आसमान पर चढ़ बैठा है
लहर लहर बारिश हो रही है
शहर अँधेरे पानी में डूब गया है
इसी पानी में सूरज भी घुला था
पर उसकी रौशनी कहीं भी नहीं पहुंची है
सारे घर लंगर डाले बैठे हैं
किसी की नींव उठाई नहीं जा सकती अब
थपेड़ों में अचल, शांत, अमूर्त
मोमबत्ती की बुझने वाली लौ में
जलाई जा रही है आखिरी सूखी सिगरेट
जिसके कश लेकर मरना चाहता है कवि
प्रलय के इस वक़्त भी वह नास्तिक है
इश्वर से जीतने पर गर्वोन्मत्त
इच्छा, आशा, क्या प्रेम भी? से मुक्त
गरजते बादल में कौंधती है बिजली
एक क्षण. काली आँखें. रोता बच्चा
कवि को गुजरती बारात याद आती है
जल विप्लव सी सांझ वो काली आँखें
सिन्दूरी सूरज सा लाल जोड़ा
भयावह शोर नगाड़ों का, प्रलय.
नींद टूटती है तो उसके हाथ जुड़े होते हैं
सपने में नास्तिक होना संभव नहीं होता
वो कल्कि अवतार का इंतज़ार करने लगता है
पढते हुए ऐसा लग रहा था जैसे कामायनी पढ़ रहा हूँ..(मजाक नहीं, सच्ची)
ReplyDeleteअब रात बहुत हो गयी है, इतनी की मेरा दो बजिया बैराग्य भी खत्तम हो रहा है और तुम्हारी कवयित्री जाग रही है? गलत बात, जाओ जाके सुत जाओ.. :)
बहुत अच्छी रचना.
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना.
ReplyDeleteसपने में व्यक्ति अकेला होता है, नास्तिक न होने के सिवा चारा क्या है उस के पास?
ReplyDeleteइक अमूर्त सी कविता .......निर्वैयक्तिक... जितना मन ने पकड़ना चाहा वह और छिटक कर दूर हुयी ...मगर कितने ही बिम्बों को समेटे हुए ....सशक्त भावों से लबरेज मगर रिजल्तेंट इफ़ेक्ट /नाक आउट एफ्फेक्ट कुछ नहीं ...सिनर्जी क्यूं नहीं है कविता में ....क्या यह आज के मानुष जीवन का ही तो प्रतिबिम्बन नहीं है ?
ReplyDeletebade hi adbhut tareeke se aaj ke haalaat ubhaar diye rachna me...bahut khoob...
ReplyDeleteईश्वर को जीतने की इच्छा रखना मात्र आस्तिकता का प्रतीक है ।
ReplyDeleteस्वप्न में व्यक्ति अकेला होता है, किसी का भरोसा नहीं । स्वयं से जूझते हुये से लगते हैं सब ।
मैं स्वप्न में नास्तिक होता हूँ, उठते ही वास्तविकता को देख अपना अस्तित्व जान लेता हूँ । ईश्वर पर विश्वास न करने का कोई कारण नहीं लगता ।
इस अनुभव में आपसे असहमत ।
नींद टूटती है तो उसके हाथ जुड़े होते हैं
ReplyDeleteसपने में नास्तिक होना संभव नहीं होता
वो कल्कि अवतार का इंतज़ार करने लगता है
बेहद खूबसूरत भाव....सुन्दर प्रस्तुति
आज कुछ खास दिन है सो पहले ही मूड अच्छा रखने की कोशिश ठानी है. पर इतना खास होगा सोचा नहीं था यानि दिन की शुरुआत इस सुन्दर सी कविता से... तुम क्या खूब लिखती हो मैं बता नहीं सकता...
ReplyDeleteसमंदर सूरज पर कमंद फेंक कर
आसमान पर चढ़ बैठा है
लहर लहर बारिश हो रही है
कई बार तुम्हारे शब्दों से मुझे इर्ष्या होती है. मेरे दिमाग में ऐसे बिम्ब क्यों नहीं आते
सारे घर लंगर डाले बैठे हैं
... कैसी प्रतीक्षा है !!!!!
जिसके कश लेकर मरना चाहता है कवि
एक शब्द - अद्भुत
इश्वर से जीतने पर गर्वोन्मत्त
- साहसिक वक्तव्य
जल विप्लव सी सांझ वो काली आँखें
--- क्या बिम्ब है, गज़ब.
मैंने कोशिश की है कि पूरी कविता ही उठा लूँ... पर जो रह गए उसकी भी तारीफ ही समझो... इसे कहते हैं कविता पर कम हाथ आजमाना पर जब आजमाना तो क़दमों में जमाना...
और, बांकी कब ?
कवयित्री की ऐसी ही उदगार पर दिल से निकलती है
ReplyDelete"वत्स मांगो लो जो चाहिए, इक्छा फलीभूत होगी, तथास्तु "
नींद टूटती है तो उसके हाथ जुड़े होते हैं
ReplyDeleteसपने में नास्तिक होना संभव नहीं होता
वो कल्कि अवतार का इंतज़ार करने लगता है
bahut khub
पूरा पढ़ तो मेरे भी हाथ जुड़ गए हैं....
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर...लाजवाब रचना...कितनी भी तारीफ़ करूँ कम हैं...
bahut sunder rachana hai
ReplyDeleteसपना तो सपना होता है उसमे कुछ भी हुआ जा सकता है । यह कविता और विस्तार माँगती है ।
ReplyDeleteसपना तो सपना होता है उसमे कुछ भी हुआ जा सकता है । यह कविता और विस्तार माँगती है और शिल्प मे सुधार भी ।
ReplyDeleteAwesome!!!
ReplyDeleteI like follwoing lines :
मोमबत्ती की बुझने वाली लौ में
जलाई जा रही है आखिरी सूखी सिगरेट
जिसके कश लेकर मरना चाहता है कवि
Smiles :)
Prashant
sahi kaha aapne....
ReplyDeleteishwar ko nakaraa nahi ja sakta...
achhi rachna ke liye badhai...
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mere blog par meri nayi kavita,
हाँ मुसलमान हूँ मैं.....
jaroor aayein...
aapki pratikriya ka intzaar rahega...
regards..
http://i555.blogspot.com/
Ham to aapki qalam ke kayal ho chuke hain ji....chura kar poem save kar li hamne.....gurur mat karna....Darte hain saraswati roothi to kya hoga? zyada tareef sunogi to indigestion ho jayega :-) So beware
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