मेरे सपनों में कुछ जगहें हमेशा वही रहती हैं। बहुत सालों तक मुझे एक खंडहर की टूटी हुयी दीवाल का एक हिस्सा सपने में आता रहा। उन दिनों मैं बिलकुल पहचान नहीं पाती थी कि ये कहाँ से उठ के आया है। आज पहली बार उस बारे में सोचते हुए याद आया है कि पटना में नानीघर जाने के रास्ते रेलवे ट्रैक पड़ता था। रेलवे ट्रैक के किनारे किनारे दीवाल बनी हुयी थी। वो ठीक वैसे ही टूटी थी जैसे कि मैं सपने में देखती आयी रही थी, कई साल। हाँ सपने में वो हिस्सा किसी क़िले की सबसे बाहरी चहारदिवारी का हिस्सा होता था।
इन दिनों जो सपने में कई दिनों से देख रही हूँ, लौट लौट कर जाते हुए। वो एक मेट्रो स्टेशन है। मैं हमेशा वही एक मेट्रो स्टेशन देखती हूँ। काफ़ी ऊँचा। कोई तीन मंज़िल टाइप ऊँचा है। और मैं हमेशा की तरह सीढ़ियों से चढ़ती या उतरती हूँ। इसे देख कर कुछ कुछ कश्मीरी गेट के मेट्रो की याद आती है। वहाँ की ऊँची सीढ़ियों की। मैं कब गयी थी किसी से मिलने, कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन पर उतर कर? याद में सब भी कुछ साफ़ कहाँ दिखता है हमेशा। या कि अगर दिखता ही हो, तो हमेशा जस का तस लिख देना भी तो बेइमानी हुआ। वो कितने कम लोग होते हैं, जिनका नाम हम ले सकते हैं। किसी पब्लिक फ़ोरम पर। ईमानदारी से। फिर ऐसे नाम लेने के बाद लोग एक छोटे से इन्सिडेंट से कितना ही समझ पाएगा कोई। हर नाम, हर रिश्ता अपनेआप में एक लम्बी कहानी होता है। छोटे क़िस्से वाले लोग कहाँ हैं मेरी ज़िंदगी में।
इस मेट्रो स्टेशन के पास नानी की बहन का घर होता है। स्टेशन से कुछ डेढ़ दो किलोमीटर दूर। हमेशा। मैं जब भी इस मेट्रो स्टेशन पर होती हूँ, मेरे प्लैंज़ में एक बार वहाँ जाना ज़रूर होता है।
आज रात सपने में में इस मेट्रो स्टेशन से उतर कर तुम्हारे बचपन के घर चली गयी। शहर जाने कौन सा था और मुझे तुम्हारा घर जाने कैसे पता था। और मैं ऐसे गयी जैसे हम बचपन के दोस्त हों और तुम्हारे घर वाले भी जानते हों मुझे अच्छे से। तुम घर के बरांडे में बैठ कर कॉमिक्स पढ़ रहे थे। हम भी कोई कॉमिक्स ले कर तुमसे पीठ टिकाए बैठ गए और पढ़ने लगे। आधा कॉमिक्स पहुँचते हम दोनों का मन नहीं लग रहा था तो सोचे कि घूमने चलते हैं।
हम घूमने के लिए जहाँ आते हैं वहाँ एक नदी है और मौसम ठंढा है। नदी में स्टीमर चल रहे हैं। जैसे स्विट्ज़रलैंड में चलते थे, उतने फ़ैन्सी। हम हैं भी विदेश में कहीं। मैं स्टीमर जहाँ किनारे लगता है वहाँ एक प्लाट्फ़ोर्म बना है। तुम कहते हो तैरते हैं पानी में। मैं कहती हूँ, पानी ठंढा है और मेरे पास एक्स्ट्रा कपड़े नहीं हैं। तभी प्लैट्फ़ॉर्म शिफ़्ट होता है और मैं सीधे पानी में गिरती हूँ। पानी ज़्यादा गहरा नहीं है। तुम भी मेरे पीछे जाने बिना कुछ सोचे समझे कूद पड़ते हो। फिर तुम तैरते हुए नदी के दूसरे किनारे की ओर बढ़ने लगते हो। मुझे तैरना ठीक से नहीं आता है पर मैं ठीक तुम्हारे पीछे वैसे ही तैरती चली जाती हूँ और हम दूसरे किनारे पहुँच जाते हैं। ये पहली बार है कि मैंने तैरते हुए इतनी लम्बी दूरी तय की है। हम पानी से निकलते हैं और सीढ़ियों पर खड़े होते हैं। इतना अच्छा लग रहा है जैसे लम्बी दौड़ के बाद लगता है। पानी साफ़ है। थोड़ा आगे सीढ़ियाँ बनी हुयी हैं और दूसरी ओर पहाड़ हैं। मैं कहती हूँ, आज मुझे तुम्हारे कपड़े पहनने पड़ेंगे। थोड़ी देर घूम भटक कर वापस जाने का सोचते हैं। उधर रेस्ट्रांट्स की क़तार लगी हुयी है नदी किनारे। हम उनके पीछे नदी की ओर पहुँचते हैं तो देखते हैं कि उनकी नालियों से नदी का पानी एकदम ही गंदा हो गया है। कोलतार और तेल जैसा काला। वहाँ से पानी में घुसने का सोच भी नहीं सकते। हम फिर तलाशते हुए नदी के ऊपर की ओर बढ़ते हैं जहाँ पानी एकदम ही साफ़ है। तुम होते हो तो मुझे पानी में डर एकदम नहीं लगता। हम हँसते हैं। रेस करते हैं। और नदी के दूसरे किनारे पहुँच जाते हैं। तुम्हारी सफ़ेद शर्ट है उसका एक बटन खुला हुआ है। मैं अपनी हथेली तुम्हारे सीने पर रखती हूँ। पानी का भीगापन महसूस होता है।
हम किसी डबल बेड पर पड़े हुए एक स्टीरियो से गाने सुन रहे हैं। एक किनारे मैं हूँ, लम्बे बाल खुले हुए हैं और बेड से नीचे झूल रहे हैं।एक तरफ़ तुम दीवार पर टाँग चढ़ाए सोए हुए हो। घर में गेस्ट आए हैं। तुम्हारी दीदी या कोई किचन से चिल्ला के पूछ रही है मेरे घर के नाम से मुझे बुलाते हुए...ये मेरा पटना का घर है...और स्टीरियो प्लेयर वही है जो मैंने कॉलेज के दिनों में ख़ूब सुना था। कूलर पर रख के, कमरे में अँधेरा कर के, खुले बाल कूलर की ओर किए, उन्हें सुखाते हुए। तुम मेरे इस याद में कैसे हो सकते हो। इतनी बेपरवाही से।
***
सपने में चेहरे बदलते रहे हैं, सो याद नहीं कितने लोगों को देखा। पर जगहें याद हैं और पानी की ठंढी छुअन। फिर मेरे पीछे तुम्हारा पानी में कूदना भी। सुकून का सपना था। जैसे आश्वासन हो, कि ज़िंदगी में ना सही, सपने में लोग हैं कितने ख़ूबसूरत।
तेज़ बुखार में तीन दिन से नहाए नहीं हैं, और सपना में नदी में तैर रहे हैं!
इन दिनों जो सपने में कई दिनों से देख रही हूँ, लौट लौट कर जाते हुए। वो एक मेट्रो स्टेशन है। मैं हमेशा वही एक मेट्रो स्टेशन देखती हूँ। काफ़ी ऊँचा। कोई तीन मंज़िल टाइप ऊँचा है। और मैं हमेशा की तरह सीढ़ियों से चढ़ती या उतरती हूँ। इसे देख कर कुछ कुछ कश्मीरी गेट के मेट्रो की याद आती है। वहाँ की ऊँची सीढ़ियों की। मैं कब गयी थी किसी से मिलने, कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन पर उतर कर? याद में सब भी कुछ साफ़ कहाँ दिखता है हमेशा। या कि अगर दिखता ही हो, तो हमेशा जस का तस लिख देना भी तो बेइमानी हुआ। वो कितने कम लोग होते हैं, जिनका नाम हम ले सकते हैं। किसी पब्लिक फ़ोरम पर। ईमानदारी से। फिर ऐसे नाम लेने के बाद लोग एक छोटे से इन्सिडेंट से कितना ही समझ पाएगा कोई। हर नाम, हर रिश्ता अपनेआप में एक लम्बी कहानी होता है। छोटे क़िस्से वाले लोग कहाँ हैं मेरी ज़िंदगी में।
इस मेट्रो स्टेशन के पास नानी की बहन का घर होता है। स्टेशन से कुछ डेढ़ दो किलोमीटर दूर। हमेशा। मैं जब भी इस मेट्रो स्टेशन पर होती हूँ, मेरे प्लैंज़ में एक बार वहाँ जाना ज़रूर होता है।
आज रात सपने में में इस मेट्रो स्टेशन से उतर कर तुम्हारे बचपन के घर चली गयी। शहर जाने कौन सा था और मुझे तुम्हारा घर जाने कैसे पता था। और मैं ऐसे गयी जैसे हम बचपन के दोस्त हों और तुम्हारे घर वाले भी जानते हों मुझे अच्छे से। तुम घर के बरांडे में बैठ कर कॉमिक्स पढ़ रहे थे। हम भी कोई कॉमिक्स ले कर तुमसे पीठ टिकाए बैठ गए और पढ़ने लगे। आधा कॉमिक्स पहुँचते हम दोनों का मन नहीं लग रहा था तो सोचे कि घूमने चलते हैं।
हम घूमने के लिए जहाँ आते हैं वहाँ एक नदी है और मौसम ठंढा है। नदी में स्टीमर चल रहे हैं। जैसे स्विट्ज़रलैंड में चलते थे, उतने फ़ैन्सी। हम हैं भी विदेश में कहीं। मैं स्टीमर जहाँ किनारे लगता है वहाँ एक प्लाट्फ़ोर्म बना है। तुम कहते हो तैरते हैं पानी में। मैं कहती हूँ, पानी ठंढा है और मेरे पास एक्स्ट्रा कपड़े नहीं हैं। तभी प्लैट्फ़ॉर्म शिफ़्ट होता है और मैं सीधे पानी में गिरती हूँ। पानी ज़्यादा गहरा नहीं है। तुम भी मेरे पीछे जाने बिना कुछ सोचे समझे कूद पड़ते हो। फिर तुम तैरते हुए नदी के दूसरे किनारे की ओर बढ़ने लगते हो। मुझे तैरना ठीक से नहीं आता है पर मैं ठीक तुम्हारे पीछे वैसे ही तैरती चली जाती हूँ और हम दूसरे किनारे पहुँच जाते हैं। ये पहली बार है कि मैंने तैरते हुए इतनी लम्बी दूरी तय की है। हम पानी से निकलते हैं और सीढ़ियों पर खड़े होते हैं। इतना अच्छा लग रहा है जैसे लम्बी दौड़ के बाद लगता है। पानी साफ़ है। थोड़ा आगे सीढ़ियाँ बनी हुयी हैं और दूसरी ओर पहाड़ हैं। मैं कहती हूँ, आज मुझे तुम्हारे कपड़े पहनने पड़ेंगे। थोड़ी देर घूम भटक कर वापस जाने का सोचते हैं। उधर रेस्ट्रांट्स की क़तार लगी हुयी है नदी किनारे। हम उनके पीछे नदी की ओर पहुँचते हैं तो देखते हैं कि उनकी नालियों से नदी का पानी एकदम ही गंदा हो गया है। कोलतार और तेल जैसा काला। वहाँ से पानी में घुसने का सोच भी नहीं सकते। हम फिर तलाशते हुए नदी के ऊपर की ओर बढ़ते हैं जहाँ पानी एकदम ही साफ़ है। तुम होते हो तो मुझे पानी में डर एकदम नहीं लगता। हम हँसते हैं। रेस करते हैं। और नदी के दूसरे किनारे पहुँच जाते हैं। तुम्हारी सफ़ेद शर्ट है उसका एक बटन खुला हुआ है। मैं अपनी हथेली तुम्हारे सीने पर रखती हूँ। पानी का भीगापन महसूस होता है।
हम किसी डबल बेड पर पड़े हुए एक स्टीरियो से गाने सुन रहे हैं। एक किनारे मैं हूँ, लम्बे बाल खुले हुए हैं और बेड से नीचे झूल रहे हैं।एक तरफ़ तुम दीवार पर टाँग चढ़ाए सोए हुए हो। घर में गेस्ट आए हैं। तुम्हारी दीदी या कोई किचन से चिल्ला के पूछ रही है मेरे घर के नाम से मुझे बुलाते हुए...ये मेरा पटना का घर है...और स्टीरियो प्लेयर वही है जो मैंने कॉलेज के दिनों में ख़ूब सुना था। कूलर पर रख के, कमरे में अँधेरा कर के, खुले बाल कूलर की ओर किए, उन्हें सुखाते हुए। तुम मेरे इस याद में कैसे हो सकते हो। इतनी बेपरवाही से।
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सपने में चेहरे बदलते रहे हैं, सो याद नहीं कितने लोगों को देखा। पर जगहें याद हैं और पानी की ठंढी छुअन। फिर मेरे पीछे तुम्हारा पानी में कूदना भी। सुकून का सपना था। जैसे आश्वासन हो, कि ज़िंदगी में ना सही, सपने में लोग हैं कितने ख़ूबसूरत।
तेज़ बुखार में तीन दिन से नहाए नहीं हैं, और सपना में नदी में तैर रहे हैं!