‘उसको सिगरेट पीते हुए देखे हो?’
‘काहे?’
‘अबे काहे के बच्चे, देखे हो कि नहीं?’
‘नै, हम तो नै देखे । कौनची हो गया जो पीबो करती है तो! दुनिया केन्ने से केन्ने बिला गयी औ आपको ओकरे सिगरेट पीने से दिक्कत है।’
‘अबे गधे की दुम साले, हम बोले कि दिक्कत है! सुने बिना सब अपने सोच लो। तुम्हीं न माथा खा रहे थे कि कहानी कैसे लिखते हैं हम। किरदार सब केन्ने से आता है।’
‘हाँ…तब?’
‘तो देखो बबुआ, किरदार ऐसे उगता है…उसे देखा होता तो जानते तुम। ऊ सिगरेट पीती है तनिक लजाते हुए। होठों पर एक सिगरेट ही नहीं, आधा मुसकी लुक-छिप रहता है। ढेर बदमाश लगती है सिगरेट पीते हुए। जैसे कोई छोटा सा पाप कर रही हो। चप्पल पहन के मंदिर में घुस जाने जैसा। कोई छोटा सा प्यार, कोई छोटा सा क़त्ल। हायऽ उसे देख कर लगता है कि साला, ऐसन ख़तरनाक लड़की, कैसे तोड़ती होगी दिल।’
‘बाप रे! एतना सारा कुछ उसको सिगरेट पीते देखने से दिख जाता है?’
‘ना, इससे थोड़ा ज़्यादा…’
‘धुर! इससे बेसी कौनची होता है?’
‘अरे बाबू, तुम देखे होते उसको सिगरेट पीते हुए तब बूझते। ना, तुम नहीं बूझते। महाबकलोल हो तुम। एक्के बार तो देखे थे हम भी।’
‘अच्छा! कुछ हुआ फिर?’
‘हुआ! हाँ हुआ न। हाथ में सिगरेट बाद में दिखी, पहले तो उसके होंठ दिखे, धुआँ-धुआँ एकदम। लगा कि जिसको चूम कर आयी है, उसमें तो आग लग गयी होगी।’
‘बेचारा!’
‘हाँ। बेचारा। काश, हम भी हो पाते ऐसे बेचारे।’
‘हौऽ आपसे बेचारा होना तो न हो पाएगा भैय्या!’
‘वही तो आफ़त है। ऊ बेचारा को माचिस मार देने का जी किया।’
‘राम-राम! सच्ची में लड़कवा को मार दिए माचिस क्या?’
‘यही सब काम बचा है हमको। हम अपना सब अरमान को माचिस मारे। जो लड़की किसी और के प्यार में ऐसन धू-धू जल रही हो, उसे छू कर कौन बेवक़ूफ़ हाथ जलाए।’
‘सही किए भैय्या। भाभीजी बहुत्ते दुखी हो जाती। भगवान आपको सदबुद्धि दिया।’
‘थोड़ा और सदबुद्धि दे देता तो अच्छा रहता।’
‘क्या करते और बुद्धि का आप?’
‘तुम्हारे जैसे बुड़बक के फेर में नहीं पड़ते।’
‘अरे, हम काहे बुड़बक हो गए?’
‘अभी न पूछ रहे थे कि किरदार कहाँ से आया। अभी भाभीजी भाभी जी कर रहे। ढपोरशंख। कोई लड़की नहीं थी। कहानी सुना रहे थे तुमको।’
‘ओफ़्फ़ो! कहानी सुनाने के पहले बतला तो दीजिए कहानी सुना रहे थे। हम फ़ालतू का बरतुहारी में खाए वाला थरिया सोच रहे थे।’
‘बऊआ, तोहरा से क़िस्सा-कहानी नै होगा। तुम जाओ जाके लालटेन बारो। सायरी लिखो। दु लाइन का तुमरा बुद्धि है।’
‘भैय्या ई ठीक बात नै है, दुनिया में बहुत बड़ा बड़ा सायर हुआ है।’
‘हाँ बाबू, लेकिन तुमको तो सबसे बड़ा सायर बनना है न। जाओ कुआँ पे बैठो कछुआ बार के। अगली बार हमसे सवाल-जवाब नै करना’
‘अच्छा भैय्या। बरात में डीजे करवा दीजिएगा।’
‘तुमरे बरात में करवाते हैं डीजे। फूटो यहाँ से।’गाँव के अधिकतर घरों में ढिबरी, लालटेन जल गयी थी। बग़ल वाले घर से धुएँ की गंध उठी थी। कोयला, लकड़ी और गोयठा की गंध में सिगरेट की गंध अलगा के सूंघ लेने वाला भैरो उदास हो रहा था। भला लड़का होना कितना बुरा है। और चिरैया उससे ही काहे कहती है हमेशा सिगरेट ला देने को। शहर से आयी बरात में वो गोरा-चिट्टा लड़का आया था जिसपर यूँ तो पूरे गाँव की लड़कियाँ मर मिटी थीं लेकिन उसको बस चिरैय्या को बिगाड़ना था। बागड़-बिल्ला। अब भैरो क्या समझाए चिरैय्या को कि उसकी बरात ऐसे नहीं आएगी गाँव में। वो ऐसे सिगरेट पी पी कर अपना और उसका, दोनों का कलेजा जलाना बंद करे। लाट-साहब लौट गए हैं। वो कहाँ भटक रही है कच्चे सपने में ख़ाली पैर। ऐसे में फेंकी हुयी सिगरेट बुताएगी तो गोड़ ही जलेगा बस। उफ़। कितना आग है, कितना गर्मी। प्यार करे चिरैय्या, दिल जले उसका। दुनिया का सब हिसाब-किताब कितना गड़बड़ है।
सपने में सिगरेट बुझाने से चिरैय्या के पाँव में छाला पड़ा हुआ था। लेकिन उसकी मरहम-पट्टी करने के पहले भैरो की नींद खुल खुल जाती थी। आँखों में चाँद चुभ रहा था।
उसने काँधे से चादर उतारी और चाँद पर डाल के सो गया।