01 September, 2009

लाइफ को सेकंड चांस देना चाहिए

हम नॉर्मली थोड़ा जिद्दी किस्म के इंसान हैं, एक बार कुछ नापसंद हुआ तो कभी मुड़ के भी नहीं देखेंगे। कमोबेश यही अंदाज लोगों के साथ बने रिश्तों में भी होता है एक बार कुछ ख़राब लग गया तो चाहे बरसों की दोस्ती हो, एक मिनट नहीं लगती टूटने में। कहीं पढ़ा था बचपन में "Forgive your enemies, but never forget their names" बस हमने गाँठ बाँध के रख ली...मजाल किसी की जो हमसे दुश्मनी ले...

बचपन तक तो चला, कॉलेज लाइफ तक भी चला...अब सोचती हूँ इस नज़रिए पर पुनर्विचार कर लूँ। किसी की एक गलती तो माफ़ की ही जा सकती है, खास तौर पे तब जब वो इंसान रो पीट के माफ़ी मांग रहा हो( अभी तक इत्ता बड़ा दिल नहीं हुआ है की अपने ही माफ़ कर दें)।

बंगलोर आई थी तो शुरू शुरू में आसपास की जगहों का खाना ट्राय मारा था...और भैय्या हम बड़े ब्रांड कौन्शियस हैं एक बार जो पसंद आया उसमें जल्दी फेर बदल नहीं करते...और एक बार कुछ ख़राब निकला तो कभी ट्राय नहीं करेंगे दोबारा। इस श्रेणी में दुकानें आती हैं, सब्जीवाले आते हैं, रेस्तरां आते हैं...सब कुछ जो मैं ख़ुद खरीदती हूँ।

खैर कहानी थी एक रेस्तरां की, काटी ज़ोन, यहाँ जो रोल्स खाए हमने वो चिम्मड़ थे...इस शब्द का उद्गम शायद चमड़े से हुआ होगा...यानि ऐसी हालत की दांतों ने खींच खींच कर हार मान ली। उस दिन के बाद हमने कभी वहां से आर्डर नहीं किया। अब ऑफिस में अगर खाना नहीं लाये तो लंच मंगवाना पड़ता है...और आख़िर कितने दिन डोसा इडली पर जियेंगे...हालत ख़राब होने लगी, उसपर तुर्रा ये की पिज्जा और बर्गर से भी जी उब गया...हमारा टेस्ट एकदम नॉर्थ इंडियन है कुछ चटपटा, नमकीन मसालेदार टाईप खाना चाहिए हमें।

ऑफिस में सबने कहा की काटी ज़ोन का खाना अच्छा होता है...हम भला मानने वाले थे, एक साल पुराना दांतों का दर्द दुहाई देने लगता, कि ऐसे मत करो हमारे साथ, हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है। बस हम अड़ियल घोडे की तरह अड़ जाते...मर जायेंगे पर वहां का खाना नहीं खायेंगे।

कुछ दिनों में वाकई मरने मरने वाली हालत आ गई, कहते हैं मुश्किल में ही इंसान को जिंदगी के बड़े बड़े फलसफे सूझते हैं...सो हमें भी सूझा...कि यार कित्ती बार हमने चाहा है की एक मौका और मिलता तो क्यों न एक मौका बेचारों को भी दिया जाए...कौन जाने उन्होंने सच में कुछ किया हो। टेस्ट करने का समय भी ऐसा चुना कि रिव्यू में कोई बायस न आए...पक्षपात से हमें बड़ी चिढ़ है। कुणाल को एअरपोर्ट छोड़ने गए थे...वहीं सोचा आज इस दुःख के मौके पर खा लिया जाए भर दम...कुणाल के बिना खाना पीना तो अच्छा लगता नहीं है हमें...आने वाले एक महीने के बदले आज ही सही।

विरही नायिका के मरियल सूखे रोल में ढलने के पहले हम टुनटुन इस्टाइल खाना चाहते थे...सो भांति भांति के रोल आर्डर किए...और हमें सुखद आश्चर्य हुआ उन्होंने वाकई अपनी कायापलट करली थी। और बेचारी दिल्ली के तरसे हुए, सीपी के काटी रोल्स खाए हुए भटके दुखी प्राणी, जैसे रेगिस्तान में पानी मिल गया हो...तवा पनीर रोल्स में जो हरी चटनी लिपटी हुयी की क्या कहें...आहा...क्या चटाखेदार स्वाद...तीखा, खट्टा, और प्याज के करारे लच्छे भाई वाह...और गरमा गरम पेश हुआ था तो खुशबू जैसे दिल्ली खींच ले गई वापस और हमें मूंग के पकोड़े, चाट और जाने क्या क्या याद आने लगा।

तो हम उस दिन अपनी गलती माने की हमें बिचारों के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था...ऐसे में हमने एक साल कष्ट उठाया आख़िर हानि किसकी हुयी...हमारी। उन्हें क्या पता यहाँ कोई दिल्ली की भुखमरी लड़की रहती है, जिसे बस बहाना चाहिए होता है दिल्ली को याद करके बिसूरने का। बरहाल...हम अब से सेकंड चांस देने का सोच रहे हैं, किसी को भी पूरी तरह खारिज करने के पहले।

नोट: यह पोस्ट काटी ज़ोन से कड़ाही पनीर रोल आर्डर करने के बाद लिखी गई है। चूंकि हम अच्छी तरह जानते हैं कि रोल आर्डर करने के बाद रोल्स आने के पहले हम कुछ काम नहीं कर सकते...समय का इससे अच्छा सदुपयोग क्या होगा :)

36 comments:

  1. ज़िन्दगी को सेकंड चांस देने की इंसान की हैसियत कहाँ? वो तो हमें जीने का पहला चांस मिल गया, यही बहुत है। इसलिए जो भी ज़िन्दगी रंग दिखाती है उसी को रंगोली मान लेते हैं :)

    ReplyDelete
  2. उफ़्फ़ ये दिल्ली की भुखमरी लडकी..अजी काहे की भुखमरी जी..आप तो हमको पूरे पेटू लगते हो...हो कि नहीं..चलिये ई तो ठीक किये कि ऊ बेचारा को दूसरा चांस दे दिये..न त ..ई पोस्ट कैसे ठेलते जी..आइये अबके दिल्ली..हम तैयार रहेंगे ई भुखमरी को दावत देने के लिये...

    ReplyDelete
  3. चलिए आपका नज़रिया तो बदला.... :)

    ReplyDelete
  4. मजबूरी में तो कई चांस देने पड़ेंगे. (Camp: Mumbai)

    ReplyDelete
  5. चलो अपने पेट के साथ आपने पूरा न्याय कर लिया दूसरा चांस देकर :) :)

    ReplyDelete
  6. इधर भी बिहारी खाना का आदत लगा हुआ है... ढाई साल तरसने के बाद अब रूम पर ही बनाते हैं.. आलू का भुजिया... साला पुरे दिल्ली में नहीं मिलता... पुस्तक मेला में घी लगी सत्तू की लिट्टी-और बैंगन का भरता का स्टाल लगा तो एक्के घंटा में खाली... सारा बिहार उठकर वोहीं चला आया...

    तवा पनीर रोल्स में जो हरी चटनी लिपटी हुयी की क्या कहें...आहा...क्या चटाखेदार स्वाद...तीखा, खट्टा, और प्याज के करारे लच्छे भाई वाह...और गरमा गरम पेश हुआ था तो खुशबू जैसे

    यह लाइंस बस ऑफिस से निकलने के लिए काफी है... अब काम तो कल भी कर लेंगे... फिलहाल बर्दाश्त के बाहर है हमारा हाल...

    ReplyDelete
  7. कड़ाही पनीर रोल कैसे थे? :)


    अच्छा किया पहले लिख दिया वरना फिर सेकेन्ड क्या...चांस कब मिलता, कौन जाने!!

    ReplyDelete
  8. जीवन में कुछ ऐसे फैसले लेने होते ही है।

    ReplyDelete
  9. हर रोज नई बात सिखाती है जिन्दगी।

    ReplyDelete
  10. हर रोज़ नया रंग
    ज़िन्दगी के अनोखे ढंग.

    ReplyDelete
  11. हंसी-हंसी में बड़ी बात! दार्शनिक-व्यवहारवाद!

    ReplyDelete
  12. प्रतीक जरूर ही चुन लिये है रोजमर्रा के जीवन के, अनुभव भी सहज ही - पर बात गहरी और अर्थपूर्ण कह गयी हैं आप । आभार ।

    ReplyDelete
  13. हम अब से सेकंड चांस देने का सोच रहे हैं, किसी को भी पूरी तरह खारिज करने के पहले।

    बेहतर सोच, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  14. निरुलास का पनीर काठी रोल बड़ा मजेदार होता है.. वैसे सेकंड चांस में भी काम नहीं बने तो थर्ड और फोर्थ भी दिया जा सकता है क्या.. ?

    ReplyDelete
  15. सेकन्ड चांस देना ही चाहिये तभी तो लाईफ़ का मजा है क्योंकि यह भी हो सकता है कि पहली बार में सबसे अच्छी चीज न मिले।

    ReplyDelete
  16. हमें भी कसम से सूरत का गोल्डन ड्रेगन रेस्टोरेंट बहुत याद आता है ....देखिये आपने मुंह में जायका भर दिया ..अब आप का रोल खाने के बाद क्या अनुभव हुआ नहीं जानते .पर ऐसे मामले में दो चांस से ज्यादा सीन बनता नहीं है...

    ReplyDelete
  17. जय हो! भगवान आपकी तरह सबको बड़े दिल वाला काहे नहीं बनाते।

    ReplyDelete
  18. बहुत बढ़िया पोस्ट. पढ़कर सीखा कुछ. पहले मैं ऐसा करता था. बाद में धीरे-धीरे बदलाव आया. अब ऐसा नहीं है. शायद यह बात कि दूसरा चांस मिलता तो अच्छा होता, काम करती है.

    ReplyDelete
  19. Second Chance ..wo bhi life ko... humko ek h baar theek se jee lene de wohi kaafi hai... par khaane peene ke liye yeh baat bilkul mufeed hai !! Bhaago ghar... baarish ho rahi hain yahan.... aur bhook bhi charam seems par lag aayi hai ...

    ReplyDelete
  20. अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  21. बहुत सही! जब मामला भोजन रिलेटेड हो तो सेकेण्ड चांस नहीं, चांस पर चांस देने चाहियें!

    ReplyDelete
  22. ऐसी जायकेदार पोस्ट पढ़कर स्वादेन्द्रियाँ यानि चटोरापन जाग उठा है. स्वादिष्ट पोस्ट.

    ReplyDelete
  23. ''कडाही पनीर'' पूछकर क्या करें की कैसा था .........लेकिन जिन्दगी को सेकेण्ड चांस ही नही; चांस ही चांस देने चाहिए.

    ReplyDelete
  24. सच्ची सेंकड चांस तो देना ही चाहिए।

    ReplyDelete
  25. क्या यार..खा पीकर बैठे थे की फिर से मुंह में पानी आ गया! सच में चटोरे लोगों के साथ बड़ी समस्या है! तुम बंगलौर के सारे रेस्तौरेंट आजमाओ एक एक बार! एक न एक तो बिलकुल तुम्हारी पसंद का मिल ही जायेगा! हम तो जिस शहर में रहते हैं वह खोज खोज कर बेस्ट निकाल ही लेते हैं!

    ReplyDelete
  26. अच्छा हुआ खाना खाने के बाद यह पोस्त पढ़ी -शरद कोकास ,दुर्ग,छ.ग.

    ReplyDelete
  27. बिहार के जायका का जबाव नही हैं।बिहार की ताजा तरीन खबड़ों के लिए हमारे ब्लाग की यात्रा कर सकते हैं।

    ReplyDelete
  28. first impression is the last impression is sidhant ko har jegah laguin nahi karna chahiye.
    second chance.............

    ReplyDelete
  29. Haha...i agree....

    i am one of your kinds, who doesn't want to look back at friends when i had a quarrel with them at least for an hour....

    Seriously impression is something that keeps talking all the time.

    Once thats gone, its very tricky if we can bring it back to the previous point..

    Very good post, in fact written in hindi ... so reminded me of my school days..

    Keep writing :)

    Cheers
    Mahesh

    ReplyDelete
  30. अच्छा टाइम मेनेजमेंट है पूजा जी!

    ReplyDelete
  31. wah pooja ji....

    ...life ke second chance ki tarah main bhi kai dino baad 2nd baar aapke blog main aaya...

    Post lambi thi !!

    isliye kai baar bin padhe wapis laouta par antatha...

    ...kya hai ki yahan fursaat bhi mili to kiston main.

    ReplyDelete

  32. सेकेन्ड चाँस तो मिलता ही चाहिये न, बेबी बिंदास !
    लेकिन हम दहशत में आ गये कि एतना सब तू किस पेट में खा गयी रे, लड़की ?
    अब तो तुझे अपने मेहमान नवाज़ों को भी सोचने का सेकेन्ड चाँस तो देना ही पड़ेगा ।

    ReplyDelete
  33. ab ka batayein aapko.. idhar ko north india (roorkee) mein bhi rahkar jab kabhi mess ka bana dosa ya sanbhar khana pad jaata hai, ghar yaad aa jata hai..

    ReplyDelete

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...