this is a gif image, but i dont know why it doesnt move in hte blog...anybody knows about this kind of stuff please help me out.click on the image to see the magic :)
कितने कितने पुर्जो पर
तुम्हारे हाथों के चलने को
समेट कर रखा है मैंने
कुछ ख़त...कुछ ऐसे ही तुम्हारे ख्याल
और कितने डिज़ाईन फूलों के, बूटियों के
कुछ फिल्मो की टिकटों पर लिखे फ़ोन नम्बर
कुछ कौपी के आखिरी पन्नों पर
पेन की लिखावट देखने के लिए लिखा गया नाम
मैंने हर पन्ना सहेज कर रखा है माँ
और जब तुम बहुत याद आती हो
इन आड़ी तिरछी लकीरों को देख लेती हूँ
लगता है...तुमने सर पे हाथ रख दिया हो
कि अब भी ढूँढती हूँ
रेत पर मैं खुशियों के निशां
मैं अब भी कागजों कि कश्तियाँ देती हूँ बच्चों को
औरअब भी उनके डूब जाने पर उदास होती हूँ
ओ गंगा समेट लो अपना किनारा तुम...
कि जब भी डूबता है सूरज
और लाल हो जाता है पश्चिमी किनारा
यूं लगता है किसी ने फ़िर से कोई लाश बहा दी है
किसी ने फ़िर कोई जुर्म किया है...चुपके से
ओ गंगा समेट लो अपना किनारा तुम...
या कि एक बार आओ...साथ बहते हैं