24 January, 2014

उसकी दुनिया में सब को अपने कत्ल का सामान चुनने की आजादी थी


लड़की उतनी ही इमानदारी से अमानत अली खान के इश्क में डूबती जितनी कि कर्ट कोबेन के। एक आवाज मखमली थी...गालिब के पुराने शेरों से नये ज़ख्मों की मरहम पट्टी हुयी जाती। पूरी दोपहर कमरे के परदे गिरा कर संगेमरमर के फर्श पर सुनी जाती अमानत अली खान की आवाज़...विकीपीडिया उनकी तस्वीरें दिखाता...लूप में भंवर सा आता और एक पूरी उम्र डूब जाती। छोटी सी आर्टिकल है, इश्क की आंच को भड़काने का काम करती है। आवाजें कहीं नहीं जातीं, कभी भी। कहां लगता है कि पटियाला घराने की इस आवाज को चुप हुये चार दशक बीत गये।
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मुझे तुम्हारा नाम याद नहीं और तुम मेरी आवाज भूल गये हो...ये भी दिन देखना था इश्क में. सुनो, एयरपोर्ट में एक लड़की से मिली थी। वो बार बार एक नंबर डायल करती, आवाज सुनती और काट देती। आधे घंटे से उसके पीछे लाइन में खड़ी थी, आखिर मुझे भी तो दिल्ली जैसे अनजान शहर में अपने पहचान की इकलौती सहेली को फोन करके एयरपोर्ट बुलाना था...कब तक इंतजार करती। उससे पूछा क्या बात है...डबडबायी उन आंखों को देख कर सब भूल गयी। उसे बाहर लेकर आयी, हम दोनों एक नये से चाय के नुक्कड़ पर खड़े रहे कितनी ही देर। चलो, कहीं चलते हैं, मेरी अगली फ्लाइट शाम को है। हम दो अजनबी औरतें जाने किस जन्म का पुराना किस्सा कहने जा रही थीं। डीटीसी की बसें खाली ही थीं, इतनी सुबह शहर दिल्ली जगा नहीं था। उसका नाम परमिंदर कौर था। लंबे नीले ओवरकोट में गज़ब खूबसूरत लग रही थी। हाफ ग्लव्स में सिर्फ आधी उंगलियां ही दिख रही थीं, नील पड़ी हुयीं। सारी ठंढ जैसे उन उंगलियों मे जम गयी थी। रोती आखें कितनी खूबसूरत लग सकती हैं जानने के लिये सिर्फ उसकी आखें देखनी चाहिये। दिल्ली में पुस्तक मेला लगा हुआ था, हम कैसे प्रगति मैदान पहुंचे मुझे याद नहीं। वो बता रही थी कि उसे कौमिक्स और कवितायें पढ़ना अच्छा लगता है। मैं उसे गारबेज बिन के बारे में बता रही थी, वो मुझे किसी ओक्टावियो पाज़ के बारे में। वियर्ड सी पसंद थी उसकी।

वो भी गर्लस स्कूल में पढ़ी थी। हम यूं ही डिस्कस करने लगे कि मिल्स ऐंड बून जैसा कुछ ढंग का हिंदी में पढ़ने को क्युं नहीं मिलता। हमारे जैसी सिचुएशन जिसमें बहुत थोड़ी सी दरकार बचती है किसी भी तरह किसी को छू भर लेने की। बात यही चल रही थी कि पूरी की पूरी जमुना उसकी आखों में उतर आयी। एक लड़का हुआ करता था तुम्हारे जैसा ही, मुस्कुराने का टैक्स वसूलता हुआ। कभी जो उसे देख कर मुस्कुरा देता तो वही होली, वही ईद हुयी जाती थी। ईश्क जैसा कि तुम जानते ही हो, दुःसाहस का दूसरा नाम है। इक रोज उसने ऐडमिन औफिस में एन्ट्री मारी और रजिस्टर से उसके घर का फोन और ऐड्रेस ले उड़ी। उस दिन से हर रोज उस लड़के को कौल करती। एक रोज उसने ऐसे ही कौल किया था तो उधर लड़के ने तीन नाम गिना दिये...तुम लावण्या हो ना? टाइटल में सेन लिखती हो। लड़की बहुत उदास हुयी...मगर मुहब्बत ऐसी ही किसी शय का नाम है. उम्मीद न जीने देती है न जान लेने देती। हर रोज़ का नियम बना हुआ था. वो रोज़ फोन करती और लड़का हर बार अनगिन लड़कियों के नाम गिनाता रहता। इश्क़ जिद्दी था. लड़की तो और भी ज्यादा। लड़के ने शायद दुनिया की सारी लड़कियों के नाम गिना दिये, बस एक उसके नाम के सिवा। यूँ तो उसका नाम परमिंदर कौर है, मगर लड़के ने कुछ और कोडनेम रखा था उसका। एक बार गलती से फोन पर बात करते हुए वही नाम ले गया था, 'परी'. वो दिन था और आज का दिन है, वैसी हसीं गलती दुबारा हो जाए, इस उम्मीद पर अटकी है जिंदगी कहीं। मालूम, उसने उस लड़के को कभी छुआ भी नहीं, मगर उँगलियों को उसका फोन नंबर ऐसे याद है जैसे तितलियों को उड़ने की दिशा, फूलों को सो जाने का वक़्त या कि फिर उस लड़के को परमिंदर का नाम.

इस उम्र में बालों में चांदी नज़र आने लगी है. पिछली बार डॉक्टर से मिली थी तो उसने सिजोफ्रेनिया बताया था, और भी कुछ परेशानियां हैं जिससे भूल जाती है बहुत कुछ. उससे नंबर पूछो तो याद नहीं रहता, कई बार तो उस लड़के का नाम भी भूल जाती है. फिलहाल उसकी परेशानी ये है कि अक्सर उसे खुद का नाम याद नहीं रहता, ऐसे में मान लो जो उस लड़के ने कभी उसे सही नाम से पुकारा भी हो, ठहरना कहाँ याद रह  पायेगा। एक बार अजमेरी गेट गयी थी उसे ढूंढने के लिए. निजामुद्दीन दरगाह पर मन्नत की चद्दर भी चढ़ाई। लेकिन आजकल फोन कोई और उठाता है अक्सर , मद्रासी ऐक्सेंट रहता है. शायद कोई नर्स होगी, लगता है  उसकी तबियत खराब चल रही है। इसी सिलसिले में कल कितनी बार फोन लगाया, आखिर में उसकी आवाज सुन पायी बस।

वहीं सीढ़ीयों पर बैठे कितना वक्त गुजर गया। सामने की भीड़ में आता हर चेहरा मुझे तुम्हारी याद दिलाने लगा था। तुम भी तो कमाल की आदत हो ना। मुझे ठीक याद नहीं उसकी कहानी सुनते सुनते कब गुम होने लगी मैं। बात दिल्ली की थी, उसपे दिलफरेब सर्दियाँ। यही वक्त था न जब तुम इस शहर में हुआ करते थे। पुराने किले की झील जिस साल जम जायेगी तुम मेरे साथ स्केटिंग करोगे प्रोमिस किया था तुमने। सामने बर्फ गिर रही थी...मैं सोच रही थी कि पुस्तक मेले में तुम जरुर आओगे। सिर्फ एक बार तुम्हें छू कर तुम्हारे होने की तस्दीक कर लेना चाहती थी बस। इधर खुमारी सी है...इतना सारा कुछ खूबसूरत मिलता रहता है, एक तुम नहीं होते और तुम्हें बताये बिना जीना तो कब की भूल चुकी हूं। मान लो ये परमिंदर की कहानी तुम्हें सुनाती तो तुम जाने कितने किस्से और बना लेते उससे। किरदार की जिन्दगी का खाका खींचना तुम्हारे जैसा कहां आया मुझे...दिखते हो तुम, परमिंदर की मौसियों की जिन्दगी की सीवन उधेड़ते हुये। तुम्हें बहुत मिस करती हूं...आजकल तुम्हारे खत आने बंद हो गये हैं। वो पोस्टबौक्स नंबर याद है तुम्हें? गलती हो गयी ना, मेले में जाने के पहले सबसे पहले यही कहते हैं ना कि खो गये तो कहां मिलेंगे...हम अपनी जगह तय करना भूल गये। तुम मेरा कहीं और इंतजार कर रहे हो...मैं किसी और मोड़ पर तुम्हारे इंतजार में ठहरी हुयी। तुम्हें दुनिया के कितने शहर में तलाश आयी...आज दिल्ली की इस बातूनी दुपहर इक अनजान लड़की के साथ बैठे हुये तुम्हें पूरा दिन याद किया है। सोचती हूँ अपने घर में तुम इस वक्त शाम के हिस्से की सिगरेट पी रहे होगे। मेरे बैग में अब तक वो आखिरी सिगरेट पड़ी है...याद है हमने वादा किया था एक साथ सिगरेट छोड़ देंगे। तुम आजकल कौन सी सिगरेट पीते हो? वही गोल्ड फ्लेक? मुझसे कोइ कह रहा था कि रद्दी सिगरेट होती है, क्युं पीती हूं। दरअसल कुछ दिन सिगार पीने का शौक लगा था...मगर किसी अफेयर की तरह कुछ महीनों चला। इधर डॉक्टर ने मना किया है, तब से तुम्हें तलाश रही हूं, आखिरी सिगरेट साथ लिये।

तुम्हारी बात चलती है तो सारी कहानियां बेमतलब लंबी हो जाती हैं, देखो परमिंदर बिचारी बोर हो रही है...और मैं अपनी ही गप लिये बैठी हूं, अपनी लव स्टोरी तो क्लासिक है, बाद में सुनाती हूं। फिलहाल एयरपोर्ट जाने का वक्त हुआ। कोई बारह बजे के आसपास बाराखंबा रोड पर दिखा था कोई तुम्हारे जैसा। सुनो, पिछले साल १८ जनवरी को उस वक्त कहां थे तुम? फिलहाल कहां जा रहे हो? वो जो झील है ना...उसके सामने एक बोट है, २५ नम्बर की, गहरे लाल रंग में। मैने वहां अच्छे से पैक कर तुम्हारे लिये एक विस्की, एक पैक गोल्ड फ्लेक और तुम्हारे नाम लिखे सारे खत है। मैंने दिल्ली की इस सर्द शाम से तुम्हे, विस्की और सिगरेट को एक साथ छोड़ दिया है।

अपना ख्याल रखना मेरी जान। तुम्हारी दुनिया में भी मुझे अपने कत्ल का सामान चुनने की आजादी है...मैं हिज्र चुनती हूं। तुमसे अब कभी न मिलूंगी। 

4 comments:

  1. अपनापन कितना घातक है,
    घुन सा भीतर धीरे धीरे,
    मँझधारों में जूझे लड़कर,
    डूब गया पर आकर तीरे।

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (25-1-2014) "क़दमों के निशां" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1503 पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

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  3. bahut sunder kahani .. kuchh mere bhitar bhi chhukar chali gai...vo andekha, jana pehchana sa....

    shubhkamnayen

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  4. दिल को छू कर गुजर गया जैसे हवा का एक झोंका सा...

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