30 December, 2014

जिंदगी। नीट ओल्ड मोंक में मिली किसी सरफिरे की याद है।

जिंदगी.
सुख का मुलम्मा है. सुनहला. चमकदार. जरा सा कुरेदो तो अन्दर की मिट्टी दिखेगी. सबकी अलग अलग.

जिन्दगी। ऐसी है कोई। जरा सी धुँधली। जरा सुर्ख। जरा सियाह
जिंदगी.
एक टहकते ज़ख्म पर जरा सा तुम्हारे नाम का बैंड एड है. दिल को झूठा सा दिलासा है कि भर जाएगा एक दिन. उन ट्वेंटी नाइन स्टिचेस से फॉरएवर बचे रहने की कवायद है. हर शाम का टूटा हुआ वादा है कि आज भी देर हो गयी ऑफिस से और डॉक्टर के पास नहीं जा सके. 

जिंदगी.
उस निशान की ख्वाहिशमंद है जिसके पीछे कहानियां छुपी हों. घुटनों पर के निशान...फूटी हुयी ठुड्डी का निशान...माथे पर नब्बे डिग्री का एल बनाता हुआ निशान. शर्त बस यही है कि निशान दिखने चाहिए. टूटे हुए दिल की कद्र कहाँ. उन टांकों की तलाश किसे. इसी बात पर जरा सा ब्लेड मारो न कलाई पर अपनी. जरा सी फूटे खून की धार. जरा सा घबराये तुम्हारा दिमाग ऑक्सीजन की कमी से. जरा सा नीला पड़े तुम्हारे होठों का स्वाद. 

जिंदगी.
सफ़ेद रुमाल पर काढ़ा हुआ तुम्हारा ही नाम है. शर्ट की बायीं पॉकेट में हमेशा रखा हुआ. लोगों के बेवक़ूफ़ सवालों पर एक झेंपी हुयी चुप्पी है...एक जिद है कि मुझे नहीं रखना पैंट की पॉकेट में रुमाल सिर्फ इसलिए कि सभी रखते हैं. मुझे रखने दो ना बायें पॉकेट में. जब तक जागा रहता हूँ उसके लगाए सारे स्टिचेस मेरे दिल के ज़ख्मों को भरते रहते हैं जरा जरा. ये रूमाल नहीं है...संजीवनी है. जब जब याद करता हूँ कि मुझे सोचते हुए महबूबा ने काढ़ा होगा रुमाल तो उसकी हर अदा पर दिल से उफ्फ्फ्फ़ निकल जाती है. उसके कमरे में सुबह धूप आती है. वो उस सुबह कोई सात बजे अपनी कॉफ़ी का मग और ये नन्हा सा रुमाल लेकर बैठी थी कि आज जो हो जाए ये जानेमन का रुमाल काढ़ के उठूँगी. रेशमी धागों का उसका आयताकार डिब्बा है स्टील का...उसमें से हरे रंग के धागे चुनने शुरू किये कि मेरी वादी के हरे चिनारों के रंग से लिखना था उसे मेरा नाम. अपने होने को मार्क करने के लिए मेरे इनिशियल्स के बीच उसने दो नन्ही बिंदियाँ रखीं...एक गुलाबी और एक पीली. वो गुनगुना रही थी एक बहुत पुराना गीत...'तुम्हें हो न हो...मुझको तो...इतना यकीं है...कि मुझे प्यार...तुमसे...नहीं है...नहीं है'. गीत के बीच में रुकना होता था उसे जब धागा ख़त्म हो जाता. ऐसे में वो अपने होठों के बीच सुई दबा लेती. मेरा दिल कैसे धक् से हो जाता था, पता है. सुई को ऐसे होठों के बीच रखना कितना खतरनाक है. 
बिलकुल हमारे इश्क जैसा. 

जिंदगी.
उसकी जिद है कि उसे मुझसे प्यार नहीं है.
मैं सिर्फ उसके ख्यालों की दुनिया का बाशिंदा हूँ. वो मानने को तैयार नहीं होती कि इसी दुनिया में इसी आसमान के नीचे मैं सांस लेता हूँ. उसकी दुनिया का चाँद मेरी आँखों में रिफ्लेक्ट होता है तो उसपर अपराजिता की बेलें लिपटने लगती हैं. नीले फूलों में गंध नहीं होती, वे बस तारों की तरह टिमटिमाते हैं. वो हाथ बढ़ा कर सारे फूल तोड़ लेना चाहती है कि अपने बालों में गूंथ सके. उसके मेरी आँखों की उदासी से डर लगता है इसलिए वो अपनी आँखों के पानी से इस अपराजिता को सींचती रहती है. वो जब मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखेगी तो मैं एक नन्ही सी कलम उसकी आँखों में भी रोप दूंगा. फिर उससे दूर रहने पर भी उसे मेरे शहर के मौसमों की खबर होगी. 

जिंदगी
मेरी हार्टबीट्स के ओपेरा की कंडक्टर है जिसका उस छोकरे पर दिल आ गया है.
वो अपनी घुमावदार बातों में उसे हिल स्टेशन की सड़कों की तरह घुमाता और लड़की चकरघिरनी सी घूमती रहती. कहता कि मैं बाइक पर तुझे किडनैप कर के ले जाऊँगा और लड़की बस खिलखिलाहटों की फसलें उगातीं. लड़की भूल जाती कि मुस्कराहट का एक मौसम है मगर आँसुओं की नदी सदानीरा है. वो सीटी बजाता हुआ आता और लड़की मेरी हार्टबीट्स की स्पीड भूल जाती. कोई और ही धुन बजने लगती. उसके इश्क में डूबी लड़की, कसम से मेरी जान ले लेगी किसी रोज़. 

जिंदगी
उसका यकीन है कि आर्मी की हरी वर्दी पर लगे सितारों की उम्र आसमान के सितारों से कहीं ज्यादा होती है.
दुआओं में भीगी चिट्ठियां हैं. बॉर्डर पर पहुँचती राखियाँ हैं. एक सलोनी सी उम्र में ऐनडीए वाले पड़ोसी लड़के के क्रू कट पर फ़िदा हो कर बॉय कट बाल कटाने वाली लड़की है. मिलिट्री के ट्रक के पीछे पीछे बिना ओवेर्टेक किये धीमी रफ़्तार में गाड़ी चलाती कोई पगली सी है. एक कहानी है जिसमें इश्क से हरे रंग की खुशबू आती है. 

जिंदगी
नीट ओल्ड मोंक में मिली किसी सरफिरे की याद है.
जिसे भुलाने के लिए पीनी पड़ती है बहुत सी नीट कोक और बहुत सा नीट पानी. फिर पुराने किसी ख़त से आती है उसके होने की खुशबू. फिर जाने किस फितूर में लिखती है लड़की जिंदगी को जाने कितने ख़त. जबकि जिंदगी भी जानती है कि उसका सिर्फ एक ही और नाम है...और वो उस लड़के के नाम से मिलता जुलता है.

21 December, 2014

कि रात भर बजा है हिचकियों का ओर्केस्ट्रा

नींद
एक गुमा हुआ देश है
बिना सरहदों, बिना नियमों वाला
जहाँ इजाज़त होती है इश्क को
बिलावजह चले आने की
और भटकने की दर बदर
जब तलक कि कोई उदास आँखों वाली लड़की
उसे अपने चौकोर कमरे वाले दिल में पनाह न दे दे

नींद
मारिजुआना का मीठा नशा है
याद की धुंध में तुम्हारी महक से घुलता-लिपटता
सिगरेट के पहले गहरे कश की तरह
सुलगाता. जलाता. भुलाता.
बंद करता आँखें जैसे खेल रहे हों लुक्का छिप्पी
और अचानक ही भर लेता आलिंगन में. धप्पा.

नींद
उसकी आँखों में लिखी कोई सीली इबारत है
जिसे पढ़ती हूँ तो उँगलियों के पोर ठंढे पड़ते जाते हैं
वो अलाव में गर्म करता अपने हाथ
हथेलियों में भरता मेरा चेरा
और सेक देता लम्हा लम्हा तड़पती रूह को

नींद
चाँद रंग वाली एक लड़की की हंसी है
चिनारों पर उतरती हुयी
हवा के राग में लेती उसका नाम
कानों के पास से गुजरती तो देती धोखे
सी...सी...सी...
मगर वो दिखता नहीं कोहरीली आँखों के पार

नींद
पहले ब्रेकऑफ का हैंगोवर है
बदन में मरोड़ की तरह टूटता
नाख्याली के सियाह में गुम हो जाने के पहले
कर्ट कोबेन की आवाज़ में चीखता
'नो आई डोंट हैव अ गॉड'

नींद
एक अलसाई सुबह है
तुम्हारे कंधे पर कुनमुनाती
शिकायतों का पिटारा खोलती
रात भर बजा है हिचकियों का ओर्केस्ट्रा
सुनो, ये रात रात भर हमें याद करना बंद करो

18 December, 2014

सिगरेट सा सुलगता पहाड़ों पर इश्क़

पहाड़ों को पहली बार कोई दो साल की उम्र में देखा था. केदारनाथ जाते हुए मम्मी के पोंचु में से जरा सा झाँक के...बर्फ़बारी हो रही थी. हम पालकी में थे. मुझे याद है वो सारा नज़ारा. बहुत सी बर्फ थी. पापा साथ चल रहे थे. मुझे आज भी आश्चर्य होता है कि मुझे बहुत छोटे छोटे बचपन की बहुत सारी चीज़ें कैसे याद हैं एकदम साफ़ से. केदारनाथ मंदिर हम लोग...पापा, मम्मी, बाबा और दादी गए थे. मुझे हरिद्वार का गंगा का घाट भी याद है. ठंढ याद है. बाबा और दादी को चारों धाम ले जाने के लिए पापा एलटीसी का प्रोग्राम बनाए थे. इसी सिलसिले में ऋषिकेश का लक्ष्मण झूला, हरिद्वार में हर की पौड़ी और केदारनाथ का मंदिर था.

जब से मम्मी नहीं है बचपन की सारी बातें भूलती जा रही हूँ. लगता था कि बचपन कभी था ही नहीं. इधर नानी भी नहीं रही तो बचपन की सारी कहानियां गुम ही गयीं थीं. बस एक आध तसवीरें थीं और स्कूल की कुछ यादें. पिछले महीने घर गयी तो पापा के साथ थोड़ा सा ज्यादा वक्त बिताने को मिला. इस उम्र में पापा से जितनी बात करती हूँ बहुत हद तक खुद को समझने में मदद मिलती है. लगता है कि मेरा सिर्फ चेहरे का कट, भवें और आँखें पापा जैसी नहीं हैं...बहुत हद तक मेरा स्वाभाव पापा से आया है. भटकने और फक्कड़पने का अंदाज एकदम पापा जैसा है. बिना पैसों के वालेट लिए घूमना. किसी यूरोपियन शहर में किसी म्यूजिक आर्टिस्ट की सीडी खरीदने के लिए लंच के लिए रखे पैसे फूंक डालना. सब पापा से आया है. इस बार पापा ने एक घटना सुनाई...जो मुझे कुछ यूँ याद थी जैसे धुंधला सपना कोई. समझ ये भी आया कि आर्मी के प्रति ये दीवानगी कहाँ से आई है कि आज भी एस्केलेटर पर कोई फौजी दो सीढ़ी पहले आगे जा रहा होता है तो दिल की धड़कनें आउट ऑफ़ डिसिप्लिन हुयी जाती हैं. कार चलाते हुए आगे अगर कोई आर्मी का ट्रक होता है तो हरगिज़ ओवेर्टेक नहीं करती हूँ. पागलों जैसी मुस्कुराते चलती हूँ धीरे धीरे उनके पीछे ही. दार्जलिंग से गैंगटोक और फिर छंगु लेक जाते हुए आर्मी एरिया से गुजरते हुए जवानों के साथ फोटो खिंचाना भी याद आता है. 

उफ़ कहाँ गयी वो क्यूटनेस!
बहरहाल...एक बार पापा और मम्मी मेरे साथ कहीं से आ रहे थे...रेलवे में फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में उन दिनों कूपे हुआ करते थे. कुछ स्टेशन तक कोई भी नहीं आया तो पापा लोग काफी खुश थे कि लगता है कि और कोई नहीं आएगा तो पूरा कूपा अपना हुआ. फिर थोड़ी देर में कुछ जवान आके सामान रख आये...होल्डाल वगैरह था...फिर दो लोग आ के बैठे. पापा बताये कि थोड़ा डर लगा कि काफी हाई रैंकिंग ओफिसियल था...और पूरी बोगी में सिर्फ आर्मी के जवान ही थे. उस वक़्त पापा जस्ट कुछ दिन पहले नौकरी ज्वाइन ही किये थे. तो नार्मल बात चीत हुयी...पापा ने बताया कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में काम करते हैं. फिर हमको देखा और पूछा...आपकी बेटी है...पापा बोले कि हाँ...फिर मेरी ओर हाथ बढ़ाया...और हम फट से उसकी गोदी में चढ़ गए. फिर पूरे रास्ता हम हाथों हाथ घूमे...कहीं अखरोट खा रहे हैं...कहीं कुछ सामान फ़ेंक रहे हैं...कहीं किलक रहे हैं...कहीं भाग रहे हैं...और पटना आते आते सारे जवानों की आँखों का तारा बनी हुयी हूँ. उसमें से जो ओफ्फिसियल था, वो हाथ देखा मेरा और पापा को बोला...सर ये लड़की जहाँ भी जायेगी इसी तरह छा जायेगी कि लोग इसे अपनी तलहत्थी पर रखेंगे...बस एक बात का ध्यान रखियेगा कि इस पर कभी शासन करने की कोशिश नहीं कीजियेगा. हम छोटे से थे. बात आई गयी हो गयी. पापा बता रहे थे कि आपको आज देखते हैं कि जहाँ हैं वहां इसी तरह सबका दिल जीते हुए हैं तो लगता है उसकी बात में कोई बात थी. ये रेलवे वाली बात धुंध धुंध सपनों में आती रही है कई बार. मैं देखती हूँ कि कोई छोटी सी लड़की है. एकदम सेब जैसे गालों वाली. अखरोट का पहला स्वाद भी वहीं से याद में है.

इधर कुछ दिन से फिर से कहीं भाग जाने का दिल करने लगा है. समझ नहीं आता है कि क्यूँ होता है ऐसा. मेरे बकेट लिस्ट में एक लम्बी यात्रा सबसे ऊपर है. अकेले. बुलेट पर. लड़कियां नॉर्मली ऐसी ख्वाहिशें नहीं पालतीं...उनमें हुनर होता है ऐसी किसी ख्वाहिश का बचपन में ही गला घोंट कर मार देने का. एक मैं हूँ...चिंगारी चिंगारी सी हवा दे रही हूँ. इस बार कहीं नौकरी पकड़ी तो पक्का अपने लिए एक बुलेट खरीदूंगी. मुझे डर क्यूँ नहीं लगता. मैं इस कदर बेपरवाह होकर क्यूँ हँस सकती हूँ. कल सब्जी की दूकान में खड़े आलू प्याज उठा रहे थे और याद करके बाकी चीज़ भी...बड़बड़ा रहे थे कि डॉक्टर बाइक चलाने से मना किया है तो घर में सारा सामान ख़त्म है. दुकानदार बोला कि मैडम आप बाइक थोड़े चलाती हैं...आप तो प्लेन चलाती हैं...टेक ऑफ कर जायेगी बाइक आपकी इतनी तेज़ चलती है. 

बंगलौर में रहते हुए पहाड़ों से प्यार ख़त्म हो गया था. यहाँ ठंढ इतनी पड़ती है कमबख्त कि हर छुट्टियों में हम समंदर और धूप की ओर भागते हैं. इधर याद में फिर से दार्जलिंग, कुल्लू मनाली और गुलमर्ग खिल रहे हैं. घाटियों से उठते बादल. बेहद ठंढ में दस्ताने पहनना और मुंह से भाप निकालना. मॉल रोड पर खड़े होकर रंग बिरंगे लोगों को गुज़रते देखना. घुमावदार सड़कों का थ्रिल. धुंध धुंध चेहरों का सामने आना मुस्कुराते हुए. पहाड़ों से किसी को नया प्यार नहीं होता...पहाड़ों से हमेशा पुराना प्यार ही होता है. बाइक लिए रेस लगाने का दिल करता है. खुली जीप में दुपट्टा उड़ाने का दिल भी. ऊंची जगहों से अचानक छलांग लगा देने का दिल करता है हमेशा मेरा...L'appel du vide एक फ्रेंच टर्म है, अंग्रेजी में The call of the void... खालीपन... निर्वात जो खींचता है... अपने अन्दर गहरे छलांग लगा देने को. इस बार मगर दिल करता है कि एक कैमरा और नोटबुक लिए जाएँ. बहुत सी तसवीरें खींचें और बहुत सी कहानियां सुनूं...लिखती चलूँ जाने कितनी सारी कवितायें. इस बार किसी छोटे से फारेस्ट गेस्टहाउस में बैठ कर देखूं बादल का ऊपर चढ़ना. सिगड़ी में सेंकूं हाथ. विस्की का सिप मारूँ. सिगरेट पियूँ किसी व्यूपॉइंट पर सबसे सुबह की कड़ाके की ठंढ में जा के. बहुत कुछ कैमरा में कैप्चर करूँ कि जैसे सूरज का उगना. बहुत कुछ आँखों में कैप्चर करूँ जैसे कि अचानक बने दोस्त. पीछे छूटते शहर.

जिंदगी पूरी नहीं पड़ती...कितना कुछ और चलते रहता है पैरलली...कितने शहर खुलते रहते हैं मेरे अन्दर...कल देर रात कुछ शहरों को गूगल मैप पर देख रही थी. पहाड़ों पर टिम टिम दिवाली याद आ रही थी, वैष्णोदेवी से देखना कटरा में फूटते पटाखे. गूगल मैप बताता रहता है कितना कम दूर है सब कुछ...हाथ बढ़ा के छूने इतना. जिंदगी फिसलती जा रही है. अरमानों को ब्लैकलिस्ट करते जा रही हूँ. कितने अफ़सोस बाकी रह जायेंगे. खुदा...यूँ ही फक्कड़पने और आवारगी में उड़ा देने के लिए एक जिंदगी और. 

16 December, 2014

पानी एक प्यासा प्रेमी है

पानी ने बना रखा है उसके बदन का नक्शा
भूलभुलैय्या में जानता है सही रास्ते
हर बार मुड़ता है सही मोड़ों पर 
पानी को याद हैं उसके सारे कटाव

फिसलपट्टी सा किलकता है
मग्गे से गिरता झल झल पानी
झरने से टपकता है टप टप

नदी में उतरती है लड़की
तो कस लेता है अजगरी आलिंगन में

उसे छू कर नीयत बदल जाती है पानी की भी
अटक जाना चाहता है, बालों में, आँखों में, काँधे पर
लड़की तौलिये से रगड़ कर मिटाती है उसके गीले बोसे
हेयर ड्रायर ऑन करती है तो सुलगता है पानी
पंख मिलते हैं मगर उड़ना नहीं चाहता भाप बन कर भी

पानी को इंतज़ार रहता है जाड़ों का
कि जब नल के बेसुर राग में सिहरती है लड़की
थरथरा जाता है पानी भी उसके रोयों से गुज़रते हुए
फर्श से उठाता है उसकी कतरनें
जाड़ों में बर्फीला पानी उसकी केंचुल हुआ जाता है

कवि की उँगलियों में कलम है
पानी की उँगलियों में उसका गोरा कन्धा
दोनों मांजते हैं अपने अपने हुनर को
कवि अपने रकीब को सलाम भेजता है
पानी अपने रकीब को लानतें

पानी कहता है मैंने छुआ है उसे
जहाँ तक तुम्हारी सोच ही जा सकती है बस

कवि कहता है मैं छू सकता हूँ उसका मन
पराजित पानी लड़की की आँखों से गिर आता है आँसू बन कर.

13 December, 2014

खुदा जिंदगी को सही लम्हे में पॉज करना नहीं जानता


'अब तुम किस गली जाओगे मुसाफिर?' मैं पूछती हूँ.
'पूजा, मेरा एक नाम है...तुम मेरा नाम क्यूँ नहीं लेती?'
'नाम लेने से किरदारों में जान आ जाती है...उनका चेहरा बनने लगता है...नाम नहीं लेने से हर बार जब कोई कहानी पढ़ता है उसी किरदार को नया नाम मिलता है...नयी पहचान मिलती है...किरदार से साथ पढ़ने वाला ज्यादा घुल मिल जाता है'
'मगर मेरे वजूद का क्या...तुम्हारे साथ जो मैंने लम्हे जिए उनका कोई मोल नहीं? तुम ये सब बिसर जाने दोगी? ये जो गहरे नीले रंग की टी-शर्ट है...ये इसिमियाके की खुशबू...ये किरदार में रख सकती हो तो मेरा नाम क्यूँ नहीं लिख सकती?'
'ये सब इसलिए जान कि लोग जब इस किरदार के बारे में सोचें तो अपनी जिंदगी के उस शख्स को कुछ नयी आदतें दे सकें. तुम तो जानते हो कि खुशबुओं का अपना कुछ नहीं होता...तुम्हारा परफ्यूम जब मैं लगाती हूँ तो मेरे बदन से वो खुशबू नहीं आती जो तुम्हारे बदन से आती है. इसी तरह जब पाठक मेरी कहानी में इसिमियाके के बारे में पढ़ेगी तो शायद बाजार जा कर इसिमियाके ढूंढेगी...फिर अपनी प्रेमी को गिफ्ट करेगी और उसकी गर्दन के पास चूमते हुए सोचेगी कि शायद मुझे ऐसा ही कुछ लगा हो जब मैं तुम्हारे इतने करीब आई थी. मगर उसकी खुशबू अलग होते हुए भी कहानी का अभिन्न हिस्सा होगी.'
'मुझे अगला परफ्यूम कब गिफ्ट कर रही हो?'
'मैं तुम्हें परफ्यूम क्यूँ गिफ्ट करुँगी...तुम बहुत पैसे कमाते हो, अपने लिए खुद तलाश सकते हो...मैंने इतना पढ़ा लिखा रक्खा है तुम्हें...जाओ और अपनी अलग पहचान बनाओ'
'पढ़ना लिखना और बात है...और फिर तुम ये हमेशा बीच बीच में पैसों का कहाँ से किस्सा ले आती हो...परफ्यूम खरीदना बड़ा इंटिमेट सी चीज़ होती है...अकेले खरीदने में क्या मज़ा. तुम चलो न साथ में मॉल. जब कलाई की जगह गर्दन पर परफ्यूम लगाऊंगा और तुम्हें सूंघ के बताने को बोलूँगा कि कैसी है...सोचो न...मॉल असिस्टेंट कितनी स्कैंडलाइज हो जायेगी. बहुत मज़ा आएगा'
'यू आर अ मोरोन मिस्टर लूसिफ़र टी डिमेलो'
'यु टुक माय नेम!'
'डैम...कसम से लूक, यु आर द क्रेजियेस्ट कैरेक्टर आई हैव एवर इमैजिंड...पता नहीं क्या पी के तुम्हें लिखा था...थोड़ी वोडका...थोड़ी विस्की...थोड़ी सी बची हुयी ऐब्सिंथ भी थी शायद.'
'पीने से याद आया...थोड़ी सी बेलीज आयरिश क्रीम बची हुई है...कॉफ़ी बनाऊं...दोनों पीते हैं थोड़ा थोड़ा...आज तुम्हारा मूड बड़ा अच्छा है. कहानी में मेरा नाम तक लिख दिया. इस ख़ुशी में वैसे तो पिंक शैम्पेन पीनी चाहिए लेकिन कमबख्त औरत, इतने भी पैसे नहीं कमाता हूँ मैं.'
'पेशेंस माय लव...पेशेंस...अगले फ़ाइनन्शियल इयर में तुम्हें ४० परसेंट इनक्रीज दिला दूँगी. खुश?'
'इतना लम्बा अफेयर मेरे साथ? तुम्हारे बाकी किरदारों का क्या होगा? इतनी देर से गप्प मार रही हो मेरे साथ, नावेल लिखोगी क्या मुझ पर?'
'अहाँ...एक्चुअली, नॉट अ बैड आइडिया...नॉट अ बैड आइडिया ऐट आल मिस्टर लूक. यू हैव मेड मी प्राउड. कंसिडरिंग, आई ऐम इन लव विथ यू. गोइंग बाय द पास्ट रिकॉर्ड, कोई ६ महीने तो ऐसा चलेगा. इतने में एक नावेल तो लिख ही सकती हूँ'
'कमाल...तो क्या क्या है आगे प्लाट में. लम्बा नावेल लिख रही हो...दो चार प्रेमिकाओं का इंतज़ाम करोगी न?'
'अरे कमबख्त. जरा सा फुटेज मिला नहीं कि मामला सेट कर रहे हो. मेरा क्या? हैं? इतनी मेहनत से तुम्हें किसी और के लिए लिखूंगी...सॉरी, इतना बड़ा दिल नहीं है मेरा. तुम सिर्फ मेरे लिए रहोगे'.
'पूजाssssss डोंट बी मीन न. ऐसे थोड़े होता है. देखो तुम हमेशा मेरी चीफ प्रिंसेस रहोगी...है न. जैसे राजाओं के हरम होते थे न...मगर रानी सिर्फ एक होती थी. बाकी मनोरंजन के लिए. लम्बा नावेल है. तुमसे बोर हो जाऊँगा.'
'बाबा रे ऐटिट्युड देखो अपना. दिल तो कर रहा है इसी चैप्टर में मार दूं तुम्हें. वो भी फ़ूड पोइजनिंग से'
'फ़ूड पोइजनिंग? उसके लिए तुम्हें मुझे खाना खिलाना होगा...कंसिडरिंग कि तुम्हें खाना बनाने में कोई इंटरेस्ट नहीं है...चाहे मेरे जितना हॉट किरदार तुमसे मिन्नतें करे तो हमारा अगला स्टॉप कोई रेस्टोरेंट होगा. वहां तुम खुद से कहानी का कोई चैप्टर लिखने के मूड में आ जाउंगी. बस फिर तो जरा सा मक्खन मारना है तुम्हें. वैसे भी कैलिफोर्निया पिज़्ज़ा का चोकलेट मिल्कशेक पी कर तुम्हारा मूड इतना अच्छा हो जाता है कि फरारी लिखवा लूं अपने लिए कहानी में...फिर मेरे क़त्ल का प्रोग्राम फॉरएवर के लिए पोस्टपोंड. तुम्हें वैसे भी कहानी में मर जाने वाले किरदार अच्छे नहीं लगते.'

'तुम कितनी बकबक करते हो लूसिफ़र'
'हाय, तुम कितना चुप रहती हो पूजा...उफ़ मैं तुम्हारी आवाज़ सुनने के लिए तरस गया हूँ. कुछ कहो न...प्लीज...मेरी खातिर. सन्नाटे में सुन्न हुए मेरे कानों की खातिर'
'उफ़. मुझे क्या पड़ी थी...अकेलापन इतना थोड़े था. मर थोड़े जाती. तुम्हें लिखा ही क्यूँ. मैं और मेरे खुराफाती कीड़े. तुम्हें इस दिन के लिए आर्किटेक्ट बनाया था. तुम्हारा काम है बड़े बड़े शहरों की तमीज से टाउन प्लानिंग करना. मैप्स देखना और कॉन्टूर्स पर अपना दिमाग खपाना...तुम खाली जमीनें देखो...पुराने शहर देखो...एक्सक्यूज मी...तुम्हारा काम सिर्फ सुनना था. ये घड़ी घड़ी रनिंग कमेंट्री देना नहीं. ख्वाब देखो शेखचिल्ली के. हुंह'
'जानेमन, गुस्से में तुम कमाल लगती हो. तुम्हें पता है तुम्हारे गाल लाल हो जाते हैं और इन्हें पकड़ कर गुगली वुगली वुश करने का मन करने लगता है'
'मुझे तुम्हें थपड़ियाने का मन करता है सो'
'बस, यही गड़बड़ है तुम्हारा...ये जो बिहारी इंस्टिंक्ट है न तुम्हारे अन्दर. हमेशा मार पीट कुटम्मस. ये क्या है. बताओ. तुम्हारे जैसी लड़की को ये सब शोभा देता है? मैं इतनी मुहब्बत से बात कर रहा हूँ तुमसे और तुम लतखोरी पे उतर आई हो!'
'ऐ, लूसिफ़र, मार खाओगे अब...अपनी वोकैब सुधारो. ये सब मेरे टर्म्स हैं. तुम्हें ऐसे बात करने की परमिशन नहीं है'
'अच्छा छोड़ो, तुम्हें किस करने की परमिशन है आज?'
'व्हाट द हेल इज रौंग विद यु लूसिफ़र. हैव यू लॉस्ट योर फकिंग माइंड?'

'सॉरी. बट आई मिस यू अ लॉट. तुम कितने दिन बाद आई हो मुझसे मिलने. ऐट लीस्ट अ हग. प्लीज. तुम ऐसे कैसे कोई किरदार बना कर चली जाती हो. अधूरा. मैं क्या करूँ बताओ.'
'अरे, ये कैसी शिकायत है. तुम अकेले थोड़े हो. इतने सारे सपोर्टिंग करैक्टर क्या फ्री में इतनी ऐश की जिंदगी जी रहे हैं. मैंने पूरा इकोसिस्टम बनाया है तुम्हारे लिए. वो तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड जो है. उसके साथ बोलिंग चले जाओ. या फिर तुम्हारी पोएट्री रीडिंग ग्रुप है...सैटरडे को उनसे मिलने का प्लान कर लो. न हो तो पोंडिचेरी चले जाओ ट्रिप पर. कितना कुछ है करने को जिंदगी में. तुम कैसी कैसी बात करते हो. इसमें मुझे मिस करने की फुर्सत कहाँ से निकाल लेते हो. व्हाट नॉनसेंस!'
'पूजा. आई मिस यू. सब होने के बावजूद...और चूँकि जानता हूँ कि सब कुछ तुम रच रही हो. तुम्हें मालूम है मैं क्या सोच रहा हूँ, मेरे डर क्या क्या हैं और उसके हिसाब से तुम दुनिया में उलटफेर करती जाती हो. मगर जानती हो, देयर इज आलवेज समथिंग मिसिंग. मुझे हमेशा तुम्हारी कमी महसूस होती है.'
'कुछ तो मिसिंग रहेगा न लूक...मैं भगवान् तो नहीं हूँ न. तुम जानते हो'
'इसलिए तो कभी कभार तुम्हें तलाशता हूँ. अपने क्रियेटर से प्यार हो जाना कोई गुनाह तो नहीं है. तुम रहती हो तो सब पूरा पूरा सा लगता है. जैसे दुनिया में जो भी गैप है...जरा सा भर गया है. प्लीज, कम हियर एंड गिव मी अ हग. अगली बार पता नहीं कब आओगी'
***

मैं कुछ देर उसकी बांहों में हूँ. मैं उसे लूसिफ़र कहती हूँ क्यूंकि उसे लिखते हुए पहली बार काली स्याही का इस्तेमाल किया था. इस काली स्याही के पीछे भी एक कहानी है. उसके साथ जीना सियाही में डूबना है. उसके हृदय में उतना ही अंधकार है जितना कि मेरे. उतना ही निर्वात जितना कि मेरे. फिर जब उसकी बांहों में होती हूँ तो कैसे लगता है कि पूरा पूरा सा है सब. कॉपी पर सर टिकाये कहीं दूर भटक जाती हूँ. पहाड़ों के बीच एक नदी बहती है. चिकने पत्थरों पर. जंगल की खुशबू आती है. हर ओर इतनी हरियाली है कि आँखों का रंग होने लगता है हरा. नदी में एक छोटी सी नाव है जिसपर हम दोनों हैं. ठहरे हुए. जिन्दा. पूरे.

***
'आई लव यू पूजा'
'आई लव यू टू लूक'
'अब'
'रीबाउंड की तैय्यारी करते हैं.'
'मतलब तुम जा रही हो?'
'जाना जरूरी है जान. वर्ना कहानी कैसे आगे बढ़ेगी. यहाँ पर सब ठहर जाएगा.'
'उफफ्फ्फ्फ़. रियल जिंदगी इससे भी ज्यादा मुश्किल होती होगी न?'
'यु हैव नो आईडिया. खैर. चलो...कैसी लड़की क्रियेट करें तुम्हारे लिए?'
'कोई एकदम तुम्हारे जैसी'
'ना ना...उसके बहुत से साइड इफेक्ट्स होंगे.'
'जैसे कि?'
'वो बिलकुल मेरे जैसी होगी...लेकिन जरा सा कम...और ये जरा सा कम बहुत चुभेगा तुम्हें. क्यूंकि तुम्हें वो गैप्स दिखते रहेंगे. जैसे चांदनी रात में तुम उसकी आँखों में देखने की जगह चाँद को ताकते रहोगे. इसमें वो भी दुखी होगी और तुम भी.'
'फिर क्या करें? मुझे तुम्हारे जैसी ही पसंद आएगी'
'यू विल बी सरप्राइज्ड...वैसे भी हम सिर्फ एक रिबाउंड क्रियेट कर रहे हैं. ये तुम्हारे जनम जनम का प्यार थोड़े है. न पसंद आये तो कुछ दिन में डिच कर देना'
'और जो उस लड़की का दिल टूटेगा, सो?'
'वो कहानी की मेन किरदार थोड़े है. हु केयर्स कि उसके साथ क्या हुआ उन चंद फ्रेम्स के बाद'
'तुम इतनी कोल्ड हो सकती हो, मैंने सोचा नहीं था.'
'सी, तुम मुझे ठीक से जानते तक नहीं. तुम्हारे लिए इस बार एकदम प्यारी और क्यूट सी लड़की क्रियेट करती हूँ. कोई ऐसी जो इतनी भोली और मासूम हो कि उसे मालूम ही न चले कि दिल टूटना भी कुछ होता है. कोई एकदम अनछुई. जिसे प्यार ने कभी देखा तक न हो'
'ऐसी लड़की का दिल तोड़ने में मैं जो टूट जाऊँगा सो?'
'तो तुम्हारे टूटने से कौन सी प्रॉब्लम आ रही है मेरे टाइमलाइन में ये बताओ?'
'पूजा, सीरियसली...यही प्यार है तुमको मुझसे...मेरी ख़ुशी के बारे में सोचना तुम्हारा काम नहीं है?'
'दुःख किरदार को मांजता है. सुख का एक ही आयाम है. दुःख के बहुत सारे. तुम टूटोगे तो तुममें चिप्पियाँ लगाने की जगह बनेगी. हंसती खेलती जिंदगी में कोई रस नहीं होता...तुम्हें दुःख से डर कब से लगने लगा?'
'मुझे अपनी नहीं उस साइड किरदार की चिंता है जिसकी तुम्हें कोई चिंता नहीं...उसे भी तो दुःख होगा...और लड़कियां ऐसी चीज़ों को सदियों दिल से लगाये रखती हैं.'
'तुम्हें लड़कियों के बारे में इतना कैसे पता लूक?'
'लास्ट टाइम जब तुम बहुत सालों तक नहीं आई तो मैं लाइब्रेरी में घूम रहा था, वहां विमेन साइकोलोजी पर एक किताब थी'
'यू नेवर फेल टू अमेज़ मी. पोर्न लाइब्रेरी में तुम विमेन साइकोलोजी पढ़ रहे थे? प्योर मैनुफैक्चरिंग डिफेक्ट है...तुम्हारे दिमाग की वायरिंग रिसेट करनी पड़ेगी. तुम नार्मल लड़कों की तरह बिहेव नहीं कर सकते. विमेन साइकोलोजी माय फुट!'

'अच्छा तो जब वो लड़की मेरी जिंदगी में रहेगी, मुझे तुम्हारी याद नहीं आएगी?'
'कभी कभार आएगी...मगर धीरे धीरे कम होती जायेगी.'
'फिर मैं एक दिन भूल जाऊँगा तुमको?'
'हाँ'
'और अगर मेरा इस रिबाउंड में कोई इंटरेस्ट नहीं है फिर भी तुम इस लड़की को क्रियेट करोगी? मैं अपने वक्त का बेहतर इस्तेमाल करूंगा...क्राइम सोल्व करूंगा...सोशल वर्कर बनूँगा...जिंदगी का कोई मायना तलाश लूँगा...हम ऐसे ही नहीं रह सकते? मैं जरा जरा तुम्हारे प्यार में...तुम कभी कभी मिलने चली आओ...एक आध हग...कभी साथ में हाथ पकड़ कर किसी बसते हुए शहर के किनारे किनारे टहल लें हम. मेरे लिए इतना काफी है...मत लिखो न ये चैप्टर. प्लीज.'
'देखो लूक...आगे के चैप्टर्स में तुम्हारा एक परिवार होगा...बच्चे होंगे...बीवी होगी. तुम मुझमें अटके नहीं रह सकते न. मैं तुम्हें ऐसे अकेला भी नहीं लिखूंगी पूरी नॉवेल में. तुम्हारा ही आईडिया था न. मैं तो एक चैप्टर ही लिख रही थी मेरी तुम्हारी बातों का.'
'मैं गलती नहीं कर सकता? इतनी बड़ी सजा दोगी मुझे?'
'तुम्हें टाइमलाइन नहीं दिखती लूक. कुछ भी बहुत वक़्त के लिए नहीं होता. सब गुज़र जाता है. आखिरी चैप्टर में जब तुमसे मिलूंगी तो बड़े सुकून से मिलोगे मुझसे...उस सुकून की खातिर तुम्हें इस सब से गुज़ारना होगा.'

'सारे चैप्टर्स लिखते वक़्त तुम बेईमानी करोगी न...तुम जान कर मेरी यादों से अपना चेहरा धुंधला दोगी न?'
'अब मैं जाऊं? तुमसे रोमांस करने के अलावा भी बहुत सा काम है मुझे'
'फिर कब आओगी?'
'पता नहीं. तुम्हारे लिए घबराहट होती है कभी कभी. मैं उम्मीद करती हूँ कि तुम्हें सही सलामत लास्ट चैप्टर तक पहुंचा दूं. तुम्हें भी क्या पड़ी थी...नॉवेल लिखो...जितना जुड़ती हूँ तुमसे उतनी तकलीफ होती है. तुम्हारी तरह मैं अपने क्रियेटर से बात नहीं कर सकती न. उसका भी मैनुफैक्चरिंग डिफेक्ट हूँ मैं. कहाँ जा के रिफंड मांगूं. बताओ.'

'गुडबाय पूजा.'
'गुडबाय लूसिफ़र टी डिमेलो'

*** 

दुःख मांजता है...सुख तो बस ऊपर के टच अप्स हैं डार्लिंग. फिर मैं लूक के किरदार से गुजरते हुए क्यूँ नहीं इस दर्द को किसी चैप्टर में डिलीट कर पा रही हूँ. मैंने क्यूँ रचा था उसे. बस एक छोटी सी मुलाकात ही तो थी. उसकी तकलीफें इस कदर जिंदगी का हिस्सा होती जाएँगी कब सोचा था. रिबाउंड चल रहा है. वो खुश है. मैं देखती हूँ उसकी आँखों की चमक. उसकी यादों में धुंधलाता अपना चेहरा. उस मासूम लड़की के कंधे से आती खस की गहराती हुए गहरी हरी महक. मैं टर्काइज इंक से लिखती हूँ मुहब्बत. मुहब्बत. मुहब्बत. लूक की आँखों का रंग भी होने लगा है फिरोजी.

***

मेरा खुदा मगर मेरे लिए कोई रिबाउंड नहीं लिखता. मैं वही ठहरी हुयी हूँ. उसकी बांहों में. अंतिम अलविदा में. जिंदगी कई मर्तबा पॉज हो जाती है...दिक्कत यही है कि रिमोट हमारे हाथ नहीं खुदा के हाथ है.

05 December, 2014

सम पीपल वॉक इनटु योर लाईफ जस्ट फॉर द पर्फेक्ट गुडबाय


वल्नरेबिलिटी इज द बिगेस्ट टर्न ऑन 

कोई अपने आप को पूरी तरह खोल दे...जिस्म...रूह...कि दिखने लगें सारी खरोंचें..दरारें...प्रेम वहीं से उपजता है...कि जैसे पुरानी दीवारों के दरारों में उगता है पीपल...एक दिन अपना स्वतंत्र वजूद बनाने के लिए...भले ही उसके होने से दीवारों का नामो निशान मिट जाए...इश्क ऐसा ही तो है. कई बार इसके उगने के बाद कुछ भी पहले जैसा नहीं रहता. अक्सर जब पौधा मजबूत हो जाता है तो दीवारें टूट कर गिर जाती हैं. हम कल को न रहे मगर ये तो दिल के जैसे पत्तों वाला इश्क हमारी दरारों में उग चुका है...इश्क रहेगा. सदियों लड़कपन में इसके पत्तों पर लिखे जायेंगे अफ़साने. मासूम लड़कियां इसके पुराने पड़ चुके पत्तों को हफ़्तों भिगो कर रखेंगी तब तक कि जिन्दा हरेपन का कोई अंश बाकी न रहे...बची हुयी धमनियों के जाल पर लिखेंगी अपने प्रेमी का नाम...टांकेंगीं छोटे गोलाकार शीशे...चिपका देंगी बिंदियाँ और गलत सलत हिंदी में कहेंगी...तुम हमेसा के लिए हमारे हो. 

आई जस्ट वांटेड टू टेल यू...द बोगनविला डाइड

कसम से मैंने बहुत कोशिश की...रोज उसे मोजार्ट का संगीत भी सुनाया...फर्टिलाइजर भी डाला...सुबह शाम पानी देती थी...यहाँ तक कि धूप के हिसाब से गमले दिन भर इस बालकनी से उस बालकनी करती रही. लोग कहते तो थे कि बोगन विला अक्खड़ पौधा है. इसे मारना बहुत मुश्किल का काम है. मैं तो उसे बोगनविलिया की जगह तमीजदार बोगाविला भी बुलाने लगी. तुम कहाँ मानोगे कि बिहारी ऐसे ही बात करते हैं...एक आध एक्स्ट्रा या...वा...रे...मुहब्बत की निशानी है. जैसे पिंटुआ...कनगोजरा...मगर जाने दो. तुम नहीं समझोगे. यूँ तो हम लोग का कभी सुने नहीं...तुम लोग से उठ कर कुछ और होने लगे...कि लोग तो ये भी कहते थे कि अपनी पुरानी गलतियों से हमेशा सीख लेनी चाहिए. फिर मैं क्यूँ पड़ी किसी जिन्दा चीज़ के इश्क में. ठीक तो सोच रखा था कि सिर्फ उनपर जान दूँगी जो पहले से जान दे चुके हैं. मरे हुए कलाकार...मरे हुए शायर...लेखक, यहाँ तक कि फ़िल्मकार भी. किसी जिन्दा चीज़ से इश्क हो जाने का मतलब है उसके डेथ वारंट पर साइन कर देना. बचपन से कोई जानवर नहीं पाला...कभी गार्डन में नहीं गयी...इन फैक्ट किसी पड़ोसी के कुत्ते के पिल्ले को भी हाथ नहीं लगाया...किसी के मर जाने का खौफ कितना गहरे बैठा होता है तुम नहीं जानोगे. तुमने इस तरह प्यार कभी नहीं किया है. रोज गमले में लगे हुए सूखे पत्ते देखती हूँ तो दिल करता है आग लगा दूं पौधे में. नया गमला है...उसका क्या अचार डालूं? तुम्हें तो पौधों के मरने से फर्क नहीं पड़ता न...जरा ये वाला गमला ले जाओ. सुनो, इसमें सूरजमुखी के फूल लगाना. वे मेरे घर की ओर मुड़ेंगे तो जरा कभी मुझे याद कर लेना.

दिल के ग्लेशियर को तुम्हारी आँखों की आंच लगती है 

मेरी कॉफ़ी में चीनी बहुत ज्यादा थी...बहुत ज्यादा. नया देश था और मैं भूल गयी थी कि बिना कहे कॉफ़ी में तीन चम्मच चीनी डालना सम्पन्नता का प्रतीक माना जाता है. उसके ऊपर से बहुत सारी फ्रेश क्रीम भी थी...जिसमें फिर से बहुत सी चीनी थी. कुछ लोगों की पसंद कैसे जुड़ जाती है न जिंदगी से. मुझे ठीक ठीक याद नहीं कि हम दोनों में से किसने ब्लैक कॉफ़ी में चीनी डालनी कब बंद की...जहाँ तक मुझे याद है हम एक दूसरे में इतने खोये रहते थे कि होश ही नहीं रहता था कि कॉफ़ी कैसी है...या कि कॉफ़ी में चीनी भी डालनी है...चीनी डाल कर चम्मच चलानी है...चम्मच चलाने से ध्यान टूट जाता था...आँखें तुम्हारी आँखों से हटानी होती थीं. ये हम में से किसी को हरगिज़ मंजूर नहीं था. तो हम बस जैसी भी आती थी कॉफ़ी पी लिया करते थे...न दूध डाला...न चीनी...बस कुछ होना चाहिए था हमारे बीच तो कॉफ़ी के दो कप रख दिए जाते थे. उन दिनों मैं दिन भर सिर्फ तुम्हारी आँखों के शेड्स पढ़ते हुए गुज़ार सकती थी. नारंगी सुबह में हलकी भूरी आँखें कितनी गर्माहट देती थीं...दिन की धूप घड़ी थी तुम्हारी बरौनियाँ...शाम गहरा जाने पर गहरा जाता था तुम्हारी आँखों का रंग भी. ब्लैक कॉफ़ी जैसा. एक रोज़ तुम्हें देखा था उसी पुराने कॉफ़ी शॉप में...तुम्हारे साथ कोई बेहद खूबसूरत लड़की थी. तुम्हारी कॉफ़ी में उसने दूध डाला फिर तुमसे पूछ कर दो छोटे छोटे शुगर के पैकेट फाड़े...चीनी मिलाई और मुस्कुराकर तुम्हारी ओर कप बढ़ाया. कॉफ़ी का पहला सिप लेते वक़्त तुम्हारी आँखें धुंधला गयीं थीं. मालूम नहीं मेरी आँख भर आई या तुम्हारी. याद है हम आखिरी बार जब मिले थे, कितनी ठंढ थी...दस्तानों में भी हाथ सर्द हो रहे थे. वेटर एक छोटी सी सिगड़ी ला कर रख गया था टेबल पर. उसपर अपनी उँगलियाँ सेंकते हुए मैंने कितनी मुश्किल से खुद को तुम्हारा हाथ पकड़ने से रोका था. उस शहर में कॉफ़ी नहीं मिलती थी...चाय मिलती थी. अजीब थी. ग्रीन टी. बेस्वाद. बिना किक के. बिना चीनी के. ग्रीन टी चीनी की उम्मीद के बिना एक्जिस्ट करती थी. वैसे ही जैसे हमारा रिश्ता होने जा रहा था. हम ऐसे होने जा रहे थे जहाँ हमें एक दूसरे की जरूरत नहीं थी...आदतन नहीं थी. फितरतन नहीं थी. फिर भी तुम ख्यालों में इतनी मिठास के साथ कैसे घुले हो मालूम नहीं. विदा कहने वाली आँखें चुप थीं. मैंने यक़ीनन उस दिन के बाद भी बहुत दिनों तक कॉफ़ी पीना नहीं छोड़ा था. जाने कैसे तुमसे जुड़े होने का अहसास होता था. फिर जाने कब आदत छूट गयी. फिर भी...कभी कभी सोचती हूँ...इफ यू स्टिल ड्रिंक योर ब्लैक कॉफ़ी विदआउट शुगर. 

वन लास्ट थिंग...आई डू नॉट लव यू एनीमोर.  

डैम इट.
मुझे लगा कमसे कम तुम्हें प्यार नहीं होगा किसी से.
कमसे कम मुझसे तो हरगिज़ नहीं.
क्या करें...लाइफ है.
शिट हैप्पेंस.


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