07 November, 2014

कुछ छलावे भी कितने महँगे बिकते हैं


वो हँसते हुये कहता है मुझसे
अच्छा…तो तुम्हें लगता है तुम तलाश लोगी मुझे?
शहर के इस कोलाहल में…
गाड़ियों, लोगों और मशीनों के इस विशाल औरकेस्ट्रा में
तुम छीज कर अलग कर दोगी मेरी आवाज
बचपन में दादी से सीखी थी क्या चूड़ा फटकना?
———
मुझे कभी नहीं आता भूलना, फिर कैसे?
छुट्टियों में रह गया खिड़की की जाली पर
हफ्ते भर बिन पानी का प्यासा पौधा
टप टप बरसता है मनी प्लाँट पर भीगा नवंबर
मगर बचा नहीं पाता है मेरे आने तक आखिरी साँसें
———
तुम तो आर्टिस्ट हो
बनाते हो मुहब्बत की काली आउटर लाइनिंग
कैनवस पर चलाते हो इंतजार के स्ट्रोक्स
मुझे लगता है मैं तुम्हारा मास्टरपीस हूँ
कुछ छलावे भी कितने महँगे बिकते हैं

——— 
रूह बदलती है लिबास
मुहब्बत बदलती है नाम, चेहरे, लोग
मैं बदलती गयी उस लड़की में
जिससे तुम्हें प्यार नहीं होना था कभी

1 comment:

  1. टप टप बरसता है मनी प्लाँट पर भीगा नवंबर/मगर बचा नहीं पाता है मेरे आने तक आखिरी साँसें/मुझे लगता है मैं तुम्हारा मास्टरपीस हूँ/कुछ छलावे भी कितने महँगे बिकते हैं/मुहब्बत बदलती है नाम, चेहरे, लोग.......

    अद्भुत विम्बों का बड़ा ही सार्थक प्रयोग। आभार।

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