प्रेम हर साल बाढ़ में बह जाने वाला, गरीब का
अस्थाई झोंपड़ा होता है।
***
साईंस ने बहुत कुछ नाशा भी तो है।
धरती जो दिखती है समतल, दरअसल गोल होती है।
सूरज नहीं घूमता धरती के चारों-ओर,
धरती ही घूमती है, गोल गोल।
बिछोह, उदासी, इंतज़ार, बेवफ़ाई…तुम्हारे दिल में भी जाने क्या क्या हो,
तुम्हें भरम होता है कि मुहब्बत है।
***
हम सच में उतर सकते हैं चाँद पर।
सपने में मेरा हाथ पकड़ के मत चला करो
तुमसे दूर जाने की ख़ातिर चाँद तक जाना पड़ेगा।
***
मैं तुम्हें भूलने को कहाँ जाऊँ?
दुनिया में ऐसा कौन शहर होगा, जिसमें तुम्हारा इंतज़ार नहीं।
***
प्रेम के ईश्वर ने प्रसन्न होकर मुझे एक बेहद खूबसूरत और धारदार खुखरी दी थी। इंतज़ार की।
और साथ में यह वरदान कि मेरा क़त्ल सिर्फ़ इसी खुखरी से हो सकता है।
इंतज़ार की वह खुखरी मैंने तुम्हें दी ही इसलिए थी,
कि जब मेरी मुहब्बत तुम्हें ज़्यादा सताने लगे,
तुम मेरी जान ले सको।
इसे बेहिचक उतारो मेरे सीने में,
तुम्हें हर जन्म में मेरा खून माफ़ है।
***
बिछड़ना इस दुनिया में एक खोयी हुई शय है
महसूस होते हैं सब दोस्त - मेसेज, वीडियो कॉल और ईमेल से एकदम क़रीब।
लेकिन प्रेमी बिछड़ते रहते हैं अब भी
रेलवे प्लेटफ़ार्म पर पसीजी हथेली और धड़कते दिल के साथ
जैसे ये दुनिया ख़त्म हो जाएगी उनके दूर जाते ही।
वे ईश्वर के पास चिरौरी करेंगे
धरती पर एक और जन्म के लिए
एक साझे भूगोल के लिए।
एक आख़िरी सिगरेट के लिए।
बरसात के लिए। समंदर के लिए।
वे ईश्वर की खंडित प्रतिमाओं के सामने खड़े सोचते रहेंगे
टूटा, अधूरा प्रेम इसलिए है…कि हमने ग़लत ईश्वर से मनौती माँगी
वे तलाशते रहेंगे अपना साझा ईश्वर
कई जन्म तक…
साईंस ने बहुत कुछ नाशा भी तो है।
धरती जो दिखती है समतल, दरअसल गोल होती है।
सूरज नहीं घूमता धरती के चारों-ओर,
धरती ही घूमती है, गोल गोल।
बिछोह, उदासी, इंतज़ार, बेवफ़ाई…तुम्हारे दिल में भी जाने क्या क्या हो,
तुम्हें भरम होता है कि मुहब्बत है।
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हम सच में उतर सकते हैं चाँद पर।
सपने में मेरा हाथ पकड़ के मत चला करो
तुमसे दूर जाने की ख़ातिर चाँद तक जाना पड़ेगा।
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मैं तुम्हें भूलने को कहाँ जाऊँ?
दुनिया में ऐसा कौन शहर होगा, जिसमें तुम्हारा इंतज़ार नहीं।
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प्रेम के ईश्वर ने प्रसन्न होकर मुझे एक बेहद खूबसूरत और धारदार खुखरी दी थी। इंतज़ार की।
और साथ में यह वरदान कि मेरा क़त्ल सिर्फ़ इसी खुखरी से हो सकता है।
इंतज़ार की वह खुखरी मैंने तुम्हें दी ही इसलिए थी,
कि जब मेरी मुहब्बत तुम्हें ज़्यादा सताने लगे,
तुम मेरी जान ले सको।
इसे बेहिचक उतारो मेरे सीने में,
तुम्हें हर जन्म में मेरा खून माफ़ है।
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बिछड़ना इस दुनिया में एक खोयी हुई शय है
महसूस होते हैं सब दोस्त - मेसेज, वीडियो कॉल और ईमेल से एकदम क़रीब।
लेकिन प्रेमी बिछड़ते रहते हैं अब भी
रेलवे प्लेटफ़ार्म पर पसीजी हथेली और धड़कते दिल के साथ
जैसे ये दुनिया ख़त्म हो जाएगी उनके दूर जाते ही।
वे ईश्वर के पास चिरौरी करेंगे
धरती पर एक और जन्म के लिए
एक साझे भूगोल के लिए।
एक आख़िरी सिगरेट के लिए।
बरसात के लिए। समंदर के लिए।
वे ईश्वर की खंडित प्रतिमाओं के सामने खड़े सोचते रहेंगे
टूटा, अधूरा प्रेम इसलिए है…कि हमने ग़लत ईश्वर से मनौती माँगी
वे तलाशते रहेंगे अपना साझा ईश्वर
कई जन्म तक…
बिछड़ते रहेंगे…कभी-कभी, अक्सर, हमेशा…
***
जैसे दो दर्पण रख दिये हों एक दूसरे के सामने
वे झांकते हैं एक दूसरे की आँखों में
अनंत संभावनाओं से सम्मोहित हो कर।
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हम सब प्रेम में हुए जाते हैं कुछ और
बारिश की चाहना से भरा है रेगिस्तान का लड़का
प्यास के रेगिस्तान में भटक रही है गंगा किनारे की लड़की
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मुझे हथियारों में बहुत रुचि है। किसी भी क़िले में शस्त्रागार देख कर बहुत खुश होती हूँ। क़िले की संरचना में आक्रमणकारियों से बचाव के लिए क्या क्या ढाँचे बनाये गये हैं, उनपर इतने सवाल पूछती हूँ कि कभी कभी गाइड परेशान हो जाते हैं। पुरानी तोपें, असला-बारूद, तलवार/भाला/खुखरी/जिरहबख़्तर…इनके इर्द-गिर्द नोट्स बनाती तस्वीर खींचते चलती हूँ।
बहुत साल पहले फ़्रांस और स्विट्ज़रलैंड के बॉर्डर पर एक क़िला देखने गई थी, Château d’Chillon, बड़ी सी झील के किनारे बना हुआ क़िला जिसमें सात तरह के दरवाज़ों की भूलभुलैया बनी हुई थी। वहाँ लॉर्ड बायरॉन को गिरफ़्तार कर के रखा गया था। वहीं मैंने पहली बार मांसभक्षी चूहों के बारे में सुना था। उसकी कालकोठरी ठंढी और सीली थी। झील का पानी हमेशा वहाँ रिस कर आता रहता था। ऐसी उदास, नैराश्य भरी जगह पर रहने के बावजूद किसी कवि के भीतर कोमलता, प्रेम कैसे पनप गया, मैं सोचती रही। वहाँ एक खंभे पर Byron का सिग्नेचर था। पत्थर में खुदा हुआ। ICSE syllabus में बायरॉन की कविता, She walks in beauty like the night पढ़ी थी। मैं उस सितारों भरी रात जैसी लड़की के बारे में सोचती रही। इस अंधेरे कमरे में जिसकी आँखों की चमक का एक हिस्सा भी नहीं आएगा कभी। प्रेम अपराजेय है।
कभी कभी सोचती हूँ, इन्हीं किलों की तरह अपना दिल बनाऊँगी। अपराजित…अजेय…जहाँ की सारी मीनारों पर आज़ादी का परचम हमेशा लहराता रहे…
हमारा दिल एक हाई-टेक क़िला हो रखा है, बहुत हद तक सुरक्षित। दिल तक पहुँचने वाली गुप्त सुरंगों के व्यूह में ख़तरनाक हथियार लगे हैं। मोशन-डिटेक्शन वाले ख़तरनाक हथियार जो किसी को दिल की तरफ़ आता देख कर अपने-आप चल जायें। दिल की चहारदीवारी के बाहर गहरी खाइयाँ खुदवायीं हैं। दिल का मुख्यद्वार यूँ तो हमेशा बंद रहता है, बस किसी मेले में, कोई उत्सव आने पर यहाँ जनसाधारण को घूमने के लिए एंट्री मिलती है।
दिल के इस अभेद्य, अजेय क़िले पर जिसकी तानाशाही चलती है, बस, उसी को हम सरकार कहते हैं।