इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत भी काफी ख़राब चल रही थी. बात दरअसल गोल गोल घूमकर ढाक के तीन पात हो गयी थी. तबीयत खराब होने के कारण खाना नहीं बनती थी, और खाना नहीं बनाने के कारण तबीयत और खराब होती जाती थी. तो कुछ दिन पहले मैंने हथियार डाल दिए, हथियार बोले तो बेलन, छोलनी, चिमटा आदि...घर में एक कुक का इंतज़ाम कर लिया. सुबह का नाश्ता और रात का खाना घर पर बन जाता था और दीपहर में ऑफिस की कैंटीन जिंदाबाद.
हाथ में दर्द होने के कारण बाइक चलाना बंद था...कुणाल रोज सुबह कार से पहुंचा देता था, लौटते हुए श्रुति नाम की बेहद भली लड़की अपनी बाइक से घर पहुंचा दिया करती थी. ऑफिस आते जाते दोनों भले इंसानों से गप्प करते हुए रास्ता भी मजे से कट जाता था. कह सकते हैं कि मेरी ऐश थी. लगता था होस्टल वाले दिन वापस आ गए हैं. बस ऑफिस जाओ, दोस्तों से गप्पें करो और अच्छी किताबें, फिल्में, गाने...सब अच्छा चल रहा था.
तो मैं बता रही थी बिल्ली के बारे में....
ऐसा हुआ कि एक भले दिन मैं घर से देर चली थी, हमेशा की तरह. वैसे लेट की उतनी फिकर नहीं होती है क्योंकि ऑफिस में नौ घंटे बिताना जरूरी है बस...फिर भी लेट जाना अच्छा नहीं लगता है ऑफिस. सारे लोग आ गए होते हैं...यहाँ मेरी टीम में अधिकतर लड़के हैं उनको सुबह करना ही क्या होता है, भोरे भोर उठ कर पहुँच जाते हैं. शामत हम बेचारों की आती है :)
कुणाल बेचारा आधी नींद में उठता है और कार ले कर चल देता है हमको पहुंचाने. तो हमारी कार का होर्न ही नहीं बज रहा था...और बंगलोर में बिना होर्न बजाये जाना नामुमकिन है. तो घर से आधी दूर पर हम झख मारते ऑटो का इन्तेजार करने लगे. भगवान् मेहरबान था तो ऑटो मिल गया.
गाड़ी सर्विस सेंटर भेजी...दोपहर को फ़ोन आया उनका...कार के तार चूहे कुतर गए हैं...अब बताओ भला, इत्ती बड़ी गाड़ी बनायीं, उसमें एक ऑटोमेटिक चूहेदानी नहीं लगा सके कि चूहे नहीं आयें. कमसे कम जाली टाईप का ही कुछ लगा देते कि चूहे अन्दर नहीं आ सकें. गाड़ी वापस आई तो हमने पुछा कि क्या करें...तो बोलता है कि गाड़ी सुरक्षित जगह पर लगायें. अब अपार्टमेन्ट में लगाते हैं, और किधर लगायें, कौन सा गटर में लगते हैं कि बेहतर जगह लगा सकें.
चूहे मारने कि दवा रखने कि सलाह भी दी उन्होंने. मैं सोचती हूँ कि और कैसी जगहें होंगी जहाँ चूहे नहीं होते होंगे. किसी कार के सर्विस स्टेशन से मिली ये अब तक की सबसे अजीब सलाह में से आती है. चूहे मारने की दवा दें...
गाड़ी की सुरक्षा के लिए हम एक बिल्ली पालने की सोच रहे हैं...एक ऐसी बिल्ली जिसका खाने का टेस्ट एकदम खालिस बिल्ली वाला हो, और जो चूहों के शिकार में निपुण हो. बिल्ली को रोज सुबह दूध मलाई मिलेगी...दिन भर भूखा रखा जाएगा ताकि शाम को चूहे पकड़ने के काम में उसका मन लगे. बिल्ली को दिन भर सोने की पूरी इजाजत है...रात को जाग कर पहरा देने के लिए जरूरी है कि वो दिन में भरपूर नींद ले. बिल्ली को महीने में एक वीकेंड छुट्टी मिलेगी जिसमें वो बाकी बिल्लियों से मिलने जा सकती है. बिल्ली की इच्छा हो तो वो अपने साथियों को भी बुला सकती है. बिल्ली चतुर और निडर हो...दिखने में मासूम और क्यूट हो और कम बोलने वाली हो तो अतिरिक्त बोनस मिलेगा.
तो अगर आप किसी ऐसी बिल्ली को जानते हैं तो कृपया खबर करें...जानकारी देने वाले को उचित इनाम दिया जाएगा.
हा.हा.हा.ये भी खूब रही...शेर राजा से पुच्छो वो हर तरह की बिल्ली की नेचर जानते हैं.
ReplyDeleteलडको को कोई काम नहीं.. ?? अरे हम जैसे बेचलरो से पूछो.. कैसे पहुँचते है ऑफिस..
ReplyDeleteवैसे बिल्ली से बात हो गयी है.. पे स्केल क्या है ये क्लियर हो जाता तो..... ........
इस रचना में नागर जीवन की जटिलता, आपाधापी, संग्राम और इन सबसे अलग उम्मीद और आंकाक्षाओं की अपरंपार दुनिया है ।
ReplyDeleteहद है.. हम बारह बजे भी कैसे दफ्तर जाते हैं ये हम ही जानते हैं..
ReplyDeleteऔर हाँ लड़की, एक बार हमारी कार के तार भी चूहों ने कुतरे थे.. तब हमने बिल्ली नहीं पाली थी.. हमने चूहे मारने कि दवा दी थी.. चूहे तो मरे ही, एक पड़ोस कि बिल्ली भी भगवान को प्यारी हो चली.. :D
कुछ न करने का आनन्द और बिल्लई ख्याल। कहिये एक भेज दूँ, दो हैं मेरे पास, एक तो बिल्कुल पोस्ट की फोटो जैसी।
ReplyDeleteबिल्ली चतुर और निडर हो...दिखने में मासूम और क्यूट हो और कम बोलने वाली हो तो अतिरिक्त बोनस मिलेगा. ..
ReplyDeleteकम बोलने वाली सबसे मुश्किल शर्त रख दी है बोनस के लिए ...!
अरे एक बिल्ली तो हमारे घर के पास ही दिखती है...हर शाम दिखती है...बहुत क्यूट भी है :) कहिये तो भेज दूँ :)
ReplyDeleteवैसे बैंगलोर का मौसम सही में बहुत ज्यादा सुहाना है...इस जुलाई महीने में तो मौसम इतना खूबसूरत है की क्या कहें...:)
लडको को कोई काम नहीं ?
ReplyDeleteगलत बात .... :)
आप की रचना 30 जुलाई, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
भई इस पर तो हमे भी ऎतराज है.. मर-मर के जब ओफ़िस पहुचते है तो पूरी टीम आ चुकी होती है.. और तुम्हारे कहे अनुसार लडके होने का भी कोई फ़ायदा नही मिलता...
ReplyDeleteबिल्ली अच्छा काम करे तो मुझे भी बताना.. कालोनी मे एक दो मुस्टन्डे चूहे घूम रहे है आजकल.. पार्ट टाईम करेगी तो कुछ न कुछ खौफ़ तो रहेगा वैसे भी दिन भर सोकर क्या करेगी..
@ पंकज - वैसे भी दिन भर सोकर क्या करेगी.. ऐसी ही गन्दी सोच से हमारे मैनेजर भी भरे रहते हैं.. तू भी यार... रोना आ रहा है.. सुबुक.. सुबुक..
ReplyDeleteतुम आज भी नहीं बदली,वही चपलता वही बात,तुमसे कभी बात तो नहीं हुई थी पर तुम्हारे आने-जाने की गति से पाता चलती थी,और आज भी वही सोच क साथ जीती हो, अच्छा है, खैर मेरा दुआ सलाम काबुल करना,
ReplyDeleteऔर मुबारक हो,
मुझे भी देश-दुनिया को बहुत गाली देने का मन करता है!
तुम्हारे प्रतिक्रिया के इंतज़ार में!
और हाँ हमारे भाई साहब को हेल्लो बोलना!!! शुभ दिवस