25 February, 2010

दिल के बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है...

हर शौक़ की एक एक्सपायरी डेट होती है, मेरे कुछ शौक़ जो बेमौत मर गए किसी किसी कारण से...या जिंदगी में उलझे रहने के कारण वक्त नहीं दे पायी...या वक्त मुझे नहीं दे पाया...हम वहाँ से आगे बढ़ गए...दूर चले आये. कुछ गुज़र गया.

यूँ तो ग़ालिब ने फरमाया ही है...हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले.

. अपने पैसों से अपने लिए कार खरीदना, मारुती वैगन आर , काले रंग में...कार चलाना सीखना और उसमें मम्मी को घुमाने ले जाना. खूब सारी शोपिंग करना.

. स्केटिंग सीखना. अब लगता है ये बच्चों वाला शौक़ है और अब नहीं सीख पाउंगी कभी...ये भी लगता है कि सीखने का कोई फायदा भी नहीं है.

. ट्रेक्किंग करना, जंगल में टेंट डाल कर किसी नदी किनारे बैठना. अलाव जलाना और उसकी गर्मी और रौशनी में कुछ बेहद प्यारे दोस्तों के साथ बातें करना...एक तरह से एक "girls night out". ये ख्याल दिल्ली में जब नयी आई थी तो कुछ अच्छी दोस्तों से मिल कर लगा था कि ऐसा कुछ करूँ.

. हीरो होंडा करिज्मा पर अपने बोयफ़्रेंड के साथ बैठना, वो तेज चलाये और मुझे अच्छा लगे. अब सोचतीहूँ तो समझ नहीं आता है कि इस बचकानेपन पर हँसूं या पूरा न होने पर रोऊँ. पर अब भी बाकी लड़कियों को देखती हूँ तो बस...ठंढी आह भर के रह जाती हूँ. :)

. किसी समंदर तट पर जाना और वो फूल पत्तों वाली ब्राजीलियन टाइप स्कर्ट पहनना.

. अपने लिए एक बाईक खरीदना और चलाना.

. ओगिल्वी में काम करना. ओगिल्वी में काम करने की इच्छा कॉलेज लाइफ के थर्ड इयर में हुयी थी. भारत में माल्टि नॅशनल सबसे अच्छी एड एजेंसी के लिए इसका नाम सुना था. अब महसूस किया है कि advertisement बनाने में मेरी वैसी रुचि नहीं है जैसी फिल्मों में है.

. अपना फ्लैट लेकर अकेले रहना उसे अपने हिसाब से सजाना/गन्दा रखना.

९. जिमी को उसकी नौकरी के पहले दिन उस समय की बेस्ट बाइक खरीद के देना.

१०. अकेले घूमने जाना, बस सामान बाँध के निकल पड़ना.


ये तो खैर थी मेरी लिस्ट...काफी अजीब सी है, और हाँ अधूरी भी...पर ऐसी चीज़ें सोचती हूँ तो लगता है कि कितनी जिंदगी बीत गयी. उम्र देखती हूँ तो अचानक से लगता है कि अब जिद करना झगडे करना और अपनी मनमानी पूरी करवा लेने के दिन गए. अब कितना कुछ देखना पड़ता है, क्या कुछ छोड़ देना पड़ता है.

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन

दिल के बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है.

किसी दिन एक और लिस्ट टाँगूंगी कि क्या कुछ अभी करने का दिल है...वक्त है...माहौल भी है. फिलहाल इत्ता ही.

23 February, 2010

टहलती हुयी एक शाम के लफ्ज़

सड़क पर बहुत से पत्ते गिरे हुए हैं
और इनकी अजीब सी खुशबू में चल रही हूँ

पैर घसीटते, किसी ख्याल में गुम
किसी याद को पकड़ रही हूँ, कमबख्त
हाथ ही नहीं आ रही मेरे...

आँखों में भर लूं कुछ खुशियों के लम्हे
बंगलोर का ये उदास और तनहा मौसम
जो अब बेहद रास आने लगा है मुझे

अपनी बाइक. खुले बाल
महीन सी काजल की रेखा
और एक घड़ी, सफ़ेद बेल्ट वाली

ढेर सारी किताबों वाला रैक
याद करने की कोशिश करती हूँ
किताबों की अपनी अपनी जगह

पार्क की सीढ़ियों पर
कल ही तो बैठे थे
हम, मूंगफली खाते हुए

सूखने के पहले पत्ते लाल,
और फिर जाके पीले होते हैं
शाम की धूप में नए दीखते हैं

और पत्तों का गिरना जैसे जादू
गीत के बोल आपस में गुंथ गए हैं
कदम ताल में मिलने की कोशिश में

रात दूर तक कार चलायी
सब के साथ, रेडियो के साथ भी
ढाई बजे की हवा भी बड़ी प्यारी थी

कुछ आधे घंटे भर चली होउंगी मैं
पार्क के पास वाले पेवमेंट पर
और कितना कुछ याद रह गया

बीता हुआ लम्हा लौट आता है
कितना कितना कुछ लेकर
सहेज देती हूँ...बाद में अच्छा लगे शायद

आखिर जिंदगी की रील में
कुछ ही तो शोट्स होते हैं
दोहराने लायक...आगे पीछे...बार बार

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