खुल कर मुस्कुराना...गुनगुनाते हुए चलना कि कदम थिरक रहे हों...जरा सा झूमते हुए से...ओब्सीन लगता है...गलीज...कि जैसे हम कोई गुनाह कर रहे हों. कि जैसे दुनिया कोई मातम मना रही हो सफ़ेद लिबास में और हम होलिया रहे हैं. बैंगलोर में ही ऐसा होता है कि पटना में भी होने लगा है हमको मालूम नहीं. सब कहाँ भागते रहते हैं. दौड़ते रहते हैं. हम जब सुबह का नाश्ता साथ कर रहे होते हैं मुझे देर हो जाती है रोज़...मैं धीरे खाती हूँ और खाने के बीच बीच में भी बात करती जाती हूँ. मेरे दोस्त जानते हैं. मैं उसकी हड़बड़ी देखती हूँ. उसे ऑफिस को देर हो रही होती है. ये पांच मिनट बचा कर हम क्या करेंगे. जो लोग सिग्नल तोड़ते हैं या फिर खतरनाक तेज़ी से बाइक चलाते हैं उन्हें कहाँ जाना होता है इतनी हड़बड़ी में.
आजकल तो फिर भी मुस्कान थोड़ी मद्धम पड़ गयी है वरना एक वक़्त था कि मेरी आँखें हमेशा चमकती रहती थीं. मुझे ख़ुशी के लिए किसी कारण की दरकार नहीं होती थी. ख़ुशी मेरे अन्दर से फूटती थी. बिला वजह. सुबह की धूप अच्छी है. होस्टल में पसंद का कोई खाना बन गया. खिड़की से बाहर देखते हुए कोई बच्चा दिख गया तो उसे मुंह चिढ़ाती रही. ऑफिस में भी हाई एनर्जी बैटरी की तरह नाचती रहती दिन भर. कॉलेज में तो ये हाल था कि किसी प्रोजेक्ट के लिए काम कर रहे हैं तो तीन दिन लगातार काम कर लिए. बिना आधा घंटा भी सोये हुए. लोग तरसते थे कि मैं एक बार कहूँ, मैं थक गयी हूँ. अजस्र ऊर्जा थी मेरे अन्दर. जिंदगी की. मुहब्बत की. मुझे इस जिंदगी से बेइंतेहा मुहब्बत थी.
रही सही कसर मोबाइल ने पूरी कर दी है. अजीब लगेगा सुनने में मगर कई बार मेरे घर में ऐसा हुआ है कि चार लोग बैठे हैं हॉल में और सब अपने अपने फोन पर व्हाट्सएप्प पर एक दूसरे से ही किसी ग्रुप के भीतर बात कर रहे हैं. मुझे अक्सर क्लास मॉनिटर की तरह चिल्लाना पड़ता है कि फ़ोन नीचे रखो और एक दूसरे से बात करो. कभी कभी सोचती हूँ वायफाय बंद कर दिया करूँ. मैं पिछले साल अपने एक एक्स-कलीग से मिलने गयी थी स्टारबक्स. राहिल. मैंने उससे ज्यादा बिजी इंसान जिंदगी में नहीं देखा है. क्लाइंट्स हमेशा उसके खून के प्यासे ही रहते हैं. उन्हें हमेशा उससे कौन सी बात करनी होती है मालूम नहीं. वे भूल जाते हैं कि वो इंसान है. कि उसका पर्सनल टाइम भी है. इन फैक्ट हमने अपने क्लाइंट्स को बहुत सर चढ़ा भी रखा है. राहिल जब मिलने आया तो उसने अपने दोनों फोन साइलेंट पर किये और दोनों को फेस डाउन करके टेबल पर रख दिया. कि मेसेज आये या कॉल आये तो डिस्टर्ब न हो. कोई आपको अपना वक़्त इस तरह से देता है माने आपने इज्जत कमाई है. उसके ऐसा करने से मेरे मन में उसके प्रति सम्मान बहुत बढ़ गया. रेस्पेक्ट जिसको कहते हैं. म्यूच्यूअल रेस्पेक्ट. वो उम्र में कमसे कम पांच साल छोटा है मुझसे जबकि. मैं किसी से मिलती हूँ तो मोबाइल साइलेंट पर रखती हूँ. अधिकतर फोन कॉल्स उठाती नहीं हूँ. मुझे फोन से कोफ़्त होती है इन दिनों. मैं वाकई किसी बिना नेटवर्क वाली जगह पर छुट्टियाँ मनाने जाना चाहती हूँ.
और चाहने की जहाँ तक बात आती है. मैं कुछ ज्यादा नहीं. बस चिट्ठियां लिखना चाहती हूँ. ये जानते हुए भी कि ऐसा सोचना खुद को दुःख के लिए तैयार करना है. मैं जवाब चाहती हूँ. मैं नहीं चाहती कि कोई मुझे चिट्ठियां लिखे. मगर इतना जरूर कि मेरी लिखी चिट्ठियों का जवाब आये.
ख़ुशी गुम होती जा रही है. आप कुछ कीजिये अपनी ख़ुशी के लिए. अपने बॉस, अपने जीवनसाथी, अपने माता-पिता, अपने दोस्तों, अपने बच्चों की ख़ुशी के अलावा...कुछ ऐसा कीजिये जिसमें आपको ख़ुशी मिलती हो. इस बारे में सोचिये कि आपको क्या करने से ख़ुशी मिलती है. दौड़ने, बागवानी करने, अपनी पसंद का खाना बनाने में, दारू पीने में, सुट्टा मारने में, डांस करने में, गाने में...किस चीज़ में? उस चीज़ के लिए वक़्त निकालिए. जिंदगी बहुत छोटी है. अचानक से ख़त्म हो जाती है.
दूसरी बात. आपको किनसे प्यार है. दोस्त हैं. महबूब हैं. परिवार के लोग हैं. पुराने ऑफिस के लोग. उनसे मिलने का वक़्त निकालिए. यकीन कीजिये अच्छा लगेगा. आपको भी. उनको भी. जिंदगी किसी मंजिल पर पहुँचने का नाम नहीं है. ये हर लम्हा बीत रही है. इसे हर लम्हे जीना चाहिए. जिंदगी से फालतू लोग निकाल फेंकिये. जिनके पास आपके लिए फुर्सत नहीं है उनके लिए आपके पास वक़्त क्यूँ हो. उन लोगों के साथ वक़्त बिताइए जिन्हें आपकी कद्र हो. जिन्हें आप अच्छे लगते हों. और सुनने में ये भी अजीब लगेगा, लेकिन लोगों को हग किया कीजीये, जी हाँ, वही जादू की झप्पी. सच में काम करती है. मेरी बात मान कर ट्राय करके देखिये. शुरू में थोड़ा अजीब, चेप टाइप भले लगे, लेकिन बाद में अच्छा लगने लगेगा. सुख जैसा. सुकून जैसा. बचपन के भोलेपन जैसा.
और सबसे जरूरी. खुद से प्यार करना. कोई भी परफेक्ट नहीं होता है. आपसे गलितियाँ होंगी. पहले भी हुयी होंगी. पिछली गलतियों को माफ़ नहीं करेंगे तो आगे गलितियाँ करने में कितना डर लगेगा. इसलिए खुद को हर कुछ दिन में क्लीन स्लेट देते रहिये. हम एक नए दौर में जी रहे हैं जिसमें कुछ भी ज्यादा दिनों नहीं चलता. उदासियाँ ओढ़ने का क्या फायदा. मूव ऑन.
यही सब बातें मैं खुद को भी कहती हूँ. इस दुनिया को जरा सी और खुशी की जरूरत है. जरा मुस्कुराईये. मुहब्बत से.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-04-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2326 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आज की बुलेटिन जोहरा सहगल जी की जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteGood one. It is really rare to see a happy face these days
ReplyDeleteमैंने परसों ही अपना वाट्सएप्प डिलीट किया, फेसबुक को डिएक्टिवेट किया, कुछ पल सिर्फ अपने लिए रखने के लिए. मैं क्या कर रहा हूँ, कहाँ जा रहा हूँ, ये किसी को पता ना चले. सिर्फ खुद के लिए जीने के लिए कुछ दिनों की मोहलत ली है.
ReplyDeleteदेर से आपके ब्लॉग पर पहुंच पाया हूँ। लेकिन अच्छा लग रहा है।
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