बंजारा (नज़्म) ~~~~~~~~~~
मैं बंजारा
वक़्त के कितने शहरों से गुजरा हूँ
लेकिन
वक़्त के इस शहर से जाते जाते
मुड़कर देख रहा हूँ
सोच रहा हूँ
तुमसे मेरा ये नाता भी टूट रहा है
तुमने मुझको छोड़ा था जिस शहर में आके
वो शहर भी मुझसे छूट रहा है
मुझको विदा करने आये हैं
वो सारे दिन
जिनके कंधे पर सोती है
अब भी तेरे जुल्फ की खुशबू
वो सारे लम्हे
जिनके माथे पर हैं रौशन
अब भी तुम्हारे लम्स का टीका
नम आँखों से
गुमसुम मुझको देख रहे हैं
मुझको इनके दुःख का पता है
इनको मेरे गम की खबर है
लेकिन मुझको हुक्मे-सफ़र
जाना होगा
वक़्त के अगले शहर अब मुझे जाना होगा
नए शहर के सब दिन सब रातें
जो तुमसे नावाकिफ होंगे
वो कब मेरी बात सुनेंगे
मुझसे कहेंगे
जाओ अपनी राह लो राही
हमको कितने काम पड़े हैं
जो बीती सो बीत गयी
अब वो क्यों दोहराते हो
कंधे पर झोली रखे
क्यों फिरते हो क्या पाते हो
मैं बेचारा
इक बंजारा
आवारा फिरते फिरते जब थक जाऊंगा
तनहाई के टीले पर जाकर बैठूँगा
फिर जैसे पहचान के मुझको
इक बंजारा जान के मुझको
वक़्त के अगले शहर के
सारे नन्हे मुन्ने भोले लम्हे
नंगे पांव
भागे भागे आ जायेंगे
मुझको घेर के बैठेंगे
और मुझसे कहेंगे क्यों बंजारे
तुम तो वक़्त के कितनों शहरों से गुजरे हो
उन शहरों की कोई कहानी हमें सुनाओ
उनसे कहूँगा
नन्हे लम्हों -
एक थी रानी....
सुनके कहानी
सारे ग़मगीन लम्हे मुझसे ये पूछेंगे
तुम क्यों उनके शहर ना आयी
लेकिन उनको बहला लूँगा
उनसे कहूँगा ये मत पूछो
आँखे मूँदो और ये सोचो
वो होती तो कैसा होता
तुम ये कहती तुम वो कहती
तुम इस बात पे हैरान होती
तुम इस बात पे कितनी हँसती
तुम होती तो ऐसा होता
तुम होती तो वैसा होता
धीरे धीरे
सारे नन्हे लम्हे सो जायेंगे
और मैं हौले से उठकर
वक़्त के अगले शहर के रस्ते हो लूँगा
यही कहानी फिर दोहराने
तुम होती तो ऐसा होता
तुम होती तो वैसा होता
मैं बंजारा
वक़्त के कितने शहरों से गुजरा हूँ
लेकिन
वक़्त के इस शहर से जाते जाते
मुड़कर देख रहा हूँ
सोच रहा हूँ
तुमसे मेरा ये नाता भी टूट रहा है
तुमने मुझको छोड़ा था जिस शहर में आके
वो शहर भी मुझसे छूट रहा है
मुझको विदा करने आये हैं
वो सारे दिन
जिनके कंधे पर सोती है
अब भी तेरे जुल्फ की खुशबू
वो सारे लम्हे
जिनके माथे पर हैं रौशन
अब भी तुम्हारे लम्स का टीका
नम आँखों से
गुमसुम मुझको देख रहे हैं
मुझको इनके दुःख का पता है
इनको मेरे गम की खबर है
लेकिन मुझको हुक्मे-सफ़र
जाना होगा
वक़्त के अगले शहर अब मुझे जाना होगा
नए शहर के सब दिन सब रातें
जो तुमसे नावाकिफ होंगे
वो कब मेरी बात सुनेंगे
मुझसे कहेंगे
जाओ अपनी राह लो राही
हमको कितने काम पड़े हैं
जो बीती सो बीत गयी
अब वो क्यों दोहराते हो
कंधे पर झोली रखे
क्यों फिरते हो क्या पाते हो
मैं बेचारा
इक बंजारा
आवारा फिरते फिरते जब थक जाऊंगा
तनहाई के टीले पर जाकर बैठूँगा
फिर जैसे पहचान के मुझको
इक बंजारा जान के मुझको
वक़्त के अगले शहर के
सारे नन्हे मुन्ने भोले लम्हे
नंगे पांव
भागे भागे आ जायेंगे
मुझको घेर के बैठेंगे
और मुझसे कहेंगे क्यों बंजारे
तुम तो वक़्त के कितनों शहरों से गुजरे हो
उन शहरों की कोई कहानी हमें सुनाओ
उनसे कहूँगा
नन्हे लम्हों -
एक थी रानी....
सुनके कहानी
सारे ग़मगीन लम्हे मुझसे ये पूछेंगे
तुम क्यों उनके शहर ना आयी
लेकिन उनको बहला लूँगा
उनसे कहूँगा ये मत पूछो
आँखे मूँदो और ये सोचो
वो होती तो कैसा होता
तुम ये कहती तुम वो कहती
तुम इस बात पे हैरान होती
तुम इस बात पे कितनी हँसती
तुम होती तो ऐसा होता
तुम होती तो वैसा होता
धीरे धीरे
सारे नन्हे लम्हे सो जायेंगे
और मैं हौले से उठकर
वक़्त के अगले शहर के रस्ते हो लूँगा
यही कहानी फिर दोहराने
तुम होती तो ऐसा होता
तुम होती तो वैसा होता
P.S : i forgot the name of the poet...i think its gulzar, but not very sure