साइकिल एक टाइम मशीन है...पैडल पर पाँव पड़ते हैं तो आसपास का सारा दृश्य भूतकाल में परिवर्तित होने लगता है. जैसे जैसे उसके पहिये घूमते हैं समय का चक्र भी उल्टा घूमने लगता है. साइकिल चलाते हुए अचानक से दुनिया एकदम खामोश पड़ने लगती है और कुछ आवाजें ज्यादा स्पष्ट सुनाई देने लगती हैं. बचपन के नाम याद आने लगते हैं. देर रात साइकिल चलाते हुए हमेशा घर पहुँच कर पड़ने वाली डांट का शुबहा साइकिल कैरियर में बंध जाता है. शहर में हवा तेज़ी से चलती है...लड़की को अपना घर याद आता है जहाँ उसने बचपन में साइकिल सीखी थी. ऐसी ही तीखी ढलान वाली सड़क हुआ करती थी.
लगभग दस साल हो गए हैं जबसे उसने आखिरी बार साइकिल को हाथ लगाया है. नयी साइकिल है, शुरू शुरू में चलाने में दिक्कत हुयी है मगर फिर आदत सी पड़ने लगी है. साइकिल चलाना आप एक बार सीख कर कभी नहीं भूल सकते हैं ऐसा किसी ने कहा था. उसे ठीक ठीक याद नहीं कि साइकिल खरीदने का मन क्यूँ किया...शायद ऑफिस जाने के लिए या फिर ऐसे ही. रोज़ रात का रूटीन सा बन गया है...ऑफिस से घर जाना...कार पार्क करना...ऊपर जा कर लैपटॉप और बाकी सामान रखना. स्पोर्ट्स शूज पहनना और सब्जी लाने के लिए निकलना. सब्जियां फ्रिज में रख कर बोतल में पानी भरना. एक ऊँची पोनीटेल बनाना...डियो स्प्रे करना, घड़ी बदलना. आईने में खुद को देखना. आईने में हर बार कोई १२ साल की लड़की क्यूँ दिखती है?
मोहल्ले में एक तीखी ढलान वाली सड़क है. रिहाइशी इलाका है तो रात को बहुत कम गाड़ियां आती जाती हैं, कभी कभार कोई कार या मोटरसाइकिल गुज़रती है. लोग नौ बजे तक तो टहलते दिख जाते हैं मगर उसके बाद सड़कें सुनसान होने लगती हैं...घरों का शोर भी म्यूट पर चला जाता है. जैसा कि देश के हर मोहल्ले में होता है, कुछ स्ट्रीटलैम्प्स फ्यूज रहते हैं तो उन टुकड़ों पर अँधेरा रहता है. माहौल को अलग अलग तरीके से इंटरप्रेट किया जा सकता है मनोदशा के मुताबिक. कुछ लोगों को डर भी लग सकता है. लेकिन जैसा कि मेरी कहानी के किरदारों के साथ अक्सर होता है...लड़की को डर नहीं लगता है.
कमोबेश हर घर के आगे एक दरबान ऊँघता दिखता है. देर रात कुछ लोग कुत्तों को टहलाते हुए भी दिख जाते हैं. लड़की को कुत्ते कभी पसंद नहीं आते. यही वक्त सड़क के आवारा कुत्तों के जमीनी संघर्ष का भी होता है. वे अपना अपना इलाका निर्धारित करते रहते हैं. ऐसे में अक्सर किसी एक कुत्ते के खदेड़े जाने की गवाह भी बनना होता है लड़की को. कुछ कुत्ते सड़क पर निर्विकार पड़े रहते हैं...दुनिया से दया की आखिरी उम्मीद उन्हें ही है.
रात की अपनी गंध होती है. अलग अलग फूलों की गंध झोंके के साथ आती है जब वो उन घरों के आसपास से गुज़रती है. इतने दिनों में उसे याद हो आया है कि किस घर के पास से रातरानी की गंध आती है, कहाँ गंधराज खिलता है और कहाँ मालती की उदास गंध उसे छूने को पीछे भागती है. साइकिल के हर चक्कर के साथ खुशबुएं बदलती रहती है...हर बार जब लड़की उन खुशबूदार घरों के आसपास से गुज़रती है तो खुशबू की एक तह उसके ऊपर लगती जाती है...गंध का अपना मनोविज्ञान और रसायनशास्त्र होता है. वो जब घर से चलती है कोई और होती है मगर कोई घंटे डेढ़ घंटे बाद वो कोई और होने लगती है. लड़की का इत्र हवाओं में बिखरने लगता है...वो थोड़ी थोड़ी घुलने लगती है...साइकिल के हर राउंड के साथ.
तीखी ढलान पर उतरते हुए लड़की साइकिल लहराती हुयी चलती है...हैंडिल को तीखे झटके देती है...जैसे साइकिल न चलाती है नृत्य कर रही हो...यक़ीनन गुज़रते हर सेकण्ड के साथ वो रिदम में होती है. साइकिल के हैंडल के दो लेवल हैं...ऊपर का लेवल वो ऐसे थामती है जैसे बॉल डांसिंग करने के लिए अपने पार्टनर के कंधे पर हाथ रखा हो...बेहद हलके. आधी ढलान आते वो दोनों हाथ छोड़ देती है जैसे लड़के ने ट्वर्ल किया हो उसे और वो एक पूरा गोल चक्कर काट कर वापस उसकी बाँहों में आएगी. ढलान की आखिर में एक स्पीडब्रेकर है जहाँ से वो दायें मुड़ती है और जाहिर तौर से मुड़ने के पहले ब्रेक नहीं लगाती है. अगर आपने बॉल डांस देखा है तो जानते होंगे कि उसके एक स्टेप में लड़का अपनी पार्टनर को लगभग जमीन तक झुका कर वापस खींचता है...ये कुछ वैसा ही होता है...मुड़ते हुए वो पैंतालीस डिग्री का कोण बना कर झुकती है...साइकिल का कलेजा मुंह को आता है कि नहीं मालूम नहीं पर सड़क जरूर उसके सरफिरेपन पर परेशान हो जाती है.
चढ़ाई के अंत में दो लैम्पपोस्ट हैं. एक की लाईट किसी उदास दिन बारिश की मार खा कर ऐसे उदास हुयी कि फिर नहीं जली...दूसरे छोर पर उसे मुंह चिढ़ाता सौतेला लैम्पपोस्ट है. लड़की बारी बारी से इन दोनों के नीचे रुकती है. साइकिल के कैरियर से पानी की बोतल को आज़ाद करती है और सांसों को काबू में करती हुयी घूँट घूँट पानी पीती है. पसीने से भीगा उसका चेहरा लैम्प की पीली रौशनी में अजीब खूबसूरत दिखता है. देखने वाले को ऐसा लग सकता है कि लैम्प से हुस्न की बारिश हो रही है, इस लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी कोई भी लड़की सुन्दर लगेगी...मगर ऐसे देर रात तीखी ढलान पर साइकिल चलाने वाली लड़की पहले आये तो सही...फिर वहाँ लैम्पपोस्ट के नीचे रुके तो सही. ऐसे हसीन वाकये जिंदगी में कम होते जा रहे हैं.
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एक खुशनुमा सी रात थी. चाँद का पहला कतरा आसमान में हाजिरी लगा रहा था. लैम्पोस्ट की रौशनी थी...चार लड़के खाना खाने के बाद सिगरेट खरीदने निकले थे. तेरा मेरा करके सिगरेट का स्टॉक खत्म हो गया था, वीकेंड की बची हुयी बियर भी खत्म थी. चलते हुए डिसाइड हुआ कि बियर भी खरीद ली जाए. ऑफिस में साथ काम करती लड़कियों के नाम से एक दूसरे को चिढ़ाते वो बीच सड़क पर चल रहे थे कि घंटी की आवाज़ से अचानक साइड होना पड़ा. गाली देने के लिए मुंह खोला ही था कि सन्न से वो साइकिल आगे निकल गयी. साइकिल पर एक लड़की थी...टी शर्ट के ऊपर झूलती पोनीटेल और जींस. उम्र का अंदाजा करना मुश्किल था मगर पीछे से अच्छी लगी. चारों की बातों का रुख लड़की की ओर मुड़ गया. पहले कभी तो नहीं दिखी थी इधर...शायद नयी आई है मोहल्ले में. जाने शहर में भी.
जितनी देर में वे टहलते हुए सड़क के मोड़ पर पहुंचे लड़की चार बार राउंड लगा चुकी थी जिसमें तीन बार लैम्प पोस्ट के नीचे रुक कर उसने पानी पिया था. बातों बातों में लड़कों में शर्त लग गयी कि लड़की से बात करके दिखाओ. तीन बार रुकी है, चौथी बार भी रुकेगी ही...जिसने बात कर ली उसके बियर के पैसे बाकी लोग देंगे. फिर लगा कि चारों लड़के अगर उसी मोड़ पर खड़े रहे तो शायद वो रुके न...इसलिए दो लड़कों ने हिम्मत की. ऊपर ऊपर वे दिखा रहे थे जैसे बहुत साधारण सी बात है मगर ऐसे लड़की को टोक कर कुछ बोलने में उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि बात कैसे शुरू की जाए. हीरो बनकर आगे तो आ गए थे पर लेकिन लड़की अगर एक बार तेज आवाज़ में डांट भी देती तो इज्ज़त में पलीता लग जाना था.
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'एक्सक्यूज मी'
'यस'
'कैन यू टेल अस व्हेयर सेवंथ मेन इज?'
'सेवंथ मेन....अम्म्म्म....'
लड़की ने पानी का पहला ही घूँट लिया था...चढ़ाई में साइकिल चलाने के कारण उसकी सांसें तेज चल रही थीं...गला सूख रहा था...उसने एक घूंट पानी पिया...अपने दायीं ओर दिखाते हुयी बोली....
'सेवंथ मेन इज पैरलल टू दिस रोड.'
उसे संयत होने का वक्त नहीं मिला था, बोलना भी मुश्किल हो रहा था.
'रिलैक्स...रिलैक्स' लड़के को लगा शायद उनके सवाल पूछने से वो हडबड़ा गयी है...
'अपहिल साइक्लिंग' और लड़की ने थोड़ा और पानी पिया.
'हिंदी...इंग्लिश?'
'हिंदी चलेगा'
'कहाँ से हो?'
'बिहार से' लड़की कुछ और जोड़ना चाहती थी जैसे कि इतनी रात गए ऐसे काम बिहारी ही करते हैं या ऐसा कुछ...मगर उसके कहने का टोन अक्खड़ सा था और वैसा ही कुछ कह चुका था.
'यहाँ कैसे आई?'
'उड़ कर' लड़की हँस पड़ी...
'उड़ कर क्यूँ?'
'बिहार बहुत दूर है न...साइकिल से तो आ नहीं सकती थी'
'सेवेंथ मेन इधर से पैरलल वाली सड़क है, दायें से बाएं दिसेंडिंग आर्डर में...ट्वेलफ्थ मेन और इधर सिक्स्थ मेन' लड़की हाथ के इशारे से समझा रही थी.
'यहाँ क्या कर रही हो?'
'तुमने आखिरी बार किसी लड़की से ऐसे टोक कर बात कब की थी?'
'याद नहीं'
'पता है, बिहार में होते तो अभी तक थप्पड़ खा चुके होते, जनता अलग आ जाती पीटने के लिए, सरे राह लड़की छेड़ रहे हो'
'लेकिन बिहार में हैं नहीं न', लड़का थोड़ा सा झेंप गया था.
'तुम्हें डर नहीं लगा?'
'किस चीज़ का डर?'
'भूत होती तो? मम्मी ने बचपन में सिखाया नहीं कि रात-बेरात अकेली लड़की देख कर टोकना नहीं चाहिए'
लड़का एक मिनट चुप...नीचे सर करके सोच रहा है कि जवाब क्या दे...लड़की अपने जूते दिखाते हुए कहती है 'स्पोर्ट्स शूज हैं...पैर उलटे हुए तो पता भी नहीं चलेंगे[बिहार की किम्वदंतियों के हिसाब से चुड़ैल के पैर उलटे होते हैं]
लड़का अब भी सकपकाया हुआ खड़ा था. लड़की ने ही हँसते हुए शुरुआत की...
'घबराओ नहीं, भूत हूँ...चुड़ैल नहीं. खून नहीं पियूंगी तुम्हारा'
इतने में दोनों लड़के एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे कि अब चलने का वक्त आ गया कि इससे थोड़ी देर और बात की जा सकती है...लड़की या भूत जो भी थी...उसके पास रहते हुए डर तो एकदम नहीं लग रहा था. अच्छा लग रहा था. जैसे अपनी हमउम्र लड़की से बात करते हुए लगता.
'अच्छा चलो जाने दो, ये बताओ कि इधर क्या कर रहे थे. हम सेवेंथ मेन में खड़े हैं, ऑन सेकण्ड थौट्स तुम लोग ठीक सेवेंथ मेन के बोर्ड से टहलते हुए यहाँ आये हो मुझसे सेवेंथ मेन का पता पूछने. रात के ग्यारह बजे पैदल रास्ता भटके हुए तो लगते नहीं हो, कहाँ जा रहे थे?'
'दूध खत्म हो गया था, चाय पीने निकले थे' सफ़ेद झूठ बोल गया लड़का.
'सिगरेट पीते हो?'
'हाँ'
'दो...'
'अभी नहीं है...दरअसल सिगरेट ही लेने निकले थे, घर पर भी खत्म हो गयी है, बाकी दोस्त पनवाड़ी की दुकान पर इन्तेज़ार कर रहे हैं'
'कितने की शर्त लगायी थी?'
'कैफे कॉफी डे में कॉफी की'
'झूठ अच्छा नहीं बोलते हो...लड़की के सामने तो और भी बुरा'
'हाँ मेरी माँ...बीयर की शर्त लगी थी, तुम तो पीछे ही पड़ गयी'
'रास्ता रोक कर रास्ता पूछो तुम...और पीछे पड़ गयी मैं, कमाल करते हो!'
किसी ने ध्यान नहीं दिया था पर बात करते करते वे चलने लगे थे और अब दूसरा मोड़ सामने खड़ा था...यहाँ से दायें परचून की दूकान थी और बाएं लड़की का नोर्मल रास्ता जिस पर वो शाम से साइकिल चला रही थी.
'अनन्या' लड़की ने हाथ बढाते हुए कहा...
'क्या?'
'अनन्या...मेरा नाम है'
'ओह...अच्छा...मेरा नाम तरुण है और ये मेरा दोस्त है विकास, आगे परचून की दूकान पर दो और नमूने खड़े हैं सुनील और अमित, आज मिलोगी या अगले इंस्टालमेंट में?'
'तुम्हारे घर क्या रोज रोज सिगरेट खतम होती है?'
'अक्सर हो जाती है फिर इधर ही रहते हैं तो कभी न कभी तो मिलोगी ही...उनसे भी आज न कल टकराना ही है...तो आज ही निपटा दें क्या?'
'नहीं रहने दो...आज के लिए तुम काफी हो'
फिर वो उड़नपरी अपनी साइकिल पर उड़नछू हो गयी.
कहना न होगा कि शर्त जीतने की खुशी में उस रात फ्लैट में बीयर की नदियाँ बह रही थीं...तरुण को कंधे पर उठा कर नारे लगाए गए और आखिर में नशे में डूबे बाकी तीनो लड़कों ने कागज़ पर लिख कर क़ुबूल किया कि तू सबमें सबसे बड़ा हीरो है...या ऐसा ही कुछ.
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इसके बाद लगभग रोज का नियम हो गया...रात का खाना खा कर तरुण को रोज बाहर टहलने जाना ही होता था. साथ में कभी विकास तो कभी सुनील या अमित होते और कोई आधा घंटा बतियाते हुए परचून की दूकान तक जाते और वहाँ से फिर अनन्या अपनी साइकिल पर वापस चली जाती. वो तेरी भाभी है जैसे मजाक होने शुरू हो गए थे और तरुण जाने अनजाने थोड़ा अपने कपड़ों पर ध्यान देने लगा था. शाम को घर से बाहर निकलते हुए कोई फोर्मल कपड़े तो नहीं पहन सकता मगर पहले जहाँ कोई भी मुड़ीतुड़ी टीशर्ट चल जाती थी अब कपड़े बकायदा आयरन करके रखे जाने लगे थे. इस छोटी चीज़ के अलावा कोई बड़ा बदलाव आया हो ऐसा नहीं था.
अनन्या के तीन चार शौक़ थे...घूमना, पढ़ना, गप्पें मारना इनमें सबसे जरूरी थे. तरुण और बाकी जो भी उसके हत्थे चढ़ जाता उसके किस्से सुनते चलता. कितनी तो जगहें घूम रखी थीं लड़की ने. एक दिन जाने कैसे बातों बातों में भूतों का किस्सा चल पड़ा...विकास तरुण की खिंचाई कर रहा था कि उसे भूतों से बहुत डर लगता है. कहीं भी अकेले नहीं जाता. अनन्या को रात में अकेले डर कैसे नहीं लगता. उस दिन सबको थोड़ा आश्चर्य हुआ कि अधिकतर अनन्या किसी की खिंचाई करने का कोई मौक़ा नहीं जाने देती थी मगर उस दिन कुछ नहीं बोली. दूसरी बातों की ओर ध्यान भटका दिया सबका.
अब रोज रात को किसी लड़की से बात करोगे तो जाहिर है कि दिन में भी कभी कभार उसका ख्याल आयेगा ही. उसपर अनन्या ऐसी दिलचस्प लड़की थी कि तरुण अक्सर दिन में सोचता रहता कि आज क्या बात करेगा उससे या फिर आज वो कौन सी कहानी सुनाएगी. इसी सिलसिले में एक दिन ऐसे ही गूगल पर अनन्या टाइप कर के खोज रहा था कि फेसबुक या कहीं और वो आती है कि नहीं. अनन्या बहुत ज्यादा कोमन नाम तो था नहीं. तीसरे चौथे पन्ने पर जो तस्वीर अनन्या की थी...टाइम्स ऑफ इण्डिया में खबर रिपोर्टेड थी...रोड एक्सीडेंट केस. क्रिटिकल कंडीशन में अस्पताल लायी गयी लड़की तीन चार घंटों में ही ब्रेन डेड डिक्लेयर कर दी गयी. उसके पर्स में एक ओरगन डोनेशन कार्ड था...अस्पताल ने उसकी आँखें, दिल, लिवर और दोनों गुर्दे ट्रांसप्लांटेशन के लिए ओरगन बैंक भेज दिए थे. घर वालों को इत्तला दी गयी थी. एक बड़ा भाई था उसका, बॉडी पिक करने वही आया था.
तरुण को ऐसा सदमा लगा था कि उसे कुछ देर तो समझ ही नहीं आया कि क्या करे, किससे बात करे जो उसे पागल नहीं समझे. मगर अनन्या सिर्फ उससे तो मिलती नहीं थी...बाकी सारे दोस्तों से भी तो मिली है. गूगल पर उसका पूरा नाम डाल के खोजा...दो साल पुराना उसका ब्लॉग मिला, वहाँ उसकी लिखी अनगिनत कहानियां. कमेंट्स में उसके दोस्तों के बहुत सारे सन्देश. किसी के चले जाने के बाद भी कितना कुछ बाकी रह जाता है इन्टरनेट की इस निर्जीव दुनिया में भी. तरुण सोच रहा था कि अगर वो कमेन्ट करे कि अनन्या से रोज उसकी बात होती है तो कोई उसकी बात पर यकीन करेगा.
एक और समस्या थी...शाम को घर से बाहर कैसे जाये. ये जानने पर भी कि अनन्या को गए दो साल से ऊपर बीत चुके हैं, तरुण को विश्वास ही नहीं हो रहा था. हर डर के बावजूद वो जानता था कि उसे अनन्या से बात करनी ही होगी. आज चारों लड़के ऑफिस से जल्दी घर आ गए थे, पूरी बात जान कर सब एक अजीब से सन्नाटे में डूब गए थे. जाने क्यूँ तरुण को लगता था कि अब अनन्या से कभी मिल नहीं सकेगा. जाने वो आज रात आएगी भी कि नहीं. शाम की घड़ियाँ सिगरेट फूंकते बीतीं.
साढ़े नौ बजते बजते बेचनी हद तक बढ़ गयी थी...कमरे में ताला लगा कर चारों लड़के बाहर सड़क पर आ गए. आधा घंटा जाने किन किन भगवानों को याद करते कटा. अनन्या समय की पक्की थी...ठीक दस बजे सन्न से लहराती हुयी उसकी साइकिल उनके आगे से निकली...पर आज किसी ने कोई कमेन्ट नहीं किया कि मरेगी लड़की या जान प्यारी नहीं है तुझे. मोड़ पर लैम्पपोस्ट चुप खड़ा था.
अनन्या ने सबको इतने गंभीर मूड में देखा तो हौले से तरुण के पास आके पूछा...'कोई मर गया क्या?' तरुण चुप रहा मगर बाकी तीनो एक साथ चीख पड़े 'अनन्या'. तरुण कुछ देर चुप रहा...मगर सवाल बिना पूछे वापस भी तो नहीं जा सकता था.
'तुम मर चुकी हो?'
'हाँ'
एकदम फैक्चुअल जवाब...सीधा, सपाट...कोई मेलोड्रामा नहीं.
'मुझे बताया नहीं'
'दो साल पुरानी खबर थी, क्या बताती.' और वो खिलखिला के हँस पड़ी.
'मुझसे मिलने मत आया करो'
चुप्पी....
बहुत सारी चुप्पी....
'क्यूँ, मैं मर गयी तो मुझसे दोस्ती नहीं कर सकते?'
'नहीं.'
....
.........
'तुम कब तक ऐसे भटकती रहोगी? कोई तो उपाय होगा...तुम्हारा तर्पण नहीं हुआ होगा शायद, कोई अधूरी इच्छा रही होगी...मुझे बताओ'
'मेरा तर्पण हो गया है...बिलकुल सारे रीति रिवाजों के साथ...लेकिन मेरा केस कुछ अलग था इसलिए मुझे स्पेशल परमिशन मिली है'
'किस चीज़ की?'
'ऐसे भटकते हुए रहने की'
'क्या बांधे रखता है तुम्हें अनन्या?'
'जिंदगी...मुझे जिंदगी से प्यार है'
......
.................
'तुम हमेशा ऐसी ही रहोगी?'
'हाँ'
'तुम हमेशा यहीं रहोगी?'
'पता नहीं'
'मैं यहाँ से जाना चाहता हूँ'
'ठीक है'
'और तुम?'
'और मैं क्या?'
'कुछ नहीं'
.......
..............
'सुनो तरुण, आगे से किसी लड़की को ऐसे रात में अकेले देखोगे तो टोकना मत. सारे भूत मेरे तरह अच्छे नहीं होते. किसी और का दिल आ गया तुम पर तो तुम्हें अपने साथ ले जायेगी. तुम्हें जाने देना बहुत मुश्किल है. मरने से भी ज्यादा मुश्किल.'
........
.................
उस दिन के बाद अनन्या वहाँ कभी नहीं दिखी. सालों साल बाद भी कई बार तरुण गाड़ी चला रहा होता है और कोई लड़की साइकिल पर रिव्यू मिरर में दिखती है तो उसे अनन्या याद आ जाती है. अनन्या की कही आखिरी बात...जा रहे हो...कभी भी...मुड़ कर वापस नहीं देखना. वरना मैं कहीं जा नहीं पाउंगी और तुम कभी वापस नहीं आओगे. अनन्या ये नहीं जानती कि कई बार लोग कहीं जाते नहीं. ठहर जाते हैं. उसी मोड़ पर. उसी वक्त में.
......
..............
उफ़...जिंदगी कितनी लंबी है. तरुण अपने आखिरी दिनों में अपनी पसंद की साइकिल खरीदते हुए सोचता है...जिंदगी के पार...उस मोड़ पर...अनन्या होगी न?
लगभग दस साल हो गए हैं जबसे उसने आखिरी बार साइकिल को हाथ लगाया है. नयी साइकिल है, शुरू शुरू में चलाने में दिक्कत हुयी है मगर फिर आदत सी पड़ने लगी है. साइकिल चलाना आप एक बार सीख कर कभी नहीं भूल सकते हैं ऐसा किसी ने कहा था. उसे ठीक ठीक याद नहीं कि साइकिल खरीदने का मन क्यूँ किया...शायद ऑफिस जाने के लिए या फिर ऐसे ही. रोज़ रात का रूटीन सा बन गया है...ऑफिस से घर जाना...कार पार्क करना...ऊपर जा कर लैपटॉप और बाकी सामान रखना. स्पोर्ट्स शूज पहनना और सब्जी लाने के लिए निकलना. सब्जियां फ्रिज में रख कर बोतल में पानी भरना. एक ऊँची पोनीटेल बनाना...डियो स्प्रे करना, घड़ी बदलना. आईने में खुद को देखना. आईने में हर बार कोई १२ साल की लड़की क्यूँ दिखती है?
मोहल्ले में एक तीखी ढलान वाली सड़क है. रिहाइशी इलाका है तो रात को बहुत कम गाड़ियां आती जाती हैं, कभी कभार कोई कार या मोटरसाइकिल गुज़रती है. लोग नौ बजे तक तो टहलते दिख जाते हैं मगर उसके बाद सड़कें सुनसान होने लगती हैं...घरों का शोर भी म्यूट पर चला जाता है. जैसा कि देश के हर मोहल्ले में होता है, कुछ स्ट्रीटलैम्प्स फ्यूज रहते हैं तो उन टुकड़ों पर अँधेरा रहता है. माहौल को अलग अलग तरीके से इंटरप्रेट किया जा सकता है मनोदशा के मुताबिक. कुछ लोगों को डर भी लग सकता है. लेकिन जैसा कि मेरी कहानी के किरदारों के साथ अक्सर होता है...लड़की को डर नहीं लगता है.
कमोबेश हर घर के आगे एक दरबान ऊँघता दिखता है. देर रात कुछ लोग कुत्तों को टहलाते हुए भी दिख जाते हैं. लड़की को कुत्ते कभी पसंद नहीं आते. यही वक्त सड़क के आवारा कुत्तों के जमीनी संघर्ष का भी होता है. वे अपना अपना इलाका निर्धारित करते रहते हैं. ऐसे में अक्सर किसी एक कुत्ते के खदेड़े जाने की गवाह भी बनना होता है लड़की को. कुछ कुत्ते सड़क पर निर्विकार पड़े रहते हैं...दुनिया से दया की आखिरी उम्मीद उन्हें ही है.
रात की अपनी गंध होती है. अलग अलग फूलों की गंध झोंके के साथ आती है जब वो उन घरों के आसपास से गुज़रती है. इतने दिनों में उसे याद हो आया है कि किस घर के पास से रातरानी की गंध आती है, कहाँ गंधराज खिलता है और कहाँ मालती की उदास गंध उसे छूने को पीछे भागती है. साइकिल के हर चक्कर के साथ खुशबुएं बदलती रहती है...हर बार जब लड़की उन खुशबूदार घरों के आसपास से गुज़रती है तो खुशबू की एक तह उसके ऊपर लगती जाती है...गंध का अपना मनोविज्ञान और रसायनशास्त्र होता है. वो जब घर से चलती है कोई और होती है मगर कोई घंटे डेढ़ घंटे बाद वो कोई और होने लगती है. लड़की का इत्र हवाओं में बिखरने लगता है...वो थोड़ी थोड़ी घुलने लगती है...साइकिल के हर राउंड के साथ.
तीखी ढलान पर उतरते हुए लड़की साइकिल लहराती हुयी चलती है...हैंडिल को तीखे झटके देती है...जैसे साइकिल न चलाती है नृत्य कर रही हो...यक़ीनन गुज़रते हर सेकण्ड के साथ वो रिदम में होती है. साइकिल के हैंडल के दो लेवल हैं...ऊपर का लेवल वो ऐसे थामती है जैसे बॉल डांसिंग करने के लिए अपने पार्टनर के कंधे पर हाथ रखा हो...बेहद हलके. आधी ढलान आते वो दोनों हाथ छोड़ देती है जैसे लड़के ने ट्वर्ल किया हो उसे और वो एक पूरा गोल चक्कर काट कर वापस उसकी बाँहों में आएगी. ढलान की आखिर में एक स्पीडब्रेकर है जहाँ से वो दायें मुड़ती है और जाहिर तौर से मुड़ने के पहले ब्रेक नहीं लगाती है. अगर आपने बॉल डांस देखा है तो जानते होंगे कि उसके एक स्टेप में लड़का अपनी पार्टनर को लगभग जमीन तक झुका कर वापस खींचता है...ये कुछ वैसा ही होता है...मुड़ते हुए वो पैंतालीस डिग्री का कोण बना कर झुकती है...साइकिल का कलेजा मुंह को आता है कि नहीं मालूम नहीं पर सड़क जरूर उसके सरफिरेपन पर परेशान हो जाती है.
चढ़ाई के अंत में दो लैम्पपोस्ट हैं. एक की लाईट किसी उदास दिन बारिश की मार खा कर ऐसे उदास हुयी कि फिर नहीं जली...दूसरे छोर पर उसे मुंह चिढ़ाता सौतेला लैम्पपोस्ट है. लड़की बारी बारी से इन दोनों के नीचे रुकती है. साइकिल के कैरियर से पानी की बोतल को आज़ाद करती है और सांसों को काबू में करती हुयी घूँट घूँट पानी पीती है. पसीने से भीगा उसका चेहरा लैम्प की पीली रौशनी में अजीब खूबसूरत दिखता है. देखने वाले को ऐसा लग सकता है कि लैम्प से हुस्न की बारिश हो रही है, इस लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी कोई भी लड़की सुन्दर लगेगी...मगर ऐसे देर रात तीखी ढलान पर साइकिल चलाने वाली लड़की पहले आये तो सही...फिर वहाँ लैम्पपोस्ट के नीचे रुके तो सही. ऐसे हसीन वाकये जिंदगी में कम होते जा रहे हैं.
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एक खुशनुमा सी रात थी. चाँद का पहला कतरा आसमान में हाजिरी लगा रहा था. लैम्पोस्ट की रौशनी थी...चार लड़के खाना खाने के बाद सिगरेट खरीदने निकले थे. तेरा मेरा करके सिगरेट का स्टॉक खत्म हो गया था, वीकेंड की बची हुयी बियर भी खत्म थी. चलते हुए डिसाइड हुआ कि बियर भी खरीद ली जाए. ऑफिस में साथ काम करती लड़कियों के नाम से एक दूसरे को चिढ़ाते वो बीच सड़क पर चल रहे थे कि घंटी की आवाज़ से अचानक साइड होना पड़ा. गाली देने के लिए मुंह खोला ही था कि सन्न से वो साइकिल आगे निकल गयी. साइकिल पर एक लड़की थी...टी शर्ट के ऊपर झूलती पोनीटेल और जींस. उम्र का अंदाजा करना मुश्किल था मगर पीछे से अच्छी लगी. चारों की बातों का रुख लड़की की ओर मुड़ गया. पहले कभी तो नहीं दिखी थी इधर...शायद नयी आई है मोहल्ले में. जाने शहर में भी.
जितनी देर में वे टहलते हुए सड़क के मोड़ पर पहुंचे लड़की चार बार राउंड लगा चुकी थी जिसमें तीन बार लैम्प पोस्ट के नीचे रुक कर उसने पानी पिया था. बातों बातों में लड़कों में शर्त लग गयी कि लड़की से बात करके दिखाओ. तीन बार रुकी है, चौथी बार भी रुकेगी ही...जिसने बात कर ली उसके बियर के पैसे बाकी लोग देंगे. फिर लगा कि चारों लड़के अगर उसी मोड़ पर खड़े रहे तो शायद वो रुके न...इसलिए दो लड़कों ने हिम्मत की. ऊपर ऊपर वे दिखा रहे थे जैसे बहुत साधारण सी बात है मगर ऐसे लड़की को टोक कर कुछ बोलने में उन्हें भी समझ नहीं आ रहा था कि बात कैसे शुरू की जाए. हीरो बनकर आगे तो आ गए थे पर लेकिन लड़की अगर एक बार तेज आवाज़ में डांट भी देती तो इज्ज़त में पलीता लग जाना था.
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'एक्सक्यूज मी'
'यस'
'कैन यू टेल अस व्हेयर सेवंथ मेन इज?'
'सेवंथ मेन....अम्म्म्म....'
लड़की ने पानी का पहला ही घूँट लिया था...चढ़ाई में साइकिल चलाने के कारण उसकी सांसें तेज चल रही थीं...गला सूख रहा था...उसने एक घूंट पानी पिया...अपने दायीं ओर दिखाते हुयी बोली....
'सेवंथ मेन इज पैरलल टू दिस रोड.'
उसे संयत होने का वक्त नहीं मिला था, बोलना भी मुश्किल हो रहा था.
'रिलैक्स...रिलैक्स' लड़के को लगा शायद उनके सवाल पूछने से वो हडबड़ा गयी है...
'अपहिल साइक्लिंग' और लड़की ने थोड़ा और पानी पिया.
'हिंदी...इंग्लिश?'
'हिंदी चलेगा'
'कहाँ से हो?'
'बिहार से' लड़की कुछ और जोड़ना चाहती थी जैसे कि इतनी रात गए ऐसे काम बिहारी ही करते हैं या ऐसा कुछ...मगर उसके कहने का टोन अक्खड़ सा था और वैसा ही कुछ कह चुका था.
'यहाँ कैसे आई?'
'उड़ कर' लड़की हँस पड़ी...
'उड़ कर क्यूँ?'
'बिहार बहुत दूर है न...साइकिल से तो आ नहीं सकती थी'
'सेवेंथ मेन इधर से पैरलल वाली सड़क है, दायें से बाएं दिसेंडिंग आर्डर में...ट्वेलफ्थ मेन और इधर सिक्स्थ मेन' लड़की हाथ के इशारे से समझा रही थी.
'यहाँ क्या कर रही हो?'
'तुमने आखिरी बार किसी लड़की से ऐसे टोक कर बात कब की थी?'
'याद नहीं'
'पता है, बिहार में होते तो अभी तक थप्पड़ खा चुके होते, जनता अलग आ जाती पीटने के लिए, सरे राह लड़की छेड़ रहे हो'
'लेकिन बिहार में हैं नहीं न', लड़का थोड़ा सा झेंप गया था.
'तुम्हें डर नहीं लगा?'
'किस चीज़ का डर?'
'भूत होती तो? मम्मी ने बचपन में सिखाया नहीं कि रात-बेरात अकेली लड़की देख कर टोकना नहीं चाहिए'
लड़का एक मिनट चुप...नीचे सर करके सोच रहा है कि जवाब क्या दे...लड़की अपने जूते दिखाते हुए कहती है 'स्पोर्ट्स शूज हैं...पैर उलटे हुए तो पता भी नहीं चलेंगे[बिहार की किम्वदंतियों के हिसाब से चुड़ैल के पैर उलटे होते हैं]
लड़का अब भी सकपकाया हुआ खड़ा था. लड़की ने ही हँसते हुए शुरुआत की...
'घबराओ नहीं, भूत हूँ...चुड़ैल नहीं. खून नहीं पियूंगी तुम्हारा'
'अच्छा चलो जाने दो, ये बताओ कि इधर क्या कर रहे थे. हम सेवेंथ मेन में खड़े हैं, ऑन सेकण्ड थौट्स तुम लोग ठीक सेवेंथ मेन के बोर्ड से टहलते हुए यहाँ आये हो मुझसे सेवेंथ मेन का पता पूछने. रात के ग्यारह बजे पैदल रास्ता भटके हुए तो लगते नहीं हो, कहाँ जा रहे थे?'
'दूध खत्म हो गया था, चाय पीने निकले थे' सफ़ेद झूठ बोल गया लड़का.
'सिगरेट पीते हो?'
'हाँ'
'दो...'
'अभी नहीं है...दरअसल सिगरेट ही लेने निकले थे, घर पर भी खत्म हो गयी है, बाकी दोस्त पनवाड़ी की दुकान पर इन्तेज़ार कर रहे हैं'
'कितने की शर्त लगायी थी?'
'कैफे कॉफी डे में कॉफी की'
'झूठ अच्छा नहीं बोलते हो...लड़की के सामने तो और भी बुरा'
'हाँ मेरी माँ...बीयर की शर्त लगी थी, तुम तो पीछे ही पड़ गयी'
'रास्ता रोक कर रास्ता पूछो तुम...और पीछे पड़ गयी मैं, कमाल करते हो!'
किसी ने ध्यान नहीं दिया था पर बात करते करते वे चलने लगे थे और अब दूसरा मोड़ सामने खड़ा था...यहाँ से दायें परचून की दूकान थी और बाएं लड़की का नोर्मल रास्ता जिस पर वो शाम से साइकिल चला रही थी.
'अनन्या' लड़की ने हाथ बढाते हुए कहा...
'क्या?'
'अनन्या...मेरा नाम है'
'ओह...अच्छा...मेरा नाम तरुण है और ये मेरा दोस्त है विकास, आगे परचून की दूकान पर दो और नमूने खड़े हैं सुनील और अमित, आज मिलोगी या अगले इंस्टालमेंट में?'
'तुम्हारे घर क्या रोज रोज सिगरेट खतम होती है?'
'अक्सर हो जाती है फिर इधर ही रहते हैं तो कभी न कभी तो मिलोगी ही...उनसे भी आज न कल टकराना ही है...तो आज ही निपटा दें क्या?'
'नहीं रहने दो...आज के लिए तुम काफी हो'
फिर वो उड़नपरी अपनी साइकिल पर उड़नछू हो गयी.
कहना न होगा कि शर्त जीतने की खुशी में उस रात फ्लैट में बीयर की नदियाँ बह रही थीं...तरुण को कंधे पर उठा कर नारे लगाए गए और आखिर में नशे में डूबे बाकी तीनो लड़कों ने कागज़ पर लिख कर क़ुबूल किया कि तू सबमें सबसे बड़ा हीरो है...या ऐसा ही कुछ.
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इसके बाद लगभग रोज का नियम हो गया...रात का खाना खा कर तरुण को रोज बाहर टहलने जाना ही होता था. साथ में कभी विकास तो कभी सुनील या अमित होते और कोई आधा घंटा बतियाते हुए परचून की दूकान तक जाते और वहाँ से फिर अनन्या अपनी साइकिल पर वापस चली जाती. वो तेरी भाभी है जैसे मजाक होने शुरू हो गए थे और तरुण जाने अनजाने थोड़ा अपने कपड़ों पर ध्यान देने लगा था. शाम को घर से बाहर निकलते हुए कोई फोर्मल कपड़े तो नहीं पहन सकता मगर पहले जहाँ कोई भी मुड़ीतुड़ी टीशर्ट चल जाती थी अब कपड़े बकायदा आयरन करके रखे जाने लगे थे. इस छोटी चीज़ के अलावा कोई बड़ा बदलाव आया हो ऐसा नहीं था.
अनन्या के तीन चार शौक़ थे...घूमना, पढ़ना, गप्पें मारना इनमें सबसे जरूरी थे. तरुण और बाकी जो भी उसके हत्थे चढ़ जाता उसके किस्से सुनते चलता. कितनी तो जगहें घूम रखी थीं लड़की ने. एक दिन जाने कैसे बातों बातों में भूतों का किस्सा चल पड़ा...विकास तरुण की खिंचाई कर रहा था कि उसे भूतों से बहुत डर लगता है. कहीं भी अकेले नहीं जाता. अनन्या को रात में अकेले डर कैसे नहीं लगता. उस दिन सबको थोड़ा आश्चर्य हुआ कि अधिकतर अनन्या किसी की खिंचाई करने का कोई मौक़ा नहीं जाने देती थी मगर उस दिन कुछ नहीं बोली. दूसरी बातों की ओर ध्यान भटका दिया सबका.
अब रोज रात को किसी लड़की से बात करोगे तो जाहिर है कि दिन में भी कभी कभार उसका ख्याल आयेगा ही. उसपर अनन्या ऐसी दिलचस्प लड़की थी कि तरुण अक्सर दिन में सोचता रहता कि आज क्या बात करेगा उससे या फिर आज वो कौन सी कहानी सुनाएगी. इसी सिलसिले में एक दिन ऐसे ही गूगल पर अनन्या टाइप कर के खोज रहा था कि फेसबुक या कहीं और वो आती है कि नहीं. अनन्या बहुत ज्यादा कोमन नाम तो था नहीं. तीसरे चौथे पन्ने पर जो तस्वीर अनन्या की थी...टाइम्स ऑफ इण्डिया में खबर रिपोर्टेड थी...रोड एक्सीडेंट केस. क्रिटिकल कंडीशन में अस्पताल लायी गयी लड़की तीन चार घंटों में ही ब्रेन डेड डिक्लेयर कर दी गयी. उसके पर्स में एक ओरगन डोनेशन कार्ड था...अस्पताल ने उसकी आँखें, दिल, लिवर और दोनों गुर्दे ट्रांसप्लांटेशन के लिए ओरगन बैंक भेज दिए थे. घर वालों को इत्तला दी गयी थी. एक बड़ा भाई था उसका, बॉडी पिक करने वही आया था.
तरुण को ऐसा सदमा लगा था कि उसे कुछ देर तो समझ ही नहीं आया कि क्या करे, किससे बात करे जो उसे पागल नहीं समझे. मगर अनन्या सिर्फ उससे तो मिलती नहीं थी...बाकी सारे दोस्तों से भी तो मिली है. गूगल पर उसका पूरा नाम डाल के खोजा...दो साल पुराना उसका ब्लॉग मिला, वहाँ उसकी लिखी अनगिनत कहानियां. कमेंट्स में उसके दोस्तों के बहुत सारे सन्देश. किसी के चले जाने के बाद भी कितना कुछ बाकी रह जाता है इन्टरनेट की इस निर्जीव दुनिया में भी. तरुण सोच रहा था कि अगर वो कमेन्ट करे कि अनन्या से रोज उसकी बात होती है तो कोई उसकी बात पर यकीन करेगा.
एक और समस्या थी...शाम को घर से बाहर कैसे जाये. ये जानने पर भी कि अनन्या को गए दो साल से ऊपर बीत चुके हैं, तरुण को विश्वास ही नहीं हो रहा था. हर डर के बावजूद वो जानता था कि उसे अनन्या से बात करनी ही होगी. आज चारों लड़के ऑफिस से जल्दी घर आ गए थे, पूरी बात जान कर सब एक अजीब से सन्नाटे में डूब गए थे. जाने क्यूँ तरुण को लगता था कि अब अनन्या से कभी मिल नहीं सकेगा. जाने वो आज रात आएगी भी कि नहीं. शाम की घड़ियाँ सिगरेट फूंकते बीतीं.
साढ़े नौ बजते बजते बेचनी हद तक बढ़ गयी थी...कमरे में ताला लगा कर चारों लड़के बाहर सड़क पर आ गए. आधा घंटा जाने किन किन भगवानों को याद करते कटा. अनन्या समय की पक्की थी...ठीक दस बजे सन्न से लहराती हुयी उसकी साइकिल उनके आगे से निकली...पर आज किसी ने कोई कमेन्ट नहीं किया कि मरेगी लड़की या जान प्यारी नहीं है तुझे. मोड़ पर लैम्पपोस्ट चुप खड़ा था.
अनन्या ने सबको इतने गंभीर मूड में देखा तो हौले से तरुण के पास आके पूछा...'कोई मर गया क्या?' तरुण चुप रहा मगर बाकी तीनो एक साथ चीख पड़े 'अनन्या'. तरुण कुछ देर चुप रहा...मगर सवाल बिना पूछे वापस भी तो नहीं जा सकता था.
'तुम मर चुकी हो?'
'हाँ'
एकदम फैक्चुअल जवाब...सीधा, सपाट...कोई मेलोड्रामा नहीं.
'मुझे बताया नहीं'
'दो साल पुरानी खबर थी, क्या बताती.' और वो खिलखिला के हँस पड़ी.
'मुझसे मिलने मत आया करो'
चुप्पी....
बहुत सारी चुप्पी....
'क्यूँ, मैं मर गयी तो मुझसे दोस्ती नहीं कर सकते?'
'नहीं.'
....
.........
'तुम कब तक ऐसे भटकती रहोगी? कोई तो उपाय होगा...तुम्हारा तर्पण नहीं हुआ होगा शायद, कोई अधूरी इच्छा रही होगी...मुझे बताओ'
'मेरा तर्पण हो गया है...बिलकुल सारे रीति रिवाजों के साथ...लेकिन मेरा केस कुछ अलग था इसलिए मुझे स्पेशल परमिशन मिली है'
'किस चीज़ की?'
'ऐसे भटकते हुए रहने की'
'क्या बांधे रखता है तुम्हें अनन्या?'
'जिंदगी...मुझे जिंदगी से प्यार है'
......
.................
'तुम हमेशा ऐसी ही रहोगी?'
'हाँ'
'तुम हमेशा यहीं रहोगी?'
'पता नहीं'
'मैं यहाँ से जाना चाहता हूँ'
'ठीक है'
'और तुम?'
'और मैं क्या?'
'कुछ नहीं'
.......
..............
'सुनो तरुण, आगे से किसी लड़की को ऐसे रात में अकेले देखोगे तो टोकना मत. सारे भूत मेरे तरह अच्छे नहीं होते. किसी और का दिल आ गया तुम पर तो तुम्हें अपने साथ ले जायेगी. तुम्हें जाने देना बहुत मुश्किल है. मरने से भी ज्यादा मुश्किल.'
........
.................
उस दिन के बाद अनन्या वहाँ कभी नहीं दिखी. सालों साल बाद भी कई बार तरुण गाड़ी चला रहा होता है और कोई लड़की साइकिल पर रिव्यू मिरर में दिखती है तो उसे अनन्या याद आ जाती है. अनन्या की कही आखिरी बात...जा रहे हो...कभी भी...मुड़ कर वापस नहीं देखना. वरना मैं कहीं जा नहीं पाउंगी और तुम कभी वापस नहीं आओगे. अनन्या ये नहीं जानती कि कई बार लोग कहीं जाते नहीं. ठहर जाते हैं. उसी मोड़ पर. उसी वक्त में.
......
..............
उफ़...जिंदगी कितनी लंबी है. तरुण अपने आखिरी दिनों में अपनी पसंद की साइकिल खरीदते हुए सोचता है...जिंदगी के पार...उस मोड़ पर...अनन्या होगी न?
very interesting...कहानी बढ़िया लगी ( अगर कहानी है तो )...
ReplyDeleteइस तरह की एक दो कहानियां और पढ़ी या सुनी हैं | पर वो आखिरी का हिस्सा, जब लड़कों को लड़की के ना रहने की बात पता चलती ह उसके बाद, कुछ हट कर लगा | बढ़िया !!!!
missed your posts badly in the recent time, good to see you back that too in continuation mode !!!!
स्टारर कहानी , सिक्सथ् सेन्स एक फिल्म है हालीवुड की इसी कहानी जैसी है
ReplyDeleteरात भर नींद नहीं आई मुझे और आज सुबह से ही आपके ब्लॉग के पीछे हूँ....पहले क्राकोव डायरीज की आखिरी किस्त फिर अनलहक और अब ये कहानी....बड़े अजीब से ख्याल आ रहे हैं ये कहानी पढने के बाद....क्या लिखूं समझ नहीं पा रहा हूँ....क्राकोव डायरीज पढ़ते हुए जो हालत हुई थी उसके बाद इस कहानी की शुरुआत में लगा की मन थोड़ा हल्का हो जाएगा...लेकिन....
ReplyDeleteमैं बहुत कुछ कहना चाह रहा हूँ आपकी इस कहानी पे, लेकिन क्या कहूँ ये समझ नहीं पा रहा हूँ....एनीवे, अपनी बकवास यहीं बंद करता हूँ...
कई बार लोग कहीं जाते नहीं. ठहर जाते हैं. उसी मोड़ पर. उसी वक्त में.:-)
ReplyDeletemind blowing> अपनी जिंदगी में होने वाली घटनाओ को जोड़कर एक बेहद उम्दा काल्पनिक कथा तैयार की हैं, पोस्ट कही भी बोरियत सी नहीं लगती हैं, कहानी ऐसी हैं, जो पढ़ने वाले को अंत तक जोड़े रखती हैं, अपने अंदर के भूत को बेहद कुशलतापूर्वक बाहर निकला हैं, आपने.
ReplyDeleteबेहतरीन, हमारे यहाँ भूतों के पैर उल्टे नहीं, सर ही उल्टा होता है, बिल्कुल उल्टा।
ReplyDeleteसिर्फ पहला हिस्सा ही शाया किया होता तो भी खड़े होकर तालियाँ बजाता...
ReplyDeleteसिर्फ पहला हिस्सा ही शाया किया होता तो भी खड़े होकर तालियाँ बजाता...
ReplyDeleteसदैव की भांति एक प्रवाहमय कहानी
ReplyDeleteadhurapan h shayad..pyasi aatma..pyasi zindgi..bt pyas achchi hoti hai..dard ki tarah jo creative hota h...beautiful story.bt ma`m kabhi kabhi zindagi k bare me bhi likha kariye.sb kuch marta hi kyu rahta hai aap ki stories me
ReplyDeleteऔर लड़की तुम कहाँ हो? कोई तो खबर दो.
ReplyDeleteओह. अप्रूवल केस कब से बन चुका है!
ReplyDeleteKayi baar sach ko man lena kitana muskil hota hai... Usi tarah jhooth ko nakarana bhi...
ReplyDeleteinsano ki tarah kuch aatma bhi itni achi hoti hai na.
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