31 October, 2017

प्यार। ढेर सारा प्यार।

कभी कभी तो ऐसा भी हुआ है कि पूरी शाम मुस्कुराने के कारण गालों में दर्द उठ गया हो. मैं उस वक़्त आसमान की ओर आँखें करती हूँ और उस उपरवाले से पूछती हूँ 'व्हाट हैव यु डन टु मी?' मैं शाम से पागलों की तरह खुश हूँ, अगर कोई बड़ा ग़म मेरी तरफ अब तुरंत में फेंका न तो देख लेना.
- उस लड़की में दो नदियाँ रहती थीं, [page no. 112, तीन रोज़ इश्क़]

30 August, 2017
आज वो दूसरी वाली नदी में उफान आया है।
धूप की नदी। सुख की। छलकती। बहती किनारे तोड़ के। खिलखिलाती।

याद करती एक शहर। दिल्ली की हवा में बजती पुराने गानों की धुन कैसी तो।  किसी पार्क में झूला झूलती लड़कियाँ खिलखिला के हँसतीं। छत पर खड़ा एक लड़का देखता एक लड़की को एक पूरी नज़र भर कर। चाय मीठी हुई जाती कितनी तो। लड़की अपने अतीत में होती। लड़का कहता, मुझे बस, ना, तुम्हारे जैसी एक बेटी चाहिए। कहते हुए उसका चेहरा अपनी हथेलियों में भर लेता। बात को कई साल बीत जाते लेकिन लड़की नहीं भूलती उसका कहना। बिछड़े हुए कई साल बीत जाते। लड़की देखती फ़ोन में एक बच्चे की तस्वीर। टूटे हुए सपने से बहता हुआ आता प्यार कितना तो। लड़की मुस्कुराती फ़ोन देख कर। असीसती अपने पुराने प्रेमी के बेटे को।

कहाँ रख दूँ इतनी सारी मुस्कान।
किसके नाम लिख दूँ। वसीयत कर दूँ। मेरे सुख का एक हिस्सा उसे दे दिया जाए। थोड़ी धूप खिले उसकी खिड़की पर। उसकी आँखों में भी। उसके शहर का ठंढा मौसम कॉफ़ी में घुलता जाए। कॉफ़ी कप के इर्द गिर्द लपेटी हुयी उँगलियाँ। कितने ठंढे पड़ते हैं तुम्हारे हाथ। नरम स्वेड लेदर के दास्ताने पहनती लड़की। कॉफ़ी शॉप पर भूल जाती कि टेबल के सफ़ेद नैपकिन के पास रह जाते दास्ताने। लड़का अगली रोज़ जाता कॉफ़ी शॉप तो वेट्रेस कहती, 'आपकी दोस्त के दास्ताने रह गए हैं यहाँ, ले लीजिए'। उसके गर्म हाथों को दास्ताने की ज़रूरत नहीं लेकिन पॉकेट में रख लेता है। फ़ोल्ड किए। नन्हें दास्ताने। कोई जा कर भी कितना तो रह जाता है शहर में।

कभी होता है, बहुत प्यार आ रहा होता है...इस प्यार आने का अचार कैसे डालते हैं मालूम ही नहीं। कहाँ रखते हैं इसको। भेजते हैं कैसे। किसको। जैसे लगता है कभी कभी। कोई सामने हो और बस टकटकी लगा के देखें उसको। कि जब बहुत तेज़ी से भागती हैं चीज़ें आँखों के सामने से तो रंग ठीक ठीक रेजिस्टर नहीं होते। लड़की चाहती कि उस रिकॉर्डिंग को पॉज़ कर दे। स्लो मोशन में ठीक उस जगह ठहरे कि जब उसका चेहरा हथेलियों में भरा था। उसका माथा चूमने के पहले देखे उसकी आँखों का रंग। याद कर ले शेड। कि कभी फिर दुखे ना ब्लैक ऐंड वाइट तस्वीरों में उसकी आँखों का रंग होना सलेटी।

प्यार। ढेर सा प्यार। बहुत ख़ूब सा। शहर भर। दिल भर। काग़ज़ काग़ज़ क़िस्सों भर। और भर जाने से ज़्यादा छलका हुआ।
किरदारों के नाम कैसे हों? 'मोह', शहर का नाम, 'विदा' लड़की का नाम, 'इतरां'। मगर सारे किरदार भी फीके लगें कि तुम्हारी हँसी के रंग जैसा कहाँ आए हँसना मेरे किसी किरदार को। तुम्हारी आवाज़ की खनक नहीं रच पाऊँ मैं किसी रंग की कलम से भी। कि चाहूँ कहना तुमसे, सामने तुम्हारे रहते हुए। एक शब्द ही। प्यार।

हमको कुछ चाहिए भी तो नहीं था।
हमको कभी कुछ चाहिए नहीं होता है। कभी कभी लिखने को एक खिड़की भर मिल जाए। एक पन्ना हो। चिट्ठी हो कोई। अटके पड़े नॉवल का नया चैप्टर हो। तुम्हारी हथेली हो सामने। उँगलियों से लिखती जाऊँ उसपर हर्फ़ हर्फ़ कर के जो कहनी हैं बातें तुमसे। कौन सी बातें ही? नयी बातें कुछ? चाँद देखा तुमने आज? आज जैसा चाँद पहले कहाँ निकला था कभी। आज जैसा प्यार कहाँ किया था पहले कभी भी तो। पर पहले तुम कहाँ मिले थे। किसी और से कैसे कर  लेती तुम्हारे हिस्से का, तुम्हारे जैसा - प्यार।

कैसे होता है। जिया हुआ एक लम्हा कितने दिनों तक रौशन होता है। वो पल भर का आँख भर आना। मालूम नहीं सुख में या दुःख में। बीतता हुआ लम्हा। बिसरता हुआ कोई। पूछूँ तुमसे। क्यूँ? मगर तुम्हारे पास तो सारे सवालों के जवाब होते हैं। और बेहद सुंदर जवाब। सवालों से सुंदर। कितना अच्छा है इसलिए तुमसे बात करना। कहीं कुछ अटका नहीं रहता। कुछ चुभता नहीं। कुछ दुखता नहीं। सब सुंदर होता। सहज। सत्यम शिवम् सुंदरम। जैसा शाश्वत कुछ। लम्हा ऐसा कि हमेशा के लिए रह जाए। ephemeral and eternal.

और तुम। रह जाओ ना हमेशा के लिए। नहीं?
उन्हूँ...हमेशा वाले दिन अब समझ नहीं आते। तुम जी लो इस लम्हे को मेरे साथ। रंग में। ख़ुशबू में। छुअन में। कि सोचूँ कितना कुछ और कह पाऊँ कहाँ तुमसे। कौन शब्द में बांधे मन की बेलगाम दौड़ को। नदी हुए जाऊँ। बाँध में सींचती रही कितनी कहानियाँ मगर लड़की का मन, तुमसे मिलकर फिर से नदी हुआ जाता। पहाड़ी नदी। जो हँसती खिलखिल।

सपने में खिले, पिछली बरसात लगाए हुए गुलाब। आँख भर आए। सुख। जंगली गुलाबों की गंध आए सपनों में। टस लाल। कॉफ़ी की गंध। कपास की। किसी के बाँहों में होने की गंध। मुट्ठी में पकड़े उसके शर्ट की सलवटें। क्या क्या रह जाए? सपने से परे, सपने के भीतर?

कहूँ तुमसे। कभी। कह सकूँ। आवाज़ में घुलते हुए।
प्यार। ढेर सारा प्यार। 

No comments:

Post a Comment

Related posts

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...