13 October, 2017

दस साल एक बहुत लम्बा अरसा होता है। ज़िंदगी का लगभग एक तिहाई। वो भी तब, जब पहले दो तिहाई हिस्से किसी के साथ गुज़रें हों। बचपन से लेकर लड़कपन तक।

जब तुम गयी थी मम्मी। हमको सबने कहा कि वक़्त के साथ आसान होंगी चीज़ें। भूलना आसान। तुम्हारे नहीं होने के साथ जीना आसान। हुआ कुछ नहीं, सिवाए इसके कि दुनिया को इसके बारे में कहना बंद कर दिया। एक ही उदास कहानी कोई कितनी बार सुने। यूँ भी ठहरा हुआ कुछ किसी को अच्छा नहीं लगता।

लेकिन ठहरे हुए हम हैं। बहुत साल पुराने। हर पर्म्यूटेशन कॉम्बिनेशन को परखते। कि क्या कोई और ऑल्टर्नट रीऐलिटी हो सकती थी। इस ज़िंदगी पर बेतरह अफ़सोस करते हुए। जीने की कोई और राह निकालते हुए।

इतने सालों में हुआ ये बस कि तुम्हारे बारे में किसी से ना बात कर पाते हैं अब...ना कह पाते हैं किसी को कुछ भी। दुःख को इंटर्नलायज़ करना कहते हैं इसे शायद। एक ज़िंदा टीसते दुःख के साथ जीना। बहुत मुश्किल होता है कह पाना। इस दुःख को किसी दिशा में रख पाना। साँस ले पाना ही क़रीने से।

यूँ पिछले दस सालों में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ ख़ास जो तुमने मिस किया। लेकिन तुम होती तो यही छोटी छोटी बातें ख़ास होतीं। तुम होती तो मेरे ज़िंदगी का कोई मतलब होता मम्मी। इतनी बड़ी दुनिया के एक छोटे से कोने में सिमट कर नहीं जीती मैं। शायद किसी आसमान पर अपना नाम लिखने की ख़्वाहिश जो हम दोनों ने पाली थी...हम उसे सींचते। मैं तुम्हारे लिए तो ख़ास थी। सबसे स्पेशल।

तुम्हारे जाने के बाद कॉन्फ़िडेन्स हर कुछ दिन में रसातल में चला जाता है और मर जाने का ख़याल मेरे इस डिप्रेशन को बार बार उकसाता है, दुलराता है। अवसाद मुझे अकेला नहीं छोड़ता माँ। मैं लड़ना नहीं छोड़ती लेकिन थक जाती हूँ अक्सर। हर लम्हे लड़ लड़ के कितना ही जिए कोई। फिर ये अकेली लड़ाई है कि इसका बोझ किसी के साथ बाँटा नहीं जा सकता। परिवार के साथ नहीं। दोस्तों के साथ तो और नहीं।

बहुत बहुत बहुत साल हो गए।
आज तुम्हारी दसवीं बरसी है।

और अब भी बहुत बहुत बहुत दुखता है।

I love you ma, and I miss you. I miss you so much. 

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