कब है होली? |
इस साल मोहित और नितिका इलेक्ट्रौिनक सिटी में एक अच्छे से सोसाईटी में शिफ्ट हुये थे। होली के पहले उनके असोसियेशन का मेल आया कि होली खेलने का पूरा इंतजाम है। दोनों ने हमें इनवाईट किया। होलिका दहन का भी प्रोग्राम था, हमने सोचा वो भी देख लेंगे। तो फुल जनता वहां एक दिन पहले ही पहुँच गयी। जनता बोले तो, हम, कुणाल, उसकी मम्मी, साकिब कीर्ति, रमन, कुंदन, चंदन, नितिका की एक दोस्त भी आयी। खाने के लिये दही बड़ा हम यहां से बना कर ले गये थे। शाम को ही अबीर खेल लिये। जबकि पुराने कपड़े भी नहीं पहने थे, हम तो होलिका दहन के लिये अच्छे कपड़े पहन कर निकले थे कि त्योहार का मौसम है। बस यही है कि बचपन का एक्सपीरियंस से यही सीखे हैं कि होली के टाईम पर हफ्ता भर से नया कपड़ा पहनना आपका खुद का बेवकूफी है, इसमें आप के उपर रंग डालने वाले का कोई दोष नहीं है। कल शाम को पिचकारी खरेदते वक्त ये गन खरीदी थी। पीले रंग की। हम तमीजदार लोग हैं(कभी कभी खुद को ऐसा कुछ यकीन दिलाने की कोशिश करते हैं हम। अनसक्सेसफुली) तो गन में सादा पानी भरा था। इस पिद्दी सी गन से कितना कोहराम मचाया जा सकता है ये हमारे हाथों में आने के पहले गन को भी पता नहीं होगा। देर रात तक खुराफात चलती रही। हौल में दो डबल बेड गद्दे लगा कर ८ लोग फिट हो गये। कुंदन घर चला गया था, रात के डेढ़ बजे चंदन पहुँच रहा था मलेशिया से। जस्ट इन टाईम फौर होली। पहले तो हौरर फिल्म देखा सब, हम तो पिक्चर शुरू होते ही सो गये। हमसे हौरर देखा नहीं जाता। वैसे ही चारो तरफ भूत दिखते हैं हमें।
अगली सुबह हम साढ़े सात बजे उठ कर तैयार। बाकी सब लोग सोये हुये। ऐसा लग रहा था कि जैसे शादी में आये हुये हैं। भोले भाले मासूम लोगों पर पिचकारी से भोरे भोर पानी डालना शुरू। सब हमको गरियाना शुरू। लेकिन फिर सब उठा। अब बात था कि चाय कौन बनायेगा। डेट औफ बर्थ से पता चला कि सब में रमन सबसे छोटा है, तो जैसा कि दस्तूर है, रमन चाय बनाया। तब तक हम पुआ के इंतजाम में जुट गये। क्या है कि हमसे खाली पेट होली नहीं खेली जाती। जब तक दु चार ठो पुआ अंदर नहीं जाये, होली का माहौल नहीं बनता। होली का इंतजाम सामने के फुटबौल फील्ड में था। नौ बजे से प्रोग्राम चालू होगा ऐसा मेल आया था। नौ बजे वहाँ कबूतर तक नहीं दिख रहा था। लोग तैयार होके औफिस निकल रहे थे। कुछ लोग वहाँ प्राणायाम कर रहे थे। हम लोग सोचे कि बस हमीं लोग होंगे खेलने वाले। साकिब कीर्ति दोनों मिल कर गुब्बारा में रंग भरना शुरु किया। हम सबसे पहले तो काला, जंगली वाला रंग लगा दिये कुणाल को, उसको होली में कोई और रंग लगा दे हमसे पहले तो हमारा मूड खराब हो जाता है। पजेसिव हो गये हैं हम भी आजकल। अब रंग लगा तो दिये ई चक्कर में भूल गये कि पुआ बनाना है। फिर बहुत्ते मेहनत से रगड़ रगड़ कर रंग छुड़ाये। पहला राउंड पुआ बनाते बनाते फील्ड में लोग आने चालू, लाउड स्पीकर पे गाने भी बजने लगे। कीर्ति ने चौथे फ्लोर की बालकनी से गुब्बारे फेंक कर टेस्टिंग भी कर ली थी कि सारे हथियार रेडी हैं।
असली होली |
हमारे पास कुल मिला के दो बंदूक, तीन बड़ी पिचकारी और बहुत सारा रंग था। कमीने लोगों ने मेरे पक्के वाले जंगली रंग छुपा दिये थे कि और्गैनिक होली खेलेंगे। शुरुआत तो फील्ड में दौड़ा दौड़ा के रंग लगाने से हुयी। कुछ बच्चे थे छोटे छोटे, अपनी फुली लोडेड पिचकारी के साथ दौड़ रहे थे। रंग वंग एक राउंड होने के बाद सब रेन डांस करने पहुंच गये। म्युजिक रद्दी था पर बीट्स अच्छे थे, और लोग डांस करने के मूड में हों तो म्युजिक कौन देखता है। धीरे धीरे लोगों का जमवाड़ा होते गया। कुंदन और चंदन भी पहुंच गये तब तक। उनको लपेटा गया अच्छे से। अब गौर करने की बात ये है कि रेन डांस के कारण चबूतरे से इतर जो जमीन थी वहां कीचड़ बनना शुरु हो गया था। थोड़ी ही देर में सबके रंग भी खत्म हो गये। बस, लोगों को कीचड़ में पटका जाना शुरु हुआ। फिर क्या था बाल्टियां लायी गयी और बाल्टी बाल्टी कीचड़ फेंका गया। चुंकी पानी के फव्वारे चल रहे थे और कीचड़ भी विशुद्ध पानी और मिट्टी का था इसमें नाली जैसे किसी हानिकारक तत्व की मिलावट नहीं थी मजा बहुत आ रहा था।
हम और चंदन- सबसे डेडली कौम्बो |
अब मैंने नोटिस किया कि लड़कियों को पटकने की कोशिश तो की जा रही है पर वे भाग निकलती हैं, कयुंकि किसी को सिर्फ कंधे से पकड़ कर कीचड़ में लपेटा नहीं जा सकता है, जरूरी है कि कोई पैर जमीन से खींचे। तो हमने माहौल की नाजुकी को देखते हुये लीडरी रोल अपनाया और पैर पकड़ के उठाओ का कामयाब नारा दिया। बहुत सारे उदाहरण भी दिखाये जिसमें ऐसी ऐसी लड़कियों का नंबर आया जिन्होनें हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा था। लेकिन हम होली में हुये किसी भी भेदभाव के सख्त खिलाफ हैं। फिर तो एकदम माहौल बन गया, लोग दूर दूर से पकड़ कर लाये जाते और कीचड़ मे डबकाये जाते। उस छोटी सी जगह में हम पूरा ध्यान देते कि कहीं भी मैनपावर की कमी हो, जैसे कि मोटे लोग ज्यादा उछलकूद कर रहे हैं तो आसपास के लोगों को, अपने भाईयों को भेजती कि मदद करो...आगे बढ़ो। इसके अलावा जब कोई कीचड़ में फेंका जा रहा होता तो हम वहीं खड़े होकर पैर से पानी फेंकते, एकदम सटीक निशाना लगा कर। अब रंग खत्म थे, पिचकारियां थी खाली। पानी के इकलौते नल पर बहुत सी बाल्टियां, बस हमने वहीं कीचड़ से पिचकारियां भरने का जुगाड़ निकाला। उफ़ कितना...कितना तो मजा आया।
काला रे सैंया काला रे |
फिर कुछ लोगों को औफिस जाना था तो जल्दी से नहा धोकर तैयार हो गये। एक राउंड पुआ और बनाये और पैक अप। इस बार सालों बाद ऐसी होली खेले थे। एकदम मन आत्मा तक तर होकर। दिल से बहुत सारा आशीर्वाद सब के लिये निकला। सदा आनंद रहे एही द्वारे, मोहन खेले होली।
पूरी टोली |
आज उठे हैं तो वापस सब कुछ दुखा रहा है। एक्जैक्टली कौन ज्वाईंट किधर है पता चल रहा है। होर्लिक्स पी रहे हैं और सोच रहे हैं...उफ़ क्या कमबख्त कातिलाना होली खेले थे। ओह गरदा!