शब्द कुछ नाराज हैं मुझसे
ठुड्डी पर हाथ रखे सोच रहे हैं
पास आयें कि नहीं
अपने संग खेलाएं कि नहीं
अजनबी हो गई हूँ मैं उनके लिए
इधर कुछ दिन से मेल बुलाकत बंद थी न
इसलिए
रूठ गए हैं, छोड़ कर चले गए हैं
अलग गुट में खड़े हैं
कि जाओ तुमसे बात नहीं करते
उनका बचपना बहुत सी कट्टियों की याद दिला रहा है
और उनकी खामोशी बहुत से अबोलों की
कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलती...
जैसे कि झगड़ा करने का अंदाज
कुछ लोग हाथ पैर पटकते हैं
कुछ दूसरों को उठा कर पटकते हैं
कुछ चुप हो जाते हैं
और बाकी औरों को चुप करा देते हैं
मैं दूसरी कैटेगरी में से हूँ
तो कुछ लफ्जों को गुस्से में आग लगा दी
कुछ लफ्जों की चिन्दियाँ हवा में उड़ा दीं
बाकी लफ्ज़ सहमे खड़े हैं, मुंह फुलाए से
हालाँकि गुस्सा अभी उतरा नहीं है मेरा
तो फिलहाल सिर्फ़ युद्ध विराम है...
तूफ़ान के पहले की शान्ति
तूफ़ान के पहले की शान्ति...
ReplyDeleteoha!! तब तो तूफान आने वाला है.
अच्छा लगा...
ReplyDeleteखासकर कुछ पंक्तियां तो बेहतर कवितामय थी...
शायद अब तक तो तूफ़ान निकल गया होगा...
मैं दूसरी कैटेगरी में से हूँ
ReplyDeleteतो कुछ लफ्जों को गुस्से में आग लगा दी
कुछ लफ्जों की चिन्दियाँ हवा में उड़ा दीं
बाकी लफ्ज़ सहमे खड़े हैं, मुंह फुलाए से
वाह पूजा जी.
nice one
ReplyDeleteशब्दों पर इतना भी क्या गुस्सा की जला डाला
ReplyDeleteतभी शायद हमें ये कविता पहले की कविताओं सी नहीं लगी
hahah....itnaa gussa....
ReplyDeleteare maaf kar dijiye unehin...dekhiye naa ...aapne itne zulm dhaaye hain unpar phir bhi chup chaap kaagaz par kataarbadh hokar baith gaye theek vaise hi ajsie aapne kaha.... yahan to hum kitnaa bulaate hain, fuslaate hain, par humaari to yeh sunte hi nahin adhiktar... isliey keh rahe hain, maaf kar dijiye behaaron ko...
vaise toofan nahin baadh aani chahiye ab to .... kaafi dino se koi leher aayi hi nahin... sookhaa kaise padd saktaa hai lehrron ke ghar....:)
तूफान से पहले शांति का ये आलम है ..आगे तो फिर खुदा खैर करे ..!!
ReplyDeleteहालाँकि गुस्सा अभी उतरा नहीं है मेरा
ReplyDeleteतो फिलहाल सिर्फ़ युद्ध विराम है...
बेहतरीन ढंग है अपना गुस्सा ज़ाहिर करने का.
बहुत खूब
सोचता हूँ कि शब्दों से, लफ़्ज़ों से नाराजगी इतनी सुंदर कविता को जन्म दे सकती है तो उनका दुलार-मलार मिलेगा तब क्या होगा...!!!
ReplyDeleteप्रलय???
nice expression
ReplyDeleteतूफ़ान के पहले की शान्ति
ReplyDeleteअगली पोस्ट तक क्या होगा .... देखते हैं !!
खुदा खैर करे । आप आये भी तो ऐसे । भय लग रहा है । भविष्य जाने क्या होगा ...?
ReplyDeleteआभार ।
आपने आप में अनूठी काव्यात्मक अभिव्यक्ति...शायद गुस्से के मनोभावों का इस तरह का चित्रण समसामयिक कविता में पहली बार आप द्वारा किया गया है.
ReplyDeleteअद्भुत लिखती हैं या शायद सोचती हैं आप....!
ReplyDeleteWow...shabdo par kavitha...badi hi umda hai yeh kavitha...
ReplyDeletemujhe aapka shabdo par gussa utharna bada achcha laga....
good attempt :)
bina padhe hi comment kar raha hun. baad me aaram se padhunga.. main soch raha tha ki itne dino se kahan gayab ho.. chalo tum aayi to sahi.. :)
ReplyDeletebina padhe hi comment kar raha hun. baad me aaram se padhunga.. main soch raha tha ki itne dino se kahan gayab ho.. chalo tum aayi to sahi.. :)
ReplyDeleteहे राम! शब्द थोड़े ही नाराज होते हैं - यह तो स्मृति ही छकाती है विस्मृति में बदल कर!
ReplyDeleteहे राम! शब्द थोड़े ही नाराज होते हैं - यह तो स्मृति ही छकाती है विस्मृति में बदल कर!
ReplyDeletevery nice
ReplyDeleteapne anubhav ka sajeev chitran kavyatmak shailee me karke apne apni kavyatamk pratibhha se ru ba ru karaya,kabile tareef hain.
ReplyDeleteकल चाँद के पीछे से
ReplyDeleteकुछ ताश के पत्तो के नीचे से
देख रहे थे मुझको
शब्द भरे हुए कुछ रीते से
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शब्दों से meeting कराने के लिए शुक्रिया