12 March, 2010

रेत पर लिखी इक इश्क की दास्ताँ

देर रात बस समंदर निहारा किये, लहरों का शोर...दूर दूर तक गहरा अँधेरा...लाईट हाउस से दिखती जलती बुझती लाईट...सच में लगा कि समंदर थकता क्यों नहीं है...जाने कब से लहरें आ रही हैं, जा रही हैं। जैसे कि किसी को रोकना चाहता है...पर रोक नहीं पाता है। इसलिए एक लहर आगे तो एक लहर पीछे लौटा लेता है।

रेत पर खेलना, दौड़ना, भागना...नाम लिखना मिटाना सब किया...सीपियाँ देखीं दूर दूर तक बिखरी हुयी...केकड़े भी देखे...डरते डरते पानी में गए।
खारा पानी अजीब होता है...और उसमें भी बालू...समंदर का पानी और चिलचिलाती धूप...रंग ऐसा माशा अल्लाह हो गया था कि क्या कहा जाए। ध्यान दिया तो पहले तो लगा कि कुछ लगा रह गया है...खुद को इतना काला पहले कभी नहीं देखा था ना...फिर realise हुआ कि ये अंग्रेजों का शौक़ है, और हम परेशान हो रहे हैं इसी टैन के लिए बेचारे कितने देर धूप में पड़े रहते हैं।

महाबलीपुरम में वैसे तो बहुत से मंदिर हैं, पत्थरों के बहुत सी शैली की मूर्तियाँ हैं...पर अगर बंगलोर से महाबलीपुरम जाने के लिए एक वजह चाहिए तो वो वजह होगी...सड़क...ऐसी खूबसूरत सड़क कि साढ़े तीन सौ किलोमीटर पता ही नहीं चले। इतना अच्छा रास्ता..और पूरे रास्ते खूबसूरत फूल और अच्छी बनी हुयी सड़क।

हम तो समंदर देखने और चिरकुटई करने गए थे...सो किये...ढेर सारा खरीद दारी भी। शंख सीप, क्या क्या उठा लाये। हमारा बस चलता तो जिस झोपड़ी में रह रहे थे उसी को उठा लाते, समंदर समेत...वो कहते हैं ना आसमान में सूराख हो सकता है टाईप। तेज़ गर्मी में लहकती हुयी बोगनविलिया की खूबसूरती को बयां करने के लिए शब्द नहीं है...गहरा गुलाबी रंग आँखों में काजल वाली ठंढक देता था।

सूरज उगा तो जैसे समंदर पिघला सोना बन गया...लहरें लेस की सुनहरी झालर...दूर दूर तक धुली हुयी रेत, जिसपर किसी के पैरों के निशान नहीं। इतना नाज़ुक था वो भोर का लम्हा कि लगे सांस लेने से टूट जाएगा...कैमरा क्लिक करना भूल जाएँ।

आखिर कुछ यादें बस आँखों में बसाने के लिए भी होती हैं।

21 comments:

  1. ढेर सारी शुभकामनायें.

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  2. new to ur blog.. nd did I hit a jackpot?? .. great post.. nd most impressive are ur hindi poetry ..

    hoping to see u .. at my blog..
    nd ur comments there in ..

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  3. पढ़ना तो बहुत बढ़िया लगा , साथ ही आपके द्वारा लगयें गयें फोटो और भी चाँद चाँद लगा रहे हैं ।

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  4. हमने तो कभी समन्दर देखा ही नहीं है.. अलबत्ता रेत के समन्दरो में ज़रूर गोते लगाये है.
    अच्छा होता जो झुपड़िया ले ही आती.. खैर कोई नहीं..

    वैसे टैन के इलाज के लिए अपने डाक्टर साहब है.. सुना है डरमेटोलोजिस्ट है.. कहो तो बात करू.. :)

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  5. अरे नहीं कुश, रहने दो...इसी बहाने दोनों एक रंग के दिख रहे हैं...कुछ दिन ही सही. :)

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  6. :) ये मस्त था.. !

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  7. पूजा,,, क्‍या आपने दो समन्‍दर एक साथ देखे हैं ???

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  8. चिरकुटई पसंद आयी आपकी... और शब्द लहकना बेहद पसंद आया ...
    ये मिजाज भी पसंद आया टैन के बहाने दोनों का एक रंग का दिखना ...


    अर्श

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  9. दिलचस्प संस्मरणात्मक विवरण

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  10. सागर की लहरों को लगातार आते हुये देखना कवि की कल्पनाओं को रह रह कर उकेरता रहा है । आपकी भी अभिव्यक्ति भी बलवती हो ।

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  11. चिरकुटई बेहद मोहक .........शुभकामना .

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  12. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 13.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
    http://chitthacharcha.blogspot.com/

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  13. कोई कहता है...
    सैर कर दुनिया की गाफ़िल....
    और कोई कहता है...

    मैं हूँ और दिल-ए-नादान है,
    क्या सफ़र है और क्या सामान है !


    वैसे गुलज़ार सा'ब याद आते हैं हर सफ़र के वक्त, इसलिए ही तो मेरे आई पॉड में ठूँस ठूँस के भरे हैं....

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  14. आखिरकार फुर्सत को पकड ही लिया और लिखा डाली चंद बातें, चंद यादें। हम तो एक बार ही भागम भाग में समुद्र किनारे गए थे। आनंद ही नही ले पाए थे। खैर....

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  15. This comment has been removed by the author.

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  16. जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा है की तुम बातें बता भी गयी और ढेर सारी बात छुपा भी गयी. मसलन

    "तेज़ गर्मी में लहकती हुयी बोगनविलिया की खूबसूरती को बयां करने के लिए शब्द नहीं है.."

    अब बताओ इसे शब्द तुम नहीं दोगी तो और कौन देगा ?

    लिख के तो देखो तुम ऐसा कर सकती हो



    ... बहरहाल तुम्हारे आँखों देका हाल पढ़ कर हम भी सैर कर आये... पर देखना कहीं समंदर गिर ना पड़े ज़मीन पे....

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  17. महाबलीपुरम का समन्दर भी सुन्दर है ।

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  18. ऐसा ही कुछ अनुभव था जब दो साल पहले गोवा गए थे...इसका ठीक उलट अनुभव था अभी कुछ दिन पहले मुंबई के जुहू बीच पर जाना! लहरों के साथ ढेर सारी बदबू और बार बार पैरों में लिपटती पौलिथिन...

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  19. चिरकुटई तो जबरदस्त रही......पर अच्छा किया जो झोपड़ी नहीं उठा लाईं....बेचारे गरीबों का क्या होता....और नहीं तो हम सब झोपड़ी में ही रहने जाएंगे...हा हा हा हा

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  20. रात के सन्नाटे मे समन्दर की आवाजे सुनी? कोई sea music सुनाती है वो..

    टैन वाली बात पसन्द आयी :) ’वो’ ब्लाग पढता है तुम्हारा.. :P ..कुछ गालिया खाने का इन्तज़ाम तो तुमने कर लिया है :D

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