याद वाली सड़कें...जिनपर साथ चले थे
बेतरह तनहा सा लगता है वो मोड़
जहाँ हम मिलते थे हर रात
घर तक साथ जाने के लिए...
हमेशा मैं ही क्यों रह जाती हूँ अकेली
घर के कमरों में तुम्हें ढूंढते हुए
नासमझ उम्मीदों को झिड़की देती
दरवाजे पर बन्दनवार टाँकती हुयी
इंतज़ार के दिन गिनती हुयी
हमेशा मुझसे ही क्यों खफा होते हैं
चाँद, रात, सितारे...पूरी रात
अनदेखे सपनों में उनींदी रहती हूँ
नींद से मिन्नत करते बीत जाते हैं घंटे
सुबह भी उतनी ही दूर होती है जितने तुम
हमेशा तुमसे ही क्यों प्यार कर बैठती हूँ
सारे लम्हे...जब तुम होते हो
सारे लम्हे जब तुम नहीं होते हो
wow
ReplyDeletenice one
lagta hai kisi ne bahut gahri chot di hai...
khair.. khuda kare aap isi tarah likhti rahen...
thanx
sorry!
ReplyDeleteaapki maa wali kavita se mujhe kuchh kuchh gulzaar ki ek poem yaad aa gayi.. ''sarhad paar se''
mera ek friend aksar sunaya karta tha..
haan waise vichar aapke apne hain....
यादों को याद करती हुई अच्छे भाव की रचना।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
लड़की ....वाला गीत डॉ कुंवर बेचैन का है. उनका पता उसी गीत के कमेंट्स में देखें . अजय मलिक
ReplyDeleteajay ji, bahut shukriya...kab se is geet ke lekhak ko dhoondh rahi thi.
ReplyDeletehriday se aabhari hoon.
यदि संभव हो तो hindiforyou.blogspot.com देखें.
ReplyDeleteअजय मलिक
बहुत खूबसूरत.
ReplyDeleteरामराम.
हमेशा मुझसे ही खफा क्यूँ होते हैं :)
ReplyDeleteबहुत अच्छी लिखी है कविता ...भावों से भरी ...
तो जनाब आजकल कहीं गए हुए हैं क्या ...कहीं बहार ...विदेश
हमेशा मेरे हिस्से ही क्यों आती हैं
ReplyDeleteयाद वाली सड़कें...जिनपर साथ चले थे
बेतरह तनहा सा लगता है वो मोड़
जहाँ हम मिलते थे हर रात
घर तक साथ जाने के लिए...
खुबसुरत इन्तजार है ।
pichli 5-6 posts se hamari Puja wapas aa gayi hai :) aap hamesha se pyara aur dil ko chune wala likhti hai :) God bless you keep writing
ReplyDeleteलास्ट की दो लाईन.. मास्टरपीस है..
ReplyDeletebahut saare kyun kaa koi uttar nahin hotaa dost... sunder rachnaa...
ReplyDeleteAapke jazbon ko salaam karta hoon.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
DD india पर आज रात 11.00 से 11.30 के बीच डॉ कुंअर बेचैन के मंच पर 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित सम्मान समारोह की दो तीन मिनट की झलकियाँ देखी जा सकती हैं . उनका पता है- "II एफ-51 नेहरु नगर , गाजियाबाद -201001" तथा उनका मोबाइल नंबर है 09818379422 .
ReplyDeleteajai4all@gmail.com
एक अच्छी कविता !
ReplyDeleteक्यों न हो ? लम्हे की अथ-इति विलयित जो हो गयी है प्रेम-राशि में ।
ReplyDeleteतीव्र संवेदनात्मक रचना । आभार ।
बेहतरीन--उम्दा भावपूर्ण रचना! बधाई ले लो. :)
ReplyDeleteअच्छी कविता दर्द भी और प्यार भी... इंतजार ये चीज़ ही ऐसी है...
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भाव लिये हुए है आपकी ये कविता रूमानी पर दर्दीली ।
ReplyDeleteapne apne hisse ka gam hai, mushkil yeh hai ki us ke hisse ka bhi khud hi jeena padta hai !!
ReplyDeleteek bahut hi achi kavita ..yaade taaza ho rahi hai ....aabhar sweekar karen.
ReplyDeletevijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com
फिराख गोरखपुरी साहब ने कहा हैं "कही वो आके मिटा ना दे ,इंतज़ार का लुत्फ़ कही कूबुल ना हो जाए इल्तज़ा मेरी ....................
ReplyDeleteएक बार फिर अगर समय हो तो www.hindiforyou.blogspot.com देखें.
ReplyDeleteDard itni khubsoorat kavita bhi ban sakta hai...pehli baar jaana.
ReplyDeleteअहा! एक और सुंदर इंतज़ार!
ReplyDeletebahut din ho gaye koi post nahi aayi.
ReplyDeleteनींद से मिन्नत करते बीत जाते हैं घंटे
ReplyDeleteसुबह भी उतनी ही दूर होती है जितने तुम
umda khayal......