26 March, 2008

याद

कितने कितने पुर्जो पर

तुम्हारे हाथों के चलने को

समेट कर रखा है मैंने

कुछ ख़त...कुछ ऐसे ही तुम्हारे ख्याल

और कितने डिज़ाईन फूलों के, बूटियों के

कुछ फिल्मो की टिकटों पर लिखे फ़ोन नम्बर

कुछ कौपी के आखिरी पन्नों पर

पेन की लिखावट देखने के लिए लिखा गया नाम

मैंने हर पन्ना सहेज कर रखा है माँ

और जब तुम बहुत याद आती हो

इन आड़ी तिरछी लकीरों को देख लेती हूँ

लगता है...तुमने सर पे हाथ रख दिया हो

13 comments:

  1. bahut sundar hai kavita aur maa ke liye bhavana bhi.

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  2. क्या बात है !! कैसा लगा पढ़ कर ये बता नहीं सकता. कमाल है ...

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  3. बहुत खूब..!!!वाह!!

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  4. आपकी मां को आप पर गर्व करना चाहिए। अपार प्यार झलकता है आपकी कविता में। सुंदर।

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  5. कुछ नहीं कहूंगा, क्‍योंकि इसे पढ़ने के बाद मन में जो भाव उमड़े हैं उसे शब्‍द नहीं दे सकता हूं

    आशीष

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  6. @ महक..शुक्रिया मेरी भावनाओं को समझने के लिए...
    मीत,आशीष आपकी बात सुनकर अच्छा लगा...जब बात कही नहीं जा सकती तभी तो कविता बनती है...
    समीर जी...कभी कभी आपके आने और टिपण्णी देने से हौसला बढ़ता है, धन्यवाद...
    @ अबरार जी, बस माँ की यादें ही बची हैं उनको संजोने की कोशिश है.
    आप सबका बहुत शुक्रिया...दर्द कई बार लिख देने से कम हो जाता है..वही कर रही हूँ

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  7. @ रक्षान्दा...प्यारी है बिल्कुल आपकी तरह :)
    शुक्रिया

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  8. और जब तुम बहुत याद आती हो

    इन आड़ी तिरछी लकीरों को देख लेती हूँ

    लगता है...तुमने सर पे हाथ रख दिया हो

    superb.....

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  9. तारीफ़ लायक होते हुये भी,
    मैं इस कविता को यदा कदा याद करता रहूँगा..
    पर तारीफ़ ? ना बाबा ना, तेरा दिमाग बहक जायेगा ।
    आज रूबी जी ( रख्शँदा ) की आमद ताज़गी की एक और उम्मीद कायम कर रही है ।

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  10. The poem and pen show ur inner feeling for ur mother...

    Happy B'Day to You.

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  11. पूजा की तरह हैं पवित्र विचार

    इसी में है हम सबका संसार

    जिसमें बसा हुआ मां का प्‍यार


    जन्‍मदिन पर ढेरों बल्कि टोकरियां भर भर आशीर्वाद।

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