13 December, 2012

आई लव यू टू

तुम किसी मूक फिल्म की तरह मेरी जिंदगी का हिस्सा हो...कभी कभार एक टाइटल आ जाता है जिसके अलावा सारी बातें किस प्लेन पर घटती हैं कोई नहीं जानता. कितने सारे सिनरिओज इमैजिन कर लेती हूँ ना...तुम आये हो...ऐसे बात करते हो मुझे. कितनी कम बातें की हैं तुमसे...मगर उन कुछ लम्हों को इतनी बार रिवाईंड कर चुकी हूँ कि अब तो फिल्म घिस जानी चाहिए मगर ये मन का कैमरा कैसा है कि हर बार नए शेड्स ले आता है. अरे...क्या...तुम्हें बताया नहीं, तुम्हारे रंग याद नहीं हैं मुझे...तुम बस काले और उजले के शेड्स में बस गए हो मेरे अन्दर कहीं.

या कि मौसम की शरारत है कि ऐसा लगा जैसे खिड़की के पार तुम हो...तुम्हारा होना ऐसे महसूस हुआ जैसे धक् से लगता है प्यार में गिरने पर...और यु तो नो...देयर इज नो फालिंग इन लव...इट जस्ट हैपन्स...धाड़...गिर गए...भटाक! अब लो...सम्हालो, कभी घुटने पर चोट लगती है, कभी दिल पर...रोंदू सी शकल लिए घूमते रहो फिर. यूँ तो प्यार बहुत तमीज से ठंढ के मौसम की तरह आता है लेकिन क्या करोगे, जिंदगी है...कभी कभी उससे भी गलती हो जाती है. इस बार दो महीने पहले आ गया. टाइमिंग गलत हो गयी...वो क्या है कि मुझे मालूम नहीं था कि उसके आने का मूड बन गया है और तुम स्टाइल में एंट्री सीक्वेंस के लिए खड़े मेरा इंतज़ार कर रहे हो...पगली मैं...कपड़े भी ढंग के नहीं पहने थे...तभी तो तुम्हें भी धोखा हो गया कि मैं ही हूँ या कोई और है. साइड हीरोइन पर कौन ध्यान देता है...बट लाइफ माय फ्रेंड इज फुल ऑफ़ सरप्राइजेज. प्यार हमेशा धमाकेदार एंट्री नहीं करता...चुपके से भी चला आता है.

कसम से, मेरे पास तुम्हारे दिल की भागती धड़कन को सुनने की कोई डिवाइस नहीं है...मेरा फोन आता है तो घबराया मत करो...एक गहरी सांस लेकर फोन उठा लिया करो. मैं जानती हूँ तुम्हें इतनी अच्छी एक्टिंग आती है कि मूक फिल्म में भी फोन उठा कर कुछ न कुछ मैनेज कर लोगे. होते हैं...सबकी लाइफ में ऐसे लम्हे आते हैं जब समझ नहीं आता कि कहें तो क्या कहें...लेकिन जानां...प्यार में हो तो उल्टा-पुल्टा मत सोचो...मुझे तुम्हारी हर अदा से प्यार है. उसे क्या कहते हैं जब आप किसी को इतनी अच्छी तरह जानते हो कि उससे फोन पर बात करते हुए आपको मालूम है कि सामने वाले का एक्जैक्ट एक्सप्रेशन कैसा है? मेरे तुम्हारे बीच वैसा कुछ है...है तो वैसे और भी बहुत कुछ...इस हसीन शहर का दिलफरेब मौसम...पुल के ऊपर का खाली ठहरा हुआ समय...बहुत बहुत से गुलमोहर के पेड़ों पर रुकी हुयी धूप...प्यार? कन्फर्म नहीं है.

मेरा आज तक कभी ध्यान नहीं गया था कि रियल जिंदगी में तुम वाकई कितनी बकवास बातें करते हो...तुम मेरी मूक फिल्म में ही सही थे...वो क्या है कि जब भी तुम्हारा फोन आया है मेरा किसी बात पर ध्यान ही नहीं रहता...सारा ध्यान इस बात पर रहता है कि तुम फोन रखते हुए साइन ऑफ़ में क्या कहते हो. क्यूँ? हुआ यूँ कि एक बार मुझसे बात करते हुए तुम ऑफिस को भाग रहे थे...तो फ़ोन रखते हुए तुम कुछ कह गए थे...क्या..गलती से...हाँ बाबा, जानती हूँ गलती से...ऐसी हसीन गलतियाँ जिंदगी में गिन के ही देता है खुदा...तो उस दिन तुम कह गए थे...ओके...लव यू...बाय. मैं हक्की-बक्की-बोक्की...सोच रही थी कि कभी तुमसे पूछूं...कितने लोगों को लव यू बाय बोलते हो कि आदत पड़ गयी है. वो दिन है और आज का दिन है...बाय और टाटा के सिवा कुछ नहीं मिलता.

जाने दो...देखो न कितनी बातें कर गयी तुमसे...ऐवें ही...फोन रखती हूँ...टाटा...बाय. जानती हूँ फोन रखने के बाद तुमने भी उधर कहा होगा...लव यू टू. 

8 comments:

  1. बहुत बार लगता है कि मूक बने रहने में ही रस था।

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  2. प्यार हमेशा धमाकेदार एंट्री नहीं करता...चुपके से भी चला आता है.
    सच कहा आपने .... बेहतरीन

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  3. कभी कभी खामोशी जो कह जाती है वह जुबाँ कह नही पाती।

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  4. मेरे पोस्ट पर भी आपके कमेंट की प्रतिक्षा रहेगी।

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  5. आपका इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (15-12-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  6. यु तो नो...देयर इज नो फालिंग इन लव...इट जस्ट हैपन्स...धाड़...गिर गए...भटाक! sundar.

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  7. देयर इज नो फालिंग इन लव...इट जस्ट हैपन्स...धाड़...गिर गए...भटाक! अब लो...सम्हालो, कभी घुटने पर चोट लगती है, कभी दिल पर...रोंदू सी शकल लिए घूमते रहो फिर.
    बिलकुल सही कहा.सौ फीसदी सहमत .

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