27 August, 2007

मैं और मेरी तन्हाई

बंजारा (नज़्म) ~~~~~~~~~~

मैं बंजारा
वक़्त के कितने शहरों से गुजरा हूँ
लेकिन
वक़्त के इस शहर से जाते जाते
मुड़कर देख रहा हूँ
सोच रहा हूँ
तुमसे मेरा ये नाता भी टूट रहा है
तुमने मुझको छोड़ा था जिस शहर में आके
वो शहर भी मुझसे छूट रहा है

मुझको विदा करने आये हैं
वो सारे दिन
जिनके कंधे पर सोती है
अब भी तेरे जुल्फ की खुशबू
वो सारे लम्हे
जिनके माथे पर हैं रौशन
अब भी तुम्हारे लम्स का टीका
नम आँखों से
गुमसुम मुझको देख रहे हैं
मुझको इनके दुःख का पता है
इनको मेरे गम की खबर है
लेकिन मुझको हुक्मे-सफ़र
जाना होगा
वक़्त के अगले शहर अब मुझे जाना होगा

नए शहर के सब दिन सब रातें
जो तुमसे नावाकिफ होंगे
वो कब मेरी बात सुनेंगे
मुझसे कहेंगे
जाओ अपनी राह लो राही
हमको कितने काम पड़े हैं
जो बीती सो बीत गयी
अब वो क्यों दोहराते हो
कंधे पर झोली रखे
क्यों फिरते हो क्या पाते हो

मैं बेचारा
इक बंजारा
आवारा फिरते फिरते जब थक जाऊंगा
तनहाई के टीले पर जाकर बैठूँगा
फिर जैसे पहचान के मुझको
इक बंजारा जान के मुझको
वक़्त के अगले शहर के
सारे नन्हे मुन्ने भोले लम्हे
नंगे पांव
भागे भागे आ जायेंगे
मुझको घेर के बैठेंगे
और मुझसे कहेंगे क्यों बंजारे
तुम तो वक़्त के कितनों शहरों से गुजरे हो
उन शहरों की कोई कहानी हमें सुनाओ

उनसे कहूँगा
नन्हे लम्हों -
एक थी रानी....
सुनके कहानी
सारे ग़मगीन लम्हे मुझसे ये पूछेंगे
तुम क्यों उनके शहर ना आयी
लेकिन उनको बहला लूँगा
उनसे कहूँगा ये मत पूछो
आँखे
मूँदो और ये सोचो
वो होती तो कैसा होता

तुम ये कहती तुम वो कहती
तुम इस बात पे हैरान होती
तुम इस बात पे कितनी हँसती
तुम होती तो ऐसा होता
तुम होती तो वैसा होता
धीरे धीरे
सारे नन्हे लम्हे सो जायेंगे
और मैं हौले से उठकर
वक़्त के अगले शहर के रस्ते हो लूँगा
यही कहानी फिर दोहराने
तुम होती तो ऐसा होता
तुम होती तो वैसा होता
P.S : i forgot the name of the poet...i think its gulzar, but not very sure

24 August, 2007

mera jnu

i need time to write this one...lets say this is hte first cut, for there are times when i delay writing something thinking it should be given a lot of thinking i end up writing nothing at all.

i went to jnu yesterday...hail bunking ! kabhi school college se nahin ki isliye office se karni padi :-D kya karein, bada man kar raha tha.

and as i was walking these roads i felt that jnu belongs to me in as much as i belong to it. the winding roads, hte greenery, hte bunhces of bouganviliea, hte sounds of birds twittering and peacok's calls make evokes a nostalgia that is as dear to me as if it were me...something that is actually me.

and as i was showing you around, the inherent pride in my voice when i asked you"batao kya tuhara iit bombay mere jnu se jyada sundar hai?"made it more of a statement. knowing very well that things like these cannot be compared, its not just physical beauty but more of hte memories attached to it that make a the roads of your college the most beautiful place inthe whole goddamn world.

i was happy to show a most important part of my life to you...and i was amazed how much you were at ease. it was a nice getaway...stolen moments...again :-D

morning blues or life's blue

what do you do when you get up early in hte morning?
hte concept of early may be different for dfferent people,for me 6.30 is early and i really dnt know what to do if i get up that early.

i am a night person generally sleep at sometime after midnight, either thinkingabout some issue or writing a poem or some shor story that is nagging my head.

आजकल सुबहें कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो गयी हैं...आंख खोलने का मन नहीं करता है, मन करता है कि कहीं से कोई रौशनी नहीं आये, कोई आवाज नहीं आये...एक खामोशी एक अन्धकार जिससे निकलने की कोई जरुरत नहीं हो...

13 August, 2007

"तेरी आंखें चुप चुप हो गयी हैं, पहले चिल्लाती रहती थीं"
इसलिये शायद मैं प्यार करती हूँ तुमसे...क्यों तुम मुझे वैसे पढ़ते हो जैसे मैं हूँ...शब्द भी वही होते हैं,जरा भी इधर उधर नहीं होते। ऐसा जब पहली बार हुआ था तभी मुझे पहली बार लगा था की मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ एक या दो दिन नहीं..अपनी पूरी जिंदगी।

जिंदगी से समझौते करते करते मैं थक गयी हूँ, हर बार अपने आप को समझा लेती हूँ...पर अब नहीं हो पता है। मेरा इतना रोने का मन कर रह है बता नहीं सकती। मुझे नहीं पता है मैं अपनी जिंदगी का क्या करुँगी...कहने का मतलब ये की मुझमें जो थोड़ी सी जिंदगी बची है उसका क्या क्या करुँगी। हम कब मिलेंगे कैसे मिलेंगे पता नहीं है। उस ऑफिस जाने में दिन भर तो ऐसे ही निकल जाएगा और मैं अब कुछ सोच नहीं पाती हूँ और मुझे कुछ समझ नहीं आता की मुझे क्या करना चाहिऐ कैसे करना चाहिऐ।

माँ नहीं मानेगी तो मैं क्या करुँगी? ये सवाल बेमानी है क्योंकि मैं जानती हूँ की मा कभी नहीं मानेगी। घर के सदस्यों ने पहले की काफी कुछ सुनाया है उसे, मेरा क्या हक बनता है की मैं उसे बाहर वालो से भी बात सुनवाउँ। पापा भी दुःखी हैं। ऐसा ही क्या जरुरी है है मेरा जीना...मर ही जाऊंगी कौन सा आस्मान टूट पड़ेगा...

हर बार किसी ना किसी मुश्किल से थक गयी हूँ...अभी भी नानी का ऑपरेशन होना है, फिर घर के सारे लोग यहीं दिल्ली में ...मैं कैसे कह सकूंगी रे तुझे मुझे पता नहीं।

अभी का बस यही पता है की कुछ नही pata

11 August, 2007

गली में आज चांद निकला...

यूं तो थिरक रही हूँ सारी की सारी मैं...
नज़र आती है बस होठों की एक मुस्कान
जो जाने कब से शरारत से कभी इस कोने तो कभी उस कोने भागादौडी कर रही है

सब कुछ झूठ...सारी परेशानी सपना सी लगती है
सच है तो बस ये की

तुम आ गए हो...

04 August, 2007

questions without answers

my father went to see a colleague of his...for whatsoever reasons i am not very sure. a very important reason might be that he wanted some fresh air...unable to breathe in the room we occupied...we...me and my mother.

this colleague had a daughter who was recently married...to a man of her choice...or as said in common language it was a love marriage. its been about seven months since she left with her companion for life. as hte normal courtesy is his wife would have come out with tea and snacks for both of them, but this did not happen this time.

it ws percieved that she did not come out because she was grieving...she was ashamed of her daughter...who defied the rules of society. cases like this are slowly becoming the norm in even our bhagalpuri samaj. it is these parents that go long faced, unable to meet and socialise that are in the majority causing an opinion that such an ac of defiance by a daughter is hte greatest sin a woman can commit.

i just have one question

we have heard a lot of stories about these people...right...but are there any stories about hte girl who obeyed...the ideal daughter who surrendered all for the society. where are these girls, there must be some, where are they hidden. has someone gone to ask their story.

lets take this situation on the other side...she obliges

will someone notice the sadness in her eyes while getting married...will someone hear her cries for mercy when she is slaughtered at this age old guillotine...no...the answer is a blatant NO.
what option does she have?hindu marriage is sacrosanct that too when arranged by the parents. so this marriage takes place for the society...all rejoice but the girl...who cares...and who will if the parents turn a blind eye...who will care

is this the fate of a girl who falls in love...most of them do...and god forbid if she has truly fallen in love. will she be able to laugh again...yes she will...will the laughter reach her eyes...never.

never will she live again as hte girl that was...never will hte laughter give hope...she will perform her duties as a slave does...she is a bonded labour, she will laugh at the right time, be the good wife ,daughter, mother but the girl in her...she will be dead but who cares.

will someone hear her story...no they wont take the effort...so next time my father goes to a girl who has obeyed her parents what will he see? he will se a girl who is happy in her husband's house...content with the person her parents chose for her and sure that she would not have found a better person...

as years pass...hte girl will stop grieving for the girl that was dead and slowly forget her existance...she will think whatever happend happened for good.

what does this give?

pain...in both parties...which is greater...who will decide?

what will happen if she doesnt...how long will my father's colleagues bereave the incident...5 years at the max...they will start coming out...meet people...laugh...what died...a dream.

and if she does...how long will she berieve 5 years max...she will accept her fate...stop crying...will beh appy being a mother a wife, shadow of her husband...what died...her soul...isnt her soul more precious?

who will decide

i am at the crossroads of life...every moment is hell for me...i am unable to breathe...24 years old and lost myself...lost hope...how will i live?

give me the right to decide...i am fighting for my life...its my birthright

01 August, 2007

बोल बम


बोल बम का नारा है
बाबा एक सहारा है
बाबा नगरिया दूर बा
जाये के जरुर बा
सारा शहर बोल बम की ध्वनि से गूँज उठा है...सावन का पावन महीना और श्रद्धालुओं की भीड़। मन अनायास ही थोडा अच्छा अच्छा सा हो जाता है। इस नारे में बहुत शक्ति है...शुद्धता है...आस्था है...सारा शहर केसरिया हो गया है।
मंदिर गयी थी आज, और बहुत दिन बाद मन को शांति मिली, शायद इस भाव से की भोले बाबा मेरे साथ हैं और कोई भी हो ना हो। राम जी की तरह वो नहीं कहेंगे की कार्य पूरे होने में आशंका है। लगा कि भोले बाबा को मनाना आसान है, मान जायेंगे।
अगले साल सावन में मेरा मन है काँवर ले के आने का...देखें...ये सब तो भगवन की इच्छा पर होता है...बाबा बुलाएँगे तो आ जाऊंगी।

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