06 April, 2014

समंदर की बाँहों में - डे २- पटाया

रात थी भी क्या? सुबह उठी तो लगा कि कोई सपना देखा है। सपने में बहुत सारा पानी था। समंदर था। डूबता सूरज था। फिर बालकनी में गयी तो दूर तक फैला नीला-हरा समंदर दिखा। ख्वाब नहीं था। नेहा उठ गयी थी। बगल वाले बालकनी से भी आवाज आ रही थी। नेहा ने तब तक मार्क को कौल कर लिया था। जौर्ज और मार्क का रूम हमारे रूम के नीचे वाले फ्लोर पर था। फोन किया तो मार्क  तैयार होकर नाश्ता कर चुका था और कमबख्त ने जौर्ज को उठाया तक नहीं था। हम दोनों पहले बौस को उठाने का शुभ काम निपटाये, कौफी पी थी या नहीं अब याद नहीं। मेरी आवाज अच्छी खासी लाउड है, उस पर नेहा साथ हो तो बस। पूरी बिल्डिंग न उठ गयी गनीमत है।

सब लोग फटाफट रेडी हो कर खाने पहुंच गये। शेरटन का ब्रेकफास्ट बढ़िया था एकदम। आज का प्लान था कोरल आईलैंड जाने का। बस टाईम पर आ गयी थी। लोगों ने शौर्टस वगैरह खरीदीं, कुछ ने टोपी भी लीं। फिर हम स्पीडबोट पर बैठ कर आइलैंड की तरफ चल दिए. समंदर में स्पीडबोट ऐसे चलती है जैसे बैंगलोर की सड़कों पर मेरी बाइक, कसम से क्या स्पीडब्रेकर थे समंदर में. लहर लहर पर उछलती स्पीडबोट। बहुत सारा पानी उड़ता हुआ. नमक का खारा पानी। दूर तक दिखता खूबसूरत समंदर। कैमरा वैगेरह मैंने बैग में ही डाल दिया था. कभी कभी जीना रिकॉर्ड करने से ज्यादा जरूरी और खूबसूरत होता है. बीच समंदर में कहीं एक बड़ी सी बोट पार्क थी. वहाँ पर लोग पैरासेलिंग कर रहे थे. टीम में सबने पैरासेलिंग की. नेहा। जॉर्ज। बग्स। अनिशा। मैंने नहीं की :( वो जो पैराशूट को पानी में डुबाते हैं वो देख कर मेरी जान सूखती है.


वहाँ से आइलैंड के पास एक और बोट पार्क थी. वहाँ आप मछलियों को देखने पानी के अंदर जा सकते थे. मुझे क्लौस्ट्रफ़ोबिया है. बंद जगहों से डर लगता है. उस पर पानी से तो और भी डर लगता है. यहाँ पर दोनों का कॉम्बिनेशन था. एकदम किलर। एक हेलमेट पहनना होता है, जैसे स्पेस ट्रैवेलर पहनते हैं न, वैसा और फिर आप पानी में नीचे चल सकते हैं. कुल मिला कर बीस मिनट का प्रोग्राम था. पहले तो मैंने सोचा नहीं जाउंगी पर देखा कि सब जा रहे हैं. तो बस ज्यादा सोचे बिना भाग के गयी कि मैं भी जाउंगी। इंस्ट्रक्टर ने बताया कि नीचे पानी के दबाव के कारण कान में दर्द हो सकता है, ऐसे में हेलमेट के नीचे से हाथ डाल कर नाक बंद करनी होती है और तेजी से सांस बाहर निकालनी होती है ताकि कान से हवा निकले। ऐसा करने के बाद दर्द बंद हो जाएगा। किसी भी हाल में घबराने की जरूरत नहीं है. लोग आसपास ही रहेंगे। अगर सब ठीक है तो ओके का साइन नहीं तो तर्जनी से ऊपर की ओर इशारा करने पर ऊपर ले कर आ जायेंगे। फिर सबने समझाया कि घबराना मत, सारे मेरे साथ हैं. मेरा सफ़ेद हुआ चेहरा शायद दिख रहा होगा सबको। पानी में पैर डालते ही मेरे होश फाख्ता होने लगे. मगर मैंने खुद को कहा कि मैं कर सकती हूँ. मुझे बस गहरी सांस लेनी है, बाहर छोड़नी है. बस. हेलमेट पहनाया गया तभी लगने लगा कि बड़ी आफत  मोल ली है, मुझसे नहीं होगा। पानी के अंदर बोट की सीढ़ियां उतर कर गहरे पानी में जाना था. कोई बहुत सी सीढ़ियों के बाद इंस्ट्रक्टर ने पैर पकड़ कर नीचे गहराई में खींच लिया। जाने कितने फीट नीचे थे हम पानी में. कानों में बहुत तेज़ दर्द हुआ और बहुत डर लगा. जैसे कि दम घुट रहा है और जान चली जायेगी। इंस्ट्रक्टर बार बार ओके का साइन बना के पूछ रहा था कि सब ठीक है और मुझे कुछ ठीक लग ही नहीं रहा था. जॉर्ज भी सामने, कितनी बार उसने भी ओके का साइन बना के पूछा। मगर मुझे इतनी घबराहट हो रही थी कि लगा जान चली जायेगी। मुझे आज तक उतना डर कभी नहीं लगा था. ऊपर जाने कितना गहरा पानी था. हम पानी में जाने कितनी दूर और कितनी देर तक चलने वाले थे. सब कुछ स्लो मोशन में था। मुझे लगा मुझसे नहीं होगा। मैंने ऊपर जाने का सिग्नल दिया। इंस्ट्रक्टर मुझे लेकर ऊपर आ आया.

जैसे ही पानी से बाहर आयी जान में जान आयी. फिर मालूम चला कि नहीं जाने पर भी जो ढाई हज़ार रुपये लगाए हैं वो वापस नहीं मिलेंगे। फिर ये भी लगा कि डर गयी तो हमेशा डर लगता रहेगा। अपनी बहादुरी का झंडा जहाँ तहां गाड़ते आये हैं यहाँ कैसे हार मान जाएँ। एक बार ये भी लगा कि सब चिढ़ाएगा बहुत। उस वक्त ऑफिस की टीम का कोई भी नहीं था बोट पर, सब लोग नीचे थे पानी में. एक थाई लड़की थी, उसने समझाया कि पांच मिनट में सब नॉर्मल हो जाएगा, बस गहरी सांस लेते रखना...याद रखना कि पानी में सांस लेना भी एक काम होता है. हिम्मत करके चली जाओ. उस वक्त लग रहा था कि इश्क़ के बारे में भी तो ऐसे ही कुछ नेक ख्याल हैं मेरे। फिर जब इतना खतरा वाला तूफानी काम करने में कभी डर नहीं लगा कि तो ये अंडरवाटर वॉक क्या है. मैं कर लूंगी। मैंने कहा कि मैं फिर से अंदर जाना चाहती हूँ. बोट पर जितने क्रू मेंबर थे सबसे खूब तालियां बजा कर मेरा उत्साह बढ़ाया। मैं फिर पानी में उतरी। वापस बहुत सी सीढ़ियां और नीचे। नीचे बग्स और जॉर्ज थे सामने। उनके चेहरे पर 'यु हैव डन इट गर्ल' वाला भाव था. मैंने गहरी गहरी सांसें लीं और जैसा कि इंस्ट्रक्टर ने कहा था चुविंगम चबाती रही. सारा ध्यान सांस लेने पर. थोड़ी देर में सब नॉर्मल लगने लगा. सारे लोग एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए थे. मेरे एक तरफ जॉर्ज और एक तरफ बग्स  था. एक आधी बार लगा कि कहीं बेचारों का हाथ फ्रैक्चर न हो जाए मैंने डर के मारे इतनी जोर से पकड़ रखा था. फिर सामने बहुत सारी मछलियां आयीं। ये किसी बड़े अक्वेरियम में होने जैसा था. सब कुछ एकदम साफ़ दिख रहा था. मछलियां जैसे स्लो मोशन में सामने तैरती थीं. चटक पीले रंग की मछलियां, गहरे नीले रंग की मछलियां, कोरल, सी स्पंज और बहुत सारा कुछ. इंस्ट्रक्टर हमें ब्रेड का एक टुकड़ा देता था हाथ में और मछलियां ठीक आँखों के सामने आकर उसे खाने लगती थीं. मुझे पिरान्हा याद आने लगी थी. हम जाने कितनी देर तक समंदर के अंदर चलते रहे. ये सब सपने जैसा था. सब कुछ एकदम ठहरा हुआ. कोई फ़ास्ट मोवमेंट नहीं। धीमे धीमे चलना। आसपास की खूबसूरती को देखना। महसूसना। जीना।

वक्त ख़त्म हुआ तो हम बोट पर वापस आ गए. सबने शब्बाशी दी कि मैंने डर पर काबू पा लिया। कि मैंने हिम्मत की. डर के आगे जीत है :) फिर हम स्पीडबोट से आइलैंड पर गए. बैग वैग धर कर सारे लोग समंदर की ओर दौड़े। मुझे तैरने का एक स्टेप आता है बस तो मैं बस पानी में चल रही थी. जॉर्ज और नेहा फ्लोट कर रहे थे. उन्हें देख कर मुझे बहुत रश्क हो रहा था कि काश और कुछ भी न आये स्विमिंग करने में बस फ्लोट करना आ जाए किसी तरह. जॉर्ज बहुत अच्छा टीचर है, सिखाने की बात पर एकदम एंथु में आ जाता है. उसने कहा खुद को पानी में छोड़ के देखो, नहीं डूबोगी और कमर भर पानी में कोई डूबता है भला और उसके भी आगे मैं हूँ बचने के लिए. मैंने एक आध बार कोशिश की और हर बार डूबने लगती थी. फिर मुझे लगा कि नहीं होगा मुझसे। सब लोग फिर पानी में नॉर्मल बदमाशी कर रहे थे. तैरना बहुत कम लोगों को आता था. मैं थोडा और गहरे पानी में गयी कि घुटने भर पानी में तो फ्लोट नहीं ही होगा। समंदर एकदम शांत है वहाँ। कोई लहरें नहीं। उसपर पानी गर्म। जैसे गीजर से आ रहा हो. चूँकि बहुत सारे लोग थे आसपास तो डूबने का डर नहीं लग रहा था।  मैंने गहरी सांस ली और रोक ली. खुद को पानी में छोड़ दिया। बाँहें खोल लीं और पैरों के बीच लगभग डेढ़ फुट का फासला बना लिया। मैं पानी में ऊपर थी. एकदम फ्लैट। कान पानी के नीचे थे. पानी का लेवल चेहरे के पास था. बस नाक ऊपर थी पानी में. मैंने आँखें भींच रखी थीं. यकीं नहीं हो रहा था लेकिन आई वाज फ्लोटिंग। मैंने आँखें बंद रखीं और जोर से चीखी 'जॉर्ज आई एम फ्लोटिंग'. इसके थोड़ी देर बाद मैं पानी में वापस खड़ी हो गयी. इतना अच्छा लग रहा था कि क्या बताएं। फिर मैंने देखा कि ऑफिस के सारे लोगों ने नोटिस किया कि मैं वाकई फ्लोट कर रही थी. बस फिर क्या था सारे लोग जॉर्ज के पीछे कि मुझे भी सिखाओ। जॉर्ज ने लगभग सबको फ्लोटिंग सिखायी। कुछ देर बाद तो इतना मजा आ रहा था जैसे फ्लोटिंग क्लास चल रही हो. मैंने अनिशा और प्रदीप को फ्लोटिंग सिखायी। अनिशा ने कर लिया मगर प्रदीप के लिए जॉर्ज की जरूरत पड़ी. वो डूबता तो उसे मैं बचा भी नहीं पाती ;) बेसिकली पानी में सबसे डर सर नीचे करने में लगता है. सब एक बार उस डर से उबर गए तो फ्लोटिंग बहुत आसान है.

मुझे वो पहली बार फ्लोटिंग जिंदगी भर याद रहेगी। पहले बहुत सा शोर था. बहुत से लोग. फिर बाहें फैला कर पानी में पीठ की और हौले से गिरना होता है, ऐसा भरोसा कर के कि कोई है जो बाँहों में थाम लेगा, जैसे समंदर पानी का कोई मखमली गद्दा हो. साँस रोके हुए. फिर पहली सांस छोड़ते हुए महसूस होता है कि सब कुछ शांत हो गया है. कहीं कोई आवाज नहीं है. कहीं कुछ भी नहीं है. बहुत शांति का अनुभव होता है. इस शोर भरी दुनिया में जैसे अचानक से पॉज आ जाता है. पानी चारो तरफ होता है. जैसे समंदर चूम रहा हो. जिस्म का पोर पोर. Its like a giant hug by the sea. समंदर की बाँहों में जैसे बहुत सा सुकून है. जिंदगी भर का सुकून।

श्रीकांत -पैरासेलिंग के बाद
किसी का वापस जाने का मन ही ना करे. मगर लंच का टाइम हो रहा था. वापस तो जाना ही था. सब झख मार के वापस आये. कपड़े बदलने की जगह नहीं थी और वक्त भी नहीं। किसी जगह शायद ४० बाथ (लगभग ८० रुपये) देने थे तो सर्वसम्मति से निर्णय हुआ कि बोट पर चलते हैं. लंच करके होटल चले जायेंगे और वहीं कपड़े बदल लेंगे। मौसम गर्म था तो कपड़े सूख भी जाते। अब मेरी चप्पल ही न मिले। भारी दुखी हुयी मैं. अभी कुछ दिन पहले क्रॉक्स खरीदी थी, ढाई हज़ार की चप्पल का चूना लग गया. बहरहाल हम किनारे लौटे। हमारी बस नहीं आयी थी. धूप के कारण जमीन बहुत तप रही थी और पैर रखना पौसिबल नहीं था।  जॉर्ज ने कहा जब तक बस आती है चलो तुमको चप्पल दिलाता हूँ नहीं तो यहीं भंगड़ा करती रहोगी। हम भागे भागे आये चप्पल लेने। जब जो चाहिए होता है उसके अलावा सब कुछ मिलता है दुनिया में. समुद्र किनारे घड़ी घड़ी लोग चप्पल बेच रहे थे और हम खरीदने चले तो चप्पलचोर सारे नदारद। कुछ दूर जाके फाइनली चप्पल मिली तो हम खरीद के वापस आये. अब ऑफिस के सारे लोग गायब। फोन करो तो कोई फोन न उठाये। मैं, जॉर्ज, रवि और श्रीकांत थे. वहाँ एक मॉल था और सबका वहीं अंदर जाने का प्रोग्राम था. मैंने देखा कि ऊपर फूड कोर्ट है. अब चूँकि ऑफिस में सब तरह के लोग हैं तो मुझे लगा कि लोग फूड कोर्ट ही गए होंगे खाने के लिए कि सबको अपनी पसंद का खाना मिल जाए तो जॉर्ज और मैं ऊपर देखने बढ़े. ऊपर गए तब भी कोई नहीं दिखा और तब तक भूख के मारे जान जाने लगी. तैरने के बाद एक तो वैसे ही किलर भूख लगती है उसपर मुझे भूख बर्दाश्त नहीं होती। हमें एक इन्डियन जगह दिख गयी. वहाँ छोले भटोरे थे. बस हिंदी में आर्डर किया मजे से और एक ग्लास अमरुद का जूस. मेरा बैग चूँकि मेरे पास था तो पैसे, कपड़े सब थे पास में. जब तक खाना आया मैंने चेंज भी कर लिया वाशरूम में जा के. कसम से क्या कातिल छोले भटोरे थे, मैंने आज तक वैसे छोले भटोरे भारत में नहीं खाये कभी. खाना खा रहे थे तो रहमान का कॉल आया जॉर्ज को, वो लोग इसी मॉल में दूसरे फ्लोर के रेस्टोरेंट में खाना खा रहे थे. बस के आने में डेढ़ घंटे का टाइम था. खाना खाते, गप्पें मारते कब वक्त निकल गया मालूम ही नहीं चला. बाकी लोगों का खाना हो गया तो नेहा और बग्स भी ऊपर आ गए. कुछ देर हम सब समंदर निहारते रहे. फ़ोटो खींचते रहे और जाने क्या क्या बतियाते रहे. टीम में मेरे आलावा सिर्फ बाला वेजिटेरियन है. बस में उसको खूब चिढ़ाये कि हम तो छोला भटूरा खाये, तुम क्या खाये ;) ;)

रात को ऐलकजार शो था, बेहतरीन म्यूजिक, कॉस्चुम और सेट डिजाइन। मैंने उतना खूबसूरत शो नहीं देखा है आज तक. सब कुछ बेहतरीन था वहाँ।  फिर समंदर किनारे एक रेस्टोरेंट में खाना। ग्रीन सलाद। वेज आदमी को और क्या मिलेगा। बहुत सी कहानियां कहीं, कुछ सुनीं। थोड़ा भटकी। दिवाकर रास्ता खो गया था उसको उठाये और फिर होटल वापस। हम ऑफिस में जिनके साथ काम करते हैं और घूमने जिनके साथ जाते हैं उनमें कितना अंतर होता है. इतना अच्छा लगा सबको ऐसे जानना। हमेशा किसी नए से बात करना। कोई नया किस्सा सुनना। हिंदी में सवाल करना, तमिल में जवाब सुनना, मलयालम में लोगों का बतियाना। उफ्फ्फ्फ़ ही था बस.

पटाया में आखिरी दिन था. अगले दिन बैंगकॉक के लिए निकलना था. हम स्विमिंग पूल में पैर डाले बैठे रहे. बतियाते। हँसते। दिल भर सा आया था. मुझ सी को ऐसे पूरा का पूरा ऐक्सेप्ट करना थोड़ा मुश्किल है. मेरा शोर. मेरा पागलपन। सब कुछ. मगर सब ऐसे थे जैसे एक बड़ा सा परिवार, जिसमें शामिल होने की कोई शर्त नहीं होती। बहुत अच्छा सा लगा. सुकून सा.
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समंदर था कि आसमान था कि समंदर में पिघलता हुआ आसमान था. जमीन कहाँ ख़त्म होती है आसमान कहाँ शुरू। समंदर से पूछूं उसे मेरा नाम याद रहेगा? सितारे हैं या कि आँखों में यादों का जखीरा।

शुक्रिया जिंदगी। इन मेहरबान दो दिनों के लिए. 

03 April, 2014

अ मैड ट्रिप टु पटाया- डे १

याद से सब कितनी जल्दी फिसलता जाता है.
पिछले वीकेंड हमारा पूरा ऑफिस पटाया गया था, थाईलैंड में एक जगह है 'पटाया' नाम की :)
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याद कितनी जल्दी बिसरने लगती है. लोग. नाम. जगहें। सब.

यहाँ सिर्फ कुछ चीज़ों को सकेर रही हूँ क्यूंकि जिस तरह से भूल रही हूँ सब लगता है कुछ ही दिनों बाद यकीन भी नहीं होगा कि हम गये भी थे. घर से एयरपोर्ट के लिए अनु और अनिशा भी साथ थे. टीम से अधिकतर लोग पहली बार विदेश जा रहे थे. पूरा हंगामे का मूड था सबका। इतनी एनेर्जी थी  कि उससे पूरा एयरपोर्ट चार्ज हो जाता। पतिदेव और सासुमाँ को टाटा बोल कर तीन दिन की छुट्टियों पर निकल गए. मैं आज तक कभी ऐसे ऑफिस ट्रिप पर नहीं गयी थी. पिछले साल हम सबने वाकई जान धुन कर काम किया था उसका रिवार्ड था तो सेन्स ऑफ़ अचीवमेंट भी थी.

ट्रिप की मेरी सबसे फेवरिट फोटो- जॉर्ज
टिकट चूँकि सबकी ग्रुप में बुक थी इसलिए हम अपनी सीट खुद चुन नहीं सकते थे. चेक इन के वक्त सीट नंबर आये तो मेरी और नेहा की सीट साथ में थी. हमने बहुत ढूँढा कि बेचारा और कौन फंसा है हमारे साथ तो पता नहीं चला. प्लेन बोर्ड कर गए तो नेहा, जॉर्ज और हम साथ में सामान ऊपर के कम्पार्टमेंट में रख रहे थे. वो तीसरी सीट प्रियंका की थी. जॉर्ज ने पूछा, कि वो सीट जॉर्ज से बदलना चाहती है कि नहीं तो उसने कहा बिलकुल नहीं, फिर जॉर्ज ने उससे पूछा 'तुम्हें मालूम है तुम्हारी सीट किसके पास है, पूजा के' :) फिर तो हमारे नाम का टेरर कुछ ऐसा है कि उसने एक बार भी कुछ नहीं कहा और सीधे जॉर्ज की सीट पर शिफ्ट हो गयी. मैं और नेहा अकेले अकेले भी कम आफत नहीं हैं मगर एक साथ हम दोनों को झेलना बहुत हिम्मत का काम है. हम और नेहा दोनों साइड की सीट पकड़ के बैठ गए और जॉर्ज को बीच में सैंडविच कर दिया। हम सारे लोग पगलाये हुए थे. रात के एक बजे की फ्लाईट थी लेकिन हम न सोयेंगे न किसी और को सोने देंगे की फिलॉस्फी में यकीन करते हैं. तो पूरे टाइम खुराफात चलती रही कभी सामने वालों की सीट पर तकिया फेंकना, बाकि सोये हुए लोगों को मार पीट के उठाया इत्यादि कार्य हमने पूरी डेडिकेशन के साथ किये। मेरे आसपास की सीट पर किशोर, सतीश, श्रीकांत, प्रदीप और पीछे की सीट पर दिवाकर, अनु, अनिशा, प्रियंका थे. राहिल मेरे से ठीक कोने वाली सीट पर था. एक सतीश के आलावा सारे लोग खुराफाती थे. इन फैक्ट जब आस पास के लोगों को परेशान करके दिल भर जाता था तो हम सारे उठ के दूसरे आइल में चले जाते थे और कुछ और लोगों को जगा देते थे. कोई बेईमानी नहीं, सबको बराबर आफत लगनी चाहिए। We were all high...on life and we were gonna have the time of our lives.

 Tiger zoo- me, bugs, maryam, anu, maya, dhiva, ani
ऑफिस में रहते हुए काम ऐसा रहता है कि बात करने की फुर्सत नहीं मिलती। लगभग दो साल होने को आये लेकिन मैंने कभी जॉर्ज को अपनी लिखी कोई कहानी नहीं सुनायी थी. सोने टाइम कहानी सुनना अच्छा भी लगता है. मैंने उसे तीन कहानियां सुनायीं। मजे की बात ये थी कि मैं कहानी सुना रही हूँ और वो मुझे बताता जा रहा है कि इसे ऐसे शूट कर सकते हैं, ये वाली चीज़ बहुत अच्छी लगेगी और मैं हल्ला कर रही थी कि ध्यान से कहानी सुनो न आप अपनी ही पिक्चर बनाने लगते हो. उसने बोला कि मेरी कहानियां ऐसी होती हैं, सुन कर सब कुछ दिखने लगता है आँखों के सामने। फिर मैंने कहा कि काश आप हिंदी में मेरी कहानी पढ़ पाते क्यूंकि सुनाने में सिर्फ प्लाट रह पाता  है. मगर उसे मेरी कहानियां बहुत अच्छी लगीं। मुझे भी अच्छा लगा क्यूंकि उसकी राय इम्पोर्टेन्ट थी. बहुत कम लोगों की बात को ध्यान से सुनती हूँ. उसके साथ के इतने वक्त में इतना हुआ है कि उसकी बहुत रेस्पेक्ट करती हूँ. चीज़ों को लेकर उसकी समझ गहरी है ऐसा मैंने देखा है. उसे मेरी कहानियां अच्छी  लग रही थीं तो फिर एक के बाद दूसरी करते हुए चार घंटे बीत गए। मुझे सुनने वाला कोई मिल जाए तो मैं पूरी रात कहानी कह तो सकती ही हूँ :) फिर सामने वाली सीट से कोई तो बोली कि उसे सोना है अब। जॉर्ज ने बोला कि मैं उत्साह में बोलती हूँ तो मेरा वॉल्यूम अपनेआप ऊपर हो जाता है और मुझे मालूम भी नहीं चलता। उसपर प्लेन में कान बंद रहते हैं। एनीवे, आधा घंटा सो लिए इसी बहाने।
जाने क्या तूने कही

पटाया में जाने के लिए बस थी. मुझे सफ़र में भूख प्यास सब बहुत लगती है तो मैं सारा इंतेज़ाम करके रखती हूँ. ऑफिस में मेरी टीम मुझे फेज वैन कैंटीन बुलाती है. इस बार भी रसद का इंतेज़ाम मैंने बैंगलोर एयरपोर्ट पर ही कर लिया था. चिप्स, बिस्किट्स, आइस टी.… सब बेईमानी से बांटे गए जिसके हाथ जो लगा टाइप्स :) वहाँ से निकलते हुए कोई १० बज गए थे. हम कोई तो चिड़ियाघर में रुके और नाश्ता किया। वहाँ पर खाना खाते हुए आप शेर को देख सकते हैं. मुझे जानवरों के साथ ऐसा करना अच्छा नहीं लगता। आगे के प्रोग्राम में शेर और बाकी जानवरों का शो भी था मगर मैं वो देखने नहीं गयी. टीम के और भी बहुत से लोग नहीं गए. क्रिएटिव टीम पूरी की पूरी गप्पी टीम है. हमें कैमरा लेकर भटकना, कहानियां सुनाना और ऐसी ही चीज़ों में ज्यादा मज़ा आता है.


Foot fetish
लंच करके शेरटन होटल पहुँचने में कोई चार बज गए थे. बस में थोड़ी नींद मारी मैंने भी. शेरटन क्या खूबसूरत होटल है, उफ्फफ्फ्फ़। होटल पहुँचते ही सारे लोग क्रैश कर गए अपने अपने कमरों में. अच्छा था कि मेरी रूममेट नेहा थी. हम एक सा सोचने वाले लोग हैं. ट्रिप पर भी कोई सोता है क्या। धाँय धाँय ब्रश किया, नहाये और तैयार। मैंने दो स्विमसूट रखे थे तो फटाफट चेंज करके रेडी हो गए. पूल में सिर्फ हम दोनों ही थे. पूल में पानी हल्का गर्म था, इनफिनिटी पूल, आसपास खूब सारी हरियाली और पास में ही समंदर। नेहा ने बहुत देर तक मुझे थोड़ी बहुत स्विमिंग सिखाने की कोशिश की. इतना अच्छा लग रहा था वहाँ। मुझे पानी बहुत पसंद है. समंदर। नदी. पूल. अब हल्का सा तैरना आता है तो डूबने का डर नहीं लगता। वहाँ फिर मेरी जिद कि समंदर चलो, सनसेट देखना है. नेहा को खींचते हुए ले गयी. तब तक जॉर्ज भी पहुँच गया था. ये मल्लू लोग पानी में मछली की तरह तैरते हैं. सबके घर के पीछे पोखर होता है. बचपन से सबको तैरना आता है. मुझे तैरते हुए लोगों को देख कर बहुत रश्क होता है कि काश मुझे आता. अब जल्दी ही सीख लूंगी। समंदर से वापस स्विमिंग पूल पहुँच गए. जॉर्ज बहुत अच्छा तैराक है और उससे भी अच्छा टीचर, उसने सिंपल टेक्निक्स सिखायीं और फिर नेहा और जॉर्ज दोनों मेरा बहुत उत्साह बढ़ा रहे थे कि मेरी स्पीड बेहतर हो गयी है और मैं बहुत दूर तक जा पाती हूँ. बाकी भी बहुत सारे लोगों को हमने जिद्दी मचा मचा के पूल में उतारा। पानी की लड़ाइयां। यहाँ भी जॉर्ज की टेक्निक थी कि जिससे विरोधी टीम पर अधिक से अधिक पानी उछाला जा सके.
  जानेमन रुममेट

रिश्ते अलग अलग किस्म के होते हैं. नेहा और जॉर्ज के साथ अजीब सा लगता है…पूरा पूरा सा.…जैसे फैमिली पूरी हो गयी हो. जैसे हम तीनों एक दूसरे को बिलोंग करते हैं. सेंटी हो रही हूँ. कुछ दिन में ही चले जाना है इसलिए।

शाम को अवार्ड्स नाइट थी. मेरी टीम को बेस्ट इवेंट का अवार्ड मिला टाइटन स्किन लांच के लिए. अच्छा लगा. मजे की बात ये थी कि पटाया आना का प्रोग्राम इतनी हड़बड़ी में बना था कि सारे अवार्ड्स रेडी नहीं हो पाये थे. तो एक ही अवार्ड था :) अपना अवार्ड ले कर फ़ोटो खिंचा कर वापस कर देना होता था :) फिर वही अवार्ड बाकी विनर को भी दिया जाता था.

वहाँ से निकल के हमारा वाकिंग स्ट्रीट जाने का प्लान बना. पूरा गैंग रेडी- मैं, जॉर्ज, नेहा, अनिशा, अनु, दिवाकर, भगवंत, बाला और साजन। हम होटल से बाहर निकले और टुकटुक पर बैठ गए. ऑफिस के अलावा सबको जानना एक अलग सा अनुभव था. टीम में चुप्पे रहने वाले लोग भी खूब सारी बातें करते हैं, भाषा के बैरियर के बावजूद। कुछ को हिंदी नहीं आती और मैं उनसे हिंदी में बकबक िकये जाती हूँ. वाकिंग स्ट्रीट रात भर जगी रहने वाली, नियोन लाइट्स वाली ऐसी जगह है कि लगता है हैलूसिनेशन हो रहे हों. माहौल ऐसा हो, लोग अच्छे हों तो मुझे पानी चढ़ जाता है ;) हमने घूम घूम कर बहुत सी चीज़ें देखीं जिनको यहाँ लिखना स्कैंडल्स हो जाएगा। हमारी छवि अच्छी है फिलहाल :) लिखने को इतना सारा कुछ मसाला मिला है कि नोवेल लिख सकती हूँ. चुपचाप जैसे पी रही थी अपने इर्दगिर्द का सारा जीवन। कितना अलग, कितना रंगीला और चमक के नीचे कैसे कैसे ज़ख्म छुपे होंगे। दिमाग पैरलेल ट्रैक पर था. कोई रात के एक बजे तक टीम में सब साथ घूमे। सभी रिस्पॉन्सिबल लोग थे. सबने तमीज से दारु पी. किसी को सम्हालने की जरूरत नहीं पड़ी. बाकी लोगों को और भी देर रुकने का मन था, मैं जॉर्ज और साजन वापस लौट आये. कुछ देर गप्पें मारीं और फिर टाटा बाय बाय.

फिर समंदर किनारे चली गयी. होटल की बेंच थी और पूरा खाली समंदर का किनारा। चश्मा नहीं पहना था तो सब धुंधला सा. समंदर का शोर. लहरें। बहुत देर बेंच पर बैठी जाने क्या क्या सोचती रही. जिंदगी। ठहरी हुयी सी. अच्छी सी।  सुकून सा बहुत सारा कुछ.
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बाकी दोनों दिन के किस्से कल। शायद। कभी।

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