याद रंग का आसमान था
ओस रंग की नाव
नीला रंग खिला था सूरज
नदी किनारे गाँव
तुम चलते पानी में छप छप
दिल मेरा धकधक करता
मन में रटती पूरा ककहरा
फिर भी ध्यान नहीं बँटता
जानम ये सब तेरी गलती
तुमने ही बादल बुलवाये
बारिश में मुझको अटकाया
खुद सरगत होके घर आये
दरवाजे से मेरे दिल तक
पूरे घर में कादो किच किच
चूमंू या चूल्हे में डालूं
तुम्हें देख के हर मन हिचकिच
उसपे तुम्हारी साँसें पागल
मेरा नाम लिये जायें
इनको जरा समझाओ ना तुम
कितना शोर किये जायें
जाहिल ही हो एकदम से तुम
ऐसे कसो न बाँहें उफ़
आग दौड़ने लगी नसों में
ऐसे भरो ना आँहें उफ़
कच्चे आँगन की मिट्टी में
फुसला कर के बातों में
प्यार टूट कर करना तुमसे
बेमौसम बरसातों में
कुछ बोसों सा भीगा भीगा
कुछ बेमौसम की बारिश सा
मुझ सा भोला, तुम सा शातिर
है ईश्क खुदा की साजिश सा
ओस रंग की नाव
नीला रंग खिला था सूरज
नदी किनारे गाँव
तुम चलते पानी में छप छप
दिल मेरा धकधक करता
मन में रटती पूरा ककहरा
फिर भी ध्यान नहीं बँटता
जानम ये सब तेरी गलती
तुमने ही बादल बुलवाये
बारिश में मुझको अटकाया
खुद सरगत होके घर आये
दरवाजे से मेरे दिल तक
पूरे घर में कादो किच किच
चूमंू या चूल्हे में डालूं
तुम्हें देख के हर मन हिचकिच
उसपे तुम्हारी साँसें पागल
मेरा नाम लिये जायें
इनको जरा समझाओ ना तुम
कितना शोर किये जायें
जाहिल ही हो एकदम से तुम
ऐसे कसो न बाँहें उफ़
आग दौड़ने लगी नसों में
ऐसे भरो ना आँहें उफ़
कच्चे आँगन की मिट्टी में
फुसला कर के बातों में
प्यार टूट कर करना तुमसे
बेमौसम बरसातों में
कुछ बोसों सा भीगा भीगा
कुछ बेमौसम की बारिश सा
मुझ सा भोला, तुम सा शातिर
है ईश्क खुदा की साजिश सा
Waah! kya baat !!!
ReplyDeleteSuperlike last two stanzas especially...:-)
जाने वो कहाँ है ़़़
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब
ReplyDeleteवाह, कविता बहती देख अच्छा लगा।
ReplyDeleteकुछ बोसों सा भीगा भीगा
ReplyDeleteकुछ बेमौसम की बारिश सा
मुझ सा भोला, तुम सा शातिर
है ईश्क खुदा की साजिश सा
--वाह
खूबसूरत और कोमल एहसास लिए कविता
ReplyDeleteये साजिश मनमोहक है।
ReplyDeleteसालों पहले ब्लागस्पॉट पर ही 'लहरें' पढ़ना चालू किया था. जो आप चाहते हैं उससे अच्छा दिख जाना भी तकलीफ देता है. तो कई बार फॉलो किया... फिर अनफॉलो. खुद में बुरा लगा.. कई बार ब्लॉग रीडिंग लिस्ट से हटा भी दिया. आज फिर रश्मिप्रभा जी ने फेसबुक पर आपका लिंक टांक दिया..तो फिर...आप बड़ी बुरी तरह से वो ...इतना अच्छा लिखती हैं... कि जो चाहा जा सकता है
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन मोहतरमा।
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