जाने क्यों मुझे कभी बाल पेन से लिखना अच्छा नहीं लगा
हमेशा स्याही वाली कलम या पेंसिल...
अधिकतर पेंसिल ही, और रबर तो हमेशा पास रहता था
याद है मुझे,
ग्लास में पानी भी ले कर बैठती थी
अगर कोई गलती हो जाए
एक बूँद पानी डाल देती थी
और स्याही धुल जाती थी
मुझे याद है कभी कभी ऐसा भी हुआ है
की पूरा पन्ना ले कर बाल्टी में डाल दिया
पता नहीं क्यों...पन्ने फाड़ती नहीं थी कभी मैं
धुल जाता था तो सुकून होता था
पेंसिल की भी अपनी कहानी है
उसकी नोक का स्वाद
कितने केमिस्ट्री के फोर्मुले में घुलता रहता था
कितने फिजिक्स के रहस्य में घिसता रहता था
रबर अक्सर खुशबू वाला लेती थी मैं
फलों वाला, अधिकतर स्ट्राबेरी
और अलग अलग आकार के
और एक मिटने के लिए नटराज का सफ़ेद
शायद बहुत पहले से ही
मैं जानती हूँ कि मुझसे गलतियाँ होंगी
इसलिए उन्हें ठीक करने का इंतजाम पहले करती हूँ
बचपन से गलतियाँ करती आ रही हूँ
अन्तर बस इतना है कि
अब लुत्फ़ आने लगा है...
बचपन से गलतियाँ करती आ रही हूँ
ReplyDeleteअन्तर बस इतना है कि
अब लुत्फ़ आने लगा है...
____ वाह! कया बात कह दी आपने मोहतरमा। एकदम सही। गलतियां करते करते जब उनकी आदत हो जाती है तो मजा देने लगती हैं।
बहुत खूब। गलतियां करने में मजा आने लगा।
ReplyDeleteक्या कहूं इसे संस्मरण या कविता? जो भी हो बहुत अच्छा
ReplyDeleteबचपन से गलतियाँ करती आ रही हूँ
ReplyDeleteअन्तर बस इतना है कि
अब लुत्फ़ आने लगा है...
गलती करना और फ़िर उस को गलती मानना .यह भी एक मजेदार अनुभव है ज़िन्दगी का ..अच्छी लगी पूजा आपको यह रचना ..
galti karna ek baat hai or uska khud pata chalna ki galti ho gayi hai dusri baat...
ReplyDeleteachchi rachna...
khaskar aakhri lines achchi lagi..
Sunder Shabd-chitra....
ReplyDeleteWah....
मित्रwar
हरियाणवी टोटके किस्से और कविताएं
haryanaexpress.blogspot.com
साइट पर भी उपलब्ध है
समय निकाल कर is par bhi आईयेगा
सुस्वागतम्
बचपन से गलतियाँ करती आ रही हूँ
ReplyDeleteअन्तर बस इतना है कि
अब लुत्फ़ आने लगा है...
बहुत खूब. बहुत बढ़िया है.
bahut masoom, bahut hi komal aur anmol yaadein. bahut hi acche se sahej kar rakha hai ise aapne. bahut hi sunder abhivyakti.
ReplyDeletethanks for sharing
aap agar samay nikal sake to mera kamra par kuch meri abhivyaktiyan hain. shayad pasand aayen aapko.
Manuj Mehta
www.merakamra.blogspot.com
bahut khub
ReplyDeleteHi Puja ...
ReplyDeleteJust scanned through all of your blogs ... you write beautifully ....
Here is the Dushyant ghazal you asked for :
Yeh dhuei.n ka ek ghera ki main jismei.n rah rahaa hoo.n
Mujhe kis kadar naya hai mai.n jo dard sah rahaa hoo.n
Yeh zameen tap rahi thi yeh makaan tap rahe the
Tera intezaar tha jo mai.n isi jagah rahaa hoo.n
Mai.n ThiThak gaya tha lekin tere saath-saath tha mai.n
Tu agar nadi hui to mai.n teri satah rahaa hoo.n
Sar pe dhoop aayee to darakht ban gaya mai.n
Teri zindagi mei.n aksar mai.n koii wajah rahaa hoo.n
Kabhi dil mei.n aarzoo-sa kabhi mu.nh mei.n bad-dua sa
Mujhe jis tarah bhi chaha mai.n usi tarah rahaa hoo.n
Mere dil pe haath rakho meri bebasi ko samjho
Mai.n idhar se ban raha hoo.n main udhar se Dhah rahaa hoo.n
Yahaa.n kaun dekhta hai yahaa.n kaun sochta hai
Ki yeh baat kya hui hai jo mai.n sher kah rahaa hoo.n
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And I would like to share these lines of dushyant's with you, in case you have not come across them before:
Geet gaakar chetna ko var diya maine
Aa.nsuo.n ke dard ko aadar diya maine
Preet meri aasthaa ki bhookh thi sahkar
Zindagi ka chitra poora kar diya maine
पेंसिल की भी अपनी कहानी है
ReplyDeleteउसकी नोक का स्वाद
कितने केमिस्ट्री के फोर्मुले में घुलता रहता था
कितने फिजिक्स के रहस्य में घिसता रहता था
कभी कभी सोचता हूँ..एक लड़की कितना सोचती है ,अपने साथ कितनी चीजे लेकर चल रही है....वो शायद दुष्यंत कुमार जी ने कभी कहा था न
"एक आदत सी बन गयी है तू
ओर आदत कभी नही जाती '
puja superb
kavita ne kuchh masum lamho ko zinda kar diya...aur ant mein bas ek befikri ke peshi...lajawab...
ReplyDeleteबहुत उम्दा लेखन।
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