आने का वक्त होता है। होना भी चाहिये।
हिरोईन जब उम्मीदों से क्षितिज को देख रही हो...या कि छज्जे से एकदम गिरने वाली हो...या कि म्युजिक डायरेक्टर ने बड़ी मेहनत से आपका इन्ट्रो पीस लिखा है...तमीज कहती है कि आपको ठीक उसी वक्त आना चाहिये म्युजिक फेड इन हो रहा हो...जिन्दगी में कुछ पुण्य किये हों तो हो सकता है आप जब क्लास में एन्ट्री मारें तो गुरुदत्त खुद मौजूद हों और जानलेवा अंदाज में कहें...'जब हम रुकें तो साथ रुके शाम-ए-बेकसी, जब तुम रुको, बहार रुके, चाँदनी भी'...सिग्नेचर ट्यून बजे...और आपको इससे क्या मतलब है कि किसी का दिल टुकड़े टुकड़े हुआ जाता है...आने का वक्त होता है...सही...
मगर जाने का कोई सही वक्त नहीं होता। कभी कभी आप दुनिया को बस इक आखिरी प्रेमपत्र लिख कर विदा कह देना चाहते हैं। बस। कोई गुडबाय नहीं। यूं कि आई तो एनीवे आलवेज हेट गुडबाइज...ना ना गुड बौय्ज नहीं कि कहाँ मिलते है वैसे भी...मिलिट्री युनिफौर्म में ड्रेस्ड छोरे कि देख कर दिल डोला डोला जाये और ठहरने की जिद पकड़ ले। भूरी आँखें...हीरो हौंडा करिज्मा...उफ़्फ टाईप्स। बहरहाल...सुबह के छह बजे नींद खुल जाये, आसमान काला हो...बादलों का हिंट को हल्का सा और तकलीफ सी होती रहे...माने ये हरगिज भी जैज सुनने का टाईम ना हो...मगर किसी एक ट्रैक पर मन अटक जाये तो इसका माने होता है कि मन बस कहीं अटकना चाहता है, उसका कोई ठिकाना नहीं है। अगर जैज कैन आलसो नौट जैज अप योर लाईफ तब तो आप एकदम्मे अनसुधरेबल कंडिशन में आ गये ना। दैट देन इज एक्जैक्टली द टाइम टु मूव औन।
चलना तो है मगर कहाँ...कभी कभी इसका जवाब घर पे नहीं मिलता, सफर में ही मिलता है...किसी शहर पहुंचो तो पता चलता है कि यहीं आना चाहते थे सदियों से मगर ये किसी प्लान का हिस्सा नहीं था...कभी ऐसा भी हुआ है कि शौर्टकट इसलिये मारा कि देर हो रही है मगर रास्ते में कोई ऐसा शख्स मिल गया जिसके बारे में सोच तो कई दिन से रहे थे लेकिन उसे कभी फोन तक नहीं करेंगे...ऐसे ही का जिद। उससे बतियाते ये भी भूल गये कि देर कौन चीज में हो रहा था और कि औफिस जा के ऐसा कौन सा तीर मार लेंगे कि सब कुछ भुतला के जान दिये हुये हैं...सोना नहीं, खाना नहीं...टाईम कहाँ बच पाता है...ऐसे में मैं कहां बच पा रही हूं...हर समय हड़बड़ी...उसपर हम स्लो आदमी... ताड़ाताड़ी काम नहीं होता है हमसे। हमको छोड़ दो चैन से...मूड के हिसाब से काम करने दो। जैसे अभी मन करता है लालबाग में उ जो टीला है उसपर बैठें थोड़ी देर...कुछ अलाय बलाय शूट करें...कुछ नै तो हिमानी और नैन्सी को लंबा लंबा चिठ्ठी लिखे मारें।
पापा से बात कर रहे थे। पापा बहुत सुलझे हुये हैं हर चीज में लेकिन उनको समझ नहीं आता है कि मेरी बेचैनी का सबब क्या है...मैं सब छोड़ कर कहां चली जाना चाहती हूं, क्या करना चाहती हूं...कैसे करना चाहती हूं...जो कर रही हूं उसमें क्या बुरा है। मैं पापा को बता नहीं पाती क्युंकि मुझे खुद ही नहीं पता कि मुझे क्या करना है...बस इतना पता है कि जब कुछ अच्छा न लगने लगे, रास्ता बदल लेना है...ये रास्ता कहां को जायेगा मालूम नहीं...वी विल क्रौस दैट ब्रिज व्हेन वी कम टु इट।
पता है मुझे क्या अच्छा लगता है? मुझे कलम से लिखना अच्छा लगता है, मेरे पास एक ही ब्रांड के सारे पेन हैं, इंक पेन...और बहुत सारे रंग की इंक...मुझे कागज़ पर लिख कर तस्वीरें खींचना अच्छा लगता है पर मुझे मेरी पसंदीदा तस्वीर के लिये जितना वक्त चाहिये होता है कभी मिलता नहीं है...कभी धूप चली जाती है कभी मूड। वक्त कम पड़ जाता है हमेशा।
जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो...मौसम खुशनुमा हो...खिड़की से नीला आसमान दिखे...मनीप्लांट मुस्कुराये...धूप अपने मन मुताबिक लगे, सुबह गुनगुनाने का दिल करे...चले जाने का ये सबसे मुनासिब वक्त है। थोड़ी देर और रहने की कसक रहे...चले जाने पर मीठा मीठा अफसोस रहे, जाने वाले को भी और पीछे छूट जाने वाले को भी। जब जाना उदास कर जाये थोड़ा सा, बस वही...एकदम पर्फेक्ट है...टाईम टु मूव औन।
जब सब कुछ अच्छा चल रहा हो...मौसम खुशनुमा हो...खिड़की से नीला आसमान दिखे...मनीप्लांट मुस्कुराये...धूप अपने मन मुताबिक लगे, सुबह गुनगुनाने का दिल करे...चले जाने का ये सबसे मुनासिब वक्त है। थोड़ी देर और रहने की कसक रहे...चले जाने पर मीठा मीठा अफसोस रहे, जाने वाले को भी और पीछे छूट जाने वाले को भी। जब जाना उदास कर जाये थोड़ा सा, बस वही...एकदम पर्फेक्ट है...टाईम टु मूव औन।
ReplyDeleteऐसा लगा कि कालिदासमयी उपमाओं को नये अंदाज में पढ़ रहे हों..बहुत खूब
मन हमारे अन्दर नहीं, कहीं बाहर खड़ा है, मायावी है, हमें बुलाता है और हम चल भी देते हैं। बहुधा तो भरमाता है, पर कभी न कभी वहाँ पहुँचा भी देता है जहाँ हम सदा से जाना चाहते थे।
ReplyDeleteअदभुत उपमाए।
ReplyDeleteजानते हैं जब आप ये यूप़ी बिहार वाली भाषा में लिखते हैं ना तो चार चाँद लग जाते हैं लिखे में।मुझे लगता है कि ज्यादा साहित्यिक भाषा मन तक उतना नहीं पहुँच पाती जितना की आंचलिक भाषा।
चकाचक है.मन की करने की तमन्ना बनी रहे.
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