ऑफिस और घर की कवायद के बीच एक बहन कहाँ तक बची रह पाती है मालूम नहीं...वो भी तब जब तबीयत ऐसी ख़राब हो कि गाड़ी चलाना मुमकिन ना हो...किसी महानगर में जहाँ कुछ भी पैदल जाने की दूरी पर ना मिले...वो भी ऐसी जगह जहाँ पर राखी दुकानों में हफ्ते भर पहले ही आ पाती है.
पूरा बाज़ार घूमना, छोटे भाई का हाथ पकडे हुए...एक राखी ढूँढने के लिए...जो सबसे अलग हो, सबसे सुन्दर हो और जो भाई की कलाई पर अच्छी लगे...घर पर रेशम के धागों और फेविकोल का ढेर जमा करना साल भर...कि राखी पर अपने हाथ से बना कर राखी पहनाउन्गी..ऐसी राखी तो किसी के कलाई पर नहीं मिलेगी ना.
मेहंदी को बारीक़ कपडे से दो बार छानना...फिर पानी में भिगो कर दो तीन घंटे रखना...साड़ी फाल की पन्नी से कुप्प्पी बनाना...रात को पहले मम्मी को को मेहंदी लगाना...मेहंदी पर नीबू चीनी का घोल लगाना और पूरे बेड पर अखबार डाल के सोना...अगली सुबह देखना कि मेहंदी का रंग कितना गहरा आया है...जितना गहरा मेहंदी का रंग, उतना गहरा भाई का प्यार...सुबह उठ के नहा के तैयार हो जाना..राखी में हर बार नए कपडे मिलते थे...राखी बाँध कर झगडा करना, पूरे घर में छोटे भाई को पैसे लेने के लिए दौड़ाना...
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वो आसमान की तरफ देख रही है...भीगी आँखें, सोच रही है, पूछ रही है अगर कहीं कोई भगवान है तो...उलाहना...कोई मुझे प्यार नहीं करता...बहुत साल पहले...ऐसा ही उलाहना, जन्मदिन पर किसी ने चोकलेट नहीं दिया था तो...छोटा भाई पैदल एक किलोमीटर जा के ले के आता है...उस वक़्त वो अकेले जाता भी नहीं था कहीं.
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इस साल मेहंदी का रंग बहुत फीका आया है...नमक पानी रंग आने के लिए अच्छा होता भी नहीं है...रात डूबती जा रही है और मैं सोच रही हूँ कि अकेलापन कितना तकलीफदेह होता है...गहरे निर्वात में पलकें मुंद जाती हैं...जख्म को भी चुभना आ गया है...ये लगातार दूसरा साल है जब मेरी राखी नहीं पहुंची है...राखी के धागों में बहुत शक्ति होती है, वो भाई की हर तकलीफ से रक्षा करती है.
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नींद के एक ना लौटने वाले रास्ते पर...एक ही ख्याल...मेहंदी का रंग इस साल बहुत फीका आया है.