उसकी तलाश में जाना पड़ा मुझे
रात के ठहरे हुए पहर में उठ कर
ध्रुव तारा डूबने को तैयार नहीं था
खींच कर लाना पड़ा क्षितिज से सूरज
ताकि सुबह मेरी उनींदी पलकों से उग सके
ये वो खोयी हुयी सुबह नहीं थी लेकिन
जिससे होकर मैं तुम्हारे घर तक पहुँच सकती
और खोल सकती बिना सांकल वाला दरवाजा
तुमने आँखें खोलने से इनकार कर दिया
लावारिस हो गई मेरी लायी हुयी सुबह
और अजनबी हो गया मुझमें पलता हुआ शहर
रात खफा होके दूर चली गई मुझसे
थक गई आँखें चुंधियाती रौशनी में
सपना नहीं रहा...तुम मेरे कोई नहीं रहे
भोर, सांझ, बीच दिन...थोड़ी रात
एक अबोला तुम बिन
मैं तुम्हारी कुछ नहीं रही...तुम मेरे कोई नहीं रहे
ताकि सुबह मेरी उनींदी पलकों से उग सके
ये वो खोयी हुयी सुबह नहीं थी लेकिन
जिससे होकर मैं तुम्हारे घर तक पहुँच सकती
और खोल सकती बिना सांकल वाला दरवाजा
तुमने आँखें खोलने से इनकार कर दिया
लावारिस हो गई मेरी लायी हुयी सुबह
और अजनबी हो गया मुझमें पलता हुआ शहर
रात खफा होके दूर चली गई मुझसे
थक गई आँखें चुंधियाती रौशनी में
सपना नहीं रहा...तुम मेरे कोई नहीं रहे
भोर, सांझ, बीच दिन...थोड़ी रात
एक अबोला तुम बिन
मैं तुम्हारी कुछ नहीं रही...तुम मेरे कोई नहीं रहे
उनींदी पलकों पर उगी सुबह पहली बार देखी.. भली और मासूम लगी ..
ReplyDeleteसुन्दर लगी अभिव्यक्ति! कहीं डूबी हुई सी...
ReplyDeleteWaah !!
ReplyDeleteरात खफा होके दूर चली गई मुझसे
ReplyDeleteथक गई आँखें चुंधियाती रौशनी में
सपना नहीं रहा...तुम मेरे कोई नहीं रहे
भोर, सांझ, बीच दिन...थोड़ी रात
एक अबोला तुम बिन
मैं तुम्हारी कुछ नहीं रही...तुम मेरे कोई नहीं रहे
kya baat hai , bahut khoob !
भोर, सांझ, बीच दिन...थोड़ी रात
ReplyDeleteएक अबोला तुम बिन
मैं तुम्हारी कुछ नहीं रही...तुम मेरे कोई नहीं रहे...azeeb sa dard lga....tum mere koee nahi ya main tumhari koee nahi aisa nahi hota..hum rishto ko kabhi bhi todh nahi sakte bas kahi band kar ke rakh dete hai.....jab bhi dekhna wo wahi honge......jaha rakhe honge.....
kavita bahut achhi lagi.....
ReplyDeleteध्रुव तारा डूबने को तैयार नहीं था
ReplyDeleteखींच कर लाना पड़ा क्षितिज से सूरज
ताकि सुबह मेरी उनींदी पलकों से उग सके
Bahut acchi rachna hai.......
or khi shama-shama sa dard bhi hai jo chupke dil ki dansta suna gya....
kia baaat hai....kmaal
ReplyDeleteध्रुव तारा डूबने को तैयार नहीं था
ReplyDeleteखींच कर लाना पड़ा क्षितिज से सूरज
तुमने आँखें खोलने से इनकार कर दिया
लावारिस हो गई मेरी लायी हुयी सुबह
और अजनबी हो गया मुझमें पलता हुआ शहर
... बहुत जबरदस्त पंग्तियाँ... स्तरीय भी... सार्थक
पता चला है कि शौपिंग करने निकल रही हो(कहीं तुम्हारे कमेंट में पढ़ा था)? जाओ और मेरे लिये भी शौपिंग कर लेना.. मैं आने वाले साप्ताहांत पर तुम्हारे शहर में ही रहूंगा.. :)
ReplyDeleteझूठी वाह-वाह नहीं करूंगा.. कविता तो बहुत अच्छी है मगर तुम्हारे स्टैंडर्ड की नहीं लगी.. तुम इससे भी अच्छा लिखती हो.. :)
एक ख्याल को खींच कर लम्बा कर दिया.. और क्या खूबसूरत खींचा है... बहुत खूब
ReplyDeleteआज़ादी एन्जॉय कर रही हो.. लगता है
kahin ek dard bhi chipa hai..
ReplyDeletekahin ek dard bhi chipa hai..
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद फॉर्म में आयी हो.......एक सेंचुरी फिर अपने नाम कर ली......इसी पूजा से तो दोस्ती की थी पहली बार......
ReplyDeleteसोचा कि "अच्छी है" लिख कर निकल लूं...फिर पीडी के कमेंट पे नजर गयी...हम्म्म्म!
ReplyDeleteकहीं खो गई थी एक सुबह
ReplyDeleteउसकी तलाश में जाना पड़ा मुझे
रात के ठहरे हुए पहर में उठ कर
..... Aishi hi hota hai..kai baar subah kho jaati hai to use laana padta hai .....aati nahi ....
कहीं खो गई थी एक सुबह
ReplyDeleteउसकी तलाश में जाना पड़ा मुझे
रात के ठहरे हुए पहर में उठ कर
..... Aishi hi hota hai..kai baar subah kho jaati hai to use laana padta hai .....aati nahi ....