11 January, 2016

इस दीवानावार दुनिया में

जादू. तिलिस्म. सम्मोहन.  
कुछ होता जो लड़की को अपनी तरफ खींचता बेतरह. यूँ उसे कोई तकलीफ नहीं होती मगर बात इतनी थी कि उसे अपनी मर्ज़ी से एक नयी दुनिया बनानी आती थी. वो कभी भी, किसी भी वक़्त...खुली आँखों से या बंद आँखों से भी, एक दुनिया बनाती चली जाती...

किसी कॉफ़ी शॉप में. किसी रेस्तरां में. किसी पब में. सब उसकी आँख के सामने होता मगर जुदा होता. सतरंगी रंगों में रंगा होता. खुशबुओं में भीगा होता. वैसे में लोग उसकी आँखें देखते और कहते कि उसकी आँखें बहुत खूबसूरत हैं. वे साधारण लोग थे. उनके पास ऐसे ही दो चार शब्द हुआ करते...ख़ूबसूरत. नाइस...अव्सम जैसे. मगर लड़की के पास कलम होती. कि जिससे सब कुछ बदला जा सकता. रात की धुंध पे नाचते सितारे होते. चाँद की लौलीपॉप होती कि जिसका स्वाद होता मिंट का. हल्का हरा दिखता चाँद. मुराकामी के नावेल के दूसरे चाँद की तरह. हल्का दिल टूटता उसका. गुलज़ार की नजाकत से लिखी कहानी की दूसरी औरत की तरह. लड़की के पास एक शहर था. सेकंड हैण्ड प्रेमियों का शहर. ये शहर प्रेमिकाओं का भी हो सकता था. मगर प्रेमिकाएं शहर में नहीं रहतीं. दिल में रहती हैं. लड़की शहर से आड़े टेढ़े लोग बुला सकती थी. बदसूरत. बदमिजाजी से भरे हुए. मगरूर और साबुत. दुनिया को तोड़ कर सिकंदर बनने की ख्वाहिश पाले. मगर लड़की हमेशा टूटे हुए लोग चुनती. उनकी दरारों में जाड़े के फूलों की क्यारियां दिखतीं. गुलदाउदी के सफ़ेद, बड़े, फूल होते. फूलों के पार झांकते लोग होते. लोगों के पास लम्हे चुराने का हुनर होता. वे लोगों के लम्हे चुरा कर शीशे की छोटी छोटी बोतलों में रखते जाते. ये दुनिया का सबसे महंगा नशा होता. सबसे नशीला भी. इसे दुनिया ओल्ड मोंक के नाम से जानती. लम्हों को हल्के गुनगुने पानी में मिला कर कोहरे की पाइप से पीना होता. फिर कहीं कोई दीवारें नहीं होतीं जो रोक सकतीं. लोग समंदर में कूद कर जान देने लायक हिम्मत पा जाते. 

लड़की मर जाना चाहती. मगर फिर उसे लगता कि दुनिया को कुछ और कहानियों की शायद दरकार हो. लोगों ने उसके भटकने के किस्से ही सुने थे. उसे भटकते देख नहीं सकता था कोई. लड़की जब अकेली होती तो पारदर्शी होती. उसके आर पार सिर्फ रौशनी ही नहीं, पूरे पूरे शहर गुज़र जाते. उसके कैमरे की ब्लैंक रील फिर स्टूडियो की डार्क रूम में डेवलप नहीं की जा सकती थी. उसे सिर्फ कागज़ पर लिखा जा सकता था. स्टूडियो हेड उसकी रील देखते और फिर हँसते उसपर. तुम्हें कहानियां ही लिखनी होतीं हैं तो तुम कैमरा की रील क्यों बर्बाद करती हो. नोटबुक लेकर चला करो. लड़की कैमरा से देखती थी लोगों को तो वे मुस्कुराने लगते थे. उसकी मुस्कान के कोने में छुपी होती थी उदासी. कैमरा मुस्कान कैप्चर करता था. लड़की उदासी. अब किसी को नोटबुक दिखा कर रोने को तो नहीं कह सकती न. कि मैं राइटर हूँ. तुम पर एक कहानी लिखूंगी. एक आध आँसू गिरा दो मेरी नोटबुक पर. 

सब कुछ मन का वहम होता है. लड़की जो होती. हो लिखती. और जो लिखना चाहती. सब कुछ वहम होता. कभी कभी वह बिना कुछ कहे सिर्फ भटकना चाहती दिल्ली में. सुर्ख लाल रंग के गाउन में. कैमरा में टेलीफ़ोटो लेंस लगाए हुए. लाल किले की चारदीवारी से भी किसी की ओर वो लेंस पॉइंट करो तो ज़ूम करते ही उसके सारे दुःख नज़र आ जाएँ. 

उसने मन बांधना सीख लिया था. गहरे लाल धागे थे वो. उलझे हुए. उन पर ख़ुशी की एक परत चढ़ी थी. मन ख़ुशी से बाहर नहीं आना चाहता और हर सम्भावना पर बंध जाता. वो अपने दायें हाथ की सारी उँगलियों पर एक ख़ुशी का धागा लपेट कर रखती थी. इससे कलम पकड़ने में दिक्कत होती और उसे लिखते हुए भी हर लम्हा याद रहता कि उसे खुश रहना है. उसे दुखते किरदार नहीं लिखने हैं. मगर सारे किरदारों से चुरा कर एक किरदार रचना था उसे. जिसकी कमर में हमेशा रिवोल्वर या ऐसा कुछ रहे. छोटा कुछ जो हमेशा साथ लेकर चलना लाजिमी हो. छुपा हुआ कोई हथियार. क्यूंकि ज़ाहिर सी बात है न कि बड़ी किसी बन्दूक को लेकर लोग अपने दोस्तों से मिलने तो जायेंगे नहीं. किसी दुनिया में भी. उसने फिल्मों में देखा था कि किस तरह गैंगस्टर अपने सूट के नीचे हमेशा कोई सेमी आटोमेटिक रिवोल्वर रखते हैं. मैगजीन वाली बन्दूक होती है. उसे फिल्में देख कर ये भी मालूम था कि गन कैसे लोड करते हैं. उसने हाल में फिल्म में ही देखा था कि मरने के लिए बन्दूक को मुंह में रख कर गोली चलाना सबसे आसान होता है. मगर फिर भी उसे कभी कभी लगता था कि उसका हाथ कांप सकता है. उसने एक खूबसूरत किरदार लिखा. बेबी में अक्षय कुमार जैसा था. वैसा. सीक्रेट मिशन वाला. हँसते हुए उससे पूछा...कि तुम तो सोल्जर हो...तुम्हारे हाथ नहीं कांपेंगे न अगर गोली मार देने कहूँगी तो. किरदार उसका खुद का रचा हुआ था. शक की गुंजाइश ही कहाँ थी. लड़की सुकून में आ गयी. ख़ुशी का एक तागा उसकी उँगलियों पर भी बाँधा और कहा. वैसे किसी दिन भी खुश रहने का सोचना और मुझे गोली मत मारना. जिंदगी खूबसूरत है. खुशनुमा है. खुशफहम भले ही है मगर जीने लायक है. 

कहानी के हर दुखते मोड़ के बाद लड़की को मालूम होता था कि वो ख़ुशी रच सकती है. इसी सुख से भरी भरी रहती और जी लेती थी...इस बेतरह उलझी हुयी...नाराज़...दीवानावार दुनिया में. 

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 12 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १२०० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
    ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "तुम्हारे हवाले वतन - हज़ार दो सौवीं ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  3. आपने लिखा...
    और हमने पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 13/01/2016 को...
    पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
    आप भी आयीेगा...

    ReplyDelete
  4. वाह!बहुत सुंदर

    ReplyDelete

  5. सेवा में



    नभ-छोर एक सांध्य-दैनिक समाचार पत्र है। आठ पृष्ठ के इस समाचार-पत्र में हम पाठकों की मांग के अनुरूप सुधार करते हुए ब्लॉगर्स को भी महत्वपूर्ण स्थान देने के इच्छुक हैं। आपका सहयोग इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। भविष्य में नभ-छोर में प्रकाशित होने वाले ब्लॉगर्स में हम आपके ब्लॉग्स को स्थान देना चाहते हैं। इसके लिए हम आपसे आपके ब्लॉग एड्रस से ब्लॉग को डाउनलोड कर उनके प्रकाशन के लिए आपसे अनुमति चाहते हैं, ताकि नभ-छोर के करीबन 30 हजार से अधिक पाठक आपके ब्लॉग को पढ़ सकें।


    धन्यवाद

    निवेदक
    ऋषी सैनी
    संपादक (नभ-छोर)
    संपर्क: 9812047342

    ReplyDelete
  6. प्रेम ही स्वर्ग है । seetamni. blogspot. in

    ReplyDelete
  7. पूजा जी,
    सच में एक खूबसूरत बेहतरीन लाइनें लिखीं है आपने

    ReplyDelete
  8. पूजा जी,
    सच में एक खूबसूरत किताब लिखी है आपने "तीन रोज इश्क़"।

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...