बस इतना भर सोचना था, गीज़र चालू किया गया और एक एक करके सब नहा के ताज़ा हो गए...गैरतलब है कि रात के डेढ़ बज रहे थे. पीडी से रास्ता पूछा गया, ये पुराने यात्री रहे हैं इस रास्ते के...और अनुभव को कभी भी जाया नहीं करना चाहिए. कुल मिला के गाड़ी चलने वाले साढ़े तीन लोग थे, तीन लोग एकदम एक्सपर्ट और मैं एकदम कच्ची तो तय हुआ कि बारी बारी कार चलाएंगे. थोड़ा सा सामान पैक किया...कुछ कपड़े, तौलिया वगैरह और चप्पलें, चादर, तकिये...बस. दो बजते सब तैयार और गाड़ी में लोडेड. आई पॉड ख़राब हो रखा है तो फ़ोन से ही काम चलाना पड़ा. फाबिया में खूबी है कि किसी भी म्यूजिक प्लेयर को कनेक्ट कर सकते हैं.
मेरे नए फ़ोन...विवाज़...में जीपीएस की सुविधा है जो आपकी पोसिशन बताती है और ये मेरे उम्मीद से कहीं ज्यादा अच्छा परफोर्म करती है...मजे की बात कि मैंने अपने घुमक्कड़ी मूड के हिसाब से कर्णाटक का पूरा नक्शा खरीद के रखा था कि किसी दिन ऐसे ही मूड बन जाए तो भुतलाने का कोई स्कोप न हो...मैं ख़ुशी ख़ुशी उठी कि चेन्नई जाना है, अच्छा है मेरे पास मैप है...और जैसे ही मैप देखा तो देखा कि चेन्नई तो दूसरे राज्य में है :) अब इतनी लम्बी प्लानिंग तो मैं कर नहीं सकती. मैं अपने आप को टेक्निकली चैलेंज्ड (तकनीकी रूप से अक्षम ;) ) मानती थी...अब नहीं मानती. काफी खुराफात की है मैंने तो अब प्रोमोट होके तकनीकी जुगाडू मानती हूँ :)
एक्सप्रेस वे पर १०० की स्पीड तो सोचा था पर इतने ही स्पीड पर ओवेर्टेक करने की बात नहीं सोची थी, वो भी भीमकाय ट्रक और वैसे ही अजीबोगरीब वाहनों को तो किसी फिल्म जैसे लग रहे थे. सीधी खूबसूरत सड़क थी और कुणाल ऐसे चला रहा था जैसे हम कोई विडियो गेम खेल रहे हों. रात बेहद खूबसूरत थी...और गाने और भी प्यारे...कोई सात बजे लगभग हम चेन्नई पहुंचे...यहाँ से गोल्डन बीच जाना इतना मुश्किल था कि क्या कहें...सारे लोग तमिल में बात करते थे...प्रशांत को फ़ोन किया तो मेरे नेटवर्क में कुछ पंगा था...आवाज नहीं आई...उसने sms किया उससे कुछ आइडिया हुआ कि सही रास्ते जा रहे हैं. और फिर जीपीएस और भगवान भरोसे हम लोग रिसोर्ट पहुंचे.
थकान के मारे हालत ख़राब...और पेट में चूहे दौड़ रहे थे...ईसीआर कोस्ट पर कहीं कुछ खाने को ही नहीं मिल रहा था उतनी सुबह...इडली डोसा भी नहीं...जिस रिसोर्ट में टिके थे, उन्होंने खाना देने से इनकार कर दिया "सार दे वील नोट गीव यु" खाना पूछने पर किचन से यही जवाब मिला. हालत ऐसी हो गयी थी कि आधे घंटे और खाना नहीं मिलता तो सोच रहे थे प्रशांत से सत्तू मंगवाएंगे और घोर के पियेंगे ;) किसी तरह इन्तेजाम हुआ...और खा पी के अलार्म लगा के सो गए.
तीन बजे लगभग उठे, कॉफी पी और सीधे समुन्दर...चेन्नई में गोल्डन बीच को वीजीपी ग्रुप वालों ने खरीद लिया है, तो बीच पर जाने के लिए टिकट लगता है...मैं चेन्नई बहुत सालों बाद आई थी...यहाँ पानी बहुत साफ़ और पारदर्शी था...समंदर भी खूबसूरत नीला...मौसम सुहाना, थोड़ा बादल...थोड़ी धुप...समंदर का पानी गुनगुना...लहरें परफेक्ट...न ज्यादा ऊँची न ज्यादा शांत. सूरज डूबने तक हम पानी में ही बदमाशी करते रहे...चेन्नई में सूरज समंदर की विपरीत दिशा में डूबता है, तो शाम को समंदर का पानी एकदम सुनहला लगता है, पारदर्शी सुनहला...
दिन का समंदर और रात का समंदर एकदम अलग होते हैं...दिन को लहरें अलग थलग आती हैं...रात को जैसे गहरे नीले समंदर में बिजली कौंधती है, एक लहर बीच समंदर से उठती है और दौड़ती है दूसरी लहर का हाथ थामने...लम्बी पतली सफ़ेद रेखाएं...समंदर किनारे चुप चाप बैठना...थोड़ा और करीब ला देता है.
वापसी में तो मुझे पूरा यकीन था कि हम खो जायेंगे, आखिर फिर से डेढ़ बजे रात को रास्ता कौन बताएगा चेन्नई से बाहर जाने का...लगा कि अनजान शहर में एक अपना होना कितना विश्वस्त करता है...कि एकदम भटक गए तो प्रशांत को बुला लेंगे...बाइक उठा के आ जायेगा...भला आदमी है...एक बार भी मिली नहीं हूँ उससे हालाँकि...सोच रही थी...नेट पर बने रिश्ते भी कितने सच्चे से होते हैं.
जीपीएस के सहारे पूरे रास्ते आये...वाकई बड़े काम की चीज़ है, फोन लेते वक़्त सोचा भी नहीं था कि इसकी कभी जरूरत भी पड़ेगी और ये इतना काम भी आएगा...रात फिर से बहुत खूबसूरत थी...सुबह ६ बजे बंगलोर पहुँच गए...भागा भागी जाना....फटाफटी आना.
जिंदगी...आवारगी...जिंदगी
(पीडी का ख़ास धन्यवाद)
पानी गुनगुना...लहरें परफेक्ट...न ज्यादा ऊँची न ज्यादा शांत. सूरज डूबने तक हम पानी में ही बदमाशी करते रहे...चेन्नई में सूरज समंदर की विपरीत दिशा में डूबता है, तो शाम को समंदर का पानी एकदम सुनहला लगता है, पारदर्शी सुनहला..
ReplyDeleteरात को जैसे गहरे नीले समंदर में बिजली कौंधती है,
नेट पर बने रिश्ते भी कितने सच्चे से होते हैं
(पीडी क्या इतना अच्छा आदमी है :)
सुन्दर संस्मरण...
बधाई..न भुतलाने के लिए...
ReplyDeleteलेकिन फोटो सोटो लगा देना था न सुन्दर दृश्यों का...
आनंद का अंदाजा इसलिए लगा सकती हूँ कि मैं भी काफी कुछ इसी प्रवृत्ति की हूँ...
किसी ज़माने में तीन चार सौ किलोमीटर हम बाईक पर यूँ ही उठ काँधे पर बैग लटका घूम आया करते थे...
अब भी यदि एक महीना हो जाए कहीं भटके तो मन में मडोड़ उठने लगता है...
जब मैत्री का धरातल सोच विचार और अभिरुचि हो,तो यह प्रगाढ़ होता ही है,भले यह अपने आस पास मिले और बने या नेट पर...
ReplyDeleteब्लॉग वार्ता : शहर बदलतीं लड़कियां
ReplyDeleteरवीश कुमार
http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/57-62-132203.html
Or 11/08/2010 ka Dainik Hindustan, Hindi (Delhi Edition)
In Dainik Hindutan
(One of Leading National Hindi Dailies Newspapers)
पूजा उपाध्याय की कविताएं भी मन को छू लेती हैं। पूजा बंगलुरु में रहती हैं। शब्दों के साथ खेलना अच्छा लगता है। पूजा पत्रकार मालूम होती हैं। बारिशों में सोयी हो, अलसाई सी सोयी हो, थकी हो उदास हो, हां, मेरे आसपास हो, वहीं से लौट आओ जिन्दगी। एक और कविता है। बंगलौर में पड़ने लगी है हल्की सी ठंड, कोहरे को तलाशती हैं आंखें, मेरी दिल्ली, तुम बड़ी याद आती हो।
बेटियां शहरों को मायके सा प्यार करती हैं। मेरी ऑफिस की छत ग्रीन हाउस के ऊपर जैसी होती है न, वैसी है। तो जब जोर से बारिश होती है, तो पानी के बूंदों का शोर बिल्कुल फुल वोल्यूम में बजते ब्रायन अडम्स के गीत जैसा लगता है। प्लीज फारगिव मी, आई कांट स्टाप लविंग यू। पूजा के ब्लॉग पर जाने के लिए क्लिक कीजिएगा http:// laharein.blogspot.com। ब्लॉग न होता तो सार्वजिनक मंच पर इन लड़कियों की बातें कहां पहुंचती। डायरी में बंद रहकर सिरहाने के नीचे रह जातीं। वो कैसे अपने रिश्ते, अपने अहसासों को व्यक्त कर रही हैं। अपने प्यार करने की इच्छा पर लिख रही हैं। पूजा की एक कविता बोल्ड जैसी है।
आज मैंने एक सिगरेट सुलगा कर, होठों पे रख ली, याद आयी वो शाम, जब पहली बार तुम्हारा नाम लिया था। इनका लिखा आकर्षित करता है। जो किसी साहित्यिक रचना के कवर में छुपकर नहीं, खुलकर सामने सामने लिख रही हैं।
ravish@ndtv.com
लेखक का ब्लॉग है naisadak.blogspot.com
Puja ji .. If one is being discussed in One of Leading National Hindi Dailies Newspapers for ones creative work as writing, It's truly an achievement.
So On your this achievement I congratulate you.
I wish you all the best.
रोचक संस्मरण।
ReplyDeleteYe Post achhi lagi.
ReplyDeletePadhkar maza aaya.
आँधी की तरह जाना, तूफान की तरह आना। बंगलुरु और चेन्नई तो अभी तक हाँफ रहे होंगे।
ReplyDeleteचेन्नई का गोल्डन बीच रेसोर्ट सचमुच बहुत रमणीय है. सुन्दर संस्मरण.
ReplyDeletewow..क्या मस्त लगा होगा...एक्सप्रेस वे पे कार चलाना और वो भी स्पीड में...इसे कहते हैं खतरनाक टाइप का रोमांच :)
ReplyDeleteकाश अपने पास भी कार होती और हम भी ऐसे ही खतरनाक तेजी से स्टंट देते हुए एक्सप्रेस वे पे भागते दौड़ते जाते :P :P मैं तो तेज भागती दौड़ती कारों का सदा से प्रेमी रहा हूँ ... :)
बहुत मजा आया आपका ये संस्मरण पढ़ के... :)
ये प्रशान्तवा तो बहुत घूमते फिरते रहता है...तो वो ये सब मामले में एक्सपर्ट है ही :)
लेकिन आपसे एक विनती है, इस लड़के का नाम ऐसे लिखेंगी अपने ब्लॉग पे तो ये तो सातवें आसमान पे चढ़ जाएगा न :P
वैसे हमारा जी पी एस बड़ा बेवफा है .....जो नाम बताता है .उनसे वकिफियत नहीं होती नए शहर में
ReplyDeleteसच में एक्सप्रेसवे में गाड़ी में फर्राटा भरने का अलग मजा है,मुझे भी घूमने का बहुत शौक है,पर व्यस्तता इतनी बढ़ गयी है की समय ही नहीं मिलता है,पर मेरी गुजारिश है की मुझे १ बार रेस्पोंसे तो करो!!
ReplyDeleteया सिर्फ ब्लॉग पोस्ट ही करती हो या उसके प्रतिउत्तर भी दिया करती हो,
हम पटना कौल सर के यहाँ साथ में पढ़े हैं!!,
आशा के साथ की हमें प्रतिक्रिया मिलेगी
http://shatnaman.blogspot.com/
स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामानाओं के साथ
सबसे पहले आपको बहुत ही बधाई ......रविश ने आज आपके दैनिक हिंदुस्तान के बारे में लिखा है..साथ में सोनल के ब्लॉग के बारे में भई..बड़ा ही शाददार परिचय है आपका.....
ReplyDeleteआपके इस सफर ने मुझे दिल्ली-चंढ़ीगढ़ का सफर याद दिला दिया है...जो कभी कभी किसी न किसी दोस्त के साथ होता है...वो भी रात दो बजे ऑफिस से घर पहुंचने के बाद पता चलता है कि कोई महाश्य खड़े हैं ..तो रात को भागमभाग में कभी अंबाला तक ही पहुंच पाते हैं ... तो फिर वहीं दो-तीन घंटे रुक कर दिल्ली की वापसी होती है वापसी क्या सीधा ऑफिस....यानि बिना नींद के फिर से 10 घंटे की दिहाड़ी....पर यही जीवन हैं
और हां....आप कभी मेरे ब्लॉग पर नहीं आईं....कोई नाराजगी हो तो पहले ही माफी.....
ReplyDeletewww.boletobindas.blogspot.com
:)
ReplyDeleteइस स्माइली में बहुत सारे राज छुपे हैं.. व्यंग्य, कटाक्ष, सौम्यता, वाह-वाही, धन्यवाद.. और भी बहुत कुछ.. और ये स्माइली कमेन्ट समेत पोस्ट पढ़ने के बाद बना है..
बढ़िया संस्मरण ..
ReplyDeletecongrats pooja..aapki charcha akhbaar mein hain :)
ReplyDeleteसंस्मरण तो रोचक है ही पर मुझे सबसे ज्यादा खुशी ये जान कर हुई कि इंडिया में भी जी पी एस काम करते हैं :) और एक्सप्रेस वे पर १०० की स्पीड से गाड़ी चलाई जा सकती है ..यहाँ तो ७२ से ऊपर गए नहीं कि फिने घर पहुँच जाता है :(.
ReplyDeletebadiya lekh...
ReplyDeleteMeri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..
Banned Area News : Fears of epidemic after mudslide in China
बहुत मजा आया आपका ये संस्मरण पढ़ के... :)
ReplyDeleteभटक गए तो प्रशांत को बुला लेंगे...बाइक उठा के आ जायेगा...भला आदमी है
ReplyDeleteये लड़का आदमी कब बन गया भाई। :)
:)
ReplyDeleteसुन्दर संस्मरण....लेकिन हैरत शिखाजी को ही नहीं मुझे भी हुई :)
ReplyDeleteपूजा जी!
ReplyDeleteआपका ब्लॉग बहुत पसंद आया| दिन भर पढता रहा| पर कई दिन से आप ब्लॉग पर नहीं है|
धन्यवाद!
काफी दिनों बाद आपका ब्लॉग पढ़ा....बहुत सारी रचनायें जो मेरा इंतजार कर रही थीं उनको देखा ...समयाभाव के कारण नहीं पढ़ पा रहा हूँ पर जल्दी ही उन पर मैं अपनी राय दूँगा.
ReplyDeleteएक अच्छे सस्मरण के लिए धन्यवाद .
hamne bhi kahi baar esa kiya bus hum biker par or ap car mai , aapse prana mili agli baar kuch bada karenge
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