16 December, 2009

मेरे गिटार का इतिहास :)

तकरीबन सात आठ साल के खुराफाती हुआ करते थे हम उन दिनों...मेरी मम्मी का गिटार जब पहली बार हाथ में आया था। मम्मी ने बड़े शौक से गिटार सीखा था, बहुत अच्छा बजाती थी, पर मेरा जन्म होने के बाद गिटार बेचारा किसी कोने में उपेक्षित हो गया था। अब घर पर हमारी डफली पर कोई और ही राग चल रहा होता तो मम्मी को क्या बजाने का टाइम मिलता होगा ये हम सोच ही सकते हैं, लिख नहीं सकते। खैर...जब घर वालों को लगा कि हम थोड़े समझदार हो गए होंगे तो बेचारा गिटार अपने खोल से बाहर आया। बस उसका दिखना था कि हम टूट पड़े, पिछले जनम का बचा हुआ शायद एक ही दिन बजाने का भूत चढ़ा होगा। दिन में कुछ पांच छह घंटे टिन्गटिन्गा दिए। मन में तो जरूर सोचा होगा की हमसे अच्छा कोई बजा ही नहीं सकता। खैर...अगली सुबह इस अकस्मात् गिटार अतिक्रमण/आक्रमण के कारण हमारा हाथ सूज गया।

चढ़ी नस नकचढ़ी होती है ये किस्सा तो आप हमसे सुन ही चुके हैं...कुछ कुछ उसी मर्ज पर ये हुआ था। उस वक़्त हम देवघर में रहते थे और दो दिनों में एक्साम था, वहां जो डॉक्टर थे उनको दिखाया गया, सिकाई और iodex तो चल ही रहा था, पर सूजन उतरने का नाम ना ले...और ना दर्द गया। वो मेरी जिंदगी का एकलौता एक्साम था जो मैंने किसी और से लिखवाया था...दर दिन भर होता ही रहता था हल्का हल्का। बहुत दिन में जब दर्द नहीं उतरा तो मेरी क्लास टीचर ने एक नस उतारने वाले के पास भेजा। देवघर बस स्टैंड के पास था वो, और शायद यही एकलौता काम करता था...उसने हाथ पकड़ के थोड़ा सा दबाया कुछ दो मिनट तक और दर्द रुक गया। सूजन भी रात भर में दूर हो गयी।

हाथ कि मुसीबत से तो छुटकारा मिल गया पर गिटार फिर दोबारा नहीं मिला कई सालों तक। पटना में जिस स्कूल में पढ़ती थी उसके रास्ते पर एक गिटार की दुकान थी, दो साल तक रोज स्कूल आते जाते मैं देखा करती थी, एक खूबसूरत सा काला गिटार टंगा हुआ था वहां। कॉलेज फर्स्ट इयर में वो गिटार पापा ने खरीद दिया था...उस वक़्त फिर इतना काम रहता था कॉलेज का कि सीखने का टाइम ही नहीं मिला। दिल्ली में भी यहीं हाल रहा।

अब जब बंगलोर में जिंदगी थोड़ी धीमी रफ़्तार से गुजर रही है, हमने सोचा कि अब नहीं तो कभी नहीं। और जा के गिटार स्कूल ज्वाइन किया। दो महीने होने को आये...थोड़ा बहुत समझ में आ रहा है अब। पर इस बुढ़ापे में कुछ सीखने में बड़ी आफत होती है। कुछ भीं आया सीखना बड़ी मेहनत का काम होता है, और कोई शोर्ट कट तो होता नहीं। इतने दिनों में क्या सीखा?

शोर के नए नए आयाम समझ में आये पहली बार। एक छोटे से कमरे में तकरीबन २५ लोग, पच्चीस तरह की चीज़ें बजा रहे हैं अपने अपने गिटार पर। क्लास ख़त्म होने के बाद भी दिमागमें सुरों की उथल पुथल जारी रहती है। कई बार लगता है कि मेरी तथाकथित लम्बी उँगलियाँ सच में बहुत छोटी हैं, तभी तो तारों को बजाने में हालत ख़राब हो जाती है।

गिटार सीखने से ज्यादा मज़ा फोकस मारने में आता है :) तभी तो दुनिया तो बता दिए हैं, कि सीख रहे हैं। यही बोलते हैं कि इस उम्र में क्या सूझी , वैसे भी अब किसी को पटाना तो है नहीं ;) तो हम अपने मन की शांति के लिए अपने जीवन की शांति भंग कर रहे हैं। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आजकल मेरे पडोसी मुझे कुछ अजीब निगाहों से देखते हैं...पर हम बिलकुल आम इंसानों टाइप उनको देख कर मुस्कुराते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। मुझे लगता है जल्दी ही कुछ आस पड़ोस के लोग घर खाली करने वाले हैं। किसी को इधर घर चाहिए तो बता दें :) पड़ोसी का म्यूजिक फ्री मिलेगा इधर :)

कुछ छह महीनों में काम चलाऊ बजने लायक आ जाएगा ऐसा अंदेशा है :) तब तक आप लोग आराम से बिना लैपटॉप को म्यूट किये मेरा ब्लॉग खोल सकते हैं :)

उत्साह बढ़ने वाली टिप्पणियों का स्वागत है :) कृपया डराने वाली टिप्पणी ना करें :D

13 December, 2009

लौट के आ जाएँ कुछ दिन बीते

बंगलौर में पढ़ने लगी है हलकी सी ठंढ
कोहरे को तलाशती हैं आँखें
मेरी दिल्ली, तुम बड़ी याद आती हो

पुरानी हो गई सड़कों पर भी
नहीं मिलता है कोई ठौर
नहीं टकराती है अचानक से
कोई भटकी हुयी कविता
किसी पहाड़ी पर से नहीं डूबता है सूरज

पार्थसारथी एक जगह का नाम नहीं
इश्क पर लिखी एक किताब है
जिसका एक एक वाक्य जबानी याद है
जिन्होंने कभी भी उसे पढ़ा हो

धुले और तह किए गर्म कपड़ों के साथ रखी
नैप्थालीन है दिल्ली की याद
सहेजे हुयी हूँ मैं, फ़िर जाने पर काम आने के लिए

जेएनयू पर लिखे सारे ब्लॉग
इत्तिफाकन पढ़ जाती हूँ
और सोचती हूँ की उनके लेखकों को
क्या मैंने कभी सच में देखा था
किसी ढाबे पर, लाइब्रेरी में...

मुझे चाहिए बहुत से कान के झुमके
कुरते बहुत से रंगों में, चूड़ियाँ कांच की
सरोजिनी नगर में वही पुरानी सहेलियां
वही सदियों पुरानी बावली के वीरान पत्थर
इंडिया गेट के सामने मिलता बर्फ का गोला
टेफ्ला की वेज बिरयानी और कोल्ड कॉफ़ी
बहुत बहुत कुछ और...पन्नो में सहेजा हुआ

शायद इतना न हो सके...
ए खुदा, कमसे कम एक हफ्ते का दिल्ली जाने का प्रोग्राम ही बनवा दे!

03 December, 2009

इश्क की सालगिरह

"मुझे तेरी स्माइल सबसे अच्छी लगती है"
"मुझे भी"
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"तू रोज रोज और सुंदर कैसे होती जाती है, बहुत प्यारी लग रही है, नज़र लग जायेगी, इधर आ दाँत काटने दे"
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"मैं मोटी हो गई हूँ क्या?"
"नहीं रे कितनी क्यूट है, टेडी बेअर जैसी, खरगोश क्यूट गालों वाली"

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"सब्जी में नमक ज्यादा है न? हमको लगता है दो बार डाल दिए हैं"
"नहीं रे, झोर में ज्यादा है थोड़ा, पर आलू ठीक है, आलू निकाल के खा रहा हूँ न पराठा के साथ, बहुत अच्छी बनी है"
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"रबड़ी जल गई है रे थोड़ी सी"
"नहीं रे, सोन्हा लग रहा है बहुत अच्छा स्वाद आया है।
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मैंने सीखा:
उसे सबसे ज्यादा प्यार तब उमड़ता है जब मैं अच्छा खाना बनाती हूँ...लोग ऐसे ही नहीं कहते कि दिल तक का रास्ता पेट से होकर जाता है :) [मेरे दिल का रास्ता शायद किसी शौपिंग माल से होकर जाता है]

रात को बालकनी में खड़े होना और कुछ न कहना एक ऐसा अहसास होता है जो शायद बिना महसूस किए समझाया नहीं जा सकता।

रात को झगड़ा करके, रूठ के कभी सोना नहीं चाहिए :) भले देर हो जाए, खूब सारा मन भर झगड़ लेना चाहिए, नींद अच्छी आती है।

खाने में राहर की डाल, भात और आलू की भुजिया से अच्छी चीज़ अभी तक इजाद नहीं हुयी है।

पीने का मजा तभी आता है जब सारे लोग टल्ली होने की औकात रखते हों...जो बेचारा होश में है उसकी हालत अगली सुबह पीने वालों से ख़राब होती है :)

हालांकि सिगरेट से बहुत सी यादें जुड़ी हैं, पर सिगरेट नहीं पीनी चाहिए।

घर में कपड़ों का बटवारा नहीं होना चाहिए, जिसकी इच्छा हो दूसरे की धुली हुयी टी शर्ट मार के पहन सकता है।

जब भी रात को बारिश हो, ड्राईव पर जरूर जाना चाहिए।

कभी कभी ऑफिस बंक कर पिक्चर देखने का मजा ही कुछ और होता है।

नौ से बारह हिन्दी फ़िल्म देखना जाना बेकार है...गोल्ड क्लास में हमेशा नींद आ जाती है :)

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वक्त बहुत जल्दी गुजर जाता है, कभी तो लगता है जैसे जाने कितने दिनों से जानती हूँ तुम्हें, और कभी लगता है कि अभी कल ही तो मिली थी और इतना वक्त गुजर गया मालूम भी नहीं चला।

पहली नज़र का प्यार वाकई होता है, aaj भी सब सुबह सुबह तुम्हें देखती हूँ सबसे पहले, तुमसे प्यार हो जाता है। :)

"हर इंसान को जिंदगी में एक बार प्यार जरूर करना चाहिए, प्यार इंसान को बहुत खूबसूरत बना देता है"

02 December, 2009

बौराए ख्याल


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लड़की
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आजादी हमेशा छलावा ही होती हैं...कितना अजीब सा शब्द होता है उसके लिए...आजाद वो शायद सिर्फ़ मर के ही हो सकती है।
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शादी में बस ownership change होती है, parents की जगह पति होता है। ससुराल के बहुत से लोग होते हैं।
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शादी एक लड़की को किस बेतरह से अकेला कर देती है की वो किसी से कह भी नहीं सकती है। सारे दोस्त पीछे छूट जाते हैं उस एक रिश्ते को बनाने के लिए।
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वो बहुत दिन झगड़ा करती है, बहस करती है अपनी बात रखने की कोशिश करती है...पर एक न एक दिन थक जाती है...चुप हो जाती है...फ़िर शायद मर भी जाती हो...किसे पता।
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एक सोच को जिन्दा रखने के लिए बहुत मेहनत लगती है, बहुत दर्द सहना पड़ता है, फ़िर भी कई ख्याल हमेशा के लिए दफ़न करने पड़ते हैं...उनका खर्चा पानी उसके बस की बात नहीं।
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तुम्हारा सच मेरा दर्द हो जाता है...मेरा सच मेरी जिद के सिवा कुछ नहीं लगता तुम्हें।
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बहुत दिन चलने वाली लड़ाई के बाद किसी की जीत हार से फर्क नहीं पड़ता।
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मेरी हार तुम्हारी जीत कैसे हो सकती है?
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हम थक जाते हैं, एक न एक दिन लड़ते लड़ते...उस दिन एक घर की चाह बच जाती है बस, जहाँ किसी चीज़ को पाने के लिए लड़ना न पड़े, सब कुछ बिना मांगे मिल जाए।
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उससे घर होता है...पर उसका घर नहीं होता...पिता का होता है या पति का।

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जब कभी बहुत लिखने का मन करता है, अक्सर लगता है मैं पागल हो गई हूँ। मेरे हाथों से कलम छीन कर फ़ेंक दी जाए और इन ख्यालों को किसी शोर में गले तक डुबा दिया जाए. मैं अपनी कहानी की नायिका को झकझोर कर उठती हूँ...पर वो महज कुछ वाक्य मेरी तरफ़ फ़ेंक कर चुप हो जाती है...इससे तो बेहतर होता की सवाल होते, कमसे कम कोई जवाब ढूँढने की उम्मीद तो रहती।

01 December, 2009

तुम बिन जीना

बहुत सी नई पुरानी किताबों में
इन्टरनेट पर बिखरे हजारों पन्नो में
घर की कुछ धूल भरी अलमारियों में
गिटार के बेसुरे बजते तारों में
तुम्हारे पहने हुए कुछ कपड़ों में
अटक
अटक के गुजरती रात में
गुजर के ठहरे हुए पिछले तीन साल में

पिछले कुछ दिनों से ढूंढ रही हूँ तुम्हारे हिस्से
सबको एक जगह शब्दों में समेट दूँ
शायद फ़िर चैन से रह सकूं तुम्हारे बगैर कुछ पल

वो लम्हे जब तुम मुझसे दूर होते हो
मुझे सबसे शिद्दत से इस बात का अहसास होता है
कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूँ

मगर मैं इस अहसास के बगैर ही जीना चाहती हूँ
मुझे अकेली छोड़ के मत जाया करो...


आज ये गीत बहुत दिनों बात सुना...बचपन में सुना था कई बार...पापा के टीवी के रिकार्डेड प्रोग्राम से शायद, या फ़िर रेडियो से...यहाँ डाल रही हूँ की फ़िर खोजने की जरूरत न पड़े...ताहिरा sayed का वो बातें तेरी वो फ़साने तेरे...
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