रात, दिन, भोर, शाम
जब महीनों तुमसे बात नहीं कर पाती हूँ
फुर्सत नहीं मिल पाती...
रात की खिड़की से देखती हूँ
चाँद का अकेले बढ़ते जाना
पूर्णिमा तक और फिर वापस...
इकट्ठी हो जाती हैं बहुत सारी बातें
जो बस तुमसे कर सकती हूँ मैं
किसी भी और से नहीं...
थक जाने के बहुत बाद वाले किसी दिन
किसी शाम, फिर रात
तुम नहीं आते हो...
उस तन्हाई में
कुछ कहने को मन करता है
तब मुझे तुम्हारी नहीं...माँ की याद आती है।
बहुत ही बढिय़ा। एक दम सीधे मन में उतराते शब्द । भावनाओं की सटीक अभिव्यक्ति । बधाई।
ReplyDeleteतारीफ़ के शब्द नहीं मिल पा रहे , दुनिया में माँ का रिश्ता ही शायद सबसे बड़ा है.
ReplyDeleteउस तन्हाई में
ReplyDeleteकुछ कहने को मन करता है
तब मुझे तुम्हारी नहीं...माँ की याद आती है।
-उम्दा!! बहुत भावपूर्ण रचना!
nice
ReplyDeleteदुनिया में माँ का रिश्ता ही शायद सबसे बड़ा है.
ReplyDeleteI think its really unfair i have been reading ur blog for sometime,but u never allowed my comment to public.i think i have never seen a girl as true as u r in your blog
ReplyDeleteमाँ.......अपने आप में जैसे पूरी दुनिया होती है......पहलू में बैठ जाओ तो कहीं कुछ कोई कमी महसूस ही नहीं होती.....बहुत सुन्दर भाव से लिखी ह्रदयस्पर्शी कविता...बधाई
ReplyDeleteक्या कहूँ ....जानता हूँ.........तुम्हारी पिछली किसी पोस्ट की याद आ गयी....
ReplyDeleteमुझे भी.
ReplyDeletesagar ke blog per aapke comments padh ke chla aaya tha yahan tak.
ReplyDeleteमाँ ............
कुछ नहीँ होगा तो आंचल मे छुपा लेगी मुझे
माँ कभी सर पे खुली छत नही रहने देगी .
आज माँ को फोन करुंगा.
सत्या
दुख और अकेलापन समेटने के लिये मन का आँचल है न ।
ReplyDeletesundar kavita
ReplyDeletekavita padh ke mummy se baat kar li maine....
ReplyDeleteसेन्टी क्वीन हो रही हो आजकल, सब ठीक है न? अभी अभी ये पोस्ट पढी मैने और एक प्यारी सी मुस्कुराहट चेहरे पर उतरती चली गयी.. पढना..
ReplyDelete(P.S. अपना लिन्क नही दे रहा हू, वो बडे ब्लागर अपना लिन्क नही देते न, इसलिये :))
http://kuchehsaas.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html
दिल तो जेब में रखा है...
ReplyDelete@pankaj
ReplyDeleteपल्लवी की वो पोस्ट पढ़ चुकी हूँ, दरअसल उस पोस्ट पर तुमसे पहले जो कमेन्ट है वो मेरा ही है...दूसरी ईमेल से लोगिन थी, देखा नहीं कि क्या नाम आ रहा है.
तो आप पूजा किसलय भी है.. जे बात!!
ReplyDeletegawwt it.. :)
और सेन्टी वाली बात का जवाब कौन देगा?
(ये लाइन पान पसन्द खाने के बाद वाली ’टोन’ मे है :))
सुंदर लिखा पुजा तुमने !
ReplyDeleteक्या कहूँ माँ के आगे सारे शब्द बौने हो जाते है। दिल से लिखे भाव दिल को छू जाते है।
ReplyDeletetouchy...!!
ReplyDeleteachhi abhivykti
ReplyDeleteथक जाने के बहुत बाद वाले किसी दिन
ReplyDeleteकिसी शाम, फिर रात
उफ़्फ़
कैसा होता होगा वह थक जाने के बाद, बहुत बाद का कोई दिन..कब आता होगा..कहाँ
हम भी देखेंगे तजुर्बा कर के..
आप बेहतर लिख रहे/रहीं हैं .आपकी हर पोस्ट यह निशानदेही करती है कि आप एक जागरूक और प्रतिबद्ध रचनाकार हैं जिसे रोज़ रोज़ क्षरित होती इंसानियत उद्वेलित कर देती है.वरना ब्लॉग-जगत में आज हर कहीं फ़ासीवाद परवरिश पाता दिखाई देता है.
ReplyDeleteहम साथी दिनों से ऐसे अग्रीग्रटर की तलाश में थे.जहां सिर्फ हमख्याल और हमज़बाँ लोग शामिल हों.तो आज यह मंच बन गया.इसका पता है http://hamzabaan.feedcluster.com/
आपकी चिंता जायज है।
ReplyDeletebahut sundar rachna
shekhar kumawat
kavyawani.blogspot.com/
bahut sundar rachna
ReplyDeleteshekhar kumawat
kavyawani.blogspot.com/
touching...check me also...http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
ReplyDeleteअदभुत !!
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