सूनी घाटी पर्वत पर्वत
दरिया सा भटका करता हूँ
किसी मुहाने पल भर रुक कर
जाने ख़ुद से क्या कहता हूँ
तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
मैं तुम में तुम सा रहता हूँ
आँसू की फितरत खो जाना
मैं गम को ढूँढा करता हूँ
जख्म टीसते हैं सदियों के
नीम बेहोश सदा रहता हूँ
जली हुयी अपनी बस्ती में
चलता हूँ, गिरता ढहता हूँ
घुटी हुयी लगती हैं साँसे
ख़ुद से जब तनहा मिलता हूँ
ख़त्म हो गई चाँद की बातें
चुप उसको ताका करता हूँ
मर जाना भी काम ही है एक
बरहाल, जिन्दा रहता हूँ
.. :) your stories your poems, everything you post on your blog is a treat to read, kitni aasni se kitne ache se samet deti hai aap dil ki batein
ReplyDeleteवाह शब्दों क्या को संजोया है .
ReplyDeleteवैसे आपको इंडीब्लोगर कविता प्रतियोगिता में तीसरे क्रम पर देख कर अच्छा लगा
मैं तुम में तुम सा रहता हूँ
ReplyDeletekya baat hai ...
अह... हा! आहा ! क्या जायका है... छोटे-छोटे उजले मोतियों वाला हार...
ReplyDelete"तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
ReplyDeleteमैं तुम में तुम सा रहता हूँ
ख़त्म हो गई चाँद की बातें
चुप उसको ताका करता हूँ"
पहाडी झरने सा प्रवाह है वैसा ही मिजाज है !
कविता भा गई !
मर जाना भी काम ही है एक
ReplyDeleteबरहाल, जिन्दा रहता हूँ
क्या बात है पूजा....बड़ा शायराना अंदाज़ है!
तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
ReplyDeleteमैं तुम में तुम सा रहता हूँ
अद्भुत......
प्रकृति और इंसान में कितनी समानता है, आपकी कई पंक्तिया तो यही कह रही हैं ...
ReplyDeleteघुटी सी लगती हैं साँसे
खुद से जब तनहा मिलता हूँ
और
मर जाना भी एक काम है
फिलहाल जिन्दा रहता हूँ
बहुत सुन्दर शब्दों में इज़हार किया है...
बहुत अच्छा..
ReplyDeleteतुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
मैं तुम में तुम सा रहता हूँ
सुन्दर
बहुत बढ़िया रचना भाव पक्ष बेहद खुबसूरत हैं... और बह'र में भी हो सकती थी यह रचना बस थोडी सी ठोका पिटी करके... बहुत बढ़िया बधाई कुबूल करें
ReplyDeletegustaakhi muaaf
अर्श
एक नया अंदाज़...माशा अल्लाह!!
ReplyDeleteज़िन्दा तो रहना ही है ..बहरहाल ।
ReplyDeleteवाह क्या बात है , बहुत सुंदर.
ReplyDeleteधन्यवाद
मर जाना भी काम ही है एक
ReplyDeleteबरहाल, जिन्दा रहता हूँ"
bahut sunder.... behrateen sher hai yeh ekdam.....
मर जाना भी काम ही है एक
ReplyDeleteबरहाल, जिन्दा रहता हूँ
वाह :) ..कुछ पूछना था, comment form ke neeche shabdon ka safar ka link kyun rehta hai har baar?
Main us par jab click kerta hoon, tumhara kahin koi reference nahi milta
@arsh...kya karun, bahar ke naam se hi mujhe bukhar chadhne lagta hai...bachpan se hi math kamjor raha hai.
ReplyDelete@pankaj...maine nahin diya hai shabdon ka safar ka link...pata nahin kaise rahta hai...thodi khoj khabar karti hoon fir bataungi :)
Wah!!!!!!! puja Bahut acche se sabdo ko sanjoya hai aapne
ReplyDeleteतुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
मैं तुम में तुम सा रहता हूँ
तुमसे जुदा कैसे हो जाऊं
ReplyDeleteमैं तुम में तुम सा रहता हूँ...awesome....
एक और बेहतरीन रचना!
ReplyDeleteबधाई.
मन को भा गयी यह रचना, बहुत प्रभावशाली ! शुभकामनायें!
ReplyDeleteअरे, तुम्हें पता भी है कितनी लाजवाब ग़ज़ल कह डाली है तुमने...!!!
ReplyDeleteबेहतरीन !
एक-दो जगह को नजरअंदाज करें तो बकायदा छंद पे कसी हुई है।
मैं तुम में तुम सा रहता हूं..और खत्म हो गयी चांद की बाते...पे खूब-खूब तालियां- दिल से!
पूजा
ReplyDeleteबस यह जिजीविषा ही इंसान को मरने नहीं देती है .
Ye wala zabardast hai. ek dum gulzar ki triveni ki tarah. vo teen line main karte hain, aapne do line main hi kaam kar dala.
ReplyDeleteतुमसे जुदा कैसे हो जाऊं, मैं तुम में तुम सा रहता हूँ। मर जाना भी काम ही है एक, बरहाल, जिन्दा रहता हूँ।