05 September, 2007

भीगी खुशबू

हाँ खुशबू तो थी मेहंदी में...
पर महसूस बड़े अजीब वक़्त पे हुआ था

आँसुओं को पोंछते वक़्त
जब चेहरा ढक के बैठी थी हथेलियों में

चुल्लू में पानी ले के चहरे पे छींटे मारे थे
आँसुओं के होने को झुठलाने की खातिर

रंग छुड़ाने के लिए...
बिन मतलब बहुत से कपडे धो लिए

कत्थई हुयी मेहंदी फीकी पड़ गयी
पर नज़र तो आएगी ही कई दिनों तक

मैं ही पगली थी
किस्मत की रेखाएँ कहीं मेहंदी में छुप सकती हैं

किससे लड़ रही थी...पता नहीं

ये पता है की जब तक हथेली पर
ये लालिमा है

दिल में एक ज़ख्म टीसता रहेगा

2 comments:

  1. bahut khoob. khaskar kapde dote huye mehndi ke laalpan ko kam karne ki koshish wali jo pankti hai wo badi hi khoobsurat ban padi hai. Angrezi wali bhi achchi hai, kya wo kunaal ki aankhen hain.

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