मैंने उसकी शक्ल नहीं देखी। सिर्फ़ लाइटर देखा है उसका। मगर उसने धोखे से पकड़ कर मेरा हाथ चूम ली है मेरी हथेली। सहम गयी है बेफ़िक्र मुस्कुराती हार्ट लाइन। हार्ट लाइन। तुमसे पहली बार मिली थी तो वो पहली चाँद की रात थी। मैंने लजा कर दोनों हथेलियों में ढक लिया था चेहरा…हौले से खोल कर हथेलियाँ, ठीक बीच से तोड़ा था चाँद और इसी हार्ट लाइन के पार तुम्हें पहली बार देखा था। उस अजनबी को कुछ भी नहीं मालूम। उसने इश्क़ नहीं जाना है, वो सिर्फ़ ज़िद जानता है। नियम जानता है। और इस शहर के नियम कहते हैं किसी अजनबी को सिगरेट नहीं दे सकते हैं। उसने मुझे अपने प्रेमिका कह कर पुकारने के लिए ही ऐसा किया है। हार्ट लाइन ग़ुस्से में फुफकार उठी है और कोड़े की तरह बरस गयी है उसके होठों पर। मुझे बेआवाज़ सिर्फ़ दिल तोड़ना ही नहीं, थप्पड़ मारना भी आता है। आज मालूम चला है।
तुम्हारा नाम जिरहबख़्तर है। मैं आशिक़ों के शहर जाते हुए आँखों में तुम्हारे नाम का पानी लिए चलती हूँ। नमक से चीज़ों में जल्दी जंग लग जाती है, इस डर से कोई मेरी खारी आँखें नहीं चूमता।
तुम्हारा स्पर्श एक मौसम है। बदन में खिलता हुआ। टहकता हुआ। गहरा लाल। सुर्ख़ नीला। काई हरा। जिन्होंने नहीं छुआ है तुम्हें वे बर्बाद हो जाने वाले इस मौसम से अनजान हैं।
उनके लिए ये शहर वसंत है। कि जिसने बौराने की इजाज़त पुराने आम के पेड़ से ली है जिसमें इस साल मंज़र नहीं आएँगे। सड़कें मेरे नंगे पैरों के नीचे काले कोलतार के अंगारे बिछाते जाती हैं। इस पूरी दुनिया के सड़कों की लम्बाई बढ़ती जाती है जब भी कभी इश्क़ होता है मुझे। इक तुम्हारे पुकारने से बनने लगते हैं क़िस्से वाले शहर। कविताओं की बावलियाँ कि जिनमें प्यास छलछलाया करती है। उफ़। तुमने मेरा नाम लिया था क्या?
इस यूनिवर्स के expand करने की conspiracy थ्योरी सुनोगे? ऐसा इसलिए है कि तुम्हारा शहर मेरे दिल से दूर होता जाए। गुरुत्वाकर्षण फ़ोर्स जानते हो क्या होता है? इश्क़। जो सारी चीज़ों को आपस में बाँध के रखता है। किसी ऐटम का वजूद ही नहीं होता…इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन और neutron तक अलग अलग होते रहते।
कि जानां, दुनिया की सबसे छोटी इकाई जानते हो क्या है? हिज्र। हम जब मिले थे और अगली बार जब मिलेंगे ये तुमसे मिलने के पलक झपकाते महसूस होने लगता है। इक साँस और दूसरी साँस के बीच खिंचती खाई है हिज्र।
मगर मुझे थोड़ा बौराने की इजाज़त दो। इस शहर, इस मौसम और बिना सिगरेट की इस शाम की ख़ातिर। हम और तुम आख़िर अलग अलग शहरों में हैं। इश्क़ और पागलपन में इक शहर भर का अंतर है। तुम मेरे शहर में होते तो इश्क़ ने तबाही के शेड में रंग दिए होते मेरे कमरे के सारे काग़ज़। फिर मैं तुम्हें कैसे लिखती ख़त। कैसे। बिना ख़त के कैसे आते तुम मुझसे मिलने? कभी होता कि चाँद रात अपनी छत पर खड़े होकर तुमने देखा हो ध्रुवतारे को, ये जानते हुए कि मैंने तुम्हें बेतरह याद किया है? याद ऐसी नहीं कि लिख लूँ खत और एक शाम जीने की, साँस लेने की मोहलत मिल जाए। याद ऐसी कि जैसे माँगी जाती है दुआ, मैं घुटनों के बल बैठूँ। धुली हुयी गहरी गुलाबी साड़ी में। कानों में झूलते हो गुलाबी ही झुमके कि जिनमें लगे हों तुम्हारे शहर की नदी से निकाले गए क़ीमती पत्थर। सर पर आँचल खींचूँ। दोनों हथेलियों को जोड़ूँ साथ में और चाँद को बंद कर दूँ एक दुआ में।
जानां। मैं मर जाऊँगी। मुझसे मिलने मेरे शहर आ जाओ।
तुम्हें समंदर का स्वाद नहीं मालूम। तुमने नमक सिर्फ़ कविताओं में चखा है। या कि तीखी सब्ज़ियों में। हज़ार मसालों के साथ जानते हो तुम नमक। कभी ऐसे शहर में गए हो जहाँ आँसुओं की बारिश होती है? अपनी हथेली चूमते हुए महसूसा है नमक को?कई साल तक उँगलियों के पोर में आँसू जज़्ब होते हैं तो उँगलियाँ नमक की बन जाती हैं। तुम क्यूँ चूमना चाहते हो मेरी उँगलियाँ? तुम्हें किसी ने कहा कि तुम्हारे लब खारे हैं? किसी ने चूमा है तुम्हें यूँ कि ख़ून का स्वाद और तुम्हारे होठों का स्वाद एक जैसा लगे?
मैं सिर्फ़ पागल हो रही होती तो कभी नहीं कहती तुमसे। मगर मेरी जान। मैं मर रही हूँ।
सुनो जानां, आते हुए सिगरेट लेते आना।