वैसी ही एक दिन लिख देना है डायरी में कि फलाने को आज से चौदह दिन बाद भूल जाना है. बस. अब कोई माई का लाल हमको आज के चौदह दिन बाद याद नहीं दिला पायेगा कि कमबख्त को याद कर के देर रात टेसुआ बहाए थे और भों भों रोये थे कि उसके बिना जिंदगी बेकार है.
मगर फिर कोमल मन कहता है...विस्मृति का विलास सबके जीवन में नहीं लिखा होता प्रिये...याद का ताजमहल बनाने वाले की नियति यही होती है कि एक कोठरी से उसे देख कर बाल्टी बाल्टी आंसू बहाया करे. मैं देख रही हूँ कि मैं लिखना कोमल चाहती हूँ मगर मेरे अन्दर जो दो भाषाएँ पनाह पाती हैं उनमें जंग छिड़ी हुयी है. एक उजड्ड मन चाहता है उसे बिहार की जितनी गालियाँ आती हैं, शुद्ध हिंदी में दे कर अपने मन का सारा बोझ हल्का कर लूं...इतने पर भी मन ना भरे तो कुछ गालियाँ खुद से इन्वेंट कर लूं और दिल के सारे गुबार को निकल जाने दूं...मगर यहीं एक उहापोह की स्थिति सी आ जाती है...कि लिखते हुए चूँकि बचपन से संस्कारी बनाया गया है तो ब्लॉग पर की चिट्ठियां भी 'आदरणीय पूर्व प्रेमी' की तरह ही शुरू होती हैं...भले ही बाद में मन उसमें लिखा जाये कि करमजले तेरे कारण जो मेरी रातों की नींद उड़ी है जिसके कारण मैं ऑफिस देर से गयी और मेरी महीने में तीन दिन की तनख्वाह कटी और जो उसके कारण मेरे को एक हफ्ते दारू पीने को नहीं मिली उसके कारण मैं तुम्हें जो जो न श्राप और गालियों से नवाज़ दूं मगर नारी का ह्रदय...भयानक कोमल होता है. आड़े आ जाता है और उसे काल्पनिक कहानियों में भी विलेन नहीं बनने देता है. अगर मैं बहुत मुश्किल से उसको बाँध बून्ध कर कोई किरदार रच भी देती हूँ तो उसका नाम कुछ और रखना पड़ता है. कुछ ऐसा जिसका उससे दूर दूर तक पाला न पड़ा हो.
मुझे हिंदी और अंग्रेजी, दो भाषाएँ बहुत अच्छी तरह से आती हैं मगर गड़बड़ क्या हो गयी है कि कई बार इस तरह के टुच्चे प्रेम में पड़ने के कारण मेरे पसंद के सारे अलंकरण समाप्त हो चुके हैं. अब इस नए प्रेम से उबरने की खातिर कोई नयी भाषा सीखनी होगी कि प्रेम को भी नए शब्द मिलें या कि विरह को. भाषा का अपना भूगोल होता है...अपनी कहानियां होती हैं. नयी भाषा में नए तरह के अलंकार रचने में सुभीता रहेगा. पिछले कुछ दिनों फ्रेंच भाषा सीखने की कोशिश की थी. उस वक़्त भाषा से प्रेम में थी...फिलहाल प्रेम से बिलकुल उकताई हुयी और नए किसी विषय की तलाश में हूँ. शायद ये देखना भी बेहतर होगा कि प्रेम से इतर भाषा सीखने में मोह होता है कि नहीं. दो भाषाएँ मिल कर नए तरह के बिम्ब बनाती हैं. जैसे दो पूर्व प्रेमियों की याद एक साथ अचानक से आ जाए तो जगहें क्रॉसफेड कर जाती हैं. दिल्ली के कनाट प्लेस में वोल्गा बहने लगती है...विस्की नीट पीने की जगह सोडा की ख्वाहिश होने लगती है या कभी कभी तो इससे भी हौलनाक नतीजे सामने आते हैं. ओरेंज जूस में टकीला मिलाने की इच्छा होने लगती है. गुनी जन जानते हैं कि वोडका और ओरेंज जूस का कोम्बिनेशन दुनिया के विशेषज्ञों द्वारा मान्यता प्राप्त है. कुछ वैसे ही जैसे कुछ तरह के प्रेम को अधिकारिक नाम और सम्मान मिले हैं. हंसिये मत...एक दिन फेसबुक पर स्टेटस तो डाल कर देखिये...१८ साल की सिंगल माल्ट को क्रैनबेरी जूस में मिक्स करके पी रहे हैं...पूरी दुनिया हदास में आ जायेगी. लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं होगा कि देर रात कौन सा गम गलत करने के लिए आप फेसबुक पर मेसेज डाल रहे हैं मगर सिंगल माल्ट की दुर्दशा से आत्मा दुखने लगेगी. उनकी इत्ती बद्दुआयें लगेंगी कि अगले पूरे साल न इन्क्रीमेंट होगा न बोनस मिलेगा. उतनी महँगी दारू खरीदने के लिए तरस जायेंगे आप.
का बताएं बाबू, हमको भाषण मत दो...हम वाकई बहुत सेल्फिश हैं. ई सब प्रेम का ड्रामा इसलिए है कि लिखने लायक जरा मरा मैटेरियल जुगाड़ हो सके. पोलिटिक्स पर लिखना आता तो कहीं जर्नलिस्ट बन कर चिल्लाते रहते 'जनता माफ़ नहीं करेगी'. त्यौहार का मौसम है. सेंटियापे को झाड़ बुहार के बाहर फ़ेंक के आते हैं. ई कोई बेमौसम लिखने का आदत साला. उफ़. वैसे मुहब्बत का मौसम भी तो यही है न? ठंढ का...फिर कोई घपला हुआ है कहीं...ई प्यार में गिरने के मौसम में प्यार से बाहर छलांगना पड़ रहा है. यही सद्बुद्धि मिला है! सफाई में फ्रेंच वाला नोटबुक सब मिला है...जाते हैं तुमको दो चार दो गाली फ्रेंच में लिख जायेंगे और फिर याद में गरियाते हुए कहेंगे Je t'aime जानेमन.
बहरहाल...बहका हुआ मन भाषा से पीने पर ऐसे फिसलता है जैसे धोये हुए सबुनियाये घर पर अनगढ़ गृहणी...नॉन सलीकेदार यु नो? पौधों में कम्पोस्ट डालना है, गमले उठा कर लाने हैं. दिया वगैरह लाना है. इतनी लम्बी लिस्ट है. इसी में लिख लेते हैं. तुम्हारे इस बेरहम, बेमौसम ईश्क़ को हम आज से १५ दिन बाद भूल जायेंगे. तुम्हारी कसम.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 22/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 39 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
aapko padhta hoon aur Aksar sochata hoon ki har baar itna achchha kaise likh lete ho aap!
ReplyDeletehamesha ki tarh umda!