'कवितायें पढ़ने की मुझे फुर्सत नहीं मिल रही'
'और मुझे?'
'तुम्हें पढ़ने के लिए तो एक लम्हा काफी होगा'
'तो?'
'तो, क्या?'
'कब आ रही हो मुझसे मिलने?'
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लड़की हाथ में उम्र की छोटी सी रेखा को ऊँगली से ट्रेस करती हुयी सोचती...कमबख्त जिंदगी इतनी छोटी क्यूँ है...रोज थोड़ी थोड़ी खींचती उम्र की रेखा को...सोचती शायद कुछ दिन...कुछ लम्हे और बढ़ जाएँ. कि जैसे किसी से बिछड़ते हुए उनका हाथ छूटे तो उसे तुरंत कोट की गर्म जेब में रख दिया जाए...उन हाथों की गर्मी फिर एकाकीपन के पूरे रास्ते साथ रहती है...कभी कभी तो पूरी जिंदगी भी.
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जब वो बहुत छोटी सी थी...उसके नन्हे से हाथ की रेखाएं उभरनीं शुरू भी नहीं हुयी थीं कि एक बंजारे जिप्सी ने कह दिया था कि आपकी बच्ची बहुत कम साल जियेगी. घर में उस दिन जो कोहराम मचा उसके अलावा भी माँ बाप ने वाकई उसे इस तरह पाला था जैसे जाने कौन सा दिन आखिरी हो. उस पर दुःख की हलकी सी परछाई भी नहीं पड़ने दी थी...परीकथाओं की राजकुमारी जैसी पली बढ़ी थी वो. उसने तो क्लास में भी कॉज इफेक्ट नहीं पढ़ा था...न्यूटन के तीनो नियम उसे प्रैक्टिकली समझ नहीं आते थे.
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उसे किसी से प्यार हो जाना था ये तो उस ओरेकल में नहीं दिखा था...लड़की को बस ये मालूम था कि उसकी जिंदगी बहुत छोटी सी है...मगर किसी दिन क्लासिकल म्यूजिक सुनते हुए उसे लगता था कि वो किसी रौशनी जैसी चीज़ से पूरी भर गयी है और चाइनीज लैंटर्नस् की तरह हवा में फ्लोट करते हुए किसी अनजान देश की ओर निकल जायेगी. एक दिन कोलेज ट्रिप पर गयी हुयी थी जब उसने पहली बार उस कवि की कवितायें सुनीं. वो एक लैंग्वेज क्लब था जहाँ पिछले कई सालों से लोग मिलते थे और अपने अपने प्रान्त की कहानियां और कवितायें सुनाते थे...अंग्रेजी का ये क्लब उनके ट्रिप का हाईलाईट था. मंच पर हलकी रौशनी थी...कवि की रचनायें उसकी मातृभाषा में थीं...वो पहले मूल कविता पढ़ता और फिर उनके अनुवाद समझाता जाता. उसकी अंग्रेजी बहुत अच्छी नहीं थी...पर शायद अच्छी कवितायें किसी भाषा की मोहताज़ नहीं होतीं...उनका संसार व्यापक होता है.
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उन्हें समझ नहीं आता कि वे एक दूसरे की भाषा सीख रहे थे या एक दूसरे को...अनगिन चिट्ठियां आतीं...वे एक दूसरे को अपने भाषा का सबसे खूबसूरत काव्य पढ़ने को देते...लोक संगीत की सीडीज बर्न करके भेजते...फिल्मों के लिए सब टाइटल्स लिखते...फ़ाइल बनाते और भेजते. कविता, संगीत, फिल्में...इसके अलावा नीला आसमान तो एक ही था. लड़की को तब तक मालूम नहीं था कि प्यार आम इंसानों के जीवन में भी बेतरह उलझनें पैदा कर देता है...फिर उसके पास तो वक्त भी कम था...वो कैसे जान पाती कि उसका कवि अब उसकी टूटी हिंदी की कच्ची कवितायें ठीक करके उसे वापस क्यूँ नहीं भेजता...क्यूँ उसके अनगिन खतों के चंद जवाब भी नहीं आते...क्यूँ इन्तेज़ार की चौदह चाँद रातें उसके नाम लिख दी गयी हैं...उसे समझ नहीं आता था कि प्यार सबके लिए अलग अलग रंग लेकर आता है. तकलीफ भी पहली बार हुयी थी...पहले तो उसे लगा कि उस बंजारे की भविष्यवाणी सच होने वाली है...वो वाकई मरने वाली है...फिर धीरे धीरे दिन बीते तो उसे लगा कि तकलीफ में होने से जिंदगी लंबी लगती है. चंद दिनों में ही उसे लगा कि उसने एक लंबी और भरपूर जिंदगी जी है.
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एक छोटी सी जिंदगी में अफ़सोस के लिए जगह नहीं होती. उसे भारत जाना था...बस एक बार उस मिट्टी को छूने...उस हवा में सांस लेने...उस आसमान के नीचे एक लंबी ख्वाबों भरी नींद के लिए. उसकी हिंदी बहुत अच्छी हो गयी थी और उसके शहर में हिंदुस्तान से बहुत टूरिस्ट आते थे. उसने लोगों को हिंदी में टूर कराने का एक छोटा सा ग्रुप बनाया. शुरुआत के दिन से उसका एक भी दिन खाली नहीं जाता...हमेशा बहुत से लोग हो जाते हैं. टूर शुरू करने के पहले वो सबसे हाथ मिलाती है...कभी गले लगती है...और मुस्कुराते हुए कहानी सुनाती है...एक छोटी सी जिंदगी की...इस बड़े से शहर में.
एक छोटी सी जिंदगी में अफ़सोस के लिए जगह नहीं होती. उसे भारत जाना था...बस एक बार उस मिट्टी को छूने...उस हवा में सांस लेने...उस आसमान के नीचे एक लंबी ख्वाबों भरी नींद के लिए. उसकी हिंदी बहुत अच्छी हो गयी थी और उसके शहर में हिंदुस्तान से बहुत टूरिस्ट आते थे. उसने लोगों को हिंदी में टूर कराने का एक छोटा सा ग्रुप बनाया. शुरुआत के दिन से उसका एक भी दिन खाली नहीं जाता...हमेशा बहुत से लोग हो जाते हैं. टूर शुरू करने के पहले वो सबसे हाथ मिलाती है...कभी गले लगती है...और मुस्कुराते हुए कहानी सुनाती है...एक छोटी सी जिंदगी की...इस बड़े से शहर में.
यूरोप की बेतरह खूबसूरत इमारतों के बारे में बताते हुए उसकी नीली आँखों में कभी कभी कोई आवारा सफ़ेद बादल चुभ जाता था...फिर बिन मौसम बरसातों को उसके स्कार्फ का रेशमी बाँध थाम लेता था...कल तनहा डेन्यूब नदी के किनारे बैठ कर तीसरी कसम का गाना सुना रही थी लोगों को...दुनिया बनाने वाले...कहानी के बीच में पूछती है...अनजान लोगों से...हैव यू एवर बीन इन लव...डज इट एवर फेड अवे?
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बारिश में इन्द्रधनुष के रंग ही तो बरसते हैं...वरना तो सब फीका ही रहता धरती पर...वैसे ही...प्यार जिंदगी में घुलता है और खुशबू के रंग से पेंट करता है...फिर आँखों में मुस्कराहट की सफ़ेद रौशनी चमकती है...पहले प्यार सी मासूम...पहले प्यार सी सदाबहार...और पहले प्यार सी पहली.
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बारिश में इन्द्रधनुष के रंग ही तो बरसते हैं...वरना तो सब फीका ही रहता धरती पर...वैसे ही...प्यार जिंदगी में घुलता है और खुशबू के रंग से पेंट करता है...फिर आँखों में मुस्कराहट की सफ़ेद रौशनी चमकती है...पहले प्यार सी मासूम...पहले प्यार सी सदाबहार...और पहले प्यार सी पहली.
'कवितायें पढ़ने की मुझे फुर्सत नहीं
ReplyDelete'तुम्हें पढ़ने के लिए तो एक लम्हा काफी
वक्त कम है...मुहब्बत ज्यादा
khubsurat aihasaas
बहुत सुन्दर. पूरा पढके ही लिख रहा हूँ. बात ये है न कि उम्र काफी हो गयी है और मसले ऐसे हैं जो खूब गुदगुदी करते हैं.
ReplyDeleteकुछ दिया तो कुछ ले लिया,
ReplyDeleteरूठते हैं, वो भी पिया।
तुम लिखती हो या छूती हो , मानो भीतर तक घुस जाती हो .... धंस जाती हो गहरा .......
ReplyDeleteवक्त कम है...मुहब्बत ज्यादा
ReplyDeleteइसे जल्दी-जल्दी ,ढेर सारी समेट लो :-))
गोया प्यार तुम्हारी रगों में बहता है . चोट लगेगी तो मुआ खून नहीं निकलेगा .....
ReplyDelete'कवितायें पढ़ने की मुझे फुर्सत नहीं
ReplyDelete'तुम्हें पढ़ने के लिए तो एक लम्हा काफी
बिल्कुल सच कहा ... खूबसूरत अहसास
कहानी के बीच में पूछती है..अनजान लोगों से...हैव यू एवर बीन इन लव...डज इट एवर फेड अवे?
ReplyDeleteपूजा आपकी स्टाइल डॉ. अनुराग से काफी कुछ मिलती है पर है बडी खूबसूरत
:)
ReplyDeletekuchh kuchh adhoora adhoora sa h.
ReplyDeleteshayad aapne khud hi chhodah........
ReplyDelete:)
ReplyDeletei also like ur ehsas blog..but no latest updates
शब्दों के साथ खेलने वाली ज़ादूगरनी जी! बहुत दिन बाद आना हो पाया इधर। अब पढ़ता हूँ एक-एक कर।
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