06 July, 2015

वसीयत





इक रोज़. मैं नहीं रहूंगी.
उस रोज़. इक सादे कागज़ पर. बस इतना लिख देना.
तुमने मुझे माफ़ कर दिया है.

 
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दुनिया का कोई कोरा कोना तलाश कर उसमें रख देना मेरे हिस्से के दुःख. मेरे न होने का खालीपन. उदास नदियों से माँग लाना पानी और धुल देना मेरे ख़त. उन खतों में लिखा होगा बहुत सा प्रेम. तुमने नहीं सुने होंगे मेरी पसंद के गीत. उस दिन खोलना मेरा लैपटॉप और प्लेलिस्ट में देखना मोस्ट प्लेड की लिस्ट. सुनना लगातार उन गीतों को जिन्होंने कई कई शामों तक मुझे बहलाए रखा था कि मैं जान न दे दूं. वे गीत तुम्हें पागलपन की कगार से बचा लायेंगे. मृत्यु की कगार से भी.

फोन में होगा स्टार्रेड कांटेक्ट लिस्ट. उन्हें करना फोन. वे अपने अपने हिस्से का मेरा हिस्सा सुनायेंगे तुम्हें. मेरे कॉलेज के टाइम की मुस्कान. मेरी स्कूल के दिनों की शैतानियाँ. मेरे अवसाद के दिनों के आत्मघाती तरीके. मेरे बाद मेरे सारे दोस्त हो जायेंगे तुम्हारे बेस्ट फ्रेंड. वे तुम्हारे नाम बांधेंगे अनजान मजारों पर मन्नतों का धागा. वे दुआओं में मांगेंगे तुम्हारे लिए कई जन्मों की खुशियाँ. वे करेंगे तुमसे वादा कि जहन्नुम में तुम्हें अपने गैंग का हिस्सा बनायेंगे. अपनी फेसबुक पोस्ट में वे तुम्हें टैग करेंगे जाने कितने सफ़र के दरम्यान. वे तुम्हें भेजेंगे अनजान देशों से पोस्टकार्ड...कई सारे स्टैम्प मिलेंगे तुम्हें. सब सहेजना एक एक कर के. दुनिया के सबसे पागल. खूबसूरत. दिलकश लोग हैं वे. जो कि मेरी लिस्ट में रहते हैं.

मेरे बैग में टंगा होगा कोई गहरे लाल रंग का स्टोल...उसे खोल देना. जाने कितने शहरों की खुशबू बसी होगी उसमें. कितना इतर. कितने मौसम बंधे होंगे रेशम के उस जरा से टुकड़े में. टेबल पर मेरी इंकपॉट्स भी तो होंगी. उन्हें इसी स्टोल में बांध देना. इस सियाही को बचा बचा कर इस्तेमाल करना. इनसे जो भी लिखोगे उसमें मेरी अदा घुलने लगेगी. मेरे किरदार. मेरी अधूरी कहानियां. वो नाम जो मैंने अपने बच्चों के लिए सोचे थे.

खोलना मेरी डायरी. आखिरी एंट्री में लिखा होगा तुम्हारा ही नाम. मैं हर दिन यूँ ही जीती हूँ कि जैसे आखिरी हो. मेरी हर सांस में तुम्हारा होना है. मेरी हर धड़कन अनियंत्रित होती है सिर्फ तुम्हारे नाम से. उस दिन पढ़ना मुझे. उस दिन जानना. उस दिन समझना. उस दिन यकीन कर लेना. इक पहली और आखिरी बार. तुम मेरे प्राण में बसे हो. हमेशा. हमेशा. 

विस्मृत कहानियों से माँग लाना मेरी पहचान. मेरी कविताओं में मिलेगा मेरी गुनगुनाहट का कतरा कोई. बेजान तस्वीरों के पीछे छुपी होगी मेरी आँखें. धुएं और धुंध में डूबी. जरा जरा इश्क़ में भी. 

सब कुछ तलाश लाओगे फिर भी कुछ अधूरा सा रहेगा. जान. उस दिन तलाशना अपनी रूह के अन्दर मेरे होने के निशां...किसी ज़ख्म में...किसी सिसकी में...तकलीफों के रूदन में बचा होगा जरा सा मेरा होना...सब इकठ्ठा करना जरा जरा. फिर भी नहीं पूरी हो पाऊँगी मैं...क्यूंकि तुम, मेरी जान...समझ नहीं पाओगे...मेरे होने का सबसे जरूरी हिस्सा...मेरा दिल...तुम्हारे दिल के किसी भीतरी कोने में रखा होगा. अपने अन्दर से तलाशना मुझे. फिर रख देना चिंदी चिंदी कर लायी गयी मेरी सारी निशानियों में.

मैं पूरी हो जाउंगी. उतनी कि जितनी अपने जीते जी नहीं थी कभी.

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