24 April, 2015

के भगवान भी सर पीट कर कहता है, 'हे भगवान, क्या करेंगे हम इस लड़की का!'


भगवान बैठा है सामने. हथेली पर ठुड्डी टिकाये.
'लतखोर हो तुम, आँख में नींद भरा हुआ है...खुद तुमको मालूम नहीं है क्या अलाय बलाय लिख रही हो...किरमिच किरमिच लग रहा है आँख में नींद लेकिन सोओगी नहीं. अब क्या लोरी सुनाएं तुमको? भारी बदमाश हो'
'ऑल योर फाल्ट, हमसे पूछ के बनाये हो हमको ऐसा. भुगतो. हुंह'
'तुमसे बक्थोथरी करने का कोई फायदा नहीं हैं और हमको इतना टाइम नहीं है...सीधे सीधे बताओ, अभी चुप चाप सोने का क्या लोगी?'
'उसकी आवाज़?'
'किसकी?'
'अच्छा...रियली...तुम ये सवाल पूछोगे...तुमको तो सब मालूम है'
'बाबू, नारी के मन की बात एंड ऑल दैट...तुमको मज़ाक लगता है...उसमें भी तुम...बाबा रे...ब्रम्हा के बाबूजी भी नहीं जानें कि तुम को क्या चाहिए...सीधे सीधे नाम लो उसका...फिरि फ़ोकट में हम एक ठो वरदान बर्बाद नहीं करेंगे'
'इतने नखरे हैं तो आये काहे हो...जाओ न...कौन सा हमारे फेसबुक पोस्ट से इंद्र का सिंघासन डोलने लगता है'
'अब तुमको क्या क्या एक्सप्लेन करें अभी...कहर मचाये रक्खी हो...सो जाओ बे'
'उसकी आवाज़'
'नाम क्या है उसका'
'वो नहीं बताएँगे'
'ट्रायल एंड एरर?'
'आई एम गेम'
'गेम की बच्ची...तुम्हारे तरह लुक्खा बैठे हैं हम...भोर के तीन बज रहे हैं...नरक का सब छौड़ा लोग फेसबुक खोल के गलगली दिए जा रहा है...न कहीं जाएगा, न खुराफात करेगा...इन्टरनेट का बिल बेसी आएगा सो कौन भरेगा बे'
'तुम्हारी भाषा को क्या हो रहा है...हे भगवान! कैसे बोलने लगे हो आजकल?'
'तुम न...हमको भी सलाह दे मारोगी लड़की...अब जल्दी बताओ क्या जुगाड़ लगायें तुम्हारा?'
'जैसे ब्लैंक चेक होता है वैसे तुम ब्लैंक सिम जैसा कुछ दे दो न हमको...कि हमारा जिसकी आवाज़ सुनने का मन करे...जब भी...हम उसे फोन करें और वो हमेशा मेरा कौल पिक कर ले'
'तुमको अपना जिंदगी कॉम्प्लीकेट करने में कितना मन लगता है. ऐसा कुछ न दे रहे हम तुमको. किसी एक के नाम का कालिंग कार्ड दे सकते हैं. चाहिए?'
'अच्छा चलो...आई विल मैनेज...कार्ड इशु करो'
'नाम?'
'ओफ्फोह...वी आर डेफिनिटली नॉट गोइंग इन दैट लूप अगेन, तुम कार्ड दे दो, हम नाम लिख लेंगे'
'वैलिडिटी कितनी?'
'जिंदगी भर'
'इतना नहीं हो पायेगा'
'कैसे यूजलेस भगवान् हो...चलो कमसे कम दस साल'
'तुम जिन्दा रहोगी दस साल? मर गयी तो? कार्ड कौन यूज करेगा?'
'न न न न...चलो एक साल'
'ओके. एक साल. एक कार्ड. एक आवाज. ठीक है?'
'डन, वो मेरा कॉल उठाएगा न कल?'
'कौन सा कल? तुम्हारे सो के उठ जाने तक उसका आज ही चल रहा होगा'
'ओफ्फोह...तुम जाओ...कार्ड दे दिए न...माथा मत खाओ मेरा'

वो जरा झुकता और कनमोचड़ी दिए जाता है...

'बदमाश, उसको ज्यादा परेशान मत करना'
'नहीं करेंगे. प्रॉमिस'
'ओके. आई लव यू'
'आई नो'
'बहुत बदमाश हो बाबा रे...आई लव यू टू बोलो'
'तुम कहते हो तो कह देते हैं, आई लव यू टू'

और इसके बाद भगवन अंतर्ध्यान हो गए. हम सोच रहे हैं कि सो जायें. और सोच रहे हैं कि कल अगर उसको फोन करेंगे...कल...जो कि उसका आज ही होगा तो क्या वो वाकई फ़ोन उठाएगा...या ये सब सपना था और हम आलरेडी सोये हुए हैं.

9 comments:

  1. वाह...क्या रोचक संवाद है..

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  2. अच्छा लिखा आपने बहुत पसंद आया

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  3. बहुत ही रोचक प्रस्तुति...

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  4. पक्का सुत्तल रही होगी तुम, सपने में लिखी हो क्या?

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  5. ऑल योर फाल्ट, हमसे पूछ के बनाये हो हमको ऐसा. भुगतो. हुंह'
    क्या बात.......

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  6. क्या अलाय बलाय लिख रही हो???
    😉

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