड़ा मुशायरा होने के पहले मंदिर के आगे से चप्पल चोरी होने की घटनाओं में ताबड़तोड़ वृद्धि होने लगे। लोग मुशायरे में नंगे पैर जाएँ...जाने की असली वजह ये हो कि आख़िर में अपना खोया हुआ चप्पल तलाश के वापस ला सकें। मुशायरे के बाद। बेजोड़ी जूतों की सेल लगे और जैसे समझदार गृहिणी मार्केट के बचे हुयी सब्ज़ी में से छाँट के सबसे अच्छी और सस्ती सब्ज़ियाँ घर ले जाती है उसी तरह समझदार श्रोता उस चप्पलों/जूतों के महासमुद्र में जोड़ा छाँट लें। पूरी पूरी जोड़ी तो मियाँ बीबी की भी नहीं मिलती। कहीं ना कहीं कॉम्प्रॉमायज़ करना ही पड़ता है। फिर जूतों में कौन से छत्तीस गुण मिलने हैं।
इस तरह के मुशायरों का असर हर ओर पड़ने की सम्भावना है। इससे शहर का फ़ैसन बदलेगा। अलग अलग जूते पहनना सम्मान की निशानी मानी जाएगी। सही समय पर दाद देना एक कला है। चप्पल सद्गति को प्राप्त होगी। सही समय पर, सही निशाने से, सही गति और दिशा में मारी गयी चप्पल अपने अंजाम तक पहुँचेगी। लोगों में भाईचारा बढ़ेगा। वसुधैव कुटुंबकम वाली फ़ीलिंग आएगी। जो आज मेरा है वो कल किसी और का होगा और किसी का जो है वो मेरा हो सकता है। लोग अड़ोसी पड़ोसी को अच्छी चप्पलें ख़रीदवाएँगे।
मार्केट में नयी स्टडीज़ आएँगी। शायर लोगों का कॉन्फ़िडेन्स इस बात से डिसाइड होगा कि किसके शेर पढ़ने पर कितने लोगों ने कितना फेंका। चप्पल। जूता वग़ैरह। फेंकने शब्द को नया आयाम मिलेगा।
वग़ैरह वग़ैरह।
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PS: हमको मालूम नहीं है कि हम बौराए काहे हैं। लेकिन जैसा कि हम पहले भी कह चुके हैं। इस दीवाल पर जूता चप्पल फेंकने का कोई फ़ायदा नहीं है। लिखाई पढ़ाई होती रहती है। पसंद ना आए तो दूसरे पन्ने पर चले जाइए। श्रद्धा आपकी। कपूर भी आपका। ख़ैर।
हमको लगता है हम पगला गए हैं।
PPS: मन तो कर रहा है साथ में अपने ही चप्पल का फ़ोटो साट दें, लेकिन घर में ऐसा फटेहाल कोई चप्पल है नहीं। बाद में एडिट करके चिपकाएँगे।
वाकई आपकी लिखने की क्षमता गजब की है, काफ़ी समय बाद ब्लाग पे लौटना हुआ अब बाकी की पोस्ट भी पढना ही पडेंगी, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग