16 May, 2015

#सौतनचिठियाँ- Either both of us do not exist. Or both of us do.


***
उस इन्द्रधनुष के दो सिरे हैं. एक मैं. एक तुम.
Either both of us do not exist. Or both of us do.
***

मालूम. मैं किसी स्नाइपर की तरह ताक में बैठी रहती हूँ. तुम दुश्मन का खेमा हो. ऐसा दुश्मन जिससे इश्क है मुझे. इक तुम्हारे होने से वो उस बर्बाद इमारत को घर कहता है. मेरी बन्दूक के आगे इक छोटी सी दूरबीन है. मैं दिन भर इसमें एक आँख घुसाए तुम्हारी गतिविधियाँ निहारते रहती हूँ. तुम्हारी खिड़की पर टंगी हुयी है इक छोटी सी अनगढ़ घंटी. मैं उसे देखती हूँ तो मुझे उसकी आवाज़ सुनाई पड़ती है. जैसे मैं तुम्हें देखती हूँ तो तुम्हारी धड़कन मेरी उँगलियों में चुभती है. कुछ यूँ कि मैं ट्रिगर दबा नहीं पाती. के ये दिन भर तुम्हें देखने का काम तुम्हारा खून करने के लिए करना था. मगर मुझे इश्क़ है उसे छूने वाली हर इक शय से. तुमसे इश्क़ न हो. नामुमकिन था.

के तुम पढ़ती हो उसकी कवितायें उसकी आवाज़ में...तुमने सुना है उसे इतने करीब से जितना करीब होता है इश्वर सुबह की पहली प्रार्थना के समय...जब कि जुड़े हाथों में नहीं उगती है किसी के नाम की रेख. तुम जानती हो उसकी साँसों का उतार चढ़ाव...तुमने तेज़ी से चढ़ी है उसके साथ अनगिनत सीढियाँ. तुम उसके उठान का दर्प हो. उसकी तेज़ होती साँसों को तुमने एक घूँट पानी से दिया है ठहराव. तुमने अपने सतरंगी दुपट्टे से पोंछा है उसके माथे पर आया पसीना. मुझे याद आती है तुम्हारी जब भी होती हैं मेरे शहर में बारिशें और पीछे पहाड़ी पर निकलता है इक उदास इन्द्रधनुष.

मालूम. नदियाँ यूँ तो समंदर में मिलती हैं जा कर. मगर कभी कभी हाई टाइड के समय जब समंदर उफान पर होता है...कभी कभी कुछ नदियों की धार उलट जाती है. समंदर का पानी दौड़ कर पहुँच जाना चाहता है पहाड़ के उस मीठे लम्हे तक जहाँ पहली लहर का जन्म हुआ था. उसकी टाइमलाइन पर हर लम्हा तुम्हारा है. बस किसी एक लम्हे जैसे सब कुछ हो रहा था ठीक उलट. धरती अपने अक्षांश पर एक डिग्री एंटी क्लॉकवाइज घूम गयी. सूरज एक लम्हे को जरा सा पीछे हुआ था. उस एक लम्हे उसने देखा था मुझे...इक धीमे गुज़रते लम्हे...कि जब सब कुछ वैसा नहीं था जैसा होना चाहिए. उस लम्हे उसे तुमसे प्यार नहीं था. मुझसे प्यार था. बाद में मैंने जाना कि इसे anomaly कहते हैं. अनियमितता. इस दुनिया की हर तमीजदार चीज़ में जरा सी अनोमली रहती है. मैं बस इक टूटा सा लम्हा हूँ. उलटफेर. मगर मेरा होना भी उतना ही सच है जितना ये तथ्य कि वो ताउम्र. हर लम्हा तुम्हारा है.

यूँ तो मैं इक लम्हे के लिए ताउम्र जी सकती हूँ मगर इस तकलीफ का कोई हल मुझे नज़र नहीं आता. शायद मुझे ये ख़त नहीं लिखने चाहिए. मैं उम्मीद करती हूँ कि ये चिट्ठियां तुम तक कभी नहीं पहुंचेंगी. आज सुबह मैंने वो लम्बी नली वाली बन्दूक वापस कर दी और इक छोटी सी रिवोल्वर का कॉन्ट्रैक्ट ले लिया है. मैंने उन्हें बताया कि मैं तुम दोनों में से किसी को दूर से नहीं शूट कर सकती. वे समझते हैं मुझे. वे उदार लोग हैं. कल पूरी रात मैं बारिश में भीगती रही हूँ. आज सुबह विस्की के क्रिस्टल वाले ग्लास में मुझे तुम दोनों की हंसी नज़र आ रही थी. खुदा तुम्हारे इश्क़ को बुरी नज़र से बचाए. सामने आईने में मेरी आँखें अब भी दिखती हैं. नशा सर चढ़ रहा है.

मैंने कनपटी पर बन्दूक रखते हुए आखिरी आवाज़ उसकी ही सुनी है. 'आई टोल्ड यू. लव कुड किल. नाउ. शूट'. 

1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, एहसास हो तो गहराई होती ही है ....
    , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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