03 November, 2009

बरहाल जिन्दा रहता हूँ

सूनी घाटी पर्वत पर्वत
दरिया सा भटका करता हूँ

किसी मुहाने पल भर रुक कर
जाने ख़ुद से क्या कहता हूँ

तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
मैं तुम में तुम सा रहता हूँ

आँसू की फितरत खो जाना
मैं गम को ढूँढा करता हूँ

जख्म टीसते हैं सदियों के
नीम बेहोश सदा रहता हूँ

जली हुयी अपनी बस्ती में
चलता हूँ, गिरता ढहता हूँ

घुटी हुयी लगती हैं साँसे
ख़ुद से जब तनहा मिलता हूँ

ख़त्म हो गई चाँद की बातें
चुप उसको ताका करता हूँ

मर जाना भी काम ही है एक
बरहाल, जिन्दा रहता हूँ

23 comments:

  1. .. :) your stories your poems, everything you post on your blog is a treat to read, kitni aasni se kitne ache se samet deti hai aap dil ki batein

    ReplyDelete
  2. वाह शब्दों क्या को संजोया है .

    वैसे आपको इंडीब्लोगर कविता प्रतियोगिता में तीसरे क्रम पर देख कर अच्छा लगा

    ReplyDelete
  3. मैं तुम में तुम सा रहता हूँ



    kya baat hai ...

    ReplyDelete
  4. अह... हा! आहा ! क्या जायका है... छोटे-छोटे उजले मोतियों वाला हार...

    ReplyDelete
  5. "तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
    मैं तुम में तुम सा रहता हूँ

    ख़त्म हो गई चाँद की बातें
    चुप उसको ताका करता हूँ"

    पहाडी झरने सा प्रवाह है वैसा ही मिजाज है !
    कविता भा गई !

    ReplyDelete
  6. मर जाना भी काम ही है एक
    बरहाल, जिन्दा रहता हूँ
    क्या बात है पूजा....बड़ा शायराना अंदाज़ है!

    ReplyDelete
  7. तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
    मैं तुम में तुम सा रहता हूँ

    अद्भुत......

    ReplyDelete
  8. प्रकृति और इंसान में कितनी समानता है, आपकी कई पंक्तिया तो यही कह रही हैं ...
    घुटी सी लगती हैं साँसे
    खुद से जब तनहा मिलता हूँ
    और
    मर जाना भी एक काम है
    फिलहाल जिन्दा रहता हूँ
    बहुत सुन्दर शब्दों में इज़हार किया है...

    ReplyDelete
  9. बहुत अच्छा..

    तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
    मैं तुम में तुम सा रहता हूँ

    सुन्दर

    ReplyDelete
  10. बहुत बढ़िया रचना भाव पक्ष बेहद खुबसूरत हैं... और बह'र में भी हो सकती थी यह रचना बस थोडी सी ठोका पिटी करके... बहुत बढ़िया बधाई कुबूल करें

    gustaakhi muaaf

    अर्श

    ReplyDelete
  11. एक नया अंदाज़...माशा अल्लाह!!

    ReplyDelete
  12. ज़िन्दा तो रहना ही है ..बहरहाल ।

    ReplyDelete
  13. वाह क्या बात है , बहुत सुंदर.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  14. मर जाना भी काम ही है एक
    बरहाल, जिन्दा रहता हूँ"

    bahut sunder.... behrateen sher hai yeh ekdam.....

    ReplyDelete
  15. मर जाना भी काम ही है एक
    बरहाल, जिन्दा रहता हूँ

    वाह :) ..कुछ पूछना था, comment form ke neeche shabdon ka safar ka link kyun rehta hai har baar?

    Main us par jab click kerta hoon, tumhara kahin koi reference nahi milta

    ReplyDelete
  16. @arsh...kya karun, bahar ke naam se hi mujhe bukhar chadhne lagta hai...bachpan se hi math kamjor raha hai.

    @pankaj...maine nahin diya hai shabdon ka safar ka link...pata nahin kaise rahta hai...thodi khoj khabar karti hoon fir bataungi :)

    ReplyDelete
  17. Wah!!!!!!! puja Bahut acche se sabdo ko sanjoya hai aapne
    तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
    मैं तुम में तुम सा रहता हूँ

    ReplyDelete
  18. तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
    मैं तुम में तुम सा रहता हूँ...awesome....

    ReplyDelete
  19. एक और बेहतरीन रचना!

    बधाई.

    ReplyDelete
  20. मन को भा गयी यह रचना, बहुत प्रभावशाली ! शुभकामनायें!

    ReplyDelete
  21. अरे, तुम्हें पता भी है कितनी लाजवाब ग़ज़ल कह डाली है तुमने...!!!

    बेहतरीन !

    एक-दो जगह को नजरअंदाज करें तो बकायदा छंद पे कसी हुई है।

    मैं तुम में तुम सा रहता हूं..और खत्म हो गयी चांद की बाते...पे खूब-खूब तालियां- दिल से!

    ReplyDelete
  22. पूजा
    बस यह जिजीविषा ही इंसान को मरने नहीं देती है .

    ReplyDelete
  23. Ye wala zabardast hai. ek dum gulzar ki triveni ki tarah. vo teen line main karte hain, aapne do line main hi kaam kar dala.

    तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं, मैं तुम में तुम सा रहता हूँ। मर जाना भी काम ही है एक, बरहाल, जिन्दा रहता हूँ।

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...