हम पाते हैं कि हमारे सबसे सुंदर सुख और हमारे सबसे जानलेवा दुखों का एक सिरा हमारे अतीत में होता है। कई बार हम याद का धागा पकड़े हुए पीछे की ओर चलते जाते हैं अतीत के ठीक उस लम्हे को आइडेंटिफाई कर लेते हैं जहाँ इस दुख या सुख को पहली बार जिया था। लेकिन जब हम अतीत के इस धागे का दूसरा सिरा नहीं ढूँढ पाते हैं तो बेतरह उलझ जाते हैं।
बहुत साल पहले की बात है। छत्तरपुर मंदिर गई थी एक परिचित के साथ। मूर्ति के सामने हाथ जोड़े और वापस लौटने को पलटी कि उन्होंने कन्धा पकड़ के रोका, कि पहले पाँच कदम देवता की ओर से पीठ नहीं फेरते हैं। हमने पाँच कदम उल्टे रखे, मंदिर से बाहर की ओर…यह एक बात मुझे उस समय से कभी बिसरी नहीं।
लेकिन ये बात सिर्फ़ देवता पर नहीं, लोगों पर भी लागू होने लगी धीरे धीरे। जाने कितने कदम तक। गिनती में तो वैसे ही हमारा हाथ थोड़ा तंग है।
हम पीछे की ओर जाते हुए नहीं समझ पाते हैं कि हमें रुकना कहाँ है। जन्म-पार की यात्रा करते हुए हम तलाशते रहते हैं किसी गहरी स्मृति को…कई बार हमारे साथ कोई और व्यक्ति भी इसी तरह उलझा हुआ होता है। कि तुमतक कौन सा रास्ता पहुँचता है…तुम वक़्त के कितने वक़्फ़े और कितने शहर तलाशती आयी हो यूँ इस तरह हमसे मिलने? प्रकाश-वर्ष दूर से? जन्म-पार से? ये दुनिया इतनी बड़ी, हमारा सोलर सिस्टम इतना छोटा सा, आकाश गंगा घूमती हुई…पूरा ब्रह्माण्ड सिमटता और फैलता हुआ। एंट्रॉपी तो यही है न कि किसी चीज़ में रैंडमनेस ही नॉर्मल है…तब तो ये ठीक ही है न कि तुमसे बिछड़ने के लम्हे दिल की धड़कनें रैंडम धड़कती हैं…कभी बहुत तेज़, कभी बहुत धीमे…कि हम एकदम ही बौरा जाते हैं।
तुम्हारे लिए क्या आसान रहा यूँ मेरी हथेली पकड़ के सीने पर रखना, कि देखो ना, दिल कितनी तेज़ धड़क रहा है! वही रैंडम हार्टबीट पासवर्ड हो गई…कि जन्मों के परे आना जाना कर लेते हैं हम उस धड़कन का धागा पकड़ के…हमारे पास लौटने की एक जगह है।
ज़िंदगी में क़िस्सा मुकम्मल तब तक ही लगता है न जब तक आपको इस बात का यक़ीन हो कि समय लीनियर है और हमेशा आप सिर्फ़ आगे की ओर बढ़ेंगे…वन-वे। जैसे ही आपको लगे कि सब कुछ एक वर्तुल है…कि यह सब हो चुका है पहले…कई बार और होगा…यूँ मिलना, बिछड़ना…तलाशना…
तुमसे दुबारा मिल कर समझ आया कि हमको किसी से भी सिर्फ़ एक बार मिलने में इतना डर क्यों लगता है। और कि तुमसे एक बार और मिलना क्यों ज़रूरी था। क्योंकि ग्राफ़ में सीधी लकीर खींचने के लिए दो को-ऑर्डिनेट्स चाहिए होते हैं। इसके बाद हम थोड़ा बहुत तलाश सकते हैं तुम्हें टाइमलाइन पर। फिर कभी भी न मिलो, तो भी चलेगा।
चल जाएगा, लेकिन चलाना मत, ओके?
सच में :) पहली पंक्ति पढ़ते ही मैं भी इस समय सोच रहा हूँ अचरज है क्कया हीं मेरे आसपास भी ? हा हा |
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